बारिश के मौसम में आपने मांडू नहीं देखा तो क्या देखा... चलिए धार की यात्रा कराते हैं!

आज के सैर सपाटे में हम आपको ले चलेंगे धार जिले के उन गलियारों में, जहां मांडू की प्राचीरें बादलों की ओट में रहस्यमयी कथाएं सुनाती हैं। वहां मानसून में मांडू और धार का हर पत्थर, हर दीवार किसी कवि के स्वप्न की तरह जीवंत हो उठती है।

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Ravi Kant Dixit
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जब मानसून की बूंदें धरती को तर करती हैं, तब मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित मांडू की आत्मा मुस्कुराती है। विंध्याचल की पहाड़ियों पर बसा यह ऐतिहासिक कस्बा हरियाली की चादर ओढ़कर मानसून में जीवंत हो उठता है। जैसे ही बादल उमड़ते हैं, कोहरे की धुंध मांडू की प्राचीरों पर उतर आती है। तालाबों, झीलों में लहराती बारिश की बूंदें, महलों से टकराती फुहारें और मांडू के वीरान गलियारों में गूंजती हवाएं...सब मिलकर इसे स्वर्ग बनाते हैं।

कहा जाता है कि मांडू का असली सौंदर्य उसी पल प्रकट होता है, जब बादल धरती को चूमते हैं। महल बारिश में नहाकर पुराने गीत गुनगुनाते हैं। यहां न कोई शोर, न भीड़...बस कुदरत और इतिहास की मद्धम आवाज गूंजती है। मांडू पर्यटन का यह एक अनोखा अनुभव है।

इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो पता चलता है कि मांडू किला के पत्थरों में परमार राजवंश की कहानियां गुथी हैं। गयासुद्दीन खिलजी और बाज बहादुर जैसे शासकों ने इसे ऐश्वर्य, संगीत और प्रेम की नगरी बना दिया। मांडू किले का इतिहास यह बताता है कि इसने सल्तनतों के उत्थान-पतन देखे, युद्ध देखे और फिर भी प्रेम की कहानी को सबसे ऊपर रखा।

मांडू के हर पत्थर पर कहानी

जहाज महल

दो झीलों के बीच खड़ा जहाज महल दूर से सचमुच किसी जहाज की तरह लगता है। जब मानसून में मुंज तालाब और कपूर तालाब लबालब भर जाते हैं तो महल का प्रतिबिंब झील में ऐसा लगता है, जैसे समय थम गया हो। सदियों पुराना यह महल बारिश में अपनी खूबसूरती से मन मोह लेता है। यह मांडू के प्रमुख स्थल में से एक है।

हिंडोला महल

झूला महल यानी हिंडोला महल अपनी झुकी दीवारों के लिए प्रसिद्ध है। कभी यहां सुल्तान का दरबार लगता था। अब जब बारिश के मौसम में पानी की बूंदें महल की दीवारों से टकराती हैं तो लगता है, जैसे इतिहास कोई नया गीत रच रहा हो।

रानी रूपमती महल

Rani Roopmati's Pavilion, Mandu: How To Reach, Best Time & Tips

बाज बहादुर और रूपमती की प्रेमकथा रूपमती महल के रूप में मानो जीवित है। महल से विंध्य पर्वत की घाटियां और नर्मदा की झलक मानसून में जादू कर देती हैं। बादलों से ढकी वादियां, ठंडी हवा और झरनों की गूंज...कवि का सपना साकार कर देती हैं। यह मांडू में घूमने की जगह में से एक है।

बाज बहादुर का महल

बाज बहादुर का महल, मांडू: कैसे पहुँचें, सर्वोत्तम समय और सुझाव

बाज बहादुर का महल वास्तुकला का अनुपम उदाहरण है। महल के आंगन से दूर-दूर तक पसरी हरियाली और धुंध अनूठा नजारा पेश करती है। हर दीवार, हर झरोखा प्रेम और संगीत की कहानियां सुनाता है।

जामी मस्जिद

जामी मस्जिद मांडू के इस्लामिक स्थापत्य की भव्यता दिखाती है। हुजूर मुहम्मद खिलजी ने इसे बनवाया था। यह मस्जिद अपनी सादगी और विशाल गुंबदों के लिए जानी जाती है। बरसात में इसका आंगन पानी की परछाइयों से भर उठता है।

रेवा कुंड

सदियों पहले रानी रूपमती के लिए बना यह कुंड आज भी नर्मदा के पवित्र जल की झलक देता है। ठंडी हवा, बारिश और आसपास की हरियाली इसे मानसून में खास बनाती है। यह मांडू के प्रसिद्ध मंदिर जैसे स्थानों के पास स्थित है।

जानें क्या कहता है मांडू इतिहास?

