वोकल फॉर लोकल को गांव- गांव पहुंचाते आईएएस नीरज कुमार सिंह

सीधी भर्ती के वर्ष 2012 के आईएएस ‍अधिकारी और वर्तमान में मुख्यमंत्री के गृह जिले उज्जैन के कलेक्टर नीरज सिंह उन बिरले अफसरों में से हैं, जो गलतियों के लिए दूसरे तो क्या, खुद को भी माफ नहीं करते।

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आदमी का आदमी हर हाल में हमदर्द हो,
इक तवज्जो चाहिए इंसां को इंसां की तरफ…

हफीज जौनपुरी का यह शेर उज्जैन कलेक्टर नीरज कुमार सिंह पर फिट बैठता है। सरकारी काम को भी समर्पण और करुणा भाव के साथ करना नीरज कुमार सिंह की फितरत है। एक जिम्मेदार ओहदे पर रहते हुए भी कभी अफसरी को खुद पर हावी नहीं होने देना, मानवीय संवेदनशीलता और निष्पक्ष न्याय की भावना के साथ अपना काम करना नीरज कुमार की कार्यशैली है। वे बतौर कलेक्टर जहां भी रहे, लोग उनकी इस कार्यशैली के मुरीद रहे हैं। 

जब खुद पर ही लगा दिया जुर्माना

सीधी भर्ती के वर्ष 2012 के आईएएस ‍अधिकारी और वर्तमान में मुख्यमंत्री के गृह जिले उज्जैन के कलेक्टर नीरज सिंह उन बिरले अफसरों में से हैं, जो गलतियों के लिए दूसरे तो क्या, खुद को भी माफ नहीं करते। वो अपनी मिसाल आप हैं। नीरज कुमार सिंह का उसूल है कि आप जो दूसरों से अपेक्षा करते हो, पहले स्वयं उस पर अमल करो। इसीलिए दमोह कलेक्टर रहते वो 40 किलोमीटर अकेले साइकिल चलाते हुए गांव में सरकारी अस्पताल का निरीक्षण करने जा पहुंचे थे। तो उज्जैन में सीवेज चैंबर की सफाई के लिए वो खुद चैंबर में उतर गए। राजगढ़ में जनता की शिकायतों का समय पर निराकरण नहीं होने के लिए बाकी प्रशासनिक अमले के साथ खुद को भी दोषी माना और स्वयं पर 100 रुपए का जुर्माना लगाया। 

परिचय एक नजर में

नाम: नीरज कुमार सिंह 
जन्म तिथि: 23 अगस्त 1989
निवास: रायपुर, छत्तीसगढ़ 
यूपीएससी में चयन: 03 सितंबर 2012
शिक्षा: इकोनॉमिक्स में एम.ए.

एक संवेदनशील अफसर के रूप में पहचान 

आईएएस नीरज कुमार सिंह छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उन्होंने एमए (अर्थशास्त्र) की पढ़ाई की है। कलेक्टर के रूप में नीरज जहां भी रहे, अपनी संवदेनशील कार्यशैली से हमेशा चर्चा में रहे। उज्जैन से पहले वो नर्मदापुरम (होशंगाबाद) जिले के कलेक्टर थे। वहां दो साल तक इस पद पर रहे। नर्मदापुरम कलेक्टर के तौर पर वो पहले अधिकारी थे, जो शहर के उपेक्षित स्लम बस्ती सिलिकर मोहल्ला और आदमगढ़ पहुंचे थे। वहां लोगों से बातचीत में पता चला कि इन क्षेत्रों के 50 से अधिक बच्चे स्कूल ही नहीं जाते हैं। लोगों ने कलेक्टर को समस्याएं सुनाईं। उन्होंने कहा, फीस नहीं भर पाने के कारण हमारे बच्चे स्कूल नहीं जा पाते हैं। इस पर कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने लोगों को समझाया कि वे अपने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूल में कराएं। उन्होंने यह सिर्फ कहा ही नहीं, बल्कि खुद स्कूल में जाकर कुछ बच्चों का एडमिशन कराया। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह की इस पहल से बस्ती के सभी लोग अभिभूत हुए। लोगों का तो यह भी कहना था कि कलेक्टर साहब पहले अधिकारी हैं, जो इस बस्ती में पहुंचे हैं। गरीबों के बच्चों को स्कूल पहुंचाने की यह नवाचारी मुहिम उन्होंने पूरे जिले में चलाई। 

...और बेहिचक उतर गए कीचड़ में

गरीबों की मदद नीरज कुमार सिंह की पहली प्राथमिकता रही है। सिलिकर मोहल्ले से पहले वो जिले के बागड़तवा गांव जा पहुंचे थे। वहां एक महिला ने उनसे रोड पर फैले कीचड़ में उतरने की बात कही थी। इस पर कलेक्टर नीरज बेहिचक कीचड़ में कूद गए थे ताकि कीचड़ में चलने से लोगों को होने वाली तकलीफ का अहसास किया जा सके। 

