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मध्यप्रदेश की हृदय भूमि पर बसा दमोह अद्भुत है। यहां इतिहास की गूंज है। संस्कृति की गहराई है। प्रकृति का खजाना है। यहां की मिट्टी में आदिकाल की सुगंध है और इमारतों में इतिहास की आहट। दमोह का इतिहास (Damoh History) इस धरती की आत्मा में बसा है।
सिंग्रामपुर में मिले पत्थर के औजार बताते हैं कि यहां पाषाण युग से लोग रहते थे। मानव सभ्यता शुरू हुई। यह एक ऐसा ठिकाना था, जहां लाखों वर्ष पहले ही जीवन की चहल-पहल थी। दमोह में घूमने की जगहें (Damoh Tourist places) इन्हीं ऐतिहासिक झरोखों से होकर गुजरती हैं।
दमोह का ऐतिहासिक फलक कई शासकों की छाया से गुजरा। गुप्त वंश, कलचुरी, मुगल, मराठा और अंग्रेजों ने यहां हुकुमत की। 5वीं सदी में दमोह गुप्त साम्राज्य का हिस्सा था।
यहां 10वीं सदी में बना नोहलेश्वर मंदिर आज भी उस गौरवशाली कलचुरी वास्तुकला का प्रतीक है, जिसे रानी अवनि वर्मा ने श्रद्धा और शिल्पकला से सजाया था। दमोह के प्रमुख मंदिर (Damoh Famous temples) में इसका स्थान विशेष है।
फिर इतिहास ने करवट बदली। रानी दुर्गावती की वीरता का स्वर्ण अध्याय दमोह के नाम जुड़ गया। गोंड वंश की रानी दुर्गावती आत्मबलिदान की अमर प्रतिमूर्ति मानी जाती हैं।
जानें सिंगौरगढ़ किला रणनीति और इतिहास का गढ़
दमोह किला का इतिहास (Damoh Fort History) दमोह की आत्मा सिंगौरगढ़ किले की प्राचीरों में बसी है। जिला मुख्यालय से करीब 45 किलोमीटर दूर जबेरा तहसील में स्थित यह किला उस युग का प्रहरी रहा है, जब युद्ध सिर्फ तलवारों से नहीं, रणनीति से लड़े जाते थे। पुरातात्विक सबूत बताते हैं कि कलचुरी राजाओं ने सिंगौरगढ़ किला (Singorgarh Fort) रणनीतिक और सैन्य अहमियत के कारण बनवाया था। समय के साथ यह चंदेल, प्रतिहार या परिहार और गोंड वंशों के अधीन रहा। गोंड काल को इस किले का स्वर्ण युग माना जाता है।
शिलालेख देता है इतिहास की गवाही
1307 ईस्वी का एक शिलालेख इसे गज-सिंह दुर्ग कहता है, जो प्रतिहार वंश के राजा गज सिंह से जुड़ा है, जिन्होंने 14वीं सदी में दमोह पर राज किया। बाद में यह नाम सिंगौरगढ़ बन गया। शिलालेख बताता है कि विजयदशमी के दिन विजय स्तंभ बनाया गया और पास का तालाब विजय सागर कहलाया। एक और शिलालेख परिहार वंश के महाराजा पुत्र वाघदेव का जिक्र करता है।
जानें कौन है गोंड वंश जिसने दमोह को बढ़ाया आगे
गोंड वंश के काल में यह किला अपने उत्कर्ष पर था। दोहरी दीवारें, बुर्ज, चबूतरे और सैकड़ों फुट ऊंचाई से नीचे देखने वाले दरवाजे इसे अपराजेय बनाते थे। मुख्य प्रवेशद्वार से रानी महल तक की चढ़ाई 122 मीटर की है। भीतर का परिसर इतनी रणनीति से बना था कि कोई भी दुश्मन अंदर आकर फंस जाए। हाथी दरवाजा इसकी स्थापत्य चतुराई का बेजोड़ नमूना है।
एक वक्त था जब किले की दीवारें पांच किलोमीटर तक फैली थीं। आज भी दीवारों के अवशेष इतिहास के अभिभावक की तरह खड़े हैं। रानी महल इस विशाल परिसर की सबसे प्रमुख संरचना थी।
नोहलेश्वर मंदिर कलचुरी संस्कृति की रचना
950–1000 ईस्वी में बना नोहलेश्वर मंदिर (Nohleshwar Temple) श्रद्धा और वास्तुकला का संगम है। कलचुरी रानी अवनि वर्मा की यह भेंट आज भी दमोह की धार्मिक आस्था का केंद्र है। इसकी स्थापत्य शैली उत्तर भारतीय मंदिरों की परंपरा में विशिष्ट स्थान रखती है।
जटाशंकर मंदिर और अन्य धार्मिक स्थल
प्राकृतिक गुफाओं में बसा जटाशंकर मंदिर (Jatashankar Temple) भगवान शिव को समर्पित है। यहां की शांत जलधाराएं मनमोह लेती हैं। इसके अलावा अवध बिहारी मंदिर, शिवगिरि धाम, कटाव धाम और श्री मृगनाथ मंदिर जैसे स्थान दमोह को 'धार्मिक द्वार' बनाते हैं।
वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व
यहीं वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व है, जो 1997 में बना था। 550 वर्ग किलोमीटर में फैले इस वनक्षेत्र में टाइगर, तेंदुए, चीतल और कई अन्य प्रजातियों का घर है। यह वन क्षेत्र रानी दुर्गावती के साहस की गाथा भी कहता है, जिसे प्रकृति ने हरियाली में लपेटकर जीवंत रखा है। दमोह पर्यटन स्थल (Damoh tourist places) में यह प्रमुख नाम है।
कुंडलपुर श्रद्धा और शांति का जैन तीर्थ
दमोह से 35 किलोमीटर दूर कुंडलपुर बड़े बाबा मंदिर (Bade Baba Temple Kundalpur) है। यह दिगंबर जैन समुदाय का पवित्र स्थल है। यहां भगवान आदिनाथ की 15 फीट ऊंची कमलासन प्रतिमा और 60 से ज्यादा भव्य मंदिर श्रद्धालुओं को आध्यात्मिक ऊर्जा और आस्था की दृढ़ता का अनुभव कराते हैं।
नजारा व्यूपॉइंट और गिरिदर्शन
रानी दुर्गावती वन्यजीव अभयारण्य की पहाड़ियों पर नजारा व्यूपॉइंट है। जब सूरज उगता है, तो यह पूरा क्षेत्र ताम्र रेखाओं से जगमगा उठता है। वहीं गिरिदर्शन में बना दो मंजिला रेस्ट हाउस और वॉच टावर, हरियाली के बीच शांति का अनुभव कराता है। ये सभी दमोह पिकनिक स्पॉट्स (Damoh picnic spots) का हिस्सा हैं।
निदान कुंड, जैसे झरनों की कविता
भेसा गांव के पास निदान कुंड प्रकृति प्रेमियों और पर्यटकों के लिए अनमोल तोहफा है। 100 फीट ऊंचाई से गिरता यह झरना बारिश के मौसम में अद्भुत दृश्य रचता है, ऐसा लगता है मानो प्रकृति अपने राग में सुरों की वर्षा कर रही हो।
जानें कैसे पहुंचें दमोह तक
दमोह यात्रा गाइड (Damoh travel guide) के अनुसार, मानसून और सर्दी यहां घूमने के लिए आदर्श समय है। सद्भावना शिखर विंध्य पर्वत की सबसे ऊंची चोटी है। रात में यहां से झिलमिलाता दमोह सपने की तरह लगता है। दमोह तक पहुंचना सरल है। पास का एयरपोर्ट जबलपुर (110 किमी) है। ट्रेन मार्ग से यह बीना और कटनी जंक्शनों के बीच प्रमुख स्टेशन है। दमोह बस स्टैंड से सागर, जबलपुर, छतरपुर, टीकमगढ़ जैसे शहरों के लिए नियमित सेवाएं उपलब्ध हैं। भोपाल, इंदौर, नागपुर और इलाहाबाद से भी सीधी बसें आती हैं।
दमोह यात्रा टिप्स (Damoh Travel Tips) में स्थानीय भोजन, धार्मिक स्थल और किला भ्रमण को जरूर शामिल करें।
एक नजर मध्य प्रदेश पर्यटन पर
मध्य प्रदेश पर्यटन का अनुभव अद्वितीय है। यहां प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर का संगम है। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के जरिए प्रदान की गई सुविधाओं के साथ, मध्य प्रदेश के प्रमुख पिकनिक स्पॉट्स पर्यटकों को आरामदायक और रोमांचक समय बिताने का मौका देते हैं। मध्य प्रदेश दर्शन करने के लिए यहां कई पर्यटन स्थल मौजूद है।
मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल जैसे कि भीमबेटका, सांची, और खजुराहो का दौरा किया जा सकता है। मध्य प्रदेश जंगल सफारी के दौरान आप बाघों और अन्य वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देख सकते हैं। साथ ही, मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल जैसे ग्वालियर किला, उज्जैन, चंदेरी, और ओरछा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मध्य प्रदेश ट्रैवल पैकेज और मध्य प्रदेश पर्यटन गाइड आपको इस राज्य के बेहतरीन स्थल और यात्रा विकल्पों से परिचित कराते हैं। इससे आप अपनी यात्रा को और भी रोमांचक बना सकते हैं।
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