बेरोजगारी-अराजकता का सहसंबंधः दक्ष हाथों को काम दीजिए सरकार, कहीं कोई बंदूक न थमा दे !

author-image
एडिट
New Update
बेरोजगारी-अराजकता का सहसंबंधः दक्ष हाथों को काम दीजिए सरकार, कहीं कोई बंदूक न थमा दे !

अनिल कर्मा। कुछ दृश्य देखिए, कुछ तथ्य। कुछ धृष्टताएं देखिए और कुछ कष्ट-#मध्यप्रदेश (MP) में पिछले दिनों मुख्यमंत्री निवास घेरने के लिए आए बेरोजगार युवाओं (Unemployed Youth) पर पुलिस ने खूब डंडे बरसाए। 'कसूर' यह था कि वे सरकारी विभागों में खाली पदों (Vacant Post) पर जल्दी नियुक्ति की मांग कर रहे थे। लाठीचार्ज में कई युवा गंभीर रूप से घायल हो गए। कई लड़कियां भी चोटिल हुईं।# मध्यप्रदेश में ही 3 साल पहले चयनित हो चुके युवाओं को शिक्षक (Teacher) पद पर नियुक्ति के लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ रहा है।#राजस्थान (Rajsthan) में कंप्यूटर शिक्षकों की भर्ती संविदा पर करने के खिलाफ युवा आंदोलनरत हैं। पिछले महीने उन्हें कांग्रेस मुख्यालय के भीतर कार्यकर्ताओं के हिंसक गुस्से का सामना करना पड़ा। # कोरोना काल में सबसे ज्यादा बेरोजगार झारखंड (Jharkhand) में बढ़े। ग्रामीण बेरोजगारी (Rural Unemployment) के मामले में यह छोटा सा प्रदेश देश में पहले नंबर पर खड़ा है। #हरियाणा (Hariyana) जैसा औद्योगिक हब कहां जाने वाला राज्य आज ओवरऑल बेरोजगारी में अव्वल है।#अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) के अनुसार 2020 के दौरान भारत की बेरोजगारी दर (Unemployement Rate) बढ़ कर 7.11 फीसदी हो गई है। यह पिछले तीन दशक की सबसे ज्यादा है। 2021 के अलग-अलग महीनों के आंकड़े देखेंगे तो इससे अधिक ही प्रतिशत नजर आएगा।

काम मांगने वाली आवाज को दबाया जा रहा है

यह सब चिंताजनक है। बेहद चिंताजनक। बेशक कोरोना महामारी के कारण पूरी दुनिया में दक्ष और जरूरतमंद हाथों से काम छीन गया है।  कदाचित इसीलिए वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम (WEF) के सर्वे में बेरोजगारी को दुनिया के सामने अगले 10 वर्षों की सबसे बड़ी चिंताओं में पहले स्थान पर पाया गया है। अधिक जनसंख्या, अभाव और गरीबी के चलते भारत (India) की पेशानी पर इसकी लकीरें अधिक गहरी होनी चाहिए। मगर दुखद यह है कि हमारी सरकारों का रवैया इससे उल्टा है। काम  मांगने वाली आवाज को दबाया जा रहा है और विरोध में उठने वाले हाथों को तोड़ा जा रहा है।

वर्ल्ड इकॉनमिक फोरम के उलट  सरकारों की प्राथमिकता सूची में  रोजगार काफी नीचे है। वरना क्या कारण है कि खाली पड़े पदों को नहीं भरा जा रहा है, चयनित योग्य युवाओं को परेशान होने के लिए छोड़ दिया गया है। हर साल एक करोड़ युवाओं की फौज तैयार कर लेने वाले दुनिया के सबसे युवा देश (युवाओं की संख्या के लिहाज से)  को यह सोचना ही होगा कि यही हमारी सबसे बड़ी ऊर्जा शक्ति है। इसको सही समय पर सही दिशा और उसका वाजिब हक देना राष्ट्रधर्म