मांडू का इतिहास लगभग छठवीं सदी से शुरू होता है, लेकिन इसे अपनी पहचान 10वीं-11वीं सदी में परमार राजवंश से मिली। बाद में यह दिल्ली सल्तनत और फिर मालवा सल्तनत के अधीन रहा। मांडू अपनी रणनीतिक स्थिति के कारण हमेशा सत्ता के संघर्षों में रहा। सबसे सुनहरे दौर में मांडू गयासुद्दीन खिलजी और फिर बाज बहादुर के समय संस्कृति, संगीत और प्रेम कथाओं के लिए प्रसिद्ध हुआ। बाज बहादुर और रूपमती की कथा आज भी मांडू के महलों में हवाओं के साथ गूंजती है।

क्यों जाएं मांडू?

इतिहास प्रेमियों के लिए सैकड़ों साल पुरानी प्राचीरें और किले।

प्रकृति प्रेमियों के लिए बादलों की ओट में हरियाली और झीलें।

फोटोग्राफरों के लिए बारिश के प्रतिबिंब, कोहरा और धुंध।

सुकून चाहने वालों के लिए चाय की प्याली और महलों की कहानियां।

मांडू कैसे पहुंचें?

मांडू इंदौर से 95 किलोमीटर और धार शहर से 35 किलोमीटर दूर है। मांडू यात्रा के लिए पास का रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट इंदौर है। मानसून में सड़क यात्रा सबसे सुंदर अनुभव देती है... खेतों में फसलें, झरने और कच्ची मिट्टी की खुशबू हृदय को शांति से भर देती है।

चलिए अब धार की ओर चलते हैं...

अब हम बात धार की ऐतिहासिक गाथा की करते हैं। यहां भी समृद्ध विरासत का रोमांचकारी सफर है। सदियों से पुराने राजवंश के राजाओं का कारवां धार के रास्ते दिल्ली से दक्कन तक जाता था। लिहाजा, हमेशा से धार महत्वपूर्ण पड़ाव रहा, जहां योद्धाओं ने आराम किया। स्मारक बनाए और फिर आगे बढ़ गए। धार के लोगों ने इन विजेताओं का स्वागत किया। उनकी उपस्थिति और उपहारों को स्वीकार किया और जब राजा और उनकी सेनाएं चले गए तो वे अपने सामान्य जीवन में निर्बाध रूप से लौट आए।

इतिहास बताता है कि धार का पहला शासक परमार वंश से था। यह दक्कन का एक सामंती परिवार था। 10वीं शताब्दी में स्वतंत्रता हासिल करने के बाद वैरसिंह परमार ने धार पर कब्जा किया और इसे अपनी राजधानी बनाया। परमार वंश के सबसे महान शासक थे राजा भोज...। उन्होंने 1010 से 1055 तक शासन किया।

धार में राजा भोज ने विद्या की देवी सरस्वती को समर्पित भोजशाला बनवाई। धार का इतिहास परमारों से लेकर मुगलों और मराठों तक फैला है। हर पत्थर, हर खंडहर सत्ता और संस्कृति की गाथा सुनाता है। भोजशाला का हर खंभा संस्कृत विश्वविद्यालय, मंदिर और मस्जिद तीनों के अतीत को समेटे है। मंगलवार को हिंदू पूजा करते हैं, शुक्रवार को मुस्लिम नमाज़ पढ़ते हैं। यही धार की अनूठी गंगा-जमुनी तहजीब है।

कमाल मौला का रहस्यमयी मकबरा

भोजशाला के बाहर इसके समकोण पर कमाल मौला का खूबसूरत मकबरा है। इसका रखवाला दावा करता है कि यहां दफन इस्लामी संत 1456 में मुल्तान (अब पाकिस्तान में) से आए थे। यह संभव है, लेकिन इसे लेकर एक चर्चा और भी होती है। इसमें कहा जाता है कि मकबरा महमूद खलजी ने 1440 में मेवाड़ के राणा पर अपनी घोषित जीत के बाद बनवाया था।

मकबरे के प्रांगण के प्रवेश द्वार पर एक शिलालेख है, जो बताता है कि महमूद खलजी ने 1457 में इस मकबरे के सामने सजदा किया था। एक अन्य शिलालेख कहता है, इस दुनिया में अच्छे लोगों की केवल उनकी अच्छाई ही बची रहती है।

