मानसून की तेज चाल के पीछे क्या छिपा, क्या 2009 जैसा होगा हाल!

इस साल मानसून केरल में सामान्य से जल्दी आया है, लेकिन इसका मतलब ज्यादा बारिश होना जरूरी नहीं है। जल्द मानसून की शुरुआत ग्लोबल वार्मिंग जैसे प्राकृतिक और मौसमी बदलावों का भी असर होता है। आइए इसे समझते हैं…

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CHAKRESH
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पिछले हफ्ते मौसम विभाग ने बताया कि इस साल दक्षिण-पश्चिम मानसून 24 मई को केरल में शुरू हो गया, जो सामान्य समय से लगभग एक हफ्ता पहले है। 1975 के बाद केरल में सबसे जल्दी मानसून 19 मई 1990 को आया था, जो 13 दिन पहले था।

क्या मानसून का जल्दी आना अधिक बारिश का संकेत है? एल नीनो और ला नीनो जैसी मौसमी घटनाओं का क्या असर होता है? बारिश के बाद केरल तक कैसे पहुंचती है? चलिए समझते हैं…

क्या मानसून जल्दी आने का कोई खास कारण है

दरअसल हमें पूरी तरह पता नहीं। आमतौर पर मानसून शुरू होने की तारीख जून के पहले सप्ताह के आस-पास होती है। जल्दी मानसून आने पर खुशी होती है, लेकिन इसका मतलब जरूरी नहीं कि बारिश ज्यादा ही होगी। वहीं, अगर मानसून दो सप्ताह से ज्यादा देर से आता है, तो बारिश कम होने की संभावना अधिक होती है।

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मानसून शुरू होने की वैज्ञानिक वजह क्या है

इस विषय पर कई सिद्धांत हैं, लेकिन कोई पूर्ण समझ नहीं बनी है। प्रसिद्ध एल नीनो और ला नीनो घटनाएं भी मानसून के शुरू होने की सही भविष्यवाणी नहीं कर पातीं।

मानसून की शुरुआत के लिए उत्तर-पश्चिमी ट्रॉपिकल प्रशांत महासागर से बंगाल की खाड़ी और अंडमान सागर तक एक 'ट्रफ' (कम दबाव क्षेत्र) की चाल देखी जाती है। लेकिन बंगाल की खाड़ी से केरल तक इस ट्रफ की चाल अभी भी पूरी तरह समझ में नहीं आई है।

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इकोसिस्टम में बदलाव हो सकते हैं कारण

1970 के बाद से मानसून के शुरू होने में कुछ दिनों की देरी देखी गई है। इसके पीछे जलवायु प्रणाली में बदलाव या इकोसिस्टम में बदलाव के कारण माने गए हैं, लेकिन इनके कारणों को पूरी तरह समझना अभी बाकी है। इस प्राकृतिक बदलाव में सालों लगते है, इसलिए भविष्यवाणी करना और भी कठिन होगा।

वैश्विक तापमान वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) का भी मानसून के शुरू होने पर असर पड़ता है, जो इस विषय को और जटिल बनाता है। प्राकृतिक बदलावों के कारण, कभी-कभी मानसून जल्दी भी आ सकता है, जैसे कि 2025 में हुआ है।

क्या पिछले और इस बार का जल्दी मानसून समान है

इस साल मानसून 16 साल में सबसे जल्दी आया; पिछली बार 23 मई 2009 को ऐसा हुआ था। उस समय कुछ खास जलवायु परिस्थितियां थीं। 2008 में तापमान औद्योगिक क्रांति से पहले के समय से करीब 0.5 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था और 2009 में हल्का एल नीनो था।

2009 की गर्मी में प्रशांत महासागर में असामान्य गर्मी देखी गई थी, जो एल नीनो में आम नहीं है। तब यह माना गया था कि ग्लोबल वार्मिंग अब एल नीनो पर भी प्रभाव डाल रही है। हालांकि, 2009 में मानसून में सूखा पड़ा था। हमें उम्मीद है कि 2025 में ऐसा नहीं होगा।

