प्रवीण कक्कड़. आधुनिक समाज में यह परंपरा विकसित हो गई है कि कोई ना कोई तारीख या दिन किसी विशेष प्रयोजन को समर्पित किया जाता है। आज का दिन मदर्स डे के रूप में मां को समर्पित किया गया है। मां होने का अर्थ क्या है? एक मां तो वह है जिसने हमें जन्म दिया है और हमारा लालन-पालन करके संसार में उतरने के लिए तैयार किया है। दूसरी धरती मां है जो हमारे लिए अन्न, जल और दूसरी चीजें उपलब्ध कराती है, ताकि हम अपना भरण-पोषण कर सकें। तीसरी मां प्रकृति है जिसने इस सारे ब्रह्मांड की उत्पत्ति की है।
अब हम यहां जरा खुद से पूछेंगे कि आखिर हमने क्यों न केवल धरती और प्रकृति को, बल्कि बहुत सी अन्य ईश्वरीय शक्तियों को भी मां के रूप में ही स्वीकार किया है। बहुत से देश अपने राष्ट्र को पितृभूमि कहते हैं, लेकिन हम अपने देश को मातृभूमि कहते हैं। सारी देवियों को भी हम माता ही मानते हैं।
हर महान चीज मां स्वरूप
यह विश्लेषण बताता है कि भारत की संस्कृति सिर्फ नारी की पूजा ही नहीं करती, बल्कि अपनी हर महान चीज को माता का स्वरूप मानती है। हमारी सभ्यता व संस्कृति ईश्वर को संसार का निर्माता तथा माता के स्वरूप को संसार का भरण पोषण और पालन करने वाला मानता है।
ईश्वर सब जगह नहीं हो सकता, इसलिए उसने मां बनाई। मैं एक बात और आप से कहता हूं कि दुनिया में हर चीज हर जगह आपको मिल सकती है, लेकिन मां और कहीं नहीं मिल सकती। क्या कभी किसी मां ने अपने बच्चों या अपने परिवार से अपने इस सेवा, समर्पण और त्याग की कीमत मांगी है?एक बात और ध्यान रखिए कि उसका यह सेवा, समर्पण और त्याग बिना किसी साप्ताहिक अवकाश के, बिना किसी राष्ट्रीय अवकाश और बिना किसी धार्मिक अवकाश के जीवनपर्यंत चलता रहता है।
सृष्टि में जो भी पूजनीय, उसमें मां सर्वोच्च
रामचरितमानस में कहा गया है: ‘मात पिता गुरु प्रभु की बानी, बिनहिं बिचार करेहु सुभ जानी।’ यहां एक बात पर गौर कीजिए, तुलसीदास जी ने यह तो लिखा ही है कि मां की वाणी को बिना विचार किए हुए ही अपने लिए शुभ समझ लेना चाहिए, लेकिन इस बात पर भी ध्यान दीजिए की मां का दर्जा पिता, गुरु और ईश्वर तीनों से पहले दिया गया है। अर्थात सृष्टि में जो भी पूजनीय हैं, उनमें मां सर्वोच्च है।
हमारी एक प्रार्थना में भी कहा गया है- पूत कपूत सुने बहुतेरे, माता सुनी ना कभी कुमाता यानी बच्चे तो बहुत से बिगड़ सकते हैं, लेकिन मां तो मां ही रहती है, वह कभी कुमाता नहीं होती। छत्रपति शिवाजी महाराज और महात्मा गांधी जैसे हमारे राष्ट्रीय नेताओं के व्यक्तित्व को गढ़ने में सबसे ज्यादा भूमिका उनकी माताओं की ही रही है। आज के समय को देखें, तब भी आप पाएंगे कि सुबह-सुबह बच्चों के लिए नाश्ता बनाने से लेकर उन्हें स्कूल तक छोड़ने की जिम्मेदारी भी अधिकांश माताएं उठाती हैं। बच्चों को होने वाले छोटे से कष्ट को भी सबसे पहले माता ही महसूस करती है और उसे दूर भी करती है। मां को अपने बच्चों की पसंद और नापसंद का जितना अंदाजा होता है उतना किसी मित्र या अभिभावक को नहीं होता। यहां तक कि प्रेमी-प्रेमिका भी एक-दूसरे को इतनी गहराई से नहीं समझते, जितनी गहराई से माता अपनी संतान को समझती है। इसलिए यह स्पष्ट है कि माता सिर्फ हमें जन्म नहीं देती, हमें दुलारभर नहीं देती, वह असल में इस संसार का मूल है। वह स्वयं सृष्टि है और सृष्टि की जननी भी है। इस मदर्स डे पर अपनी माता को प्रणाम करिए और उसके चरणों में नमन करके सारी सृष्टि को वंदन करिए।