अकबर महान नहीं! वो इतिहास छिपाया गया जो बताया जाना था

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Atul Tiwari
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अकबर महान नहीं! वो इतिहास छिपाया गया जो बताया जाना था

जयराम शुक्ल. अकबर के समय के इतिहासकार अहमद यादगार ने लिखा- बैरम खां ने निहत्थे और बुरी तरह घायल हिन्दू राजा हेमू के हाथ पैर बांध दिये और उसे नौजवान शहजादे के पास ले गया और बोला, आप अपने पवित्र हाथों से इस काफिर का कत्ल कर दें और”गाज़ी”की उपाधि कुबूल करें, और शहजादे ने उसका सिर उसके अपवित्र धड़ से अलग कर दिया।” (5 नवम्बर 1556) (तारीख-ई-अफगान,अहमद यादगार,अनुवाद एलियट और डाउसन, खण्ड VI, पृष्ठ 65-66)



इस तरह अकबर ने 14 साल की आयु में ही गाज़ी (काफिरों का कातिल) होने का सम्मान पाया। इसके बाद हेमू के कटे सिर को काबुल भिजवा दिया और धड़ को दिल्ली के दरवाजे पर टांग दिया। अबुल फजल ने आगे लिखा – ”हेमू के पिता को जीवित ले आया गया और नासिर-उल-मलिक के सामने पेश किया गया, जिसने उसे इस्लाम कबूल करने का आदेश दिया, किन्तु उस वृद्ध पुरुष ने उत्तर दिया, ”मैंने अस्सी वर्ष तक अपने ईश्वर की पूजा की है, मै अपने धर्म को कैसे त्याग सकता हूं? मौलाना परी मोहम्मद ने उसके उत्तर को अनसुना कर अपनी तलवार से उसका सर काट दिया।”  (अकबर नामा, अबुल फजल : एलियट और डाउसन, पृष्ठ 21)। इस विजय के तुरन्त बाद अकबर ने काफिरों के कटे हुए सिरों से एक ऊंची मीनार बनवाई। 



2 सितंबर 1573 को भी अकबर ने अहमदाबाद में 2000 दुश्मनों के सिर काटकर अब तक की सबसे ऊंची सिरों की मीनार बनवायी और अपने दादा बाबर का रिकार्ड तोड़ दिया। (मेरे पिछले लेखों में पढ़िए) यानी घर का रिकार्ड घर में ही रहा। अकबरनामा के अनुसार 3 मार्च १575 को अकबर ने बंगाल विजय के दौरान इतने सैनिकों और नागरिकों की हत्या करवाई कि उससे कटे सिरों की 8 मीनारें बनाई गईं। यह फिर से एक नया रिकॉर्ड था। जब वहां के हारे हुए शासक दाऊद खान ने मरते समय पानी मांगा तो उसे जूतों में भरकर पानी पीने के लिए दिया गया। 



अकबर की चित्तौड़ विजय के विषय में अबुल फजल ने लिखा था- अकबर के आदेशानुसार प्रथम 8 हजार राजपूत योद्धाओं को बंदी बना लिया गया, और बाद में उनका वध कर दिया गया। उनके साथ-साथ विजय के बाद प्रात:काल से दोपहर तक अन्य 40 हजार किसानों का भी वध कर दिया गया, जिनमें 3 हजार बच्चे और बूढ़े थे।  (अकबरनामा, अबुल फजल, अनुवाद एच. बेवरिज)



अकबर के राज में महिला सम्मान की हकीकत



चित्तौड़ की पराजय के बाद महारानी जयमाल मेतावाड़िया समेत 12 हजार क्षत्राणियों ने मुगलों के हरम में जाने की अपेक्षा जौहर की अग्नि में स्वयं को जलाकर भस्म कर लिया। जरा कल्पना कीजिए, विशाल गड्ढों में धधकती आग और दिल दहला देने वाली चीख-पुकार के बीच उसमें कूदती 12 हजार महिलाएं। अपने हरम को सम्पन्न करने के लिए अकबर ने अनेक हिन्दू राजकुमारियों के साथ जबरन शादियां की थी, लेकिन कभी भी, किसी मुगल महिला को हिन्दू से शादी नहीं करने दी। केवल अकबर के शासनकाल में 38 राजपूत राजकुमारियां शाही खानदान में ब्याही जा चुकी थीं। 12 अकबर को, 17 शहजादा सलीम को, 6 दानियाल को, 2 मुराद को और 1 सलीम के पुत्र खुसरो को।

