गिरे, संभले और फिर सफलता के शीर्ष पर छा गए आईएएस कौशलेंद्र विक्रम

आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह की कहानी प्रेरणा से भरी है। संघर्षों से लेकर यूपीएससी में सफलता तक, उन्होंने हर पड़ाव पर खुद को साबित किया और समाज को नई दिशा दी।

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रख हौसला वो मंजर भी आएगा,
प्यासे के पास चल के समंदर भी आएगा
थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर
मंजिल भी मिलेगी और मजा भी आएगा

यह सिर्फ शायरी नहीं है, पूरा फसाना है...गिरने की, संभलने की और फिर सफलता के शीर्ष पर छा जाने की। हम बात कर रहे हैं भोपाल कलेक्टर कौशलेंद्र विक्रम सिंह की। उत्तरप्रदेश के एक छोटे जिले हरदोई में जन्मे, बचपन संघर्षों में गुजारा और यूपीएससी की परीक्षा पास कर मध्यप्रदेश कैडर में 2010 बैच के आईएएस बने। 05 जनवरी 2024 से भोपाल कलेक्टर हैं।

जुलाई का महीना था और साल 1986… तारीख थी दो… यही वह दिन था, जब हरदोई जिले के महेशपुर गांव में एक नलकूप चालक के घर किलकारी गूंजी। यह किलकारी किसी और की नहीं, कौशलेंद्र विक्रम सिंह की थी। समय गुजरा और सिंचाई विभाग में नलकूप चालक के पद पर तैनात पिता बिंद्रा सिंह ने बेटे का दाखिला गांव के सरकारी स्कूल में करा दिया। हिन्दी माध्यम से कौशलेंद्र ने पढ़ाई शुरू की। कौशलेंद्र बहुत मेधावी नहीं थे, औसत दर्जे के छात्र रहे। लेकिन वक्त ने जब अंगड़ाई ली तो औसत से वे कब मेधावी बन गए, यह तो यूपीएससी की परीक्षा के परिणाम ने ही बताया।

पढ़ाई में थे पीछे, एक बार ठाना, फिर पलटकर नहीं देखा

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कौशलेंद्र जब दूसरी कक्षा में पढ़ते थे, तब उनकी लिखावट बेहद खराब थी। शिक्षक ने उनकी कॉपी फाड़कर फेंक दी थी। यह वह क्षण था, जब कोई भी हताश हो जाता, लेकिन कौशलेंद्र में हिम्मत की कमी नहीं थी। उन्होंने उसी समय ठान लिया कि अब पीछे नहीं देखेंगे। उन्होंने शिद्दत से पढ़ाई शुरू की। खुद को संवारा और इसके बाद से वे न तो कक्षा में कभी सेकंड आए और न ही लिखावट बिगड़ी। अव्वल आना उनकी नीयती बन गई।

...जब मिला हार का स्वाद

कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने गांव से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की। इसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद का रुख किया। उन्होंने मीडिएवल हिस्ट्री में ग्रेजुएशन किया। फिर पोस्ट ग्रेजुएट भी इसी विषय में हुए। इस बीच उन्होंने यूजीसी नेट करने की भी ठानी। देश की प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में भी दाखिला लेने का प्रयास किया। इसमें वे सफल नहीं हो सके, लेकिन उन्होंने खुद को हारने नहीं दिया। यूपीएससी की तैयारी की और पहली ही बार में वे सफल रहे।

करियर...

यूपीएससी पास करने के बाद आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने पहली बार मध्यप्रदेश की धरती पर कदम रखा। यह दौर था 30 अगस्त 2010 का। उन्होंने अपने करियर  की ट्रेनिंग शुरू की। 12 जुलाई 2012 तक जूनियर स्केल में ट्रेनिंग ली। इसके बाद 6 जून 2011 से 3 फरवरी 2014 तक वे बुंदेलखंड की धरती पर रहे। सागर में वे असिस्टेंट कलेक्टर जूनियर स्कैल पर तैनात रहे। इस दौरान उन्होंने बुंदेलखंड को बखूबी समझा। इसके बाद 3 फरवरी 2014 को सरकार ने उन्हें नरसिंहपुर में जिला पंचायत सीईओ की जिम्मेदारी दे दी। इस जिम्मेदारी के साथ उन्होंने 7 फरवरी 2015 मध्यप्रदेश के गांवों को समझा और ग्रामीणों के लिए कई काम किए।

