सरयूसुत मिश्र. राजनीति देश का ध्यान आकर्षित करने के लिए ऐसे-ऐसे स्वांग रचती है कि जानने वाले चिंतित हो जाते हैं। राजनीति में ऐसी-ऐसी राजलीला खेली जाती है जिसका कथानक आम लोगों को समझ नहीं आता। कांग्रेस आजकल नफरत मिटाने की राजलीला यात्रा निकाल रही है। नफरत और प्यार एक ही चीज के दो छोर हैं। नफरत न होगी तो प्यार कैसे होगा ? हमारा अस्तित्व द्वैत पर ही आधारित है। दिन है तो रात है, सुख है तो दुख है। इसमें से एक को हटा दीजिए तो दूसरा अपने आप हट जाएगा। विचारधारा के टकराव के चलते नफरत मिटाई नहीं जा सकती उसे कम और बढ़ाया ही जा सकता है।
जहां चुनाव वहां प्रेम और नफरत दोनों
जहां चुनाव होगा वहां प्रेम और नफरत को अलग नहीं किया जा सकता। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा नफरत मिटाने की राजलीला में बदलती हुई दिख रही है। आरएसएस समर्थित भाजपा की सत्ता की राजनीति में बढ़ रहे दबदबे के कारण ग्रैंड ओल्ड पार्टी के कर्णधार चिंतन-मनन के बाद नफरत मिटाने को सत्ता प्राप्ति का अचूक रास्ता मानकर यात्रा पर निकल पड़े हैं। जाने-अनजाने राहुल गांधी की नफरत मिटाने की राजलीला का देशव्यापी मंचन भाजपा और संघ की पिच पर चला गया है। कांग्रेस कभी आग लगी खाकी निक्कर के सहारे देश को जोड़ने की बात करती है तो कभी ईसाई पादरियों से मुलाकात के सहारे भारत में धार्मिक सद्भाव बढ़ाने की सोच प्रदर्शित करती है।
नफरत के अपने-अपने समीकरण
कांग्रेस अब JNU की कम्युनिस्ट विचारधारा के सहयोग और सहारे, संघ और भाजपा पर नफरत फैलाने के तीर चला रही है। यह पहली बार नहीं हो रहा है। आजादी के बाद देश की सत्ता पर काबिज गांधी परिवार के सभी नेताओं ने संघ और भाजपा के खिलाफ नफरत फैलाने का पाठ देश को पढ़ाया था। राहुल गांधी आज फिर नए सिरे से संघ और बीजेपी पर नफरत का वही पाठ पढ़ाने की कोशिश कर देश की मुख्यधारा को नहीं समझने का अज्ञान ही प्रदर्शित कर रहे हैं। ऐसा लगता है कि कांग्रेस देश में नफरत को ही सबसे बड़ा मुद्दा मानती है। राजनीति का नफरतीकरण हो रहा है। नफरत का भाजपाई और कांग्रेसीकरण हो रहा है। नफरत के अपने-अपने समीकरण हैं। नफरत के सहारे चुनाव में बहुमत हासिल करना सभी का लक्ष्य लगता है। 'भारत जोड़ो यात्रा' नफरत मिटाने की राजलीला में क्यों बदल गई ?
कांग्रेस ने धर्म के आधार होने दिया देश का विभाजन
यात्रा का लक्ष्य जनता से संवाद बताया गया था। पूरे देश में हर रोज यात्रा को लेकर जिस तरह के संदेश आ रहे हैं, उनमें यात्रा के किसी अनुभव की जनता के किसी संवाद की कोई भी बात सुनाई नहीं पड़ रही है। केवल संघ और भाजपा के विरुद्ध नफरत फैलाने का एजेंडा ही सामने दिखाई पड़ रहा है। भाजपा और संघ के लिए तो यह कोई नई परिस्थिति नहीं है। कांग्रेस तो आजादी के समय से ही उनके खिलाफ ऐसे आरोप और संदेश देती रही है। कांग्रेस और संघ की विचारधारा अलग-अलग है। विचारधारा के स्तर पर कांग्रेस और संघ का संघर्ष सनातन है। संघ धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के खिलाफ था। कांग्रेस ने देश के विभाजन को धर्म के आधार पर होने दिया। धार्मिक आधार पर नफरत का इससे बड़ा उदाहरण क्या हो सकता है कि इसके लिए एक अलग देश तक बन गया।
जनता की नब्ज का कांग्रेस को अंदाजा ही नहीं
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर कांग्रेस की सरकारों की ओर से प्रतिबंध भी लगाए गए थे। इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने संघ के खिलाफ जिस ताकत के साथ लड़ाई लड़ी थी, वह ताकत तो अब कांग्रेस में बची नहीं है लेकिन संघ देश में एक बड़ी ताकत के रूप में खड़ा हुआ है। संघ की विचारधारा आज देश में शासन पर काबिज है। संघ समर्थित सरकारों में धार्मिक आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव इंगित नहीं किया जा सकता। कांग्रेस इंटेलेक्चुअल क्राइसिस के दौर से गुजर रही है। जनता की नब्ज का कांग्रेस को अंदाजा ही नहीं है। नफरत मिटाने की उनकी राजलीला से संघ और भाजपा को नुकसान की बजाय फायदा होने की संभावना दिखाई पड़ रही है।
