गांधी 1920 में CG आए थे?

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गांधी 1920 में CG आए थे?

हम भारतीय दिलचस्प, बिंदास और बेलौस भी हैं। हम मिथकों में विज्ञान की सर्जिकल स्ट्राइक करते हैं। हमारे लिए पुष्पक विमान राफेल से ज्यादा कारगर सिद्ध हो चुका है। हम शास्त्रों को छुए बिना जानते हैं भारत ने ज्ञान के हर इलाके में दुनिया से बेहतर सोचा। जो हमें महान कौम बताता है। वोट हम उसे ही देते हैं। हालिया तय हो चुका है कि अयोध्यासुत राम की माता कौशल्या के मायके का राजस्व रिकॉर्ड बिलासपुर बनाम रायपुर संभाग में खंगाला जाएगा। हमें राम वन गमन के चप्पे-चप्पे की खबर है। जन आस्था के रहते सुप्रीम कोर्ट भी संविधान और कानून की नजर से फैसला नहीं कर पाया। हम जानते हैं ताजमहल दरअसल तेजोलय या तेजोमहल रहा होगा! शेक्सपियर को शेसप्पा अय्यर सिद्ध करना हमारे बाएं हाथ का खेल है ! 



सुना हुआ मिथक इतिहास बना दिया..



दिक्कत यही है हम ताजा इतिहास तर्कों, आंकड़ों, दस्तावेजों और मुनासिब विवरणों की दूरबीन से सहेज नहीं पाते। मसलन कुछ अरसा पहले एक संस्कृतिकर्मी बुद्धिजीवी राहुल कुमार सिंह ने उजागर किया कि 1920 में महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ के रायपुर तथा धमतरी के प्रचारित प्रथम प्रवास को लेकर भरोसेमंद सबूत नहीं मिल रहे हैं। बीसियों लेख, विवरण, पुस्तकें, इंटरव्यू और छिटपुट प्रतिक्रियाएं लगातार बताती रही हैं कि गांधी आए थे। ज्यादातर समर्थक आश्वस्त लेखकों का जन्म 1920 के बाद हुआ है। भारत श्रुतियों और स्मृतियों का देश है। सुना हुआ मिथक इतिहास बना दिया जाता है। इतिहास लेकिन मौखिक और दस्तावेजी सबूत मांगता है। विरोधाभास यह भी है कि गांधी के समकालीन छत्तीसगढ़ के कांग्रेस नेताओं ने नहीं लिखा गांधी कब, कैसे कहां और किसके साथ छत्तीसगढ़ आए थे। घटना सच है, तो जिस ठौर गांधी आए, वहां के चित्र, पत्र, समाचारपत्रों की कतरनें और अन्य जानकारियां प्रमाणित इतिहास के हवाले होनी चाहिए। छत्तीसगढ़ सरकार ने भी 20 दिसंबर को गांधी का आना विज्ञापन में प्रचारित किया है। लेकिन साथ में 1933 का चित्र दर्शित है। 



छत्तीसगढ़ की भी राजनीति के शलाका पुरुष रविशंकर शुक्ल 1920 में 43 वर्ष के रहे थे। 1956 में प्रकाशित ‘शुक्ल अभिनंदन ग्रंथ‘ के पृष्ठ 44 पर वाक्य है ‘सन् 1920 की कलकत्ता की विशेष कांग्रेस से पूर्व महात्मा गांधी रायपुर आए थे।‘ गांधी के दिन प्रतिदिन का ब्यौरा गांधी शांति प्रतिष्ठान और भारतीय विद्या भवन बंबई (मुंबई) ने 1971 में मिलकर प्रकाशित किया। उसके अनुसार गांधी कलकत्ता से 17 दिसम्बर 1920 को चलकर 18 दिसम्बर को नागपुर पहुंचे। फिर नागपुर से 8 जनवरी को चले गए। इस दरमियान गांधी 3 जनवरी को सिवनी तथा 6 और 7 जनवरी को छिंदवाड़ा प्रवास पर रहे। इस तरह कलकत्ता कांग्रेस के पहले रायपुर आने का शुक्ल का कथन समयसिद्ध नहीं है। बाद में शुक्ल ने खुद लिखा ‘सन् 1920 के दिसम्बर में कांग्रेस का अधिवेशन नागपुर में हुआ।‘ हैरत है गांधी से संबंधित दैनंदिनी में सिवनी और छिंदवाड़ा जैसे छोटे स्थानों में सामान्य यात्रा पर जाने का उल्लेख है, लेकिन रायपुर और धमतरी के नहर आंदोलन की सफलता का नहीं।



मैंने गांधी को रायपुर प्लैटफॉर्म पर देखा

 

