मोदी को न्याय मिलने के साथ एनजीओ के षड्यंत्रों पर लगाम के रास्ते

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The Sootr CG
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मोदी को न्याय मिलने के साथ एनजीओ के षड्यंत्रों पर लगाम के रास्ते

न्याय मिलने में देरी केवल सामान्य नागरिक को ही तकलीफ नहीं देती, प्रदेश के मुख्यमंत्री और प्रधान मंत्री स्तर तक के नेताओं के निजी, राजनैतिक, सामाजिक जीवन के लिए कष्टप्रद हो सकती है। सचमुच यह बहुत महत्वपूर्ण और गंभीर मामला था, जिसमें देश के सबसे शीर्षस्थ नेता नरेंद्र मोदी को न्यायालय से करीब 19 साल बाद न्याय मिला। गुजरात में 2002 के दंगों के लिए कई दोषियों को सजा बहुत पहले मिल गई, लेकिन कुछ लोगों, संगठनों और राजनेताओं द्वारा इन दंगों के दौरान समय पर कार्रवाई न करने और उन्हें भड़काने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी पर गंभीर आरोप लगाकर एक मामला निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक खींचा गया। अब सर्वोच्च अदालत ने लगभग 450 पृष्ठों के ऐतिहासिक फैसले में न केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, वरन अन्य सहयोगी नेताओं और अधिकारियों पर लगे सभी आरोपों को निराधार, पूर्वाग्रही बताया, बल्कि शिकायतकर्ताओं को षड्यंत्रकारी तथा दोषी करार दिया है।



न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन जजों की विशेष पीठ ने मोदी और उनके सहयोगियों को दोषमुक्त करार देते हुए इस गंभीर मामले की जांच करने वाली एसआईटी द्वारा सही ढंग से विस्तृत जांच पड़ताल की सराहना की है। यह निष्कर्ष भी निकाला कि कुछ कुंठित और पर्वाग्रही लोगों ने षड्यंत्रपूर्वक आरोप लगाए, झूठे साक्ष्य पेश किये। इन तत्वों के षड्यंत्रों की पड़ताल कर उनके विरुद्ध क़ानूनी करर्फ्वाइ भी होना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि विशेष जांच दल ने स्वयं मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से घंटों लम्बी पूछताछ की। मोदी और उनके वरिष्ठ सहयोगी नेता अमित शाह ने जांच में पूरा सहयोग दिया और पूरी न्यायिक प्रक्रिया में किसी तरह का अड़ंगा लगाने की कोशिश नहीं की। दूसरी तरफ विरोधी दलों के नेताओं, मानव अधिकार के नाम पर सक्रिय तीस्ता सीतलवाड़ के संगठन सिटिज़न्स फॉर जस्टिस एंड पीस ने अदालत में याचिका लगाकर इस मामले में जोड़तोड़ कर आरोप और साक्ष्य प्रस्तुत किए, जो अंत में पूरी तरह गलत साबित हो गए। इस तरह के षड्यंत्र की पूरी तफ्तीश के लिए अब गुजरात पुलिस ने तीस्ता सीतलवाड़ को हिरासत में लेकर उससे तथा अन्य संदिग्ध अधिकारीयों से पूछताछ शुरू की है। अदालत के निर्णय और इस तरह के प्रकरणों से भारत में सक्रिय कई देशी विदेशी एनजीओ की गतिविधियों पर कड़ी नजर और लगाम की क़ानूनी आवश्यकता बढ़ गई है। सीतलवाड़ की तरह मानव अधिकारों के तथाकथित ठेकेदार, संगठन सक्रिय हैं। वे वैध-अवैध तरीकों से करोड़ों रुपया चंदे के रूप में जुटाकर सरकारों या संस्थानों से ब्लैकमेल करते हैं अथवा कुछ  विदेशी ताकतों और एजेंसियों के लिए भारत विरोधी सामग्री सहयोग पहुंचाते हैं।



