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भारत, विश्व की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी एक विशाल नेटवर्क का मालिक है। 2025 तक भारत में 659 सरकारी और कुल मिलाकर 1168 विश्वविद्यालय हैं।
यह आंकड़ा न केवल देश की शिक्षा व्यवस्था के विस्तार को दर्शाता है, बल्कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भारत की बढ़ती वैश्विक उपस्थिति का भी संकेत देता है।
लेकिन क्या यह मात्र संख्या ही गुणवत्ता की गारंटी है? क्यों भारत का नाम दुनिया की टॉप 100 यूनिवर्सिटीज में नहीं है? जा thesootr Prime में हम इसी की खोजबीन करेंगे…
पहले वैश्विक रैंकिंग में भारत का प्रदर्शन
हाल के वर्षों में भारतीय विश्वविद्यालयों ने अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग में उल्लेखनीय सुधार किया है। QS World University Ranking 2026 के अनुसार, भारत के 54 विश्वविद्यालय इस प्रतिष्ठित सूची में शामिल हैं, जो अमेरिका (192), यूके (90) और चीन (72) के बाद दुनिया में चौथे स्थान पर है।
इस साल लगभग 50% भारतीय संस्थानों की रैंकिंग में सुधार हुआ है, जो उच्च शिक्षा व्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
IIT दिल्ली ने सबसे बड़ी छलांग लगाते हुए 123वीं रैंक हासिल की है, जबकि 2024 में यह 150वें स्थान पर था।
IIT बॉम्बे 129वें स्थान पर है, जबकि पिछले साल यह 118वें स्थान पर था।
IIT मद्रास 180वें स्थान पर है, पहली बार टॉप 200 में शामिल हुआ है।
दिल्ली विश्वविद्यालय (DU) अब 328वें स्थान पर है, जो पिछले साल 407वें स्थान पर था।
इसके अलावा, Times Higher Education (THE) रैंकिंग 2025 में Indian Institute of Science (IISc), बेंगलुरु ने 201-250 की वैश्विक रैंकिंग पाई है, जो भारत का सर्वोच्च स्थान पर है।
अन्य उल्लेखनीय संस्थानों में Anna University, Mahatma Gandhi University, और Shoolini University शामिल हैं, जो 401-500 रैंकिंग बैंड में हैं।
एशियाई और विषयवार रैंकिंग
एशियाई विश्वविद्यालय रैंकिंग 2025 में भी भारत के कई विश्वविद्यालयों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। IISc बेंगलुरु शीर्ष भारतीय संस्थान बना हुआ है, जबकि अमृता विश्व विद्यापीठम ने Impact Ranking 2025 में 41वां स्थान हासिल किया है। QS रैंकिंग की विषयवार सूची में भी 9 भारतीय संस्थान दुनिया के टॉप 50 में शामिल हैं।
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कुछ जगह शिक्षण, अनुसंधान और नवाचार भी…
भारत की यूनिवर्सिटीज का शैक्षिक स्तर मिश्रित है। कुछ संस्थान जैसे IITs, IISc, और प्रमुख केंद्रीय विश्वविद्यालय (JNU, DU, BHU, JMI, AMU) वैश्विक मानकों के अनुरूप शिक्षा, अनुसंधान और नवाचार में अग्रणी हैं। क्योंकि इन संस्थानों में:
शिक्षण गुणवत्ता
इन संस्थानों में फैकल्टी की गुणवत्ता, पाठ्यक्रम की नवीनता और प्रैक्टिकल लर्निंग पर विशेष ध्यान दिया जाता है
अनुसंधान
IISc, IITs, और कुछ निजी विश्वविद्यालय (जैसे शूलिनी यूनिवर्सिटी, बिट्स पिलानी) अनुसंधान प्रकाशनों, पेटेंट और इंडस्ट्री-एकेडेमिया कोलैबोरेशन में उल्लेखनीय योगदान दे रहे हैं।
इंडस्ट्री कनेक्शन
कई विश्वविद्यालयों ने इंडस्ट्री के साथ साझेदारी कर इंटर्नशिप, लाइव प्रोजेक्ट्स और प्लेसमेंट के अवसर बढ़ाए हैं
अंतरराष्ट्रीय स्तर से बहुत पीछे
हालांकि, अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण (International Outlook) के मामले में भारतीय विश्वविद्यालय अभी भी पीछे हैं। Times Higher Education रैंकिंग में अधिकांश भारतीय संस्थानों का International Outlook स्कोर 20-50 के बीच है, जबकि वैश्विक टॉप यूनिवर्सिटीज का स्कोर 80-90 के आसपास होता है।
इसका मुख्य कारण विदेशी छात्रों और फैकल्टी की कम संख्या, और अंतरराष्ट्रीय रिसर्च कोलैबोरेशन की कमी है।
प्रमुख चुनौतियां क्या हैं
1. गुणवत्ता और समानता का अंतर
भारत में उच्च शिक्षा का विस्तार तो हुआ है, लेकिन गुणवत्ता में असमानता बनी हुई है। कुछ चुनिंदा संस्थान ही वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं, जबकि अधिकांश विश्वविद्यालयों में बुनियादी ढांचे, फैकल्टी, पाठ्यक्रम और रिसर्च सुविधाओं की कमी है।
