हम अतिसहनशील और बेपरवाह, इसलिए विकास चुनावी पैमाना नहीं

author-image
The Sootr CG
एडिट
New Update
हम अतिसहनशील और बेपरवाह, इसलिए विकास चुनावी पैमाना नहीं

एक राजा था। उसके राज्य में सब कुछ बहुत अच्छा चल रहा था। चारों ओर शांति, प्रसन्न जनता। लेकिन राजा को कामकाज करने में मजा ही नहीं आ रहा था। अपने मंत्री को बुलाकर कहा कि जब तक जनता हमारे सामने गिड़गिड़ाए ना। रोए ना। कुछ मांगे ना। फरियाद न करे.. तब तक राजा होने का मतलब ही क्या। कुछ करो। मंत्री को कुछ नहीं सूझा। तब राजा ने ही सुझाव दिया कि राज्य का जो सबसे प्रमुख मार्ग है, उसको खोद दो। जब खुदी हुई सड़क से जनता परेशान होगी तो हमारे पास आएगी। सड़क खुदवा दी गई। जनता ने उस खुदी हुई सड़क से ही आने-जाने की आदत डाल ली। कोई परेशानी नहीं। राजा के सामने कोई गिड़गिड़ाना नहीं। रोना नहीं। राजा परेशान। फिर आदेश दिया-खुदी हुई सड़क पर टैक्स लगा दो। टैक्स लगेगा, तब तो आएगी जनता। पर नहीं आई जनता। खुदी हुई सड़क पर भी टैक्स देने में कोई परेशानी नहीं। अब राजा और परेशान। नया आदेश दे डाला-सड़क पर चलने वालों से टैक्स तो वसूला ही जाए, हर किसी को दस-दस कोडे़ भी मारे जाएं। जनता इसके लिए भी तैयार। कोडे़ खाए, टैक्स दे और खुदी हुई सड़क पर चले। लेकिन कुछ दिनों बाद जनता में थोड़ी हलचल हुई। 



राजा के सामने फरियाद लगाने का फैसला लिया गया। एक प्रतिनिधि मंडल तैयार हुआ। राजा के दरबार में पेश हुआ। राजा प्रसन्न। मन ही मन सोचा कि देखो अब ऊंट आया पहाड़ के नीचे। जनता के प्रतिनिथि मंडल ने गुहार लगाई-महाराज आप महान हैं। आपके राज्य मे हमें कतई तकलीफ नहीं है। बस एक छोटी सी फरियाद लेकर आपके दरबार में आए हैं। आपने कोडे़ मारने के लिए जितने सिपाही तैनात किए हैं.. उनकी संख्या बहुत कम है। हम काम पर जाते हैं तो कोडे़ खाते-खाते बहुत देर हो जाती है। हमारी आपसे विनय है कि सिपाहियों की तादाद बढ़ा दी जाए ताकि हम जल्दी-जल्दी कोडे़ खाकर, अपने काम पर वक्त पर पहुंच सकें।  



जनता के तलवों में कील भी ठोक दो तो मुंह से चूं तक ना निकले..



ये भले ही कहानी हो। लेकिन हमारे समाज के संदर्भ में एकदम मौजूं है। हम भी इतने ही सहनशील हैं। मूर्ख होने की हद तक सहनशील। हमारे तलवों में कीलें भी ठोक दी जाएं तो भी हमारे मुंह से चूं तक नहीं निकलती। इक्कीसवीं सदी में होने के बावजूद अगर हमें पच्चीस-पचास किलोमीटर की अच्छी सड़क मिल जाती है तो हम सरकार की तारीफ करने लगते हैं। हम भूल ही जाते हैं कि अच्छी सड़क हमारा बुनियादी हक है। अस्पताल या स्कूल की इमारत बनने पर हम तालियां बजाते हैं। सरकार की वाहवाही करते हैं। हम फिर भूल जाते हैं कि ये सब हमारे ही टैक्स के पैसे से बन रहा है। बिजली गुल नहीं होती तो हम खुश हो जाते हैं। फिर सरकार की पीठ ठोकने लगते हैं। इस बार भी हम भूल जाते हैं या हमें भूलने पर मजबूर कर दिया जाता है कि लोकतंत्र में इन सब पर तो हमारा नैसर्गिक हक है... कोई सरकार.. इन सब चीजों को मुहैया करवाकर हम पर कोई अहसान नहीं कर रही है।



अच्छी GDP, अच्छा विकास- सरकार



असल में केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय ने हाल ही में 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के 2021-22 के जीडीपी ग्रोथ के आंकडे़ जारी किए हैं। जीडीपी यानी जिसको हम सब विकास का पैमाना मानते हैं। हमें इतना ही समझाया गया है कि अच्छी जीडीपी यानी अच्छा विकास और खराब (कम) जीडीपी यानी खराब या कम विकास। इन जीडीपी आंकड़ो के मुताबिक विकास के मामले में देश का सबसे बड़ा राज्य उत्तरप्रदेश सबसे निचले पायदान पर है। अब ये चौंकाने वाली बात है कि एक तरफ तो यूपी विकास के मामले में सबसे निचले पायदान पर खड़ा है और दूसरी ओर जनता ने वहां की सरकार को एक बार फिर गद्दी सौंप दी है। 



यूपी में फिसड्डी विकास फिर भी जनता ने योगी चुने



ये विरोधाभास हमें समझना होगा। अगर विकास के मामले में यू्पी फिसड्डी साबित हुआ है तो फिर योगी वहां एक बार फिर जनता की पसंद बनकर क्यों उभरे हैं? जवाब एकदम साफ है- क्योंकि दुर्भाग्य से विकास चुनाव जिताने या हराने का पैमाना ही नहीं बन पाया है, हमारे यहां अब तक। हमें तो सिर्फ धर्म और जाति की अफीम चटाकर चुनाव मैदान में उतार दिया जाता है। जातिगत अस्मिता और धर्म के खतरे में होने के बोगस नारों के बीच, विकास हमारे लिए गौंण हो जाता है। हम वहां भी बेसुध और बेपरवाह रहते हैं, जहां हमें बेहद चौकन्ना होना चाहिए। पाई-पाई का हिसाब हमें सरकार से लेना चाहिए लेकिन हम ऐसा कर नहीं पाते हैं। करोड़ों के पुल बह जाते हैं... इमारतें उम्र पूरी होने के पहले ही गिर जाती हैं... बच्चों को स्कूल में पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता है... अस्पतालों में दवाईयां नहीं मिल पाती हैं... फिर भी हम परेशान नहीं होते। जिस दिन विकास हमारी प्राथमिकता की सूची में ऊपर आ जाएगा, उस दिन से ही देश का असल विकास शुरू हो जाएगा। वरना अपने ही पैसों से ही सरकारी इमारतों के उद्घाटन समारोह में बैठकर ताली बजाना और सरकार की जय-जयकार करने के लिए अभिशप्त रहना तो हमारी नियति है ही।


Indian Politics Development of India Up Government GDP भारतीय राजनीति भारत का विकास यूपी सरकार जीडीपी