मकबरे के आसपास कब्रिस्तान और खंडहर गुंबद वाला मकबरा है, जो कथित तौर पर कमाल मौला के भाई का है। कमाल मौला नाम शायद कमाल मालवी (मालवा का कमाल) का गलत उच्चारण हो सकता है, जो यह संकेत देता है कि वे मालवा के मूल निवासी थे, न कि मुल्तान के। यह भी हो सकता है कि यह कमाल मौलवी (कमाल, रूढ़िवादी विद्वान) से लिया गया हो, जो सबसे संभावित व्याख्या है। धार पर्यटन

धार का किला शक्ति का प्रतीक

परमारों के बाद अफगान शासकों ने धार को अपनी राजधानी बनाया, लेकिन वे भी मांडू चले गए। न तो परमारों ने और न ही घोरियों ने धार का वह प्रभावशाली ढांचा बनाया, जो आज भी इस शहर पर हावी है...धार का किला। किले के द्वार पर लगा एक बोर्ड बताता है कि पहले धारागिरी के नाम से जाने जाने वाले एक पहाड़ पर दिल्ली के सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने 1344 में दक्षिण से लौटते समय इस किले का निर्माण करवाया था।

इसमें तीन द्वार हैं। बाहरी दीवार लाल बलुआ पत्थर की बनी है। तीसरा द्वार औरंगजेब के शासनकाल में बनाया गया था। 15वीं और 16वीं शताब्दी में मुगल और मराठा काल में भी किले में कुछ निर्माण कार्य हुए।

1857 के विद्रोह के दौरान, विद्रोहियों ने किले पर कब्जा कर लिया था, लेकिन ब्रिटिश सेना ने छह दिनों तक लगातार गोलीबारी करके उन्हें बाहर निकाल दिया। यह धार के प्रमुख स्थल में से एक है।

शीश महल में चमकता इतिहास

शीश महल यानी कांच का महल अब अपने मूल कांच के दर्पणों से वंचित है। इसकी दीवारें और मेहराबदार मुखौटा पतली ईंटों से बना है, जिनमें से अधिकांश बिना प्लास्टर के हैं। इतिहास कहता है कि शीश महल का निर्माण 14वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुगलक के दौलताबाद से दिल्ली लौटने के दौरान हुआ था। उन्होंने परमार काल के द्वारों और किलेबंदी की मरम्मत की थी।

शीश महल का उपयोग शाही निवास के रूप में किया जाता था। यह तुगलक वास्तुकला में बना है, जिसमें भारी ढलान वाली दीवारें और छोटे मेहराबदार दरवाजों वाले कक्ष हैं। दक्षिण की ओर सीढ़ियां दूसरी मंजिल तक जाती हैं, जो बाद में बनाई गई थीं। यह धार के प्रसिद्ध स्थल में से एक है।

खरबूजा महल मालवा की शान

खरबूजा यानी तरबूज और इस महल का नाम इसके गुंबदों से पड़ा, जो बड़े तरबूजों जैसे दिखते हैं। ये गुंबद न केवल सौंदर्यपूर्ण हैं, बल्कि इस्लामी वास्तुकला के हिसाब से कमरों को ठंडा रखते हैं, क्योंकि गर्म हवा गुंबद के अंदर ऊपर चली जाती है और बाहर निकल जाती है।

यह दोमंजिला भवन है, जिसमें निचली मंजिल पर सात कमरे और ऊपरी मंजिल पर चार कमरे हैं। मुगल शाही लोग यहां ठहरते थे। यह संभवतः 16वीं शताब्दी में मुगल काल में बनाया गया था। मराठों ने मुगलों के बाद इस स्थान को प्लास्टर और भित्ति चित्रों से सजाया। 1778 में जब मराठा सेनापति राघोबा दादों पुणे से भागे तो वे यहां छिपे थे। उनकी पत्नी आनंदी बाई ने यहां पुत्र को जन्म दिया, जो बाद में पेशवा बाजी राव द्वितीय बने।

धार से थोड़ी दूर झाबुआ और बाघ की गुफाएं

अगर आप धार की ऐतिहासिक हवाओं से थोड़ा अलग हटकर कुछ अनोखा देखना चाहते हैं तो झाबुआ और बाघ की गुफाएं आपकी सूची में जरूर होनी चाहिए।

