विधिवेत्ता और सफल राजनीतिज्ञ जगदीप धनकड़ का उप राष्ट्रपति पद पर अच्छे बहुमत से विजयी होकर राज्य सभा का सभापति बनना बहुत आसान रहा है, लेकिन आने वाले महीनों-वर्षों के दौरान राज्य सभा में संविधान की धारा 370 हटाने जैसे संविधान संशोधन विधेयक अथवा प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के कुछ महत्वपूर्ण प्रस्तावों पर सदन में प्रतिपक्ष के कड़े प्रतिरोध को संभालने की बड़ी चुनौती होगी।
उप राष्ट्रपति के पद पर पहले भी संविधानवेत्ता राजनेता रहे और ऐसे अवसर भी मैंने स्वयं राज्य सभा की प्रेस गैलरी में देखे हैं, जब सत्तारूढ़ पार्टी के वरिष्ठ सदस्य सभापति के निर्णय पर कड़ा विरोध करने लगे। इसलिए सरकार और प्रतिपक्ष को संवैधानिक सीमाओं में संभालना, उनको तटस्थता के साथ देना भी आवश्यक होगा।
धनकड़ की राजनीतिक यात्रा के भिन्न पड़ाव, जनता दल, कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अनुभव सरकार और संसद के कुछ ऐतिहासिक फैसलों में निर्णायक भूमिका निभाने में सहायक हो सकते हैं।
कुछ गुणों में मिलती है राधाकृष्णन की झलक
इस पद पर डॉक्टर राधाकृष्णन की परम्परा निभाने का दायित्व है। उनके बारे में लिखा गया था कि- मृदु मुस्कान, सहजता, विनोद वृत्ति और विद्वता के बल पर उन्होंने राज्य सभा के सदस्यों का दिल जीत रखा था, संख्या बल कम होने के बावजूद उस समय भी प्रतिपक्ष के दिग्गज नेता सदन में थे। यही नहीं, बाद में नेहरूजी के बड़े आग्रह पर राष्ट्रपति पद स्वीकारा, लेकिन जब प्रतिपक्ष ने चीन के साथ युद्ध में पराजय पर रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन का इस्तीफा मांगा तो उन्होंने हर संभव दबाव बनाकर मेनन को हटवाया। जगदीप धनकड़ के कुछ गुण विनोद वृत्ति और संवैधानिक ज्ञान उनकी परम्परा के अनुरूप हैं। कानून और संवैधानिक विशेषज्ञ के रूप में गोपाल स्वरूप पाठक, आर वेंकटरमन और डॉ. शंकर दयाल शर्मा ने राज्य सभा में कई बार महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रतिपक्ष ही नहीं सत्तारूढ़ दल के नेताओं को भी कड़ाई से नियंत्रित किया। इसे अपना सौभाग्य कहूंगा कि एक पत्रकार के रूप में उनके सभापतित्व काल में मुझे सदन की कार्यवाही देखने और खबरें लिखने का अवसर मिला हुआ था। वेंकटरमन के कार्यकाल में फेयर फेक्स कांड, राष्ट्रपति-प्रधान मंत्री के बीच पत्राचार के विवरण पर सदन में भारी हंगामे हुए। उस समय सदन का संचालन, विपक्ष को पूरा अवसर देना, मध्यस्थ की भूमिका निभाना बड़ी उपलब्धि और आदर्श कही जाती है।
जब उपराष्ट्रपति शर्मा को मनाने पहुंचा पूरा सदन
डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा के कार्यकाल की एक घटना ऐतिहासिक है, जिसे मैं प्रत्यक्षदर्शी होने से कभी नहीं भूल सकता। डॉक्टर शर्मा युवा काल से सामान्य कार्यकर्ता से पार्टी अध्यक्ष, केंद्रीय मंत्री और राज्यपाल के पदों पर रहने के बाद उप राष्ट्रपति बने थे। राज्य सभा में कुछ महीने बाद ही प्रतिपक्ष के तेलगु देशम के नेता पी उपेंद्र ने आंध्र प्रदेश की राज्यपाल कुमुद बेन जोशी द्वारा निर्धारित मानदंड से अधिक खर्च करने का मामला उठाने की अनुमति डॉक्टर शर्मा ने दे दी। अब सत्तारूढ़ दल के सदस्यों ने हंगामा कर दिया। पी चिदंबरम ने सरकार की और से तर्क दिया कि राज्यपाल का मामला सदन में नहीं उठ सकता। कानून