प्रशांत किशोर अपनी पार्टी बना सकते हैं? एक रणनीतिकार के राजनीति में आने के मायने

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Atul Tiwari
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प्रशांत किशोर अपनी पार्टी बना सकते हैं? एक रणनीतिकार के राजनीति में आने के मायने

आलोक मेहता. सामाजिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक पद यात्राओं की लंबी परंपरा है। महात्मा गांधी के आदर्शों के अनुरूप आजादी के बाद विनोबा भावे और जयप्रकाश नारायण की पद यात्राओं का लक्ष्य स्वयं सत्ता पाना या अपनी पार्टी बनाना कतई नहीं था | गांधी और जयप्रकाश के सिद्धांतों को महत्व देने के साथ सक्रिय राजनीति में रहते हुए सामाजिक व आर्थिक बदलाव के लिए सबसे लम्बी पद यात्रा चंद्रशेखर ने 1983 में की थी। 





कन्याकुमारी के गांधी मंडपम से प्राम्भ होकर देश के विभिन्न राज्यों, गांवों, कस्बों, शहरों से दिल्ली तक करीब 6300 किलोमीटर की यह ऐतिहासिक भारत पदयात्रा थी। उन्होंने केवल 25 लोगों को साथ रखने का निर्णय लिया था, लेकिन समर्थकों के बहुत आग्रह पर 50 सह यात्री थे। वहीँ रास्ते में दो, तीन, चार दिन तक समय समय पर जुड़ने वाले लोगों का कोई हिसाब नहीं रखा गया। चंद्रशेखर ने स्पष्ट बता दिया था कि यह राजनीतिक और पार्टी की पद यात्रा नहीं है। इसलिए रास्ते में भी खाने पीने और ठहरने का इंतजाम स्थानीय लोग कर देते थे। कहीं किसी ने उदारतापूर्वक कोई रकम दे दी, तो उसे पार्टी के बजाय ग्रामीण क्षेत्रों में विकास कार्यों में लगाने का निर्देश था। यह यात्रा देश की समस्याओं को नजदीक से समझने और विभिन्न इलाकों में सामाजिक-आर्थिक जागरूकता के लक्ष्य से की गई थी। मुझे एक पत्रकार होने के अलावा इस कारण भी इस यात्रा के अनुभवों में रूचि थी, क्योंकि मेरे पिता के अनुज यानी मेरे काका ( ओमप्रकाश आर्य ) भारत यात्रा में शामिल रहे। वे शिक्षा के क्षेत्र में तीन-चार दशक सेवा के बाद सामाजिक राजनीतिक गतिविधियों में जुड़े और 1980 में जनता पार्टी के आग्रह पर मध्य प्रदेश में अर्जुन सिंह के विरुद्ध चुनाव लड़कर पराजित हो चुके थे। राजनीति से अधिक उन्हें समाज और राष्ट्र के मुद्दों पर अभियान में रुचि थी, इसलिए बाद में उन्होंने कोई चुनाव नहीं लड़ा। आज भी शहर से दूर गांव में छोटे से खेत और गाय-बैल के साथ कुछ लिखते-पढ़ते हैं। 





बिहार में अपनी पार्टी का रथ उतार सकते हैं पीके





चंद्रशेखर की भारत यात्रा का उल्लेख इसलिए जरूरी है, क्योंकि एक कॉरपोरेट कम्पनी के प्रमुख तथा परस्पर विरोधी विचारधाराओं की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं के सलाहकार रहने के बाद प्रशांत किशोर ने अब बिहार की पद यात्रा करके प्रदेश की समस्याओं को समझने के बाद पार्टी बना सकने की संभावना व्यक्त की है। महात्मा गांधी गुजरात में जन्मे, इंग्लैंड में पढ़े और अफ्रीका में जनता के लिए क़ानूनी लड़ाई लड़कर भारत में चम्पारण पहुंचकर किसानों की समस्याओं के लिए संघर्ष करने पहुंचे थे। जबकि प्रशांत किशोर मूलतः बिहार में पले-बढ़े और फिर विदेश से कुछ ज्ञान, धन व फॉर्मूले लेकर भारत आए। फिर भाजपा के प्रचार सलाहकार का प्रमाण पत्र लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सरकारी सलाहकार और पार्टी के महत्वपूर्ण उपाध्यक्ष रहे। 