 ब्रिटिश गुप्तचर होने के भी लग चुके हैं आरोप



तीस्ता सीतलवाड़ के लिए भी राजनीतिक दलों के साथ एमनेस्टी इंटरनेशनल तुरंत खड़ा हो गया है, जो स्वयं विवादों के घेरे में है। रूस, इस्राइल, कांगो ने तो कड़े प्रतिबन्ध लगाए, चीन,अमेरिका और विएतनाम जैसे अनेक देश एमनेस्टी इंटरनेशनल की पूर्वाग्रही गतिविधियों पर कार्रवाई करते रहे हैं। भारत में एमनेस्टी पर पिछले वर्ष हुई क़ानूनी कार्रवाई पर आंसू बहा रहे कांग्रेस या अन्य दलों के प्रभावशाली नेताओं की याददाश्त क्या इतनी कमजोर हो गई है कि 2009 में उनके सत्ता काल में सरकारी कार्रवाई पर भी संस्था ने कुछ महीने अपनी दूकान बंद करने का नाटक किया था। यों इंदिरा गांधी के सत्ता काल में भी यह संगठन विवादों में घिरा था। उस समय हिंदी की प्रमुख साप्ताहिक पत्रिका दिनमान के 7 नवम्बर 1982 के अंक में प्रकाशित करीब दो पृष्ठों की मेरी एक विशेष रिपोर्ट का शीर्षक था -  "एमनेस्टी इंटरनेशनल क्या गुप्तचर संस्था है?" इस रिपोर्ट में भी भारत तथा रूस (उस समय सोवियत संघ) की सरकारों द्वारा इस संगठन की संदिग्ध गतिविधियों एवं फंडिंग के गंभीर आरोपों का उल्लेख था। मेरी रिपोर्ट में लिखा था- "एमनेस्टी इंटरनेशनल पर साम्राज्यवादी देशों की गुप्तचर संस्थाओं का हिस्सा होने के आरोप लगते रहे हैं। ब्रिटिश सरकार की विशेष गुप्तचर एजेंसी के लिए काम करने का गंभीर आरोप भी है। संगठन की वार्षिक रिपोर्ट में पाकिस्तान के सैनिक शासन द्वारा बनाये गए हजारों राजनीतिक बंदियों और मृत्युदंड़ों का नाम मात्र उल्लेख तक नहीं है, लेकिन भारत में मानव अधिकारों के हैं पर अनावश्यक बातें प्रचारित की गई हैं" पत्रिका के वे पृष्ठ आज भी मेरे पास या किसी अच्छी लाइब्रेरी में मिल सकते हैं।



आतंकी संगठनों से भी लेन-देन करते हैं कई एनजीओ



हाल ही में एमनेस्टी इंटरनेशनल ने स्वयं किसी कंपनी की तरह आर्थिक संकट के कारण भारत में अपना कामकाज बंद करने की घोषणा की थी। वह भी मानव अधिकारों के नाम पर संगठन, ट्रस्ट  और कंपनियों के खातों में वैध-अवैध विदेशी फण्ड के दुरूपयोग के गंभीर मामलों पर प्रवर्तन निदेशालय की  जांच पड़ताल तथा कुछ खाते सील किये जाने से विचलित होकर सरकर विरोधी अभियान के तहत अपने कार्यालय नहीं चलाने की बात की है। भारत के कुछ पत्रकार, टीवी समाचार चैनलों के नामी प्रस्तुतकर्ता मानव अधिकार संगठन पर सरकार की ज्यादतियों का दुखड़ा लिख या सुना रहे हैं, लेकिन गंभीर गड़बड़ियों वाले तथ्यों को उजागर नहीं कर रहे हैं। यह बात तो सब जानते समझते हैं कि अन्तर्राष्ट्रीय गुप्तचर एजेंसियां, आतंकवादी संगठन और अवैध धंधों वाली संस्थाएं कई छद्म नामों से कामकाज और धन का लेन देन करती हैं। भारत में किसी भी देशी विदेशी संस्थाओं को वैधानिक नियमों कानूनों का पालन करते हुए गतिविधियां चलाने की स्वतंत्रता है। बाल मजदूरी की व्यवस्था के विरुद्ध काम करने वाले कैलाश सत्यार्थी ने अपने छोटे से कस्बे विदिशा से बचपन बचाओ आंदोलन की संस्था से काम शुरू किया और भारत में महत्वपूर्ण समाज सेवा से विश्व  को प्रेरणा देकर नोबेल पुरस्कार का सम्मान पाया है। मानव अधिकारों, महिलाओं-श्रमिकों के अधिकारों के लिए कई राष्ट्रीय - अंतरराष्ट्रीय संगठन भारत में काम कर रहे हैं। एमनेस्टी ने विदेशी फंड लेने के लिए बड़ी चालाकी से रास्ते निकाले। उसने अपना जाल फ़ैलाने के लिए चार नामों से कामकाज चलाया- एमनेस्टी इंटरनेशनल फाउंडेशन, एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, इंडियंस फॉर एमनेस्टी इंटरनेशनल ट्रस्ट, एमनेस्टी इंटरनेशनल साउथ एशिया फाउंडेशन। फिर बैंकों में इन नामों से कई खाते खुलवाए। दूसरी तरफ 2010 से बने कानून के अनुसार अपनी मानव अधिकार संस्था के लिए विदेशी फण्ड-अभिदाय नियम के तहत रजिस्ट्रेशन नहीं करवाया। वहीं अपने ब्रिटैन स्थित मुख्यालय से कभी समाज सेवा गतिविधि के नाम पर भरी धनराशि मंगवाई, कभी कंपनी कानून के तहत विदेशी पूंजी निवेश के नाम पर धन जमा किया। लगभग दस करोड़ रूपये विदेशी पूंजी निवेश (एफडीआई ) की तरह दिखाई। इसी तरह करीब 26 करोड़ रूपये भारतीय संस्थाओं के नाम पर दिखाए। नियम कानूनों की धज्जियां उड़ाने की गंभीर शिकायतें मिलने पर प्रवर्तन निदेशालय ने पड़ताल कर बैंक खतों पर फ़िलहाल रोक लगवा दी। यह कार्रवाई भी रिज़र्व बैंक के नियमों के तहत हुई है। संस्था क़ानूनी लड़ाई लड़कर संभवतः बचाव कर सकती है, लेकिन फंड की हेराफेरी के मामले पर मानव अधिकारों पर अतिक्रमण, संस्था पर अंकुश आदि के अनर्गल तर्कों से दुनिया को धोखा क्यों देना चाहती है?