अकबर की गंदी नजर गौंडवाना की विधवा रानी दुर्गावती पर थी। 1564 में अकबर ने अपनी हवस की शांति के लिए रानी दुर्गावती पर आक्रमण कर दिया, किन्तु एक वीरतापूर्ण संघर्ष के बाद अपनी हार निश्चित देखकर रानी ने अपनी ही छाती में छुरा घोंप लिया। रानी की बहन और पुत्रवधू को बंदी बना लिया गया। अकबर ने उन्हें अपने हरम में ले लिया। उस समय अकबर की उम्र 22 साल और रानी दुर्गावती की 40 साल थी। (आर. सी. मजूमदार, दि मुगल एम्पायर, खण्ड VII)



1561 में आमेर के राजा भारमल और उनके 3 राजकुमारों को यातना देकर उनकी पुत्री को सांबर से अपहरण कर अपने हरम में आने को मजबूर किया। औरतों का झूठा सम्मान करने वाले अकबर ने सिर्फ अपनी हवस मिटाने के लिए न जाने कितनी मुस्लिम औरतों की भी अस्मत लूटी थी। इसमें मुस्लिम नारी चाँद बीबी का नाम भी है।



अकबर ने अपनी ही बेटी आराम बेगम की पूरी जिंदगी शादी नहीं की और अंत में उस की मौत अविवाहित ही जहाँगीर के शासन काल में हुई।

 

सबसे मनगढ़ंत किस्सा कि अकबर ने दया करके सतीप्रथा पर रोक लगाई, जबकि इसके पीछे उसका एकमात्र मकसद था राजवंशीय हिन्दू नारियों के पतियों को मरवाकर एवं उनको सती होने से रोककर अपने हरम में डालकर अय्याशी करना था।



राजकुमार जयमल की हत्या के पश्चात अपनी अस्मत बचाने को घोड़े पर सवार होकर सती होने जा रही उसकी पत्नी को अकबर ने रास्ते में ही पकड़ लिया। शमशान घाट जा रहे उसके सारे सम्बन्धियों को वहीं से कारागार में सड़ने के लिए भेज दिया और राजकुमारी को अपने हरम में ठूंस दिया ।



इसी तरह पन्ना के राजकुमार को मारकर उसकी विधवा पत्नी का अपहरण कर अकबर ने अपने हरम में ले लिया।



बैरम खान जो अकबर के पिता जैसा और संरक्षक था, उसकी हत्या करके इसने उसकी पत्नी अर्थात अपनी माता के समान स्त्री से शादी की। 



औरतों के लिबास में मीना बाजार जाता था अकबर, हरम में थीं 5000 औरतें



अकबर औरतों के लिबास में मीना बाजार (यहां सिर्फ औरतें ही हुआ करती थीं) जाता था। जो हर नए साल की पहली शाम को लगता था। अकबर अपने दरबारियों को अपनी स्त्रियों को वहां सज-धज कर भेजने का आदेश देता था। मीना बाजार में जो औरत अकबर को पसंद आ जाती, उसके फौजी उस औरत को उठा ले जाते और कामी अकबर की अय्याशी के लिए हरम में पटक देते। अकबर महान उन्हें एक रात से लेकर एक महीने तक अपनी हरम में खिदमत का मौका देते थे। जब शाही दस्ते शहर से बाहर जाते थे तो अकबर के हरम की औरतें जानवरों की तरह महल में बंद कर दी जाती थीं।



अकबर ने अपनी अय्याशी के लिए इस्लाम का भी दुरुपयोग किया था। चूंकि सुन्नी फिरके के अनुसार एक मुस्लिम एक साथ चार से अधिक औरतें नहीं रख सकता और जब अकबर उस से अधिक औरतें रखने लगा तो काजी ने उसे रोकने की कोशिश की। इस से नाराज होकर अकबर ने उस सुन्नी काजी को हटा कर शिया काजी को रख लिया क्योंकि शिया फिरके में असीमित और अस्थायी शादियों की इजाजत है , ऐसी शादियों को अरबी में “मुतअ” कहा जाता है।