गांधी शताब्दी वर्ष 1969 में मध्यप्रदेश सरकार की पुस्तक ‘मध्यप्रदेश और गांधीजी‘ में उनका रायपुर, धमतरी और कुरुद आना विस्तार से लिखते व्यक्तियों के नाम और घटनाएं भी दर्ज हैं। लेकिन उन घटनाओं और व्यक्तियों से संबंधित तस्वीरें और समाचारपत्र जनदृष्टि में देखे नहीं जा सके हैं।‘ गांधी शताब्दी वर्ष में 1969 में ही रविशंकर विश्वविद्यालय, रायपुर की एक पुस्तिका ‘छत्तीसगढ़ में गांधीजी‘ कुछ महत्वपूर्ण गांधीवादियों के हवाले से तय करती है कि गांधी 1920 में आए थे। हरि ठाकुर, केयूर भूषण, डॉ. शोभाराम देवांगन आदि का ऐसा कहना है। शोभाराम देवांगन ने आंखों देखा बयान दर्ज किया है लेकिन कोई प्रमाण नहीं दिया। छत्तीसगढ़़ के महत्वपूर्ण लेखक हरि ठाकुर के लेख में वरिष्ठ स्वतंत्रता संग्राम सेनानी प्रभुलाल काबरा का कथन है ‘मैंने गांधीज को रायपुर के प्लैटफार्म पर देखा। डाकगाड़ी से लोकमान्य तिलक, दादा साहब खापर्डे, डॉ. मुंजे आदि कलकत्ता जा रहे थे।‘ तिलक का निधन तो 1 अगस्त 1920 को हो चुका था। उन्हें 20 दिसम्बर 1920 को रायपुर के प्लैटफार्म पर कैसे देखा जा सकता था? नागपुर कांग्रेस अधिवेशन की तैयारियां 18 दिसम्बर से 8 जनवरी 1921 तक गांधी सहित नेताओं को रोके हुए थीं। नागपुर से अधिवेशन छोड़कर कलकत्ता जाने का सवाल कहां था? 



गांधी को कंदेल नहर सत्याग्रह के सिलसिले में लाने का प्रयास करने का श्रेय सुंदरलाल शर्मा को है, हालांकि गांधी साथ आ नहीं पाए थे। इस संबंध में सुंदरलाल शर्मा की ओर से गांधी यात्रा का अधिकृत ब्यौरा प्रकाशित होकर उपलब्ध नहीं है। युवा आयु में द्वारिका प्रसाद मिश्र राजनीति में सक्रिय हो गए थे। अपनी पुस्तक ‘लिविंग एन एरा‘ में उन्होंने इलाहाबाद से छत्तीसगढ़ होते हुए नागपुर अधिवेशन में खुद के जाने और लौटने का हवाला दिया है। उसमें भी गांधीज के छत्तीसगढ़ आने का उल्लेख नहीं है। 1956 में मध्यप्रदेश सरकार ने ‘हिस्ट्री ऑफ फ्रीडम मूवमेंट इन मध्यप्रदेश‘ प्रकाशित की जिसके मुख्य संपादक द्वारिका प्रसाद मिश्र थे। उस पुस्तक में भी गांधी के उपरोक्त छत्तीसगढ़ प्रवास का उल्लेख नहीं है। सबसे पहले गांधीवाद पर शोध प्रबंध जैसा लिखने वाले रामदयाल तिवारी ने कोई प्रामाणिक विवरण आज की पीढ़ी के हवाले नहीं किया। 



सुंदरलाल शर्मा और छोटेलाल की अगुवाई में मील का पत्थर 



रविशंकर विश्वविद्यालय की पुस्तिका में गांधी के बेहद निकट रहे दुर्ग के घनश्याम सिंह गुप्त का लेख है। उसमें गांधी की हरिजन यात्रा 1933 का छत्तीसगढ़ का चश्मदीद वर्णन है। 1920 को लेकर खामोशी है। साहित्यकार डॉ. बलदेव प्रसाद मिश्र ने भी 1920 पर मौन साधते यही लिखा उन्होंने पहली बार गांधी को 1923 के आसपास देखा था। एक अब्बास भाई के संस्मरण के अनुसार गांधी और मौलाना शौकत अली 1921 में रायपुर आए। उन्हें अब्बास भाई अपनी बस में बिठाकर धमतरी ले गए। सरकारी गजेटियर बिना इतिहाससम्मत स्त्रोत का उल्लेख किए लिख चुके हैं कि गांधी 1920 में छत्तीसगढ़ आए थे। छत्तीसगढ़ गौरव पंडित सुंदरलाल शर्मा छत्तीसगढ़ का गांधी कहे जाते हैं। गांधी वांग्मय में सुंदरलाल शर्मा का उल्लेख नहीं है। कंदेल का नहर सत्याग्रह सुंदरलाल शर्मा और छोटेलाल श्रीवास्तव की अगुवाई में मील का पत्थर था। फिर वे भी गांधी का उल्लेख करना क्यों भूल गए? 



नागपुर से रायपुर और धमतरी आने जाने में गांधी दो दिनों का उपयोग तो कर सके भी होंगे। दिलचस्प है कि संपूर्ण गांधी वांग्मय में उस अवधि में 18 दिसम्बर, 19 दिसम्बर और 22 दिसम्बर में उनकी लेखी का उल्लेख है लेकिन 20 और 21 दिसम्बर के लिए गांधी वांग्मय भी मौन है। गांधी यात्रा में रहे होंगे, तो शायद कुछ लिख नहीं पाए होंगे? इतिहास की प्रामाणिकता के लिए जरूरी, चुनौतीपूर्ण, शोधपूर्ण और संवेदनशील है कि तार्किक होगा कि गांधी 1920 में छत्तीसगढ़ आए थे। पुष्ट जानकारी के अभाव में विसंगतियां पैदा हो जाती हैं। महज सौ वर्ष पुराना इतिहास पूरी तौर पर प्रामाणिक दृष्टि से विश्वस्त नहीं किया जा सकता तो गांधी जैसे शलाका पुरुष को लेकर कई भ्रांतियों हो सकती हैं। वस्तुपरक, तटस्थ और निश्पक्ष इतिहास पढ़ने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। सम्भव है विश्वसनीय दस्तावेजी सबूत मिल जाएं। छाया की तरह गांधी के साथ रहते प्यारेलाल और महादेव देसाई की डायरी में भी कोई उल्लेख नहीं है। 


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