डॉक्टर-प्रोफेसरका चोला पहनकर काम करती हैं एमनेस्टी



रही बात प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार की नाराजगी की। यदि एमनेस्टी गड़बड़ियां करेगी, तो कौन सी सरकार उन पर मेहरबानी कर सकती है? तमिलनाडु के कुदानकुलम परमाणु बिजली घर के विरुद्ध आंदोलन को एमनेस्टी पीछे से सहायता कर रही थी, तब तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाया था कि इस आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियां हैं। यह सिलसिला वर्षों से जारी है। तभी तो कश्मीर में आतंकवादी गतिविधियों से सैंकड़ों पंडितों के मारे जाने और उनके घर बार नष्ट किये जाने पर भी एमनेस्टी इंटरनेशनल उसे केवल" हथियारबंद समूह के हमले" बताती रही। आतंकवादियों को मौत की सजा न देने की अपीलें करती रही हैं। जम्मू कश्मीर, पंजाब, पूर्वोत्तर राज्यों में अतिवादी संगठनों या छत्तीसगढ़-झारखण्ड, आंध्र जैसे प्रदेशों में नक्सली संगठनों की हिंसक गतिविधियों को सहयोग देने वाले कथित नेताओं, पत्रकार-प्रोफेसर-डॉक्टर के चोले पहने लोगों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहायता उपलब्ध कराती रही है।



भारत विरोधी गतिविधियों वाली संस्थाओं पर हो सख्ती



सबसे मजेदार बात यह है कि मानव अधिकारों के लिए काम करने का दावा करने वाले एमनेस्टी के पदाधिकारी निजी कंपनी के मालिकों या मुख्य कार्यकारी अधिकारियों की तरह मोटी तनख्वाह, पांच सितारा होटलों, बिज़नेस क्लास में हवाई यात्राओं पर भारी खर्च करते हैं। मानव अधिकारों की रक्षा, समाज सेवा के नाम पर संस्था को कर मुक्त सुविधा मांगते हैं। अब तो आलम यह है कि ब्रिटैन में कुछ समय पहले करीब एक सौ कर्मचारियों को नौकरियों से निकले जाने पर वहीँ के सबसे बड़े श्रमिक संगठन ने आरोप लगाया कि एमनेस्टी के पदाधिकारी अपने एशोआराम पर करोड़ों खर्च कर रहे हैं और मातहत लोगों का शोषण करते और उन्हें निकाल रहे हैं। इसलिए दुनिया को अधिकारों का ज्ञान बाँटने वाले अपने दामन, नेताओं, बैंक खतों, हिसाब किताब को तो नियम कानून के तहत ठीक क्यों नहीं करते? इसी तरह विदेशी धन से भारत विरोधी गतिविधियों और प्रचार को रोकने के लिए सरकार ही नहीं समाज की अन्य संस्थाओं को भी अधिक कड़े कदम क्यों नहीं उठाने चाहिए? प्रधान मंत्री के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने कुछ अर्सा पहले देश में सक्रिय एनजीओ की कतिपय खतरनाक देश विरोधी गतिविधियों पर कड़ी निगरानी और कार्रवाई की सलाह दी थी। उन्होंने कहाकि बदलते वक्त में किसी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के तौर-तरीके भी बदल गए हैं। युद्ध के नए हथियार के तौर पर सिविल सोसायटी (एनजीओ) द्वारा समाज को नष्ट करने की तैयारी की जा रही है। डोभाल ने कहा था-'राजनीतिक और सैनिक मकसद हासिल करने के लिए युद्ध अब ज्यादा असरदार नहीं रह गए हैं। दरअसल युद्ध बहुत महंगे होते हैं, हर देश उन्हें अफोर्ड नहीं कर सकता। उसके नतीजों के बारे में भी हमेशा अनिश्चितता रहती है। ऐसे में समाज को बांटकर और भ्रम फैलाकर देश को नुकसान पहुंचाया जा सकता है।'