अबुल फज़ल ने अकबर के हरम को इस तरह वर्णित किया है- “अकबर के हरम में पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी ३६ पत्नियों से अलग थीं। शहंशाह के महल के पास ही एक शराबखाना बनाया गया था। वहां इतनी वेश्याएं इकट्ठी हो गईं कि उनकी गिनती करनी भी मुश्किल हो गई। अगर कोई दरबारी किसी नई लड़की को घर ले जाना चाहे तो उसको अकबर से आज्ञा लेना पड़ती थी। कई बार सुन्दर लड़कियों को ले जाने के लिए लोगों में झगड़ा भी हो जाता था। एक बार अकबर ने खुद कुछ वेश्याओं को बुलाया और उनसे पूछा कि उनसे सबसे पहले भोग किसने किया।” 



केवल बूंदी का परिवार ही था जजिया से महफूज

 

इस्लामिक शरीयत के अनुसार किसी भी मुस्लिम राज्य में रहने वाले गैर मुस्लिमों को अपनी संपत्ति और स्त्रियों को छिनने से बचाने के लिए इसकी कीमत देना पड़ती थी जिसे जजिया कहते थे। कुछ अकबर प्रेमी कहते हैं कि अकबर ने जजिया खत्म कर दिया था। लेकिन इस बात का इतिहास में एक जगह भी उल्लेख नहीं! केवल इतना है कि यह जजिया रणथम्भौर के लिए माफ करने की शर्त रखी गयी थी। रणथम्भौर की सन्धि में बूंदी के सरदार को शाही हरम में औरतें भेजने की “रीति” से मुक्ति देने की बात लिखी गई थी। जिससे बिल्कुल स्पष्ट हो जाता है कि अकबर ने युद्ध में हारे हुए हिन्दू सरदारों के परिवार की सर्वाधिक सुन्दर महिला को मांग लेने की एक परिपाटी बना रखी थीं और केवल बूंदी ही इस क्रूर रीति से बच पाया था। यही कारण था कि इन मुस्लिम सुल्तानों के काल में हिन्दू स्त्रियों के जौहर की आग में जलने की हजारों घटनाएं हुईं।



नेहरू ने महान तो विदेशी इतिहासकारों ने बताया दुष्कर्मी-क्रूर शासक 

जवाहर लाल नेहरु ने अपनी पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इंडिया में अकबर को ‘महान’ कहकर उसकी प्रशंसा की है। हमारे कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने भी अकबर को एक परोपकारी उदार, दयालु और धर्मनिरपेक्ष शासक बताया है। अकबर के दादा बाबर का वंश तैमूरलंग से था और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर की नसों में एशिया की दो प्रसिद्ध आतंकी और खूनी जातियों, तुर्क और मंगोल के रक्त का सम्मिश्रण था। जिसके खानदान के सारे पूर्वज दुनिया के सबसे बड़े जल्लाद थे और अकबर के बाद भी जहांगीर और औरंगजेब दुनिया के सबसे बड़े दरिन्दे थे तो ये बीच में महानता की पैदाइश कैसे हो गयी। अकबर के जीवन पर शोध करने वाले इतिहासकार विंसेट स्मिथ ने साफ़ लिखा है कि अकबर एक दुष्कर्मी, घृणित एवं नृशंश हत्याकांड करने वाला क्रूर शाशक था। विन्सेंट स्मिथ ने किताब ही यहां से शुरू की है कि “अकबर भारत में एक विदेशी था। उसकी नसों में एक बूंद खून भी भारतीय नहीं था। अकबर मुगल से ज्यादा एक तुर्क था।”



