जुबान की जगह छुरा क्यों चलाएँ?

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जुबान की जगह छुरा क्यों चलाएँ?

डॉ. वेदप्रताप वैदिक। कर्नाटक के शिमोगा में बजरंग दल के हर्ष नामक एक कार्यकर्ता की हत्या हो गई! उसकी हत्या करने के लिए 10 लाख रु. का इनाम रखा गया था। इनाम रखने वाले और हत्यारों के नाम अभी तक प्रकट नहीं किए गए हैं लेकिन कर्नाटक के एक मंत्री ने कहा है कि ‘‘हर्ष की हत्या मुस्लिम गुंडों ने की है। 



हत्या के मामले में पार्टी-बाजी : इस हत्या के लिए कांग्रेसी नेता डी.के. शिवकुमार ने उकसाया था।’’ जवाब में शिवकुमार ने कहा है कि ‘‘भाजपा धर्म के नाम पर दंगा करवा रही है। उस मंत्री के खिलाफ तुरंत मुकदमा दर्ज होना चाहिए।’’ याने यह मामला अब पार्टी-बाजी का शिकार हो रहा है। यह अपने आप में बड़ी शर्मनाक बात है। यहां असली सवाल यह है कि हर्ष की हत्या क्यों हुई है? हर्ष कर्नाटक के बजरंग दल का सक्रिय कार्यकर्ता था। उसके परिवारवालों का कहना है कि वह बजरंग दल छोड़ चुका था लेकिन उसने कर्नाटक में हिजाब को लेकर चल रही मुठभेड़ पर कोई ऐसी टिप्पणी कर दी थी, जिसे इस्लाम-विरोधी समझा गया। उसे दो बार धमकियां भी मिली थीं। इस तरह की यह हत्या पहली नहीं है। इस्लाम और ईसाइयत के पिछले दो हजार साल के इतिहास में ऐसी सैकड़ों-हजारों घटनाएं होती रही हैं। धर्म का मामला ही कुछ ऐसा संगीन है। 



भारत में धर्म के नाम पर होती रही हैं हत्याएं: हजार-डेढ़ हजार साल के भारत के इतिहास पर गौर करें तो जो मजहब भारत में पैदा हुए हैं, उनमें भी ऐसे कम लेकिन कई अतिवादी हिंसक और शर्मनाक किस्से होते रहे हैं। आर्यसमाज के संस्थापक महर्षि दयानंद को ज़हर किसने पिलाया? किसी मुसलमान या ईसाई ने नहीं, एक हिंदू रसोइए ने! दयानंद तो दया की मूर्ति थे। उन्होंने उस हत्यारे जगन्नाथ को 500 रु. कल्दार दिए और कहा कि तू नेपाल भाग जा। वरना पुलिस तुझे पकड़कर फांसी पर लटका देगी। लेकिन क्या ऐसे दयालु लोग आज भारत में हैं। भारत में तो क्या, सारी दुनिया में नहीं हैं। पूरे इतिहास में भी नहीं हैं। लेकिन आज भारत का हाल क्या है? आप किसी भी मजहबी परंपरा के विरुद्ध तर्क करें या किसी भी तथाकथित महापुरुष में कोई दोष देख लें तो उनके अनुयायी आपकी हत्या के लिए तैयार हो जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि आप अपनी अक्ल पर ताला जड़ दें और आंख मींचकर किसी भी अनर्गल, तर्कहीन, मूर्खतापूर्ण और अश्लील बात को मानते चले जाएं। और जो न माने, उसे अपमान, प्रताड़ना और हत्या का भी सामना करना पड़े। मैं तो यह मानता हूं कि जो सचमुच महापुरुष है, उसे निंदा या आलोचना कभी भी परेशान नहीं कर सकती। इसके अलावा लगभग सभी धर्मों के धर्मग्रंथ इतने पुराने हो गए हैं कि उनमें लिखी हर बात को आज का कोई भी इंसान पूरी तरह लागू नहीं कर सकता। यदि धर्मग्रंथों की कुछ बातों के विरुद्ध कोई बुद्धिजीवी तर्क करता है तो उस तर्क को आप अपने बुद्धिबल से काट क्यों नहीं डालते? अपनी कलम या जुबान चलाने की जगह यदि आप बंदूक या छुरा चलाते हैं तो आप यह सिद्ध करते हैं कि आपका दिमाग खाली है और सामनेवाला आदमी सच बोल रहा है। उस आदमी के खिलाफ हिंसा करके आप यह संदेश दे रहे हैं कि आपका पक्ष बिल्कुल कमजोर है। इसका अर्थ यह नहीं है कि लोगों को धर्मग्रंथों, ऋषियों, नबियों, पोपों, पादरियों और गुरुओं का अपमान करने की छूट हो लेकिन शिष्टतापूर्ण सत्य को जाने बिना तो मनुष्य जीवन पशुतुल्य बन जाता है।


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