2025 में वैश्विक तापमान पहले से 1.2 डिग्री सेल्सियस से ऊपर है। पिछली गर्मियों (2023-24) में रिकॉर्ड गर्मी रही, साथ ही 2023 में मजबूत एल नीनो और 2024 में असफल ला नीनो हुआ।

2024 में प्रशांत महासागर की सतह का तापमान असामान्य पैटर्न दिखा, जिसमें पूरब और पश्चिम दोनों तरफ गर्मी थी, लेकिन बीच के हिस्से में ठंडक। अभी इस पैटर्न की और जांच हो रही है।

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मानसून केरल तक कैसे पहुंचता है

अब मानसून के आने में कई बाहरी कारण शामिल हैं। मानसून से पहले की चक्रवात की संख्या बढ़ी है, जो मानसून के जल्दी शुरू मदद कर सकते हैं। इस साल भी पश्चिमी तट के पास कम दबाव क्षेत्र के कारण मानसून जल्दी आ सकता है। देर से आने वाले चक्रवात आर्कटिक के तापमान बढ़ने और अरब सागर में हवा के बदलाव से जुड़े हैं।

प्रशांत महासागर में तूफान भी मानसून के लिए जरूरी नमी को भारतीय महासागर से खींच लेते हैं, जिससे मानसून शुरू होने में देरी होती है। इन सभी स्थानीय और दूर के कारणों के चलते मानसून की शुरुआत को समझना और भविष्यवाणी करना मुश्किल है।

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(देखें मध्यप्रदेश में मानसून की चाल- ग्राफ)

क्या 2025 भी 2009 जैसा ही होगा

2009 में गर्मी के दौरान ट्रॉपिक्स में गर्मी थी, एक हल्का एल नीनो था और 2010 में जल्दी ला नीनो में बदल गया। महासागर का तापमान और हवाओं की दिशा मानसून के आने के संकेत देती हैं। अभी प्रशांत महासागर के बीच के ठंडे तापमान कम हो रहे हैं, जबकि पूरब और पश्चिम में गर्मी बनी हुई है।

2025 के लिए फिलहाल एल नीनो या इंडियन ओशन डिपोल के मामले में 'न्यूट्रल' यानी सामान्य साल रहने की संभावना है, जो इसे 2009 से अलग बनाता है। फिर भी कुछ दशकीय जलवायु संकेत इस गर्मी में एल नीनो के बनने की ओर इशारा कर रहे हैं। एल नीनो बनने पर इसका जल्दी मानसून पर क्या असर होगा, यह देखना होगा।

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मानसून के दौरान बारिश का वितरण कैसे बदल रहा है

इस साल या किसी भी साल मानसून के जल्दी आने के कारणों पर कोई स्पष्ट उत्तर नहीं है। अगर यह केवल प्राकृतिक बदलाव है, तो हमें समझना होगा कि ग्लोबल वार्मिंग इसका सीधा या अप्रत्यक्ष प्रभाव कैसे डाल रही है, जैसे कि चक्रवात, एल नीनो और ध्रुवीय क्षेत्रों पर।

मानसून के खत्म होने का तरीका भी बदल रहा है। कुछ क्षेत्रों में दक्षिण-पश्चिम मानसून उत्तर-पूर्व मानसून के साथ मिल रहा है। बारिश का वितरण मौसम में अनियमित रहता है, जिससे कहीं बाढ़ और कहीं सूखा पड़ता है।

मानसून के कारणों को समझने के लिए अनेक शोध हो रहे हैं, लेकिन अभी यह प्रक्रिया धीमी है। हमें उम्मीद करनी चाहिए कि भविष्य में इस पर बेहतर समझ और सटीक भविष्यवाणी हो सकेगी।

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