फतहनामों में दिखती है ​हिंदुओं से नफरत 



चित्तौड़ की विजय के बाद अकबर ने कुछ फतहनामे प्रसारित करवाये थे।, जिससे हिन्दुओं के प्रति उसकी गहन आन्तरिक घृणा प्रकाशित हो गई थी। उनमें से एक फतहनामा पढ़िये- अल्लाह की ख्याति बढ़े इसके लिए हमारे कर्तव्य परायण मुजाहिदीनों ने अपवित्र काफिरों को अपनी बिजली की तरह चमकीली कड़कड़ाती तलवारों द्वारा वध कर दिया। ”हमने अपना बहुमूल्य समय और अपनी शक्ति घिज़ा (जिहाद) में ही लगा दिया है और अल्लाह के सहयोग से काफिरों के अधीन बस्तियों, किलों, शहरों को विजय कर अपने अधीन कर लिया है, कृपालु अल्लाह उन्हें त्याग दे और उन सभी का विनाश कर दे। हमने पूजा स्थलों उसकी मूर्तियों को और काफिरों के अन्य स्थानों का विध्वंस कर दिया है।  (फतहनामा-ई-चित्तौड़ मार्च 1586, नई दिल्ली)



महाराणा प्रताप के विरुद्ध अकबर के अभियानों के लिए सबसे बड़ा प्रेरक तत्व था इस्लामी जिहाद की भावना जो उसके अन्दर कूट-कूटकर भरी हुई थी।



अकबर के एक दरबारी इमाम अब्दुल कादिर बदांयूनी अपने इतिहास अभिलेख, ‘मुन्तखाव-उत-तवारीख’ में लिखा था कि 1575 में जब शाही फौजें राणाप्रताप के खिलाफ युद्ध के लिए अग्रसर हो रहीं थीं तो मैंने (बदांयूनी ने) ”युद्ध अभियान में शामिल होकर हिन्दुओं के रक्त से अपनी इस्लामी दाढ़ी को भिगोकर शहंशाह से भेंट की अनुमति के लिए प्रार्थना की। मेरे व्यक्तित्व और जिहाद के प्रति मेरी निष्ठा भावना से अकबर इतना प्रसन्न हुआ कि उन्होनें प्रसन्न होकर मुझे मुट्ठीभर सोने की मुहरें दे डालीं।” (मुन्तखाब-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदांयूनी, खण्ड II, पृष्ठ 383,अनुवाद वी. स्मिथ, अकबर दी ग्रेट मुगल, पृष्ठ 108। 



बदायूंनी ने हल्दी घाटी के युद्ध में एक मनोरंजक घटना के बारे में लिखा था- हल्दी घाटी में जब युद्ध चल रहा था और अकबर की सेना से जुड़े राजपूत और राणा प्रताप की सेना के राजपूत जब परस्पर युद्धरत थे और उनमें कौन किस ओर है, भेदकर पाना असम्भव हो रहा था, तब मैनें शाही फौज के अपने सेना नायक से पूछा कि वह किस पर गोली चलाए, ताकि शत्रु ही मरे। तब सेनापित आसफ खां ने उत्तर दिया कि यह जरूरी नहीं कि गोली किसको लगती है क्योंकि दोनों ओर से युद्ध करने वाले काफिर हैं, गोली जिसे भी लगेगी काफिर ही मरेगा, जिससे लाभ इस्लाम को ही होगा।”  (मुन्तखान-उत-तवारीख : अब्दुल कादिर बदाउनी,  खण्ड II,अनु अकबर दी ग्रेट मुगल : वी. स्मिथ पुनः मुद्रित 1962; हिस्ट्री एण्ड कल्चर ऑफ दी इण्डियन पीपुल, दी मुगल ऐम्पायर :आर. सी. मजूमदार, खण्ड VII, पृष्ठ 132 तृतीय संस्करण)



जहांगीर ने अपनी जीवनी, ”तारीख-ई-सलीमशाही” में लिखा था कि अकबर और जहांगीर के शासनकाल में 5 से 6 लाख की संख्या में हिन्दुओं का वध हुआ था।”  (तारीख-ई-सलीम शाही, अनु. प्राइस, पृष्ठ 225-26)



जून 1561 में एटा जिले के (सकित परंगना) के 8 गांवों की हिंदू जनता के विरुद्ध अकबर ने खुद एक आक्रमण का संचालन किया और परोख नाम के गाँव में मकानों में बंद करके एक हजार से ज़्यादा हिंदुओं को जिंदा जलवा दिया था। कुछ इतिहासकारों के अनुसार उनके इस्लाम कबूल ना करने के कारण ही अकबर ने क्रुद्ध होकर ऐसा किया।



