आलोक मेहता। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई बहस का उत्तर देते हुए कहा कि ' कांग्रेस अर्बन नक्सल के चंगुल में फंस गई है| उसकी सोच पर नक्सल माओवादी विचार प्रवाह का कब्जा हो गया है| यह स्थिति राजनीति के लिए गंभीर चिंता की बात है| ' अगले दिन राज्य सभा में सांसद राकेश सिन्हा ने भी देश में माओवादी अर्बन नक्सल का मुद्दा उठाया और गृह राज्य मंत्री ने विस्तार से उत्तर दिया| मंत्री ने उत्तर में स्वीकारा कि माओवादी तत्वों को अंतर्राष्ट्रीय समूहों से सहायता मिलती है| इसलिए जब उन पर कोई कठोर कार्रवाई होती है, तब कुछ अंतर्राष्ट्रीय संगठन उनके समर्थन में आवाज उठाने लगते हैं| इसमें कोई शक नहीं कि भारत सरकार और राज्य सरकारों के संयुक्त प्रयासों से पिछले दस वर्षों के दौरान माओवादी हिंसा की घटनाओं में कमी आई है| जहां 2010 में 96 जिले माओ नक्सल गतिविधियों से प्रभावित थे, 2021 में 46 जिलों तक सीमित रह गई है| लेकिन यह भी कम खतरनाक नहीं है| खासकर कोरोना वायरस की तरह उसके बदलते रूप और सामाजिक आर्थिक जीवन पर प्रभाव से बहुत नुकसान होगा|
भारत में अर्बन नक्सल
अर्बन नक्सल शायद सामान्य लोग आसानी से नहीं समझ सकते हैं| राकेश सिन्हा ने अपने सवाल में विश्वविद्यालयों और पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय एक वर्ग विशेष के लोगों को अर्बन नक्सल की श्रेणी में रखा और कहा कि' विदेशी ताकतों के सहयोग और इशारों पर ये लोग विभिन्न राज्यों में सक्रिय माओवादी नक्सल संगठनों को प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करते हैं और वे संगठन इस सहायता से हिंसक गतिविधियां चलाते हैं| उनको कुछ राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिल रहा है|' असली संकट यही है कि प्राध्यापक, पत्रकार, लेखक, डॉक्टर, एन जी ओ के प्रतिनिधि का पहचान पत्र लेकर हिंसक माओवादी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में जाकर सूचना या धन पहुंचाने के प्रयासों के सबूत मिलना मुश्किल होता है और अदालतों में प्रमाणि कर दंड दिलवाना संभव नहीं हो पाता| इसी तरह इन नक्सल संगठनों को सहायता देने वाले राजनीतिक दल के नेता देश में ही नहीं विदेश में भी संपर्क सूत्रों भारत विरोधी गुप्तचर एजेंसियों के मोहरे बन जाते हैं| पहले केवल वामपंथी विचारों वाले कुछ नेताओं पर इस तरह के आरोप लगते थे, लेकिन कांग्रेस के कुछ नेताओं पर प्रधान मंत्री के सीधे निशाने से गंभीरता को समझा जाना चाहिए| भारतीय गुप्तचर एजेंसियां भी विदेशों में ऐसे संपर्कों मुलाकातों पर नजर रखती हैं|
अर्बन नक्सल को राजनैतिक समर्थन
हाल में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता के विदेश में चीन के कथित नेता या अधिकारी से मुलाकात की सूचनाएं भी मिलीं| फिर स्वयं राहुल गांधी की चीन और पाकिस्तान से एक साथ दुश्मनी न करने की सलाह को भी शंका से देखा जा रहा है| पाकिस्तान तो दशकों से चीन के प्रभाव में है| उसने तो कश्मीर के अनधिकृत कब्जे का कुछ हिस्सा वर्षों से चीन को सौंप दिया था| फिर चीन को दुश्मन नहीं मानने का कोई कारण नहीं है| यही नहीं भारतीय सेना द्वारा सीमा पर चीन को करारा जवाब दिए जाने के बावजूद राहुल गांधी द्वारा भारतीय इलाके पर चीनी सेना के कब्जे का आरोप अनुचित लगता है| इसी तरह नक्सल अर्बन की श्रेणी वाले तत्वों को कांग्रेस के नेताओं द्वारा समर्थन देने से सरकार का चिंतित होना स्वाभाविक है| यह तर्क बेहद गलत है कि नक्सली वनवासियों के हितों की रक्षा और पूंजीवादी शोषण से बचाव कर रहे हैं|
क्या करते हैं नक्सलवादी
नक्सली आतंकी आदिवासी क्षेत्रों में सड़क, पुल, स्कूल, अस्पताल तक के निर्माण में बाधा डालने के लिए बम बारूद का इस्तेमाल करते हैं| माओवादियों का समर्थन करने वाले यह तथ्य क्यों नहीं स्वीकारते कि नक्सली भी तालिबान और अल कायदा की तर्ज पर आतंकी हमले करते हैं| वे इंजीनियरों, डॉक्टरों, शिक्षकों, सुरक्षाकर्मियों को ही नहीं वन क्षेत्रों में निरीक्षण के लिए जाने वाले हेलिकॉप्टर तक को निशाना बना रहे हैं| वे सेटेलाइट मोबाइल फोन, रॉकेट लांचर का इस्तेमाल करते हैं| सबसे घिनौना काम गरीब मासूम आदिवासी महिलाओं और बच्चों को भ्रमित या भयभीत करके आतंकवादी शिक्षण प्रशिक्षण देकर संगठन में शामिल कर लेते हैं| नक्सल आतंकी संगठन से पीछा छुड़ाकर छत्तीसगढ़ पुलिस के समक्ष समर्पण करने वाले आदिवासी स्त्री-पुरुष से बातचीत करने का एक अवसर मुझे करीब तीन वर्ष पहले मिला था| उनकी बातें दिल दहलाने वाली थी| नक्सली गुटों के नेता अपनी कथित फ़ौज की महिलाओं से बलात्कार करते हैं| उन्हें गाने बजाने पर मजबूर कर अन्य ग्रामीण लोगों को प्रशासन व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा करने के लिए तैयार करते हैं| बारूदी सुरंगें बिछवाते हैं| इन गतिविधियों के बावजूद अर्बन नक्सल समर्थक राजनेता या अन्य संगठन अपराधों के सबूत मंगाते हैं या उन्हें सजा देने से रुकवाने की कोशिश करते हैं| आश्चर्य की बात यह भी है कि नक्सल माओवादियों ने कुछ वर्ष पहले कांग्रेस के ही बड़े नेता विद्या चरण शुक्ल और उनके साथी कार्यकर्ताओं पर हमला कर उनकी हत्या कर दी थी| बाद में उनके करीबी परिजनों ने तो स्वयं यह आशंका व्यक्त की थी कि इस हमले में नक्सलियों को दूसरे कांग्रेसी नेता का समर्थन था| इसलिए नक्सली आतंकवाद लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा खतरा हैं| लोकतंत्र की जयकार करते समय यह चुनावी संकल्प भी होना चाहिए कि देश का हर गांव माओवादी आतंक से मुक्त होगा|