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सूर्य प्रताप सिंह, BHOPAL. कलियासोत की कहानी में एक तरफ दर्द है तो दूसरी तरफ गुस्सा। दर्द उन लोगों का जिन्होंने जीवन भर की पूंजी लगाकर सपनों का आशियाना खरीदा जो अब टूटने जा रहा है। कलियासोत के कैचमेंट में बने घर अब 31 दिसंबर तक के ही मेहमान हैं। गुस्सा उन लोगों पर जो कलियासोत के असली कातिल हैं। वे सिर्फ कलियासोत के ही कातिल नहीं बल्कि उन लोगों के सपनों के भी कातिल हैं जिन्होंने एक अदद घर के लिए अपना पूरा जीवन खपा दिया और अब वही घर जमींदोज होने जा रहा है। घर टूटकर आम आदमी को तो उस गुनाह की सजा मिल जाएगी जो उन्होंने किया ही नहीं। लेकिन उन गुनहगारों को सजा कब मिलेगी जिन्होंने ये जघन्य अपराध किया है।
कैंपस के फ्लैट्स की नींव में कलियासोत का पानी बह रहा
70 साल की निर्मला देवी को हाई ब्लड प्रेशर है, डायबिटीज 400 के पार पहुंच गई है। नगर निगम के एक नोटिस ने उनको हार्ट पेशेंट भी बना दिया है। यह कहानी अकेली निर्मला देवी की नहीं बल्कि, कलियासोत के किनारे बसे हजारों लोगों की है। बिल्डर ने कलियासोत के 33 मीटर के दायरे में अल्टीमेट कैंपस बनाकर काम डुप्लीकेट किया। इस कैंपस के फ्लैट्स की नींव में तो कलियासोत का पानी बह रहा है। जो अब बाढ़ बनकर इन घरों को डुबोने जा रहा है। ये बात बिल्डर ने यहां घर खरीद रहे लोगों को नहीं बताई। अब नौबत ये आ गई है कि एनजीटी के आदेश के बाद इनको नगर निगम के नोटिस आ गए हैं। लोगों को 31 दिसंबर तक घर खाली करने का अल्टीमेटम दे दिया गया है। अब आखिर ये जाएं तो जाएं कहां। न कोई सुनने वाला है और न कोई देखने वाला।
लोगों के पास सभी कागजात, फिर गलती किसकी
यह लोग पिछले 10-15 सालों ये यहां रह रहे हैं। इस कैंपस के अधिकांश लोग रिटायर हो चुके हैं। कई बुजुर्गों के बच्चे घर से बाहर हैं और वे घर में अकेले अपने जीवन का उत्तरार्ध काट रहे हैं। रिटायरमेंट पर जो प्राविडेंट फंड, ग्रेच्युटी की राशि मिली उसको मिलाकर बैंक से लोन ले लिया। 20-25 लाख में यहां पर फ्लैट खरीदा। कागज में नगर निगम की परमिशन थी, टीएंडसीपी से नक्शा पास था। रजिस्ट्रार आफिस में रजिस्ट्री हुई जिसमें सरकार को स्टांप शुल्क चुकाया। बैंक ने प्रॉपर्टी सर्च कर लोन दिया। बिजली कंपनी ने घर में बिजली दी और नगर निगम ने हर साल प्रॉपर्टी टैक्स वसूला। जब ये सब कुछ था तो फिर इसमें उन लोगों की क्या गलती थी जिन्होंने ये कागज देखकर घर खरीदा।
महंगे फ्लैट बेचने वाले मालिकों पर कार्रवाई क्यों नहीं
लोगों की आंखें भरी हैं और गले भी भरे हैं। नगर निगम का नोटिस उनको बीमार बना रहा है। इन लोगों के पास जाने को कोई जगह नहीं है। कोई भूख हड़ताल पर जाने की बात कर रहा है तो कोई इसी कैंपस में झोपड़ी बनाकर रहने की बात करता है। मिडिल क्लास के इन लोगों के पास इतनी पूंजी भी नहीं कि एक और घर अफोर्ड कर सकें। ये अल्टीमेट कैंपस सीएनपी कंस्ट्रक्शन ने बनाया। इसके मालिक विपिन चौहान और विवेक चौहान हैं। इन लोगों के सपनों के सबसे बड़े और पहले कातिल यही हैं। इन लोगों ने महंगे फ्लैट बेचकर अपनी जेबें तो भर लीं, लेकिन इन लोगों को सड़क पर ला दिया। द सूत्र का इनसे सीधा सवाल यही है कि इनकी बारी कब आएगी जब इनसे पूछा जाएगा कि मार दिया जाए-या छोड़ दिया जाए, बोल तेरे साथ क्या सुलूक किया जाए।
आइए आपको बताते हैं कि कलियासोत के असली गुनहगार कौन हैं...
