महाराजा हरि सिंह ने एडीसी से कहा था- यदि भारत की ओर से मेनन ना आएं तो मुझे नींद में ही गोली मार देना

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
महाराजा हरि सिंह ने एडीसी से कहा था- यदि भारत की ओर से मेनन ना आएं तो मुझे नींद में ही गोली मार देना

जम्मू-कश्मीर के पूर्व महाराजा हरि सिंह का आज (23 सितंबर) को जन्मदिन है। इस मौके पर इतने साल बाद वहां छुट्टी घोषित हुई है। वो महाराजा, जिनके भारत में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर होने से ही कश्मीर भारत का हिस्सा बन सका, इस बीच उनको मानो भुला ही दिया गया। एक तरह से उनको ‘राज्य बदर’ कर दिया गया था। जब कबीलाई हमले के बाद महाराजा ने भारत से मदद की अपील की तो वे अपने एडीसी को यह कहकर सोए थे कि यदि वीपी मेनन (माउंटबेटन के संवैधानिक सलाहकार और सरदार वल्लभभाई पटेल के अनन्य सहयोगी) नहीं आते तो मुझे नींद में ही गोली मार देना। उसी महाराजा से थोड़े समय बाद शेख अब्दुल्ला के दबाव में सदरे रियासत का पद छुड़वाया गया। वे कश्मीर में अस्थियों और चिता की राख के रूप में लौटे।



सरकार का छुट्टी का आदेश और राजनीति



जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 19 सितंबर की शाम रियासत के चौथे और अंतिम महाराजा हरि सिंह के जन्मदिन पर अवकाश का औपचारिक आदेश जारी कर दिया है। अब हर साल 23 सितंबर को जम्मू-कश्मीर के सरकारी कार्यालयों व शिक्षण संस्थानों में छुट्टी रहेगी। यह आदेश जारी होते ही जम्मू में जश्न का माहौल बन गया और आतिशबाजी शुरू हो गई, जबकि कश्मीर में सियासत शुरू हो गई। 2019 में जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन और अनुच्छेद 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 2020 के सार्वजनिक अवकाश की सूची से नेशनल कॉन्फ्रेंस के संस्थापक शेख मोहम्मद अब्दुल्ला की जयंती 5 दिसंबर के दिन राजकीय अवकाश को तो खत्म कर ही दिया था, साथ ही जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय दिवस के रूप में 26 अक्टूबर को अवकाश भी घोषित कर दिया था। 



तभी से जम्मू क्षेत्र में महाराजा हरि सिंह के जन्मदिन पर अवकाश की मांग की जा रही थी। इस मांग की बुनियाद नेशनल कॉन्फ्रेंस के तत्कालीन अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के 19 सितंबर, 2002 को दिए गए विवादित बयान ने रखी। उमर अब्दुल्ला ने सांबा में हुई एक चुनावी सभा में कथित तौर पर कहा था कि हमने महाराजा का तब तक पीछा किया, जब तक वह जम्मू-कश्मीर छोड़ कर चले नहीं गए। उनके इस बयान पर भारी बवाल हुआ और उसी के बाद चुनावी सियासत में महाराजा हरि सिंह एक मुद्दा बन गए। 



order



हरि सिंह के बाद उनका बेटा सदरे रियासत हुआ, उन्हें भी धमकी मिली



यह सर्वज्ञात तथ्य है कि शेख अब्दुल्ला, जवाहर लाल नेहरू के प्रिय थे। इतने प्रिय कि आजादी से पहले ही नेहरू अपने मित्र के पक्ष में आंदोलन करने कश्मीर पहुंच गए थे। तब कश्मीर देश की सबसे बड़ी रियासत थी, जो क्षेत्रफल में हैदराबाद से भी बड़ी थी। महाराजा का विलय का निर्णय करने का एक कारण यह भी था। हरिसिंह के बाद उनके 18 साल का बेटे कर्ण सिंह को सदरे रियासत बनाया गया। शेख अब्दुल्ला ने फिर यही धमकी कर्ण सिंह को दी कि यदि उनका मिलना-जुलना (जम्मू के हिंदुओं से) कम नहीं हुआ तो उनका भी हाल उनके पिता जैसा कर दिया जाएगा। 



गलतियां दोनों तरफ से हुईं- नेहरू



नेहरू ने महाराजा हरि सिंह को हटाने के पूर्व सरदार पटेल को लिखे अपने पत्र में माना कि थोड़ी-थोड़ी गलतियां दोनों की थीं। बाद में यही अब्दुल्ला जब नेहरू के भी काबू से बाहर होकर मनमानी करने लगे, नेहरू जी को कर्ण सिंह द्वारा ही मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त कराकर गिरफ्तार कराना पड़ा। बहुत से प्रेक्षक मानते हैं कि महाराजा हरि सिंह के साथ न्याय नहीं हुआ था। देर से ही सही, किन्ही अर्थों में उनके योगदान को मान्यता तो मिल रही है। 


Maharaja Hari Singh of Kashmir Accession of Kashmir to India Problem of Kashmir Relationship between Hari Singh and Nehru कश्मीर के महाराजा हरि सिंह कश्मीर का भारत में विलय कश्मीर की समस्या हरि सिंह और नेहरू के रिश्ते