2020 के विधानसभा में जनता दल (यू) के उम्मीदवारों के चयन में उनके दबदबे को कई लोग याद कर रहे हैं। बाद में पार्टी के सत्ता सुख में अधिक हिस्सा नहीं मिलने और तनाव के बाद पार्टी से निकाल दिए गए। लेकिन अपनी कारपोरेट कंपनी तथा चातुर्य से ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के चुनाव प्रचार के सलाहकार बन गए। हां, उत्तर प्रदेश के चुनावों में भी उन्होंने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी और बहुजन पार्टी की विजय का ठेका लिया था, लेकिन सफलता दूर रही। इन पार्टियों की कमर टूट गई और आपसी कटुता भी बढ़ गई। फिर भी बंगाल में कांग्रेस की भारी पराजय के बाद प्रशांत किशोर ने न केवल पार्टी को दशा दिशा दिखाई, बल्कि नंबर टू यानी सर्वाधिकार की मांग कर दी। हफ़्तों की माथापच्ची के बाद कांग्रेस ने पीके की थाली उलट कर उन्हें विदा कर दिया या अपना प्रस्ताव मंजूर न होने से पीके ने बिहार में अपना नया रास्ता खोजने का नाटकीय निर्णय प्रचारित कर दिया। अपने प्रचार और मार्केटिंग में अरविन्द केजरीवाल से भी अधिक चतुर कहे जाने वाले प्रशांत किशोर बिहार में सामाजिक आर्थिक स्थितियों  को समझने के बाद पार्टी का कोई रथ चुनाव में उतारना चाहते हैं।





नीतीश को ​निकम्मा साबित करने निकले हैं पीके 





निश्चित रूप से लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को चुनाव लड़ने, पार्टी बनाने का अधिकार है। बिहार तो हमेशा राजनीति, सामाजिक क्रांति, आर्थिक क्रांति आदि के नारों, घोषणा पत्रों, वायदों का उर्वरक केंद्र रहा है। प्रशांत किशोर द्वारा तीन हजार किलोमीटर पद यात्रा और अपनी कंपनी द्वारा पहले से चुने गए करीब 18 हजार लोगों से मिलकर भावी राजनीतिक कदम की घोषणा की गई है। बिहार और सम्पूर्ण देश की राजनीति के जानकार इस बात पर आश्चर्य कर रहे हैं कि अंतर्राष्ट्रीय ज्ञानी प्रशांत किशोर दस वर्षों से देश की दशा व दिशा देखने और नेताओं को दिखाने पर करोड़ों रुपया कमा या खर्च कर चुके हैं, बिहार की सरकार से अपनी सलाह पर निर्णय कराते रहे, फिर अब क्या नया सीखना समझना है? 





वे अब नीतीश कुमार को पूरी तरह विफल, शिक्षा - स्वास्थ्य सुविधा देने में पूरी तरह निकम्मा साबित करने निकले हैं। जब सरकारी सुख सुविधा ले रहे थे, तब उन्हें बिहार के गरीब, गांवों और लोगों का बिल्कुल पता नहीं लग रहा था? फिर उनकी विचारधारा क्या है? भाजपा, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल या दक्षिणी राज्यों के प्रादेशिक दलों के कई विचार, सिद्धांत और लक्ष्य भिन्न तथा विरोधी हैं | उनका एक मिला जुला मिक्सचर क्या बिहार का सामाजिक व आर्थिक कल्याण कर सकेगा?



 



एक प्रयोग ही कही जाएगी पीके की यात्रा



 



भारतीय राजनीति में अपने अनुभव और छवि के बल पर जनता के बीच पहुंचने वालों के कई नाम गिनाए जा सकते हैं। गैर राजनीतिक लोगों में चुनाव सुधार के प्रणेता टीएन शेषन को प्रशासन और सामाजिक आर्थिक मामलों का पर्याप्त ज्ञान तथा अनुभव था, लेकिन 1999 में कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में गांधीनगर से लोक सभा चुनाव लड़ने पर पराजित होना पड़ा था। महात्मा गांधी के ही उत्तराधिकारी राजमोहन गांधी आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहते हुए दिल्ली से चुनाव हार गए। जहां तक पार्टियों की बात है, जेबी कृपलानी, राम मनोहर लोहिया से लेकर चंद्रशेखर, सुब्रमण्यम स्वामी, देवेगौड़ा, शरद यादव, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव, नीतीश सहित अनेक नेता पार्टियां बनाते, सफल या असफल होते रहे हैं। उन लोगों को बिहार सहित देश—विदेश की सामाजिक आर्थिक परिस्तिथियों का अध्ययन था, फिर भी समाधान में पूरी सफलता नहीं मिल सकी। बहरहाल, पीके की पद यात्रा भी भारत में एक प्रयोग तो कही जा सकेगी।



 



(लेखक आई टीवी नेटवर्क इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं)



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