सभी बच्चों को शिक्षित बनाने के लिए देश में सरकारी विद्यालय बेहतर कार्य करें। इस संबंध में सरकार को अब निर्देशों को जारी करते रहने की अपेक्षा अपने कार्य व्यवहार में बदलाव करने का समय आ गया है। अब सरकारी कार्यालयों में बैठे लोगों को खुद को बड़ा मानते रहने की अपेक्षा शिक्षकों पर भरोसा करने और उनकी बातें सुनकर उनको सहयोग देने की रणनीति स्वीकार करने से सरकारी विद्यालयों को बेहतर बनाया जा सकता है। अभी तक किए गए प्रयासों की असफलता से दुखी हो कर सरकार के ही शीर्ष अधिकारियों ने यह तय कर लिया है कि धीरे-धीरे सरकारी विद्यालयों को प्रभावी बनाने के लिए उन्हें गैर सरकारी संगठनों को सौंप दिया जाए। यह और अधिक जोखिम का काम है।
सरकारी शिक्षकों को भले ही यह अभी स्पष्ट दिखाई नहीं दे रहा हो, लेकिन यह सब कुछ विभाग के श्रेष्ठ अधिकारियों ने तय कर लिया है। अनेक प्रयासों के बावजूद सरकारी विद्यालयों की छवि और विश्वसनीयता ना सुधरने से दुखी हो कर ही यह विचार बड़े अधिकारियों को अच्छा लगा होगा। सरकारी विद्यालयों को निजी हाथों में सौंपना प्रशासनिक असफलता का प्रतीक है? सरकार के पास सब कुछ है। साधन हैं, सक्षमता है, अधिकारिता है, फिर भी सरकारी विद्यालयों पर समाज को भरोसा नहीं है तो इसमें गलती किसकी है? अपनी असफलता को शिक्षकों पर उड़ेल कर प्रशासनिक तंत्र द्वारा नित नए-नए प्रयोग करने से रही सही साख भी खत्म हो जाएगी।
आम आदमी को सरकारी विद्यालयों पर भरोसा नहीं, जिम्मेदार कौन?
आम आदमी को अब सरकारी विद्यालयों पर भरोसा नहीं रह गया है। इन पर भरोसा बढ़ेगा और वे अपने आसपास के विद्यालय में बच्चों को भर्ती कराएंगे। ऐसा सोचकर पिछले करीब 25 साल में अनेक नए-नए प्रयास किए गए, लेकिन परिणाम अपेक्षित नहीं होने से सब दुःखी हो गए हैं। अब सीएम राइज स्कूल बनाकर शिक्षा विभाग ने बहुखर्चीले मॉडल को अपनाने के लिए कमर कस ली है। मूल भावना यह है कि सरकारी विद्यालयों के प्रति समाज का भरोसा बढे़। अच्छे भवन, अच्छे शिक्षक, सर्व साधन संपन्न बनाकर ऐसे विद्यालयों के प्रति विभाग के अधिकारियों को भरोसा है कि ये सफल होंगे। पहले भी ऐसे प्रयोग करने वाले अधिकारियों ने अपनी तरफ से बहुत कुछ किया होगा। सबके प्रयासों को मिली असफलता के लिए आखिर किसे उत्तरदाई माना जाए? क्या केवल अधिकारियों को? क्या शिक्षकों को? क्या बच्चों को? क्या आम जनता को? क्या निर्णय करने वाले नेताओं को? क्या विचार देने वाले शिक्षाविदों को? या सबको?
सीएम राइज स्कूल भी समाज का भरोसा ना जीत सका तो...?
