मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद, कुछ हो गए भूले बिसरे तो कुछ हैं अभी आबाद

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मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद, कुछ हो गए भूले बिसरे तो कुछ हैं अभी आबाद

सरयूसुत मिश्र।  राजनीति में परिवारवाद आज देश भर में बड़ा मुद्दा बन रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी परिवारवाद और परिवार भक्ति को लोकतंत्र के लिए खतरनाक मानते हैं। बीजेपी के स्थापना दिवस पर PM ने कहा कि देश के लिए परिवारवादी पार्टियां सबसे खतरनाक हैं। पीएम मोदी ने कहा कि परिवारवादी पार्टियों ने देश के युवाओं को भी कभी आगे नहीं बढ़ने दिया, उनके साथ हमेशा विश्वासघात किया है। अभी भी देश में दो तरह की राजनीति चल रही है। एक राजनीति है परिवार भक्ति की, और दूसरी है राष्ट्रभक्ति की। देश के युवा अब ये समझने लगे हैं कि किस तरह परिवारवादी लोकतंत्र की सबसे बड़ी दुश्मन हैं। उनका इशारा कांग्रेस और परिवारवादी क्षेत्रीय दलों की ओर है। कमोबेश सभी राज्यों में परिवारवाद की राजनीति हावी है। 



राजनीति करने वालों को व्यापार नहीं करना चाहिए  



मध्य प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद के हालात पर हम नजर डालते हैं। पहले कांग्रेस पार्टी की चर्चा करते हैं। मध्य प्रदेश अभी क्षेत्रीय दलों से मुक्त हैं। यहां कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधी राजनीतिक लड़ाई होती रही है। मध्य प्रदेश के गठन के साथ ही कांग्रेस में परिवारवाद शुरू हो गया था। प्रथम मुख्यमंत्री रविशंकर शुक्ल ने अपने परिवार को आगे बढ़ाया। उनके पुत्र श्यामाचरण शुक्ल तीन बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे। उनके भाई विद्याचरण शुक्ल केंद्र की राजनीति में रहे तो उनके पुत्र अमितेष शुक्ल छत्तीसगढ़ राज्य में मंत्री पद संभालते रहे। मध्य प्रदेश कांग्रेस का यह प्रथम परिवार राजनीति से गायब जैसा हो गया है। कांग्रेस के अब तक के मुख्यमंत्रियों में डीपी मिश्रा का परिवार राजनीति में आगे नहीं आया। मिश्र जब मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने अपने बड़े बेटे की एक अच्छी-खासी चलती दुकान बंद करवा दी. ये दुकान भोपाल में हमीदिया अस्पताल के बाहर जानकी फार्मेसी नाम से थी. मिश्र नहीं चाहते थे कि कोई ये आरोप लगाए कि दवाइयों की सरकारी खरीद या हमीदिया अस्पताल की जरूरतें जानकी फार्मेसी में पूरी की जा रही है. मिश्र कहते थे – ‘राजनीति करने वाले लोगों को कभी व्यापार नहीं करना चाहिए। 



मध्यप्रदेश की राजनीति में परिवारवाद 



कांग्रेस में मध्य प्रदेश का दूसरा बड़ा राजनीतिक परिवार अर्जुन सिंह का रहा है। अर्जुन सिंह ने भी अपने पुत्र अजय सिंह को राजनीति में आगे बढ़ाया जब तक अर्जुन सिंह थे तब तक अजय सिंह राजनीति के स्टार हुआ करते थे। बाद में उनके राजनीतिक सितारे गर्दिश में जाते गए। अर्जुन सिंह के गृह नगर चुरहट से चुनाव हारने के बाद अजय सिंह अपने राजनीतिक वजूद के लिए संघर्ष कर रहे हैं। उनकी आगे की राजनीति भविष्य के गर्भ में है। यह बात जरूर कही जा सकती है कि अर्जुन सिंह का जो राजनीतिक व्यक्तित्व था उस विरासत को आगे बढ़ाने में अजय सिंह सफल नहीं हो सके। मोतीलाल वोरा भी प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने भी अपने पुत्र को राजनीति में आगे बढ़ाया। क्षमता और योग्यता के अभाव में अरुण बोरा अपना अस्तिव कायम नहीं कर सके।  मध्य प्रदेश के 10 साल मुख्यमंत्री रहे दिग्विजय सिंह भी परिवारवाद से अछूते नहीं रहे। उन्होंने भी अपने भाई लक्ष्मण सिंह और पुत्र जयवर्धन सिंह को राजनीति में आगे किया। अभी तो पिता भाई और पुत्र तीनों मध्य प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में प्रभावी भूमिका अदा कर रहे हैं। कांग्रेसी कार्यकर्ता तो इस परिवार के साथ मध्यप्रदेश के भविष्य को जोड़कर देखते हैं। कार्यकर्ताओं का कहना है दिग्विजय की अगली पीढ़ी भी राज्य की सरकार को लीड करने  के लिए प्रशिक्षित हो रही है। 