बेरोजगारी और अराजकता

अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य से इसे समझने की कोशिश करें तो कोविड महामारी के बाद के बाद अफगानिस्तान (Afganistan)  हादसा पूरी दुनिया के लिए जितना बुरा तजुर्बा है , उतना ही अच्छा सबक भी। तालिबान (Taliban) का उभरना और एक बार क्रूर सरकार चला चुकने के बाद दूसरी बार अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हो जाना कोई मामूली घटना नहीं है। इस दुर्दांत कथा का हर अध्याय कुछ न कुछ सिखाता है। आइए बेरोजगारी और अराजकता के संदर्भ में इसे समझें।

पश्तो जुबान में छात्रों को तालिबान कहा जाता है। यानी ये तमाम लड़ाके  कहीं ना कहीं मदरसों में या अन्य किसी शिक्षण संस्थान में पढ़ने वाले छात्र रहे हैं। सही दिशा और उचित मार्गदर्शन के अभाव या  दक्षता के अनुरूप काम ना मिल पाने या भ्रष्टाचार और अराजकता की स्थितियों से निराश होकर ये भटक गए शायद। इसे किसी भी बर्बरता के 1% भी हक में होने की लेश मात्र मंशा के बिना इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि तालिबान का उद्भव  और  उसका प्रारंभिक इतिहास इसी ओर इंगित करता है। बाद में हालांकि यह  दो और दो चार जैसा  कोई साफ गणित नहीं रह गया। कई देशों के गुणा भाग ने इसका गणित बिगाड़ा। पाकिस्तान (Pakistan) का तो लगभग पूरा 'अंकगणित' और 'डंक-शास्त्र' इसमें समाया हुआ है।  इन सब ने मिलकर तालिबान को वह बनाया, जो आज वह है।   

नब्बे के दशक की शुरुआत में जब सोवियत संघ अफ़ग़ानिस्तान से अपने सैनिकों को वापस बुला रहा था, उसी दौर में तालिबान का जन्म हुआ। सोवियत सैनिकों के जाने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के आम लोग मुजाहिदीन की ज्यादतियों और आपसी संघर्ष से तंग थे। इसलिए पहले पहल तालिबान का स्वागत किया गया। वह लोकप्रिय भी हुआ क्योंकि उसने भ्रष्टाचार पर अंकुश, अराजकता की स्थिति में सुधार, सड़कों का निर्माण और  कारोबारी ढांचा और सुविधाएं मुहैया कराने जैसी कई सकारात्मक पहल की। लेकिन कालांतर में इसके साथ जो हुआ, वह सब ने देखा-समझा-जाना है।

बेरोजगारी का इलाज जितनी जल्दी हो उतना अच्छा

लब्बोलुआब यह कि ऊर्जा के जहरीले अंकुर यहां-वहां तभी फूटते हैं, जब उसे माकूल व वाजिब जमीन और खाद-पानी सही वक्त पर नहीं मिलते। फिर इनका कहीं भी, कैसे भी दुरुपयोग हो सकता है। होता ही है। इसलिए मेहनतकश और दक्ष हाथों को काम और उनकी दुनिया को उनके हिस्से का बाग-खेत समय रहते  दे देना चाहिए।  इससे पहले कि वह सारी दुनिया ही मांगने लगे ( याद कीजिए दिलीप कुमार साहब की फिल्म ''मजदूर'' का वह गाना- हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे, एक बाग नहीं, एक खेत नहीं, हम सारी दुनिया मांगेंगे...)।

 इस बात की सौ फ़ीसदी उम्मीद के साथ कि हमारे युवा किसी भी हाल में राह नहीं भटकेंगे और हमारी सरकारें समय रहते चेत जाएंगी,  ध्यान यह रखना होगा कि  बेरोजगारी महज समस्या नहीं, समाज का  कोढ़ है।  इसका इलाज जितनी जल्दी हो, उतना अच्छा।

(लेखक प्रजातंत्र अखबार के संपादक हैं।) 

Madhya Pradesh मध्यप्रदेश The Sutra The Sootr बेरोजगारी Youth युवा बढ़ती बेरोजगारी अहम समस्या agitated youth