कांग्रेसः राहुल ही अंतिम आशा

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Dr. Vedapratap Vaidik
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कांग्रेसः राहुल ही अंतिम आशा

कांग्रेस को 24 साल बाद सोनिया परिवार के बाहर का एक अध्यक्ष मिला है। क्यों मिला है? क्योंकि सोनिया-गांधी परिवार थक चुका था। उसने ही तय किया कि अब कांग्रेस का मुकुट किसी और के सिर पर धर दिया जाए। मां और बेटे दोनों ने अध्यक्ष बनकर देख लिया। कांग्रेस की ताकत लगातार घटती गई। उसके महत्वपूर्ण नेता उसे छोड़-छोड़कर अन्य पार्टियों में शामिल होते जा रहे हैं। ऐसे में कुछ नई पहल की जरुरत महसूस की गई। दो विकल्प सूझे। एक तो भारत जोड़ो यात्रा और दूसरा ढूंढें कोई ऐसा कंधा, जिस पर कांग्रेस की बुझी हुई बंदूक रखी जा सके।



खड़गे के कंधे पर खाली कारतूसों वाली बंदूक 



 भारत कहां से टूट रहा है, जिसे आप जोड़ने चले हैं? वह वास्तव में टूटती-बिखरती कांग्रेस की जोड़ो यात्रा है। इसमें शक नहीं कि इस यात्रा से राहुल को प्रचार काफी मिल रहा है लेकिन कांग्रेस से टूटे हुए लोगों में से कितने अभी तक जुड़े हैं? कोई भी नहीं। खैर, यात्रा अच्छी है। उससे कांग्रेस को कुछ फायदा हो या न हो, राहुल गांधी के अनुभव में जरुर वृद्धि होगी। लेकिन जो बंदूक नए अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के कंधे पर रखी गई है, वह तो खाली कारतूसों वाली ही है।



खड़गे तो बैसाखी पर फुदक रहे थे 



 यह तो सबको पता था कि शशि थरुर को तो हारना ही है लेकिन उनको हजार से ज्यादा वोट मिल गए, यही बड़ी बात है। इतने वोट सोनिया के विरुद्ध जितेंद्रप्रसाद को नहीं मिले थे। उन्हें तो लगभग 8 हजार के मुकाबले 100 वोट भी नहीं मिले थे। इसका कारण है, जितेंद्रप्रसाद, जिसके विरुद्ध अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे थे, वह महिला अपने पांव पर खड़ी थी लेकिन खड़गे तो बैसाखी पर फुदक रहे थे। चुनाव अभियान के दौरान खड़गे ने कई बार यह स्पष्ट कर दिया की वे रबर की मुहर बनने में ही परम प्रसन्न होंगे। 



थरूर ने भी स्वामीभक्ति का भाव ही प्रकट किया 



थरुर भी खड़गे को चुनौती दे रहे थे और उन्होंने उन्हें टक्कर भी अच्छी दे दी लेकिन दबी जुबान से वे भी स्वामीभक्ति प्रकट करने में नहीं चूक रहे थे। यानी गैर-गांधी अध्यक्ष आ जाने के बावजूद कांग्रेस जहां की तहां खड़ी है और वह ऐसे ही खड़ी रहेगी, ऐसी आशंका है। क्या थरुर के पास कोई नए विचार, नई नीतियां, नई रणनीति, नया कार्यक्रम और नए कार्यकर्त्ता हैं, जो इस अधमरी कांग्रेस में जान फूंक सकें? थरुर में ऐसी किसी क्षमता का परिचय आज तक नहीं मिला। ऐसी स्थिति में यह क्यों नहीं मान लिया जाए कि खड़गे को जो भी आदेश ऊपर से मिलेगा, कांग्रेस उसी रास्ते पर चलती रहेगी।



राहुल को पढ़ने-लिखने और जनसंपर्क बढ़ाने की जरूरत 

 

 शशि थरुर भी जितेंद्रप्रसाद की तरह खड़गे के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने लगेंगे। हाँ, राहुल गांधी जो कि इस प्राइवेट लिमिटेड कंपनी के मालिक हैं, यदि वे चाहें तो अपनी पार्टी में प्राण फूंक सकते हैं। वे ही अंतिम आशा हैं लेकिन यह तभी होगा जबकि वे थोड़ा पढ़े-लिखें, जन-सम्पर्क बढ़ाएं और पार्टी तथा बाहर के भी अनुभवी लोगों से परामर्श करें और मार्गदर्शन लें। यदि यह नहीं हुआ तो कांग्रेस का हाल भी वही होगा, जो लोहिया की समाजवादी पार्टी और राजाजी की स्वतंत्र पार्टी जैसी कई पार्टियों का हुआ है। यदि ऐसा हुआ तो भारतीय लोकतंत्र के निरंकुश होने में कोई कसर बाकी नहीं रहेगी।


राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा Mallikarjun Kharge became the President of Congress Sonia Gandhi role in Congress Rahul Gandhi's Bharat Jodi Yatra election for the post of President in Congress Party Dr Vedapratap Vaidik article मल्लिकार्जुन खड़गे बने कांग्रेस के अध्यक्ष सोनिया गांधी की कांग्रेस में भूमिका कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव डॉ वेदप्रताप वैदिक का लेख