कमलनाथ की परिवारवादी राजनीति 



अब कांग्रेस के अंतिम 15 महीने मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ की बात करते हैं। कमलनाथ ने भी परिवारवादी राजनीति की है। जब उन्हें संसद की  सदस्यता छोड़नी पड़ी थी तब उन्होंने अपनी पत्नी को चुनाव लडाया था। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब उन्हें सांसद पद छोड़ने की ज़रूरत पड़ी, तब उन्होंने अपने पुत्र को लोकसभा चुनाव लडवाया। कमलनाथ तो न केवल परिवारवादी हैं बल्कि उनका सोच व्यक्तिवादी भी लगता है। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के साथ ही नेता प्रतिपक्ष का पद अपने पास रखना ही उनकी व्यक्तिवादी राजनीति का सबसे बड़ा उदाहरण है। जबकि कांग्रेस में एक व्यक्ति एक पद का चलन है। अब तो 75 साल के कमलनाथ  2023 के चुनाव में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री का फेस भी रहेंगे ऐसा प्रदेश कांग्रेस द्वारा संदेश दिया जा रहा है। यह तो हुई कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के परिवारवादी राजनीति की बात। वैसे तो कांग्रेस के कई नेताओं ने अपने परिवारों को राजनीति में बढ़ाया, चाहे विंध्य प्रदेश के सफेद शेर कहे जाने वाले श्रीनिवास तिवारी हों, आदिवासी नेता जमुना देवी, शिवभानु सोलंकी, कांतिलाल भूरिया, किसान नेता सुभाष यादव हों। सुरेश पचौरी ना तो स्वयं परिवारवादी राजनीति से आगे बढ़े थे और ना ही उन्होंने अपने परिवार को राजनीति में बढाया। कांग्रेस में वर्तमान में कई विधायक हैं जिनके पिता भी कांग्रेस में मंत्री और विधायक रह चुके हैं। इन नेताओं ने भी अपने परिवार को ही राजनीति में आगे बढ़ाने का रास्ता बनाया था।  कांग्रेस के बाद संविद सरकार में मुख्यमंत्री रहे गोविंद नारायण सिंह का परिवार भी राजनीति में आगे आया। 

भाजपा में परिवारवाद की राजनीति

अब हम भारतीय जनता पार्टी की बात करते हैं| भाजपा में भले ही परिवारवादी राजनीति को नकारा जा रहा हो, लेकिन परिवार के कारण ही कई सदस्यों ने राजनीति में सफलता पाई है। पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा ने अपने परिवार से सुरेंद्र पटवा को राजनीति में आगे बढ़ाया। पूर्व मुख्यमंत्री कैलाश जोशी ने अपने पुत्र दीपक जोशी को राजनीतिक सफलता दिलाई। भाजपा से  मुख्यमंत्री रहे वीरेंद्र कुमार सकलेचा के बेटे ओमप्रकाश सकलेचा आज मंत्री हैं। पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर की बहू भी भाजपा की राजनीति में आगे आई। उन्हें भी परिवारवाद की राजनीति का ही फायदा मिला है। भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के बेटे भी विधायक हैं।  मंत्री विश्वास सारंग नें परिवार की राजनीतिक ताकत का ही लाभ उठाया है। इनके अलावा और कई नाम हो सकते हैं जिन्होंने अपने परिवार की राजनीतिक विरासत का लाभ लेकर राजनीति में परचम फहराया होगा।  इस तरह से हम देखें तो भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों में परिवारवाद की राजनीति चलती रही है। 




परिवारवादी राजनीति का खात्मा करना बहुत कठिन 



मध्यप्रदेश में परिवारवादी राजनीति की भावी पीढ़ी सार्वजनिक जीवन में सक्रिय है। प्रधानमंत्री मोदी के कठोर रुख के कारण परिवारवादी युवाओं का भले राजनीति में प्रवेश अभी नहीं हो पाया है लेकिन  अनेक प्रमुख नेताओं के पुत्र विधानसभा क्षेत्र में सार्वजनिक रूप से सक्रिय हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के पुत्र कार्तिकेय सिंह चौहान भी सार्वजनिक जीवन में अपनी भाषण शैली के लिए प्रशंसा बटोर चुके हैं। प्रदेश मंत्रिमंडल के सदस्य गोपाल भार्गव, नरोत्तम मिश्रा, यशोधरा राजे सिंधिया जैसे कई नेताओं के पुत्र सार्वजनिक जीवन में सक्रिय हैं लेकिन इन युवाओं को सक्रिय और चुनावी राजनीति में कैसे प्रवेश मिलेगा यह तो भविष्य ही बताएगा। अभी हाल ही में नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र ने भोपाल में एक समारोह आयोजित किया था। यह समारोह ही उनकी राजनीतिक जीवन में दमदार उपस्थिति का प्रमाण है। प्रधानमंत्री मोदी परिवारवादी राजनीति को भले ही पुरजोर ढंग से नकार रहे हों। लेकिन इसका खात्मा बहुत कठिन है। जिस भी दल में जो भी नेता आज राजनीति में किसी सफल मुकाम पर है, वह अपने अपने क्षेत्रों में किसी भी नए नेता को उभरने ही नहीं देते हैं। ऐसी परिस्थिति में जब भी चुनाव होते हैं तब विकल्प हीनता के सहारे परिवार के लोगों को राजनीति में प्रवेश दिला दिया जाता है। अगर परिवारवादी राजनीति को समाप्त करना है तो फिर इसका प्रॉपर मैनेजमेंट करना होगा। ताकि विकल्प के रूप में नेता तैयार होते रहें। मध्य प्रदेश की परिवारवाद की राजनीति प्रदेश के गठन के समय से ही चल रही है। कांग्रेस में तो इसके निकट भविष्य में खत्म होने की संभावना दिखाई नहीं देती। जहां तक बीजेपी का प्रश्न है मोदी है तो ये मुमकिन हो सकता है। हालांकि भारतीय राजनीति में योग्यता को प्राथमिकता मिलनी चाहिए और कोई पैमाना नहीं होना चाहिए। उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने परिवारवादी राजनीति को मुद्दा बनाया था।


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