सबसे बड़े लोकतंत्र में बदले की राजनीति का जिन्न, कोई पार्टी बचती नहीं दिख रही

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Atul Tiwari
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सबसे बड़े लोकतंत्र में बदले की राजनीति का जिन्न, कोई पार्टी बचती नहीं दिख रही

सरयूसुत मिश्र. पंजाब में सरकार बनाने के बाद पहली बार आम आदमी पार्टी का राज्य की पुलिस पर नियंत्रण हुआ है। दिल्ली में तो पुलिस केंद्र शासन के अधीन आती है। मुख्यमंत्री केजरीवाल इस बात के लिए हमेशा लड़ते रहते हैं कि दिल्ली राज्य के अधीन पुलिस नहीं होने के कारण दिल्ली में "लॉ एंड आर्डर" अनियंत्रित बना हुआ है। पंजाब पुलिस ने आम आदमी पार्टी के डायरेक्शन पर इतने कम समय में “बदला” राजनीति का जो दृश्य दिखाया है, उससे लोकतंत्र पुलिस स्टेट की ओर बढ़ता दिखाई पड़ रहा है|



गिरफ्तारी के लिए दूसरे राज्य की पुलिस का सहारा