2. रिसर्च और नवाचार में पिछड़ापन
भारत का कुल रिसर्च आउटपुट वैश्विक स्तर पर अभी भी सीमित है। OECD के अनुसार, भारत का R&D खर्च GDP का केवल 0.7% है, जबकि चीन 2.4% और अमेरिका 3% से अधिक खर्च करते हैं। कई विश्वविद्यालयों में रिसर्च के लिए फंडिंग, आधुनिक लैब्स और पेटेंट कल्चर की कमी है।
3. इंडस्ट्री-एकेडेमिया गैप
कई विश्वविद्यालयों का पाठ्यक्रम इंडस्ट्री की जरूरतों के अनुरूप अपडेट नहीं है। इसके कारण स्नातकों में स्किल गैप बना रहता है और प्लेसमेंट में चुनौतियाँ आती हैं। हालांकि, IITs, IIITs और कुछ निजी विश्वविद्यालयों ने इस दिशा में उल्लेखनीय पहल की है।
4. अंतरराष्ट्रीयकरण की कमी
विदेशी छात्रों और फैकल्टी की संख्या बेहद कम है। वैश्विक टॉप यूनिवर्सिटीज में 20-30% छात्र विदेशी होते हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा 2% से भी कम है। इससे ग्लोबल एक्सपोजर और मल्टीकल्चरल लर्निंग का अवसर सीमित हो जाता है।
5. प्रशासनिक और नियामक जटिलताएं
भारतीय विश्वविद्यालयों में प्रशासनिक प्रक्रियाएँ जटिल और धीमी हैं। UGC, AICTE जैसी नियामक संस्थाओं के नियम कई बार नवाचार और लचीलापन बाधित करते हैं। स्वायत्तता की कमी के कारण विश्वविद्यालय तेजी से निर्णय नहीं ले पाते।
6. डिजिटल डिवाइड और इंफ्रास्ट्रक्चर
ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में विश्वविद्यालयों के पास डिजिटल संसाधनों, इंटरनेट कनेक्टिविटी और स्मार्ट क्लासरूम जैसी सुविधाओं की भारी कमी है। कोविड-19 के दौरान यह अंतर और स्पष्ट हुआ।
सुधार की कोशिशें भी हो रही हैं…
1. राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020
NEP 2020 ने उच्च शिक्षा में व्यापक सुधारों का मार्ग प्रशस्त किया है। मल्टी-डिसिप्लिनरी शिक्षा, रिसर्च पर जोर, डिजिटल लर्निंग, और विदेशी विश्वविद्यालयों के साथ साझेदारी जैसे कदम उठाए गए हैं।
2. रिसर्च और नवाचार को बढ़ावा
सरकार ने National Research Foundation (NRF) की स्थापना की है, जिससे रिसर्च फंडिंग और नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। कई विश्वविद्यालयों ने रिसर्च पार्क, इनक्यूबेशन सेंटर और स्टार्टअप कल्चर को प्रोत्साहित किया है।
3. अंतरराष्ट्रीय साझेदारी
IITs, IISc और कुछ निजी विश्वविद्यालयों ने विश्व की प्रमुख यूनिवर्सिटीज के साथ ड्यूल डिग्री, स्टूडेंट एक्सचेंज और जॉइंट रिसर्च प्रोग्राम शुरू किए हैं। इससे छात्रों को वैश्विक एक्सपोजर मिल रहा है।
4. डिजिटल लर्निंग और टेक्नोलॉजी
SWAYAM, NPTEL, और अन्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से लाखों छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा मिल रही है। डिजिटल लर्निंग ने शिक्षा को सुलभ और लचीला बनाया है।
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कुछ अच्छे उदाहरण देखें
IIT दिल्ली ने QS रैंकिंग में 123वीं रैंक पाकर देश का नाम रोशन किया।
IISc बेंगलुरु ने Times Higher Education रैंकिंग में 201-250 बैंड में स्थान पाया।
शूलिनी यूनिवर्सिटी ने रिसर्च और इनोवेशन में उल्लेखनीय प्रगति की है, जो 401-500 रैंकिंग बैंड में है।
अमृता विश्व विद्यापीठम ने Impact Ranking में 41वां स्थान हासिल किया है।
दिल्ली विश्वविद्यालय ने 328वीं रैंक पाकर अपनी स्थिति में बड़ा सुधार किया है।
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निष्कर्ष
भारत की यूनिवर्सिटीज ने बीते वर्षों में वैश्विक मंच पर अपनी उपस्थिति मजबूत की है। संख्या के लिहाज से भारत विश्व के अग्रणी देशों में है, लेकिन गुणवत्ता, रिसर्च, नवाचार और वैश्विक एक्सपोजर के मामले में अभी भी चुनौतियां बरकरार हैं।
NEP 2020, रिसर्च फंडिंग, डिजिटल लर्निंग और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी जैसे कदमों से सुधार की दिशा तय हो गई है। यदि इन पहलों को सही दिशा और संसाधन मिलें, तो भारत की यूनिवर्सिटीज आने वाले समय में न केवल एशिया, बल्कि विश्व स्तर पर भी शिक्षा और अनुसंधान के केंद्र बन सकती हैं।
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