थानेश्वर में दो संप्रदायों कुरु और पुरी के बीच पूजा की जगह को लेकर विवाद चल रहा था, अकबर ने आदेश दिया कि दोनों आपस में लड़ें और जीतने वाला जगह पर कब्ज़ा कर ले। उन मूर्ख लोगों ने आपस में ही अस्त्र शस्त्रों से लड़ाई शुरू कर दी। जब पुरी पक्ष जीतने लगा तो अकबर ने अपने सैनिकों को कुरु पक्ष की तरफ से लड़ने का आदेश दिया और अंत में इसने दोनों ही तरफ के लोगों को अपने सैनिकों से मरवा डाला और फिर अकबर महान जोर से हंसा।



गुलाम पसंद अकबर के कुछ कारनामे 



एक बार अकबर शाम के समय जल्दी सोकर उठ गया तो उसने देखा कि एक नौकर उसके बिस्तर के पास सो रहा है। इससे उसको इतना गुस्सा आया कि नौकर को मीनार से नीचे फिंकवा दिया।



अगस्त 1600 में अकबर की सेना ने असीरगढ़ का किला घेर लिया, पर मामला बराबरी का था। विन्सेंट स्मिथ ने लिखा है कि अकबर ने एक अद्भुत तरीका सोचा। उसने किले के राजा मीरां बहादुर को संदेश भेजकर अपने सिर की कसम खाई कि उसे सुरक्षित वापस जाने देगा। जब मीरां शान्ति के नाम पर बाहर आया तो उसे अकबर के सामने सम्मान दिखाने के लिए तीन बार झुकने का आदेश दिया गया क्योंकि अकबर महान को यही पसंद था। उसको अब पकड़ लिया गया और आज्ञा दी गई कि अपने सेनापति को कहकर आत्मसमर्पण करवा दे। मीराँ के सेनापति ने इसे मानने से मना कर दिया और अपने लड़के को अकबर के पास यह पूछने भेजा कि उसने अपनी प्रतिज्ञा क्यों तोड़ी? अकबर ने उसके बच्चे से पूछा कि क्या तेरा पिता आत्मसमर्पण के लिए तैयार है? तब बालक ने कहा कि चाहे राजा को मार ही क्यों न डाला जाए उसका पिता समर्पण नहीं करेगा। यह सुनकर अकबर महान ने उस बालक को मार डालने का आदेश दिया। यह घटना अकबर की मृत्यु से पांच साल पहले की ही है।



भारतीय मुस्लिमों को बनाया बेवकूफ, इस्लामी बंधन भी तोड़े



हिन्दुस्तानी मुसलमानों को यह कह कर बेवकूफ बनाया जाता है कि अकबर ने इस्लाम की अच्छाइयों को पेश किया। असलियत यह है कि कुरआन के खिलाफ जाकर 36 शादियां करना, शराब पीना, नशा करना, दूसरों से अपने आगे सजदा करवाना आदि इस्लाम के लिए हराम है और इसलिए इसके नाम की मस्जिद भी हराम है।



अकबर स्वयं पैगम्बर बनना चाहता था, इसलिए उसने अपना नया धर्म “दीन-ए-इलाही” चलाया। जिसका एकमात्र उद्देश्य खुद की बड़ाई करवाना था। यहां तक कि मुसलमानों के कलमें में यह शब्द “अकबर खलीफतुल्लाह ” भी जुड़वा दिया था। उसने लोगों को आदेश दिए कि आपस में अस्सलाम वालैकुम नहीं बल्कि “अल्लाह ओ अकबर” कहकर एक दूसरे का अभिवादन किया जाए। यही नहीं अकबर ने हिन्दुओं को गुमराह करने के लिए एक फर्जी उपनिषद् “अल्लोपनिषद” बनवाया था, जिसमें अरबी और संस्कृत मिश्रित भाषा में मुहम्मद को अल्लाह का रसूल और अकबर को खलीफा बताया गया था। इस फर्जी उपनिषद् का उल्लेख महर्षि दयानंद ने सत्यार्थ प्रकाश में किया है।



उसके चाटुकारों ने इस धूर्तता को भी उसकी उदारता की तरह पेश किया जबकि वास्तविकता ये है कि उस धर्म को मानने वाले अकबरनामा में लिखित कुल 18 लोगों में से केवल एक हिन्दू बीरबल था।



