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वाराणसी (Varanasi) में अखिल भारतीय शिक्षा समागम (Akhil Bhartiya Shiksha Samagam) में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने अंग्रेजों की औपनिवेशिक शिक्षा (colonial education system) प्रणाली की दो-टूक आलोचना की और देशभर के शिक्षाशास्त्रियों (Educationist)से अनुरोध किया कि वे भारतीय शिक्षा प्रणाली (Indian education system) को शोधमूलक (resear oriented) बनाएं ताकि देश का आर्थिक और सामाजिक विकास (economic and social development)तीव्र गति से हो सके।
शिक्षा क्षेत्र में कौन से क्रांतिकारी परिवर्तन किए ?
जहां तक कहने की बात है, प्रधानमंत्री ने ठीक ही बात कही है लेकिन वर्तमान प्रधानमंत्री और पिछले सभी प्रधानमंत्रियों से कोई पूछे कि उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में कौन से आवश्यक और क्रांतिकारी परिवर्तन किए हैं? पिछले 75 साल में भारत में शिक्षा का ढांचा वही है, जो लगभग 200 साल पहले अंग्रेजों ने भारत पर थोप दिया था। उनकी शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ जी-हुजूर बाबुओं की जमात खड़ी करना था। आज भी वही हो रहा है। हमारे सुशिक्षित नेता लोग उसके साक्षात ज्वलंत प्रमाण हैं।
देश में कितने नेता सचमुच पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी हैं?
देश के कितने नेता सिर्फ डिग्रीधारी हैं और कितने सचमुच पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी हैं? इसीलिए वे नौकरशाह की नौकरी करने के लिए मजबूर होते हैं। हमारे नौकरशाह भी अंग्रेज की टकसाल के ही सिक्के हैं। वे सेवा नहीं, हुकूमत के लिए कुर्सी पकड़ते हैं। यही कारण है कि भारत में औपचारिक लोकतंत्र तो कायम है लेकिन असलियत में औपनिवेशिकता हमारे अंग-प्रत्यंग में रमी हुई है।
देश में अस्पताल बढ़े लेकिन उनके हालात नहीं बदले
प्रधानमंत्री गर्व से कह रहे हैं कि उनके राज में अस्पतालों की संख्या 70 प्रतिशत बढ़ गई है लेकिन उनसे कोई पूछे कि इन अस्पतालों की हालत क्या है और इनमें किन लोगों को इलाज की सुविधा है? अंग्रेज की बनाई इस चिकित्सा-पद्धति को, यदि वह लाभप्रद है तो स्वीकार जरुर किया जाना चाहिए लेकिन कोई यह बताए कि आयुर्वेद, प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपेथी, हकीमी-यूनानी चिकित्सा-पद्धतियों का 75 साल में कितना विकास हुआ है? उनमें अनुसंधान करने और उनकी प्रयोगशालाओं पर सरकार ने कितना ध्यान दिया है?
एलोपैथी की तुलना में सारी पारंपरिक चिकित्साएं फिसड्डी
पिछले सौ साल में पश्चिमी एलोपैथी ने अनुसंधान के जरिए अपने आपको बहुत आगे बढ़ा लिया है और उनकी तुलना में सारी पारंपरिक चिकित्साएं फिसड्डी हो गई हैं। यदि हमारी सरकारें शिक्षा और चिकित्सा के अनुसंधान पर ज्यादा ध्यान दें और इन दोनों बुनियादी कामों को स्वभाषा के माध्यम से संपन्न करें तो अगले कुछ ही वर्षों में भारत दुनिया के उन्नत राष्ट्रों की टक्कर में सीना तानकर खड़ा हो सकता है।
संपन्न राष्ट्रों ने शिक्षा और चिकित्सा पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया
यदि शिक्षा और चिकित्सा, दोनों सस्ती और सुलभ हों तो देश के करोड़ों लोग रोजमर्रा की ठगी से तो बचेंगे ही, भारत शीघ्र ही महाशक्ति और महासंपन्न भी बन सकेगा। दुनिया में जो भी 8-10 राष्ट्र शक्तिशाली और संपन्न माने जाते हैं, यदि बारीकी से आप उनका अध्ययन करें तो आपको पता चलेगा कि पिछले 100 वर्षों में ही वे वैसे बने हैं, क्योंकि उन्होंने अपनी शिक्षा और चिकित्सा पर सबसे ज्यादा ध्यान केंद्रित किया है।