मोदी के आने पर फंडिंग पर कसा शिकंजा



क्या इस बात से इंकार किया जा सकता है कि पिछले दो दशकों में कई एनजीओ विदेशी फंडिंग लेकर प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से भारत विरोधी गतिविधियां चलाने वाले माओवादी नक्सल और  पाकिस्तान समर्थक  संगठनों को मानव अधिकारों के नाम पर हर संभव सहायता करते रहे हैं। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार आने के बाद कई संगठनों की विदेशी फंडिंग पर शिकंजा लगा और उनकी मान्यताएं भी रद्द हुई है, लेकिन कई संगठन नए नए हथकंडे अपनाकर अब भी सक्रिय हैं। कानूनों में कुछ कमियां हैं और गुपचुप जंगलों से महानगरों तक चलने वाली गतिविधियों के प्रमाण पुलिस नहीं जुटा पाती हैं। यों कांग्रेस सरकार भी ऐसे नक्सली संगठनों से विचलित रहीं हैं और उनके नेता तक नक्सली हमलों में मारे गए। फिर भी आज पार्टी ऐसे संगठनों के प्रति सहनुभूति दिखा रही है।



19 हजार फर्जी एनजीओ की मान्यता निरस्त



सरकारी रिकार्ड्स केअनुसार मोदी सरकार आने से पहले विभिन्न श्रेणियों में करीब 40 लाख एनजीओ रजिस्टर्ड थे। इनमें से 33 हजार एनजीओ को लगभग 13 हजार करोड़ रुपयों का अनुदान मिला था। मजेदार तथ्य यह है कि 2011 के आसपास देश के उद्योग धंधों के लिए आई विदेशी पूंजी 4 अरब डॉलर थी, जबकि एनजीओ को मिलने वाला अनुदान 3 अरब डॉलर था। ऐसे संगठनों द्वारा विदेशी  धन के उपयोग की जांच पड़ताल उस समय से सुरक्षा एजेंसियां कर रही थी। निरंतर चलने वाली पड़ताल से ही यह तथ्य सामने आने लगे कि नक्सल प्रभावित इलाकों में आदिवासियों की सहायता के लिए खर्च के दावे-कथित हिसाब किताब गलत साबित हुए। भाजपा सरकार आने के बाद जांच के काम में तेजी आई और सरकार ने करीब 8875 एनजीओ को विदेशी अनुदान नियामक कानून के तहत विदेशी फंडिंग पर रोक लगा दी। साथ ही 19 हजार फर्जी एनजीओ की मान्यता रद्द कर दी। बताया जाता है कि लगभग 42 हजार एनजीओ के कामकाज की समीक्षा पड़ताल हो रही है। गृह मंत्रालय ने यह आदेश भी दिया है कि भविष्य में दस विदेशी संगठनों के अनुदान भारत आने पर उसकी जानकारी सरकार को दी जाए।



ऐसे संगठनों पर अंकुश लगाना जरूरी



समाज, सरकार को शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास के कार्यों में निष्ठापूर्वक काम कर रहे संगठनों पर कोई आपत्ति नहीं हो सकती है और न ही होना चाहिए, लेकिन सिविल सोसायटी के नाम पर भारत विरोधी षड्यंत्र और गतिविधियां चलाने वालों पर तो अंकुश बहुत जरूरी है। चीन या पाकिस्तान तो अन्य देशों के रास्तों-संगठनों, कंपनियों के नाम से भारत में करोड़ों रुपया पहुंचाकर न केवल कुछ संगठनों बल्कि मीडिया के नाम पर सक्रिय लोगों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। लोकतंत्र में पहरेदारी के साथ प्रगति के लिए पूरी सुविधाएं और स्वतंत्रता आवश्यक है। 

(लेखक आई टी वी नेटवर्क - इण्डिया न्यूज़ और दैनिक आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं)

 


Teesta Fake NGO Justice to Prime Minister Modi Congress government giving protection British intelligence NGO's transactions with terrorists investigation of 42 thousand NGOs तीस्ता फर्जी एनजीओ प्रधानमंत्री मोदी को न्याय कांग्रेस सरकार देती रही संरक्षण ब्रिटिश गुप्तचर आतंकवादियों से एनजीओ के लेनदेन 42 हजार एनजीओ की पड़ताल