अकबर ने अपने को रूहानी ताकतों से भरपूर साबित करने के लिए कितने ही झूठ बोले। जैसे कि उसके पैरों की धुलाई करने से निकले गंदे पानी में अद्भुत ताकत है जो रोगों का इलाज कर सकता है। अकबर के पैरों का पानी लेने के लिए लोगों की भीड़ लगवाई जाती थी। उसके दरबारियों को तो इसलिए अकबर के नापाक पैर का चरणामृत पीना पड़ता था ताकि वह नाराज ना हो जाए।

 

अकबर कितना महान था, अंदाजा लगा लीजिए



अकबर ने एक आदमी को केवल इसी काम पर रखा था कि वह उनको जहर दे सके जो लोग उसे पसंद नहीं। अकबर ने न केवल कम भरोसेमंद लोगों का कतल कराया बल्कि उनका भी कराया जो उसके भरोसे के आदमी थे जैसे- बैरम खान (अकबर का गुरु जिसे मारकर अकबर ने उसकी बीवी से निकाह कर लिया), जमन, असफ खान (इसका वित्त मंत्री), शाह मंसूर, मानसिंह, कामरान का बेटा, शेख अब्दुरनबी, मुइजुल मुल्क, हाजी इब्राहिम और बाकी सब जो इसे नापसंद थे। पूरी सूची स्मिथ की किताब में दी हुई है।



अकबर के चाटुकारों ने राजा विक्रमादित्य के दरबार की कहानियों के आधार पर उसके दरबार और नौ रत्नों की कहानी गढ़ी। पर असलियत यह है कि अकबर अपने सब दरबारियों को मूर्ख समझता था। उसने स्वयं कहा था कि वह अल्लाह का शुक्रगुजार है कि उसको योग्य दरबारी नहीं मिले, वरना लोग सोचते कि अकबर का राज उसके दरबारी चलाते हैं, वह खुद नहीं।



अकबरनामा के एक उल्लेख से स्पष्ट हो जाता है कि उसके हिन्दू दरबारियों का प्रायः अपमान हुआ करता था। ग्वालियर में जन्में संगीत सम्राट रामतनु पाण्डेय उर्फ तानसेन की तारीफ करते-करते मुस्लिम दरबारी उसके मुंह में चबाया हुआ पान ठूँस देते थे। भगवन्त दास और दसवंत ने सम्भवत: इसलिए आत्महत्या कर ली थी।



प्रसिद्ध नवरत्न टोडरमल अकबर की लूट का हिसाब करता था। इसका काम था जजिया न देने वालों की औरतों को हरम का रास्ता दिखाना। वफादार होने के बावजूद अकबर ने एक दिन क्रुद्ध होकर उसकी पूजा की मूर्तियां तुड़वा दीं। जिन्दगी भर अकबर की गुलामी करने के बाद टोडरमल ने अपने जीवन के आखिरी समय में अपनी गलती मान कर दरबार से इस्तीफा दे दिया और अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए प्राण त्यागने की इच्छा से वाराणसी होते हुए हरिद्वार चला गया और वहीं मरा।



लेखक और नवरत्न अबुल फजल को स्मिथ ने अकबर का अव्वल दर्जे का निर्लज्ज चाटुकार बताया। बाद में जहांगीर ने इसे मरवा दिया।  फैजी नामक रत्न असल में एक साधारण सा कवि था, जिसकी कलम अपने शहंशाह को खुश करने के लिए ही चलती थी।



बीरबल शर्मनाक तरीके से एक लड़ाई में मारा गया। बीरबल अकबर के किस्से असल में मन बहलाव की बातें हैं जिनका वास्तविकता से कोई सम्बन्ध नहीं। ध्यान रहे कि ऐसी कहानियाँ दक्षिण भारत में तेनालीराम के नाम से भी प्रचलित हैं। एक और रत्न शाह मंसूर दूसरे रत्न अबुल फजल के हाथों अकबर के आदेश पर मार डाला गया।