जब स्लम बस्ती में पहुंचकर सबको चौंकाया 

नर्मदापुरम से पहले नीरज दमोह के कलेक्टर रहे। वहां भी उन्होंने अपने अलग अंदाज की गहरी छाप छोड़ी। दमोह कलेक्टर रहते हुए उन्होंने साल 2022 में अकेले ही 40 किलोमीटर साइकिल चलाकर अस्पताल का अचानक निरीक्षण कर व्यवस्थाओं का जायजा लिया और सभी को चौंका दिया। कोई नहीं सोच सकता था कि जिले का सबसे बड़ा अधिकारी अचानक इस तरह साइकिल चलाकर और वो भी 40 किलोमीटर तक, फील्ड में पहुंचेगा। कलेक्टर ने वहां साफ- सफाई और पेयजल व्यवस्था आदि के निर्देश दिए। दरअसल, कलेक्टर रोज की तरह सुबह की सैर करने साइकिल पर निकले थे और तंदुरुस्ती की इस व्यक्तिगत कवायद में उन्होंने स्वास्थ्य विभाग को भी शामिल कर लिया। हालांकि यह भी पहली बार नहीं था। नीरज इसके पहले दमोह से 26 किमी दूर तहसील मुख्यालय पथरिया में भी इसी तरह प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का आकस्मिक निरीक्षण कर चुके थे।

गंदगी देख गटर में उतर गए कलेक्टर

नीरज कुमार सिंह, धर्म में गहरी आस्था रखने वाले अधिकारी हैं। उज्जैन कलेक्टर के रूप में कार्यभार ग्रहण करने से पहले उन्होंने राजाधिराज भगवान महाकाल के दर्शन किए और अपने काम की शुरुआत की। उज्जैन में स्वच्छता ही सेवा अभियान के तहत नीरज कुमार सिंह ने मिसाल पेश की। शहर को चमकाने की जिद के मद्देनजर प्रशासनिक संकुल परिसर में उन्होंने वॉटर सप्लाई के मेन होल को खुलवाकर देखा तो वह गंदगी से बजबजा रहा था। यह देखकर वो खुद ही सफाई के लिए सीवेज चैंबर में उतर गए और गंदगी निकालने लगे। यह देखकर वहां मौजूद तमाम लोग हैरान रह गए। उन्होंने अपनी टीम के साथ समूचे प्रशासनिक संकुल की सफाई कर डाली। नीरज की इस उसूल पसंदी का जलवा उन्होंने उज्जैन में भी तब दिखाया, जब सरकार के आदेशों का पालन न करने पर उन्हें उज्जैन के 16 निजी स्कूलों पर 2- 2 लाख रुपए का जुर्माना ठोक दिया। साथ ही जुर्माने की राशि सभी स्कूल संचालनों और प्रचारकों को 7 दिन के अंदर सरकारी कोषालय में जमा करने के निर्देश दिए। ये कार्रवाई स्कूली शिक्षा नियम की धारा 144 के तहत आदेशों का उल्लंघन करने पर की गई थी। जाहिर है कि नीरज कुमार सिंह कानून का पालन करवाने में किसी दबाव के आगे नहीं झुकते। 

उज्जैन में वोकल फॉर लोकल को बढ़ावा 

सरकारी योजनाओं को रचनात्मक तरीके से क्रियान्वित करना नीरज कुमार‍ सिंह की प्राथमिकता रही है। उज्जैन में उन्होंने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के निर्देश पर उन्होंने वोकल फॉर लोकल अभियान के तहत, सपत्नीक शहीद पार्क में दीपक, रंगोली, साज-सज्जा की सामग्री और बच्चों के खिलौने बेचने वाले पथ विक्रेताओं और रेहड़ी वालों से खरीदारी की। नीरज कुमार की उज्जैन में पदस्थापना लोकसभा चुनाव के पहले की गई थी। इस दौरान उन्होंने चुनाव शांतिपूर्वक सम्पन्न कराया और यह सीट सत्तारूढ़ भाजपा के प्रत्याशी ने जीती।  

जब स्वयं पर ही ठोका जुर्माना

इसके पूर्व राजगढ़ कलेक्टर रहते उन्होंने कर्तव्य निष्ठा और न्याय की अनोखी मिसाल पेश की। जब उन्हें पता चला कि जिले में सीएम हेल्पलाइन और अन्य शिकायतों का निराकरण नहीं हो पा रहा है तो उन्होंने इसके लिए खुद को दोषी माना और स्वयं पर 100 रुपए का जुर्माना लगाया। इसी के साथ नीरज कुमार ने राजगढ़ के 1139 अधिकारियों-कर्मचारियों पर भी 1 लाख 13 हजार रुपए से ज्यादा का जुर्माना ठोका था। जिले में सीएम हेल्प लाइन और अन्य लंबित शिकायतों की समीक्षा की दौरान सामने आया था कि एल-1 से एल-3 तक पहुंच चुकी करीब 1139 शिकायतों का विभागीय अधिकारियों ने निराकरण नहीं किया है। इसके लिए उन्होंने प्रति शिकायत 100 रुपए के मान से 1139 शिकायतों पर 1 लाख 13 हजार से भी अधिक राशि का जुर्माना लगाया था। इसमें वे स्वयं भी शामिल थे। कलेक्टर बनने से पहले नीरज कुमार अतिरिक्त कलेक्टर सीहोर, एसडीओ धार, सीईओ जिला पंचायत ग्वालियर और राजस्व मंडल ग्वालियर के सदस्य भी रहे हैं। संवेदनशील प्रशासन का पाठ उन्होंने इन्हीं पदस्थापनाओं में सीखा। 

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