द सूत्र का सीधा आरोप है कि इस गुनाह के वे सब गुनहगार हैं जिन्होंने कलियासोत के कैचमेंट में आवासीय कॉलोनी बसाईं। जनता को ठगने के इस पूरे खेल में बिल्डर समेत आधा दर्जन सरकारी एजेंसियां भी शामिल हैं जिनकी आंखों में इतनी बड़ी सच्चाई दिखाई नहीं दी। सजा तो इन गुनहगारों को भी मिलना चाहिए। और छोटी-मोटी नहीं ये सब बड़ी सजा के हकदार हैं।
गुनाहगार नंबर 1- बिल्डर : कलियासोत के पहले गुनहगार हैं बिल्डर। बिल्डरों ने अपने फायदे के लिए कलियासोत के कैचमेंट एरिया में रहवासी कॉलोनी बनाईं। लोगों को मुंहमांगी कीमत पर घर बेचे और अपनी जेबें भरीं। क्या पैसों के लालच में इनको नजर नहीं आया कि वे कितना बड़ा गुनाह कर रहे हैं या फिर इन्होंने इस तरफ देखना भी नहीं चाहा।
गुनाहगार नंबर 2- नगर निगम : दूसरी गुनहगार है भोपाल की नगर निगम या उस समय मकान की अनुमति देने वाली नगरपालिका। नगर निगम प्रॉपर्टी टैक्स और सफाई कर तो बड़े मजे से वसूल रही है। लेकिन नगर निगम के हुक्मरानों ने क्या आंखों पर पट्टी बांध ली थी जिनको बिल्डिंग परमीशन देते समय यह दिखाई नहीं दिया कि वे कलियासोत के कैचमेंट में मकान बनवा रहे हैं जो कभी टूट भी सकते हैं।
गुनाहगार नंबर 3- टाउन एंड कंट्री प्लानिंग: इसकी तीसरी गुनहगार है टाउन एंड कंट्री प्लानिंग। क्या टीएनसीपी को भी ये दिखाई नहीं दिया कि उस पर पूरी बसाहट की प्लानिंग का जिम्मा है। उसे तो कम से कम जिम्मेदारी से काम करना चाहिए। बसाहटों का पूरा नक्शा बना दिया और कलियासोत का कैचमेंट दिखाई ही नहीं दिया।
गुनाहगार नंबर 4- रजिस्ट्रार आफिस : कलियासोत का चौथा गुनहगार है रजिस्ट्रार आफिस : क्या इस ऑफिस का काम सिर्फ स्टांप शुल्क वसूलना है। यहां पर भी स्टांप शुल्क लेकर घर की रजिस्ट्री कर दी गई। घर कहां बना है, किसने बनाया है, कौन खरीद रहा है, क्या इस खरीद-फरोख्त में सब कुछ सही है। इन सब बातों से रजिस्ट्रार आफिस को कोई मतलब ही नहीं रहा।
गुनाहगार नंबर 5- बैंक : इस गुनाह में बैंक भी पीछे नहीं है। पांचवां गुनहगार बैंक है। लोन देने के पहले बैंक प्रॉपर्टी की सर्चिंग करता है। सारे नक्शे मंगाता है और रजिस्ट्री भी गिरवी रखता है तब कहीं लोन देने पर बात आती है। क्या बैंक की जांच पड़लात भी हवा में हो गई जिसमें उसे घर के पास बह रही कलियासोत नजर नहीं आई। अब बैंक कहता है कि उसे तो उसकी लोन दी गई पूरी रकम चाहिए। यानी जो घर टूट रहा है उसके बनाने के लिए लिया गया लोन जिंदगी भर चुकाना पड़ेगा। ये कौन सा नियम है भाई।
गुनाहगार नंबर 6- बिजली कंपनी : गुनहगार नंबर 6 बिजली कंपनी। बिजली कंपनी भी सरकारी एजेंसी है। खंबा लगाने से लेकर बिजली लाइन डालने और घर में मीटर लगाकर बिल लेने की जवाबदेही बिजली कंपनी की होती है। बिजली कंपनी ने भी अपने बिल से मतलब रखा और सारे घरों में कनेक्शन दे दिए। तब भी वैध अवैध की कोई बात नहीं की गई।
विधायक रामेश्वर शर्मा हाईकोर्ट को लिख रहे हैं पत्र
अब यहां पर सवाल ये उठता है कि जब गुनहगार बिल्डर, नगर निगम, टीएंडसीपी, रजिस्ट्रार आफिस, बैंक और बिजली विभाग है तो फिर सजा उनको क्यों मिल रही है जो गुनाह के पीड़ित हैं। जिनसे जमा पूंजी भी ले ली गई और घर तोड़ने का फरमान भी सुना दिया गया। अब इनको सहारा देने के लिए कोई आगे नहीं आ रहा। सब अपना अपना हिस्सा लेकर चुप बैठ गए हैं। लोग विधायक के पास गुहार लगाने पहुंचे। चुनाव के समय तो इनका घर बचाने का पूरा आश्वासन दिया गया था। इस इलाके के तीन बार के विधायक रामेश्वर शर्मा अब एक पत्र हाईकोर्ट को लिख रहे हैं। इस पत्र में लोगों को इंसाफ देने की बात की जा रही है।
बड़ा सवालः हमेशा कार्रवाई गरीब या मध्यमवर्गीय पर ही क्यों
यहां पर एक और सवाल उठता है कि पीड़त वही लोग क्यों हैं जो गरीब या मध्यमवर्गीय हैं। वे बड़े-बड़े लोग, बड़े अफसर सरकारी एजेंसियों या अदालतों को नजर क्यों नहीं आते जिन्होंने ग्रीन बेल्ट में अपने बंगले तान रखे हैं। केरवा जैसे निर्माण प्रतिबंधित क्षेत्र में इनके निर्माण कार्य चल रहे हैं। इनके लिए तो नगर निगम अपने नियम बदल देता है, लेकिन बाकी लोगों को सजा का फरमान सुना दिया जाता है।