मान सिंह जो देश में पैदा हुआ सबसे नीच गद्दार था, ने अपनी बेटी तो अकबर को दी ही जागीर के लालच में कई और राजपूत राजकुमारियों को तुर्क हरम में पहुँचाया। बाद में जहांगीर ने इसी मान सिंह की पोती को भी अपने हरम में खींच लिया। मानसिंह ने पूरे राजपूताने के गौरव को कलंकित किया था। यहाँ तक कि उसे अपना आवास आगरा में बनाना पड़ा क्योंकि वो राजस्थान में मुँह दिखाने के लायक नहीं था। यही मानसिंह जब संत तुलसीदास से मिलने गया तो अकबर ने इस पर गद्दारी का संदेह कर दूध में जहर देकर मरवा डाला और इसके पिता भगवान दास ने लज्जित होकर आत्महत्या कर ली।



इन नवरत्नों को अपनी बीवियां, लड़कियां, बहनें तो अकबर की खिदमत में भेजनी पड़ती ही थीं, ताकि बादशाह सलामत उनको भी सलामत रखें, और साथ ही अकबर महान के पैरों पर डाला गया पानी भी इनको पीना पड़ता था जैसा कि ऊपर बताया गया है। अकबर शराब और अफीम का इतना शौक़ीन था, कि अधिकतर समय नशे में धुत रहता था। अकबर के दो बच्चे नशाखोरी की आदत के चलते अल्लाह को प्यारे हो गए।



भारतीय ​फिल्मों में गलत दिखाई अकबर की कदकाठी

 

हमारे फिल्मकार अकबर को सुन्दर और रोबीला दिखाने के लिए रितिक रोशन जैसे अभिनेताओं को फिल्मों में पेश करते हैं परन्तु विन्सेंट स्मिथ अकबर के बारे में लिखते हैं- “अकबर एक औसत दर्जे की लम्बाई का था। उसके बाएं पैर में लंगड़ापन था। उसका सिर अपने दायें कंधे की तरफ झुका रहता था। उसकी नाक छोटी थी, जिसकी हड्डी बाहर को निकली हुई थी। उसके नाक के नथुने ऐसे दिखते थे जैसे वो गुस्से में हो। आधे मटर के दाने के बराबर एक मस्सा उसके होंठ और नथुनों को मिलाता था।



अकबर का दरबारी लिखता है कि अकबर ने इतनी ज्यादा शराब पीना शुरू कर दी थी कि वह मेहमानों से बात करते करते भी नींद में गिर पड़ता था। वह जब ज्यादा पी लेता था तो आपे से बाहर हो जाता था और पागलों जैसी हरकतें करने लगता। अकबर के खुद के पुत्र जहांगीर ने लिखा है कि अकबर कुछ भी लिखना-पढ़ना नहीं जानता था पर यह दिखाता था कि वह बड़ा भारी विद्वान है।



गुलामों को बेचकर खरीदता था घोड़े, ऐसे बनाता था गुलाम

 

अकबर ने एक ईसाई पुजारी को एक रूसी गुलाम का पूरा परिवार भेंट में दिया। इससे पता चलता है कि अकबर गुलाम रखता था और उन्हें वस्तु की तरह भेंट में दिया और लिया करता था। कंधार में एक बार अकबर ने बहुत से लोगों को गुलाम बनाया क्योंकि उन्होंने 1581-82 में इसकी किसी नीति का विरोध किया था। बाद में इन गुलामों को मंडी में बेच कर घोड़े खरीदे गए। अकबर बहुत नए तरीकों से गुलाम बनाता था। उसके आदमी किसी भी घोड़े के सिर पर एक फूल रख देते थे। फिर बादशाह की आज्ञा से उस घोड़े के मालिक के सामने दो विकल्प रखे जाते थे, या तो वह अपने घोड़े को भूल जाये, या अकबर की वित्तीय गुलामी क़ुबूल करे।



जब अकबर मरा था तो उसके पास दो करोड़ से ज्यादा अशर्फियाँ केवल आगरा के किले में थीं। इसी तरह के खजाने छह और जगह पर भी थे। इसके बावजूद भी उसने 1595-1599 की भयानक भुखमरी के समय एक सिक्का भी देश की सहायता में खर्च नहीं किया।