यदि सरकारी विद्यालयों से जनता संतुष्ट नहीं हैं, तो सबको मिलकर सोचना होगा। भारी भरकम रकम खर्च हो जाने के बाद अब करोड़ों रूपए एक ही विद्यालय पर खर्च करने की दिशा में सक्रिय पहल की जा रही है। यदि सीएम राइज स्कूल बनाकर भी सरकारी विद्यालयों ने समाज का भरोसा नहीं जीत पाया तो....? कौन उत्तरदाई होगा? क्या शिक्षा अधिकारी वर्ग फिर शिक्षकों को इसके लिए उत्तरदाई मानेगा? शिक्षकों को इस बारे में अब शांत नहीं रहना चाहिए, क्योंकि अब जो प्रयोग किया जा रहा है वह सबके लिए अत्यंत घातक सिद्ध होने वाला है। अब सरकारी विद्यालयों को बेहतर बनाने में सफल होना ही चाहिए। अभी भी समय है। यथास्थिति सभी विद्यालयों को सक्षम और सफल बनाने के स्थान पर जो लोग सीएम राइज स्कूल बनाकर शिक्षा विभाग की छवि सुधारने की दिशा में सक्रिय हैं, उन्हें इसके परिणामों को लेकर भी चिंतन करना चाहिए। वे सोचें कि इस योजना पर कितना सारा बजट प्रावधान किया जा रहा है। वे अधिकारी जो कभी कक्षा के अंदर नहीं गए, जिन्होंने कोई शिक्षा की डिग्री हासिल नहीं की, जिन्होंने कभी बच्चों को पढ़ाया ही नहीं, वे ही अब पूरे शिक्षा तंत्र के सभी उच्च पदों पर आसीन हैं। अपने निहित स्वार्थ सिद्ध करने वाले व्यक्ति (अधिकारी) शिक्षकों का मनोबल बढ़ाने की जगह उन्हें नाकारा साबित करने वाली गतिविधियां आयोजित कर, शिक्षकों को नतमस्तक कर रहे हैं। ऐसे समय में अब हम सभी शिक्षकों को अपने-अपने स्तर पर इस दिशा में सक्रिय पहल करना चाहिए। जो जिस विद्यालय में कार्यरत हैं, उसे ही जनता की दृष्टि में विश्वसनीय बनाकर समाज का भरोसा जीतने में सफल हो सकें।
सभी शिक्षकों को अब साथ आना होगा, अकेले सफलता हासिल करना मुश्किल..
सभी शिक्षकों और शिक्षकों के संगठन प्रमुखों से विनम्र अनुरोध है कि सब सामूहिक रूप से काम करना शुरू कीजिए। अकेले-अकेले काम करने से किसी को भी कोई बडी सफलता हासिल करना बहुत मुश्किल है, भले ही आपका काम बहुत अच्छा क्यों ना हो। यदि सरकारी विद्यालयों को बेहतर बनाने में शिक्षकों को सरकार की बहुत मदद चाहिए। अब तक तो सबके लिए एक जैसे निर्देश, एक जैसे साधन और एक जैसी योजना तैयार कर सबकी स्वीकार्यता बनाने के लिए जितने भी प्रयास किए जा सकते थे, कर लिए गए हैं। अब सरकार को चाहिए कि अलग-अलग विद्यालय को उसकी वास्तविक परिस्थिति अनुसार, उसकी जरूरत के अनुसार, उसमें कार्यरत शिक्षकों और बच्चो के अनुसार मदद करने की नीति तय करे। जिसका जैसा रोग उसका वैसा उपचार करने की जरूरत है। सरकार समर्थ है। सरकारी शिक्षक समर्थ हैं। हां! सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों की स्थिति थोड़ी कमजोर है। समर्थ परिवारों ने तो अपने अपने विद्यालय तय कर लिए हैं। हमें न तो उन पर विचार करना चाहिए और न उनकी नकल। सरकारी विद्यालयों को निजी विद्यालय की नकल करने जैसे काम करने की अपेक्षा सरकार को उनसे ज्यादा बड़ा होने के लिए बड़े काम करना चाहिए। सरकार के पास अभी भी हजारों विद्यालय हैं। इनमें काम करने वाले लाखों शिक्षकों को प्रोत्साहित करने से सम्भव है, वे सफल हो जाएं। अब अपनी तरफ से कोई कार्यक्रम, योजना या परियोजना चलाने से मुक्त हो जाने का समय आ गया है। जब सभी स्तरों पर सरकार ने अपने अधिकारी बैठाए हैं तो उन्हें काम करने का अधिकार भी देना चाहिए। अब सभी स्तरों पर एनजीओ (गैर सरकारी) संगठन हाबी से हो रहे हैं, जिन्हें नियंत्रित किया जाना चाहिए। अन्यथा सरकारी विद्यालयों की रही सही साख भी खत्म हो जाएगी।
