पूर्वजों के आदेशों को याद करने का समय है श्राद्ध पक्ष 

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The Sootr CG
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पूर्वजों के आदेशों को याद करने का समय है श्राद्ध पक्ष 

हिंदू संस्कृति में पितृ पक्ष का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह पर्व पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए मनाया जाता है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष के सोलह दिनों तक मनाया जाता है। पितृ पक्ष अपने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए मनाया जाता है। पितृ पक्ष में लोग अपने पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए कई सारे प्रमुख स्थलों पर जाते हैं। इस दौरान लोग अपने पूर्वजों का स्मरण करते हुए श्रद्धाभाव से सभी धार्मिक रीति-रिवाजों का पालन करते हैं।



ऐसा माना जाता है कि पितृ पक्ष के दौरान पूजा पाठ और श्राद्ध करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है। सरल शब्दों में कहें तो श्राद्ध पक्ष पूर्वजों के आदेशों को याद करने का समय है। उन्होंने अपने जीवन काल में जो मूल्य स्थापित किए उन मूल्यों को आगामी पीढ़ी के लिए सहेजने और युवाओं को उससे अवगत कराने का समय श्राद्ध पक्ष है।



 शास्त्रों में पितरों के उद्धार की अनिवार्यता



हिन्दू धर्म में पूर्वजों की सेवा को सबसे बड़ी पूजा माना गया है। इसलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में पितरों का उद्धार करने की अनिवार्यता मानी गई है। पूर्वजों को मृत्यु उपरांत लोग विस्मृत न कर दें, इसलिए उनका श्राद्ध करने का विशेष विधान बताया गया है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं, जिसमें हम अपने पूर्वजों की सेवा करते हैं।

आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक ब्रह्माण्ड की ऊर्जा तथा उस उर्जा के साथ पितृप्राण पृथ्वी पर व्याप्त रहता है। धार्मिक ग्रंथों में मृत्यु के बाद आत्मा की स्थिति का बड़ा सुन्दर और वैज्ञानिक विवेचन भी मिलता है। पितृपक्ष में जो तर्पण किया जाता है उससे वह पितृप्राण स्वयं आप्यापित होता है। पुत्र या उसके नाम से उसका परिवार जो यव जौ तथा चावल का पिण्ड देता है, उसमें से अंश लेकर वह अम्भप्राण का ऋण चुका देता है। ठीक आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से वह चक्र उर्ध्वमुख होने लगता है। 16 दिन अपना-अपना भाग लेकर शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से पितर उसी ब्रह्मांडीय उर्जा के साथ वापस चले जाते हैं। इसलिए इसको पितृपक्ष कहते हैं और इसी पक्ष में श्राद्ध करने से पित्तरों को प्राप्त होता है।



भरत ने भी किया था दशगात्र विधान



पुराणों में कई कथाएँ इस उपलक्ष्य को लेकर हैं, जिसमें कर्ण के पुनर्जन्म की कथा काफी प्रचलित है। हिन्दू धर्म में सर्वमान्य श्री रामचरित मानस में भी श्री राम के द्वारा श्री दशरथ और जटायु को गोदावरी नदी पर जलांजलि देने का उल्लेख है एवं भरत जी द्वारा दशरथ हेतु दशगात्र विधान का उल्लेख भरत कीन्हि दशगात्र विधाना तुलसी रामायण में हुआ है। भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण प्रमुख माने गए हैं. पितृ ऋण, देव ऋण तथा ऋषि ऋण। इनमें पितृ ऋण सर्वोपरि है। पितृ ऋण में पिता के अतिरिक्त माता तथा वे सब बुजुर्ग भी सम्मिलित हैं, जिन्होंने हमें अपना जीवन धारण करने तथा उसका विकास करने में सहयोग दिया।



अगली पीढ़ी का विरासत से परिचय



पितृपक्ष में सनातन व्यक्ति मन कर्म एवं वाणी से संयम का जीवन जीते हैं, पितरों को स्मरण करके जल चढाते हैं, निर्धनों एवं ब्राह्मणों को दान देते हैं। पितृपक्ष में प्रत्येक परिवार में दिवंगत माता-पिता का श्राद्ध किया जाता है। मैं यह कहना चाहूंगा कि दान और भोज तो अपनी जगह धार्मिक महत्व लिए हुए हैं, लेकिन श्राद्ध पक्ष वह समय है जब हम अपने पूर्वजों के आदर्शों को याद कर सकते हैं। युवा पीढ़ी को पूर्वजों के आदेशों और संघर्षों से अवगत करा सकते हैं। जिससे आने वाली पीढ़ी को यह पता रहे कि वह किस विरासत के साथ वे दुनिया में आए हैं। 



तीन पीढ़ियों के पूर्वजों का करते हैं तर्पण



हमारे धर्म-दर्शन के अनुसार जिस प्रकार जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु भी निश्चित है। उसी प्रकार जिसकी मृत्यु हुई है,उसका जन्म भी निश्चित है। ऐसे कुछ विरले ही होते हैं जिन्हें मोक्ष प्राप्ति हो जाती है। पितृपक्ष में तीन पीढ़ियों तक के पिता पक्ष के तथा तीन पीढ़ियों तक के माता पक्ष के पूर्वजों के लिए तर्पण किया जाता है। इन्हीं को पितर कहते हैं। दिव्य पितृ तर्पण, देव तर्पण, ऋषि तर्पण और दिव्य मनुष्य तर्पण के पश्चात् ही स्व पितृ तर्पण किया जाता है। भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन कृष्णपक्ष अमावस्या तक के सोलह दिनों को पितृपक्ष कहते हैं।



इस दिन करते हैं अपने पूर्वजों का श्राद्ध



जिस तिथि को पूर्वज का देहांत होता है, उसी तिथि को पितृपक्ष में उनका श्राद्ध किया जाता है। शास्त्रों के अनुसार पितृपक्ष में अपने पितरों के निमित्त जो अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुरूप शास्त्र विधि से श्रद्धापूर्वक श्राद्ध करता है, उसके सकल मनोरथ सिद्ध होते हैं। घर-परिवार, व्यवसाय तथा आजीविका में हमेशा उन्नति होती है। सामान्य बोलचाल में श्राद्ध पक्ष को सिर्फ मृत लोगों का काल कहा जाता है, लेकिन यह धारणा सही नहीं है। श्राद्ध दरअसल अपने अस्तित्व से अपने मूल से रूबरू होने और अपनी जड़ों से जुड़ने, उसे पहचानने और सम्मान देने की एक सामाजिक प्रक्रिया है। हम अपने पूर्वजों को याद करें। उनके आदर्शों को युवा पीढ़ी तक पहुंचाएं और समाज में भारतवर्ष के वही मूल्य स्थापित करें, जिसके कारण हम विश्व गुरु के रूप में जाने जाते हैं।


विचार मंथन Pitru Paksha do Shradh of your ancestors on this day rituals of Shradh पितृपक्ष इस दिन करें अपने पूर्वजों की श्राद्ध श्राद्ध का विधि विधान