धार से करीब 90 किलोमीटर दूर झाबुआ मध्यभारत की आदिवासी संस्कृति का जीवंत केंद्र है। यहां भील और भिलाला जनजातियों की सादगी भरी जीवनशैली, हाट-बाजारों में बसी खुशबू और भगोरिया जैसे मेलों की संस्कृति हर घुमक्कड़ को मंत्रमुग्ध कर देती है।

रविवार का हाट देखना न भूलें। मिट्टी के बर्तन, महुआ की महक, मनके गहने और हंसते-गाते आदिवासी चेहरे आपको असली हिंदुस्तान से मिलवाते हैं। खासकर होली से पहले लगने वाला भगोरिया मेला प्रेम और स्वतंत्रता का अनूठा उत्सव है।

वहीं, धार से 97 किलोमीटर दूर बाघ की गुफाएं उन इतिहास प्रेमियों के लिए हैं, जिन्हें बौद्ध गुफा वास्तुकला की शांति भाती है। गुप्तकाल में बनीं ये गुफाएं बौद्ध भिक्षुओं का बरसाती आश्रय थीं। दीवारों पर हथौड़े-छेनी से उकेरी गईं बुद्ध के जीवन और फूल-पत्तों की चित्रकला आज भी खामोशी में इतिहास बुनती है। बागरी नदी के किनारे खड़ी इन गुफाओं तक पहुंचने वाला पुल आपको बलुआ पत्थर की चट्टानों के करीब ले जाता है। पास ही बना छोटा संग्रहालय इस कला को सुरक्षित रखे हुए है।

एक नजर मध्य प्रदेश पर्यटन पर

मध्य प्रदेश पर्यटन का अनुभव अद्वितीय है। यहां प्राकृतिक सुंदरता और ऐतिहासिक धरोहर का संगम है। मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग के जरिए प्रदान की गई सुविधाओं के साथ, मध्य प्रदेश के प्रमुख पिकनिक स्पॉट्स पर्यटकों को आरामदायक और रोमांचक समय बिताने का मौका देते हैं। मध्य प्रदेश दर्शन करने के लिए यहां कई पर्यटन स्थल मौजूद है।

मध्य प्रदेश के पर्यटन स्थल जैसे कि भीमबेटका, सांची, और खजुराहो का दौरा किया जा सकता है। मध्य प्रदेश जंगल सफारी के दौरान आप बाघों और अन्य वन्य जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देख सकते हैं। साथ ही, मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल जैसे ग्वालियर किला, उज्जैन, चंदेरी, और ओरछा पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। मध्य प्रदेश ट्रैवल पैकेज और मध्य प्रदेश पर्यटन गाइड आपको इस राज्य के बेहतरीन स्थल और यात्रा विकल्पों से परिचित कराते हैं। इससे आप अपनी यात्रा को और भी रोमांचक बना सकते हैं।

FAQ

मांडू के प्रमुख पर्यटन स्थल कौन से हैं?
मांडू में कई प्रमुख पर्यटन स्थल हैं, जहां आप घुमने की योजना बना सकते हैं। इनमें से कुछ इस प्रकार है- रानी रूपमती महल, जहाज महल, बाज बहादुर महल, जामा मस्जिद आदि।
मांडू घूमने के लिए सबसे अच्छा समय क्या है?
मांडू घूमने के लिए सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च के बीच है। इस समय मौसम ठंडा और सुखद रहता है, जो पर्यटकों के लिए आरामदायक होता है। ग्रीष्मकाल में यह स्थान गर्म और शुष्क हो सकता है।
मांडू में कहाँ ठहरने के लिए अच्छा होटल है?
मांडू में विभिन्न बजट के होटल और रिसॉर्ट्स उपलब्ध हैं। कुछ प्रमुख होटल और रिसॉर्ट्स में शामिल हैं-सामर होटल और रिसॉर्ट, मांडू किलेज़ रिसॉर्ट, बाज बहादुर रिसॉर्ट, मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग द्वारा संचालित होटल आदि।
मांडू का इतिहास क्या है?
मांडू का इतिहास मुगल काल से जुड़ा हुआ है। यह क्षेत्र पहले मालवा के शाही शासन के अधीन था। मांडू के किलों और महलों का निर्माण सुलतान हुसैन शाह गोरी के शासनकाल में हुआ था। यह स्थान बाद में बाज बहादुर और रानी रूपमती के प्रेमकहानी के लिए भी प्रसिद्ध हो गया।

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