जितना जल्दी सरकार शिक्षकों पर भरोसा करेगी, सुधार की उम्मीद भी उतनी बढ़ेगी
राष्ट्रीय स्तर पर अब भारतीय शिक्षा सेवा (indian education sarvice) गठित करने में अब निर्णायक पहल करना चाहिए क्योंकि भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी शिक्षा तंत्र को भी प्रशासन की तरह संचालित करते हैं। राज्य शिक्षा सेवा के गठन हो जाने के बाद भी इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया है। केवल गठन कर लेने से कोई फायदा नहीं हुआ। अभी एक तरह का शीत युद्ध शिक्षकों और शिक्षा अधिकारी वर्ग के बीच हो रहा है, जिसे जितने जल्दी खत्म कर दिया जाए उतना अच्छा है। शिक्षकों के सभी संगठनों को भी तुरंत विघटित कर दिया जाना चाहिए और इसके स्थान पर खुद सरकार को अधिवक्ता परिषद की भांति शिक्षक परिषद का गठन सभी स्तरों पर करना चाहिए। सरकार अपने शिक्षकों पर जितने जल्दी भरोसा कर लेती है, सुधार की संभावना उतनी जल्दी बढ़ेगी। शिक्षकों को चयनित करने के लिए अलग व्यापम से अलग शिक्षक भर्ती बोर्ड का गठन किया जाना जरूरी है, ताकि शिक्षकों के पद स्वीकृत होते हुए भी खाली ना रहें। अब शिक्षा विभाग को प्रशासनिक अधिकारी संवर्ग से मुक्त कर विभाग को ही महत्व देने वाली गतिविधियां तेज करना चाहिए, क्योंकि इससे शिक्षा विभाग के अधिकारियों को संबल मिलेगा। शिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों को भी विद्यालयों की वास्तविक मदद करना चाहिए। प्रशिक्षण संस्थानों को नियोजित करने के लिए चिकित्सा शिक्षा की भांति शिक्षक शिक्षा विभाग का गठन किया जाना जरूरी है। अभी विद्यालय सभी की मदद करते नजर आते हैं। इसी तरह जरूरी है कि सभी अन्य विभाग भी सरकारी विद्यालयों को बेहतर बनाने में मदद करें। प्रारंभिक शिक्षा क्षेत्र में कार्यरत शिक्षकों की भूमिका को महत्व देते हुए, उन्हें कभी किसी गैर शैक्षिक काम करने में ना लगाने से वे ज्यादातर समय बच्चों को सिखाने में लगा सकेंगे।
सबसे अधिक जरुरत इस बात की है कि सरकार खुद अपने यानि सरकारी विद्यालयों पर भरोसा करे तो स्वाभाविक तौर पर वे सफल हो सकते हैं। शिक्षक दिवस के अवसर पर सरकार को कुछ शिक्षकों को सम्मानित करते रहने की अपेक्षा सबके सम्मान की सुरक्षा करना चाहिए। शिक्षा विभाग की अस्मिता खतरे में है। इस सच को स्वीकार कर शिक्षकों को अब सजग होने की जरुरत है। आइए! सब मिलकर काम करें। शिक्षक संदर्भ समूह शिक्षकों से, शिक्षा से जुड़े सभी लोगों और संस्थाओं से अनुरोध करता है कि सब मिलकर काम करेंगे तो परिणाम अच्छे होंगे।
(लेखक शिक्षक संदर्भ समूह के समन्वयक और एनसीईआरटी के पूर्व सदस्य हैं)