नफरत मिटाने के लिए राजलीला का मंचन
कांग्रेस की जब सरकार हुआ करती थी तब संघ और बीजेपी की जनता में स्वीकार्यता को नियंत्रित नहीं किया सका तो आज कैसे मुकाबला किया जाएगा? नफरत मिटाने की बातों पर आगे बढ़कर कांग्रेस क्या संघ और बीजेपी के एजेंडे को ही धार देने का काम नहीं कर रही है? क्या कांग्रेस को देश के पब्लिक ओपिनियन का कोई अंदाजा नहीं है? लोकसभा चुनाव में भाजपा को मिले देशव्यापी समर्थन को कांग्रेस क्या संघ और बीजेपी की नफरत फैलाने का परिणाम मानती है? निश्चित रूप से मानती होगी तभी तो उनके द्वारा फैलाई गई नफरत को मिटाने के लिए राज-लीला का पूरे भारत में मंचन शुरू किया गया है।
जनता के मुद्दों पर कांग्रेस नहीं रखती तार्किक और सार्थक विचार
जनता के जो मुद्दे हैं उन पर कांग्रेस कोई भी तार्किक और सार्थक विचार रखने में सफल नहीं होती। किसी भी व्यवस्था के पास्ट से फ्यूचर नहीं बनता है। फ्यूचर हमेशा वर्तमान से बनता है। पास्ट के गौरव पर अहंकार से भरी कांग्रेस जन भावनाओं से कटती जा रही है। देश के लिए, लोकतंत्र के लिए, कांग्रेस की यह स्थिति किसी भी दृष्टि से अच्छी नहीं कही जा सकती लेकिन जो हकीकत है उससे तो इनकार नहीं किया जा सकता। कांग्रेस आज राजनीतिक भ्रष्टाचार के खिलाफ कोई बात नहीं करती। मोदी सरकार के 8 साल के कार्यकाल में कांग्रेस तथ्य और प्रमाण सहित एक भी भ्रष्टाचार का विश्वसनीय आरोप लगाने में सफल नहीं हो सकी है। राजनीति में जातिवाद भी कांग्रेस को परेशान नहीं करता है। जातिवाद भी नफरत का ही एक रूप है लेकिन यह रूप अगर सूट करता है तो उस पर बात क्यों उठाई जाएगी?
गुजरात दंगों के बाद कांग्रेस के मोदी विरोध से मोदी पर पड़ी देश की नजर
कांग्रेस निश्चित रूप से नफरत के नाम पर हिंदू और मुस्लिम के बीच नफरत को ही आगे बढ़ाती है लेकिन कांग्रेस क्या अभी तक एक भी ऐसा मामला लाने में सफल हुई है जिसमें यह साबित कर सके कि बीजेपी संघ या उनकी सरकारों ने धार्मिक आधार पर सरकारी कामकाज में किसी के साथ भी कोई भेदभाव किया हो? मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। गोधरा में जब कारसेवकों को जलाया गया था उसके बाद गुजरात में हुए दंगों के बाद कांग्रेस के आक्रामक मोदी विरोध के कारण इस देश की नजर मोदी पर पड़ी थी। तार्किक-अतार्किक किसी भी ढंग से मोदी को गलत साबित करने के प्रयासों ने मोदी को देश की पसंद बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है।
नफरत ही लाएगी नफरत की सियासत
राजनीति में नफरत का दौर कभी चुनाव के समय हुआ करता था। बाद में पक्ष-विपक्ष मिलकर जनता के कल्याण के लिए काम करते थे। भाजपा के वरिष्ठ नेता अटल बिहारी वाजपेयी द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को दुर्गा के रूप में संबोधित करने जैसा उदार दिल क्या आज कांग्रेस का कोई भी नेता मोदी सरकार के प्रति दिखाने का साहस कर सकता है? देश में हिंदू-मुस्लिम एकता मजबूत होनी चाहिए। यह हर नागरिक का दायित्व है। दोनों के बीच नफरत की बात ही करना देश हित में कैसे कहा जा सकता है? नफरत की सियासत नफरत ही लाएगी। राहुल गांधी की भारत यात्रा अभी बहुत समय चलना है। यात्रा के कर्ता-धर्ता और नेताओं को भारत की नब्ज समझ आ जाएगी तो निश्चित ही नफरत की सौदागिरी से राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश से जरूर बचा जाएगा।