डॉ. वेदप्रताप वैदिक। चीन की संसद ने 23 अक्टूबर को जो नया कानून पास किया है, उसे लेकर हमारा विदेश मंत्रालय काफी परेशान दिखाई पड़ता है। उसने एक बयान जारी करके कहा है कि चीनी सरकार ने यह कानून बनाकर पड़ोसी देशों और खासकर भारत को यह संदेश दिया है कि उसने हमारी जमीन पर जो कब्जा किया है, वह कानूनी है और पक्का है। वह उस पर टस से मस नहीं होनेवाला है...
संबंधों को और भी उलझा देगा चीन का नया कानून
हमारे प्रवक्ता ने यह भी कहा है कि यह नया भू-सीमा कानून उस अवैध चीन-पाकिस्तान समझौतों को भी सही ठहराता है, जिसके तहत 1963 में कश्मीर के काफी बड़े हिस्से को चीन के हवाले कर दिया गया था। प्रवक्ता ने यह भी कहा कि यह कानून 3488 किमी लंबी भारत-चीन सीमा के विवाद को न सिर्फ अधिक उलझा देगा, बल्कि 17 माह से चले आ रहे गलवान-घाटी संवाद को भी खटाई में डलवा देगा। हमारा विदेश मंत्रालय इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहता, यह असंभव था। उसे अपनी शंकाएं जाहिर करना चाहिए थीं, जो उसने कर दीं, लेकिन मेरा ख्याल है कि इस नए चीनी कानून के होने या न होने से हमारे सीमा-विवाद पर कोई खास फर्क नहीं पड़ रहा है। यों भी चीन अब तक क्या करता रहा है? वह भारत सरकार के आलसीपन का लाभ उठाता रहा है। तिब्बत पर कब्जा करने के बाद 1957 से 1962 तक वह हमारी सीमाओं में घुसकर हमारी ज़मीन पर कब्जा करता रहा और हमारी नेहरु सरकार विश्वयारी की पतंगें उड़ाती रही। यह ठीक है कि अंग्रेज के जमाने में भी भारत-चीन सीमा का जमीन पर वैसा सीमांकन नहीं हुआ, जैसा कि पड़ोसी देशों के साथ प्रायः होता है।
मोदी— शी का हस्तक्षेप बेहद जरूरी
यह तथ्य है कि पिछले कुछ वर्षों में दोनों देशों के सैनिक एक-दूसरे की तथाकथित सीमाओं का साल में सैकड़ों बार जाने-अनजाने उल्लंघन करते रहते हैं। जरूरी यह है कि चीन के साथ बैठकर संपूर्ण सीमांकन किया जाए, ताकि यह सीमा-विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाए। चीनी संसद ने ये जो नया कानून बनाया है, उसमें साफ़-साफ़ कहा गया है ''पड़ोसी देशों के साथ लंबे समय से चल रहे सीमा-विवादों को समानता, आपसी विश्वास और मैत्रीपूर्ण संवाद के द्वारा ठीक से हल किया जाए।'' हमारी सरकार की यह नीति समझ के परे है कि उसने सीमा-विवाद फौज के भरोसे छोड़ दिया है। फौजियों का काम लड़ना है या बात करना है? हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीनी राष्ट्रपति शी चिन फिंग के साथ दर्जनों बार भेंट की और याराना रिश्ते बनाए। क्या वे सब फिजूल थे, कागजी थे, बनावटी थे? यदि मोदी और शी के बीच सीधा संवाद होता तो क्या सीमा का यह मामला इतने लंबे समय तक अधर में लटका रहता? अब भी समय है, जबकि दोनों सीधे बात करें। उससे हमारा सीमा-विवाद तो सुझलेगा ही, कश्मीर और काबुल में खड़ी समस्याओं का भी हल निकलेगा। (डॉ. वैदिक भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)