डेढ़ साल तक सागर को संवारा

गांवों को परखने और समझने के बाद आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह को एक बार फिर सागर ने बुलाया। इस बार वे 8 दिसंबर 2015 से 8 जून 2017 तक सागर नगर निगम में बतौर निगम कमिश्नर तैनात हुए। डेढ़ साल की लंबी अवधि में उन्होंने शहर के लिए कई काम किए। शहर की सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक जरूरतों को पूरा करने का प्रयास किया। 

 कौशलेंद्र विक्रम सिंह

अपने परिवार के साथ IAS कौशलेंद्र विक्रम सिंह

अब बारी थी मालवा-निमाड़ को समझने की

समय गुजरता रहा और मध्यप्रदेश के दिल में कौशलेंद्र रचते-बसते गए। पहली बार वे 8 जून 2017 को नीमच कलेक्टर बनाए गए। 20 जून  2018 तक उन्होंने राजस्थान से लगे इस जिले की चुनौतियों को समझा। वे यहां लोगों के दिल में ऐसे उतरे कि कोई कभी न भुला सकेगा। उन्होंने बतौर कलेक्टर यह संदेश भी दिया कि कलेक्टर सिर्फ केबिन में बैठने के लिए नहीं होते। वे जनता के बीच नजर आने लगे। उनके खेतों तक जाने के लिए बकायदा वे ट्रैक्टर पर बैठने से भी नहीं हिचके। उनके इस व्यवहार ने जनता के दिलों का राजा बना दिया। कौशलेंद्र की अगली पारी बतौर कलेक्टर विदिशा में 21 जून 2018 से शुरू हुई। यहां 10 मार्च 2020 तक वे तैनात रहे।

ग्वालियर में 34 माह की कलेक्टरी

आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह ने सबसे लंबी कलेक्टरी ग्वालियर में की। यह वह दौर था, जब पूरी दुनिया कोरोना से जूझ रही थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी और गर्म तासीर वाले ग्वालियर-चंबल को संभालना चुनौती से कम न था। कौशलेंद्र ने यहां आपदा, उपचुनाव और विवाद सब देखा। उनका ही कार्यकाल था, जब ग्वालियर में बड़ी योजनाओं की नींव भी रखी गई। यही कारण रहा कि तीन साल के कार्यकाल में उन्हें तीन अवॉर्ड मिले। इसके बाद 6 अप्रैल 2023 को सरकार ने उन्हें ग्वालियर से हटाया और मप्र राज्य पर्यटन विकास निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर बैठा दिया।

ग्वालियर में सफलता की झलक

  • कोरोना काल की बड़ी आपदा में बेहतर मैनेजमेंट।
  • आशीर्वाद योजना का नवाचार, जो पूरे प्रदेश में लागू हुई।
  • चुनाव कार्य में सीएम से उत्कृष्ट पुरस्कार।
  •  ग्वालियर-चंबल की गर्म मिजाजी तेवर के बीच शांतिपूर्ण उपचुनाव और प्रबंधन।

सफलता का मंत्र...

'जब तक आप खुद से न हार जाओ, कोई हरा नहीं सकता।'

- कौशलेंद्र विक्रम सिंह, कलेक्टर, भोपाल

FAQ

आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह कौन हैं?
आईएएस कौशलेंद्र विक्रम सिंह मध्यप्रदेश कैडर के 2010 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, जो वर्तमान में भोपाल कलेक्टर हैं।
आईएएस कौशलेंद्र की सफलता की प्रेरणा क्या है?
बचपन में कठिनाइयों और असफलताओं के बावजूद उन्होंने दृढ़ निश्चय और मेहनत से यूपीएससी परीक्षा पास की।
ग्वालियर में आईएएस कौशलेंद्र का क्या योगदान रहा?
ग्वालियर में कोरोना मैनेजमेंट, आशीर्वाद योजना और शांतिपूर्ण चुनाव जैसे कार्य उनकी सफलता की पहचान बने।
आईएएस कौशलेंद्र ने ग्रामीण विकास के लिए क्या किया?
उन्होंने नरसिंहपुर और अन्य ग्रामीण इलाकों में पंचायत सीईओ के रूप में कई विकास कार्य किए।
आईएएस कौशलेंद्र की शिक्षा और प्रारंभिक जीवन कैसा था?
हरदोई के सरकारी स्कूल में पढ़ाई शुरू की, इलाहाबाद विश्वविद्यालय से इतिहास में स्नातक किया और यूपीएससी में सफलता पाई।

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