नहीं करता था अन्य धर्मों का सम्मान, ये हैं सबूत 



अकबर ने गंगा,यमुना,सरस्वती के संगम का तीर्थनगर “प्रयागराज” जो एक काफिर नाम था को बदलकर इलाहाबाद रख दिया था। वहां गंगा के तटों पर रहने वाली सारी आबादी का क़त्ल करवा दिया और सब इमारतें गिरा दीं, क्योंकि जब उसने इस शहर को जीता तो वहां की हिन्दू जनता ने उसका इस्तकबाल नहीं किया। यही कारण है कि प्रयागराज के तटों पर कोई पुरानी इमारत नहीं है। अकबर ने हिन्दू राजाओं द्वारा निर्मित संगम प्रयाग के किनारे के सारे घाट तुड़वा डाले थे। आज भी वो सारे साक्ष्य वहां मौजूद हैं।



28 फरवरी 1580 को गोवा से एक पुर्तगाली मिशन अकबर के पास पहुंचा और उसे बाइबल भेंट की, जिसे इसने बिना खोले ही वापस कर दिया। 4 अगस्त 1582 को इस्लाम को अस्वीकार करने के कारण सूरत के 2 ईसाई युवकों को अकबर ने अपने हाथों से क़त्ल किया था, जबकि ईसाईयों ने इन दोनों युवकों को छोड़ने के लिए एक हजार सोने के सिक्कों का सौदा किया था। लेकिन उसने क़त्ल ज्यादा सही समझा। सन् 1582 में बीस मासूम बच्चों पर भाषा परीक्षण किया और ऐसे घर में रखा जहां किसी भी प्रकार की आवाज़ ना जाए और उन मासूम बच्चों की ज़िंदगी बर्बाद कर दी। वो गूंगे होकर मर गये । यही परीक्षण दोबारा 1589 में बारह बच्चों पर किया ।



1567 में नगर कोट को जीत कर कांगड़ा देवी मंदिर की मूर्ति को खण्डित की और लूट लिया, फिर गायों की हत्या कर के गौ रक्त को जूतों में भरकर मंदिर की प्राचीरों पर छाप लगाई।



जैन संत हरिविजय के समय सन् 1583-85 को जजिया कर और गौ हत्या पर पाबंदी लगाने की झूठी घोषणा की जिस पर कभी अमल नहीं हुआ। एक अंग्रेज रूडोल्फ ने अकबर की घोर निंदा की। कर्नल टोड लिखते हैं कि अकबर ने एक लिंग की मूर्ति तोड़ डाली और उस स्थान पर नमाज पढ़ी।



1587 में जनता का धन लूटने और अपने खिलाफ हो रहे विरोधों को ख़त्म करने के लिए अकबर ने एक आदेश पारित किया कि जो भी उससे मिलना चाहेगा उसको अपनी उम्र के बराबर मुद्राएँ उसको भेंट में देनी पड़ेगी।



यहां देखें क्यों महान हैं महाराणा प्रताप 



अकबर से जीवनभर युद्ध करने वाले महान महाराणा प्रताप जी से अंत में इसने खुद ही हार मान ली थी। यही कारण है कि अकबर के बार-बार निवेदन करने पर भी जीवनभर जहांगीर केवल ये बहाना करके महाराणा प्रताप के पुत्र अमर सिंह से युद्ध करने नहीं गया कि उसके पास हथियारों और सैनिकों की कमी है.. जबकि असलियत ये थी की उसको अपने बाप का बुरा हश्र याद था।



विन्सेंट स्मिथ के अनुसार, अकबर ने मुजफ्फर शाह को हाथी से कुचलवाया। हमजबान की जबान ही कटवा डाली। मसूद हुसैन मिर्ज़ा की आंखें सिलकर बंद कर दी गईं। उसके 300 साथी उसके सामने लाए गए और उनके चेहरों पर अजीबोगरीब तरीकों से गधों, भेड़ों और कुत्तों की खालें डाल कर काट डाला गया।



मुगल आक्रमणकारी थे, यह सिद्ध हो चुका है। मुगल दरबार तुर्क एवं ईरानी शक्ल ले चुका था। कभी भारतीय न बन सका। भारतीय राजाओं ने लगातार संघर्ष कर मुगल साम्राज्य को कभी स्थिर नहीं होने दिया।


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