मंत्री पी शिवशंकर कुछ कानून, संविधान का ज्ञान बघारने लगे। अधिक हंगामा होने पर भी डॉक्टर शर्मा निर्णय बदलने को तैयार नहीं हुए और इस्तीफा देने की बात कहकर सदन से चले गए। यह बड़ा संवैधानिक संकट हो गया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नरसिंह राव सहित कई नेता उप राष्ट्रपति से क्षमा याचना के साथ निर्णय वापस लेने को कहा। जहां तक मेरी जानकारी है प्रधान मंत्री राजीव गांधी ने भी उनसे व्यक्तिगत भेंट कर उनके सम्मान में कमी नहीं होने का विश्वास दिलाया। यही नहीं प्रतिपक्ष ने भी डॉक्टर शर्मा से पद पर रहने का आग्रह किया। दो तीन घंटे इस मुद्दे पर चर्चा हो भी गई और उपेंद्र ने अपना विशेष उल्लेख वापस ले लिया।
विवादों के विधेयक होंगे बड़ी चुनौती
इन घटनाओं का उल्लेख वर्तमान सन्दर्भ में नए सभापति जगदीप धनकड़ के कार्यकाल में सभी पक्षों के लिए सबक हो सकता है। सदन में पिछले दो वर्षों के दौरान गंभीर टकराव के अवसर आए और सदस्यों को एक अवधि के लिए निलंबित तक करना पड़ा। अब तो प्रतिपक्ष और भी उखड़ा हुआ है। राज्य सभा और लोक सभा में महंगाई, जीएसटी पर चार-चार घंटों की लम्बी चर्चा के बाद भी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के साथ दुनिया को सुनाते हैं कि सदन में महंगाई पर बोलने ही नहीं दिया जाता। यह तो बहस की बात थी, आने वाले समय में नरेंद्र मोदी सरकार समान नागरिक संहिता कानून के लिए संविधान संशोधन विधेयक जैसे ऐतिहासिक लेकिन राजनीतिक रूप से विवादास्पद विषय सदन में रख सकती है। जम्मू कश्मीर पर भी कुछ निर्णयों पर प्रतिपक्ष के गंभीर विरोध की स्थिति रहेगी। गुजरात, हिमाचल के बाद कर्नाटक, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों से पहले कुछ निर्णयों पर सदन का माहौल भयावह हो सकता है।
संसद का नया इतिहास होगा धनकड़ का कार्यकाल
असल में इस बार 2024 के लोक सभा चुनाव के लिए प्रतिपक्ष के अस्तित्व पर ही खतरे मंडरा रहे हैं। सरकार को सदन के साथ सड़क के संघर्ष को संभालना होगा।
इस दृष्टि से जगदीप धनकड़ के चुनाव में भी आंध्र के परस्पर विरोधी तेलगु देशम पार्टी और व्हाईएसआर कांग्रेस, बीजू जनता दल, बहुजन समाज पार्टी, हरियाणा के चौटाला परिवार की पार्टियों आदि का समर्थन मिलना उनका विश्वास बढ़ा सकता है। जब धनकड़ कुछ वर्ष कांग्रेस में रहे तब नरसिंह राव सरकार में थे, तब शरद पवांर सहित कई कांग्रेसी नेताओं से उनके सम्बन्ध रहे। उन्होंने अशोक गहलोत के प्रभाव को बढ़ने से नाराजगी में पार्टी छोड़ी थी। बाद में उनसे भी औपचारिक रिश्ते बने रहे। इसलिए आने वाले वर्षों में कई सदस्यों को व्यग्तिगत संबंधों से भी समझाने में सफल रह सकते हैं। उनके किसान पुत्र का दावा कागजी नहीं है। वह चौधरी देवीलाल द्वारा राजनीति में लाए गए और चंद्रशेखर ने प्रधान मंत्री बनने पर उन्हें संसदीय कार्य मंत्री रखा। चाहे कार्यकाल छोटा था, लेकिन उस समय सदन को संभालना और कठिन था। उनके अनुभव प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के लिए लाभदायक होंगे, लेकिंन भाजपा या सहयोगी दलों के सदस्यों को संभलकर चलना होगा। इसमें कोई शक नहीं कि धनकड़ का कार्यकाल एक नया रिकार्ड और संसद के इतिहास का नया अध्याय साबित हो सकता है।
(लेखक आई टी वी नेटवर्क इण्डिया न्यूज़ और आज समाज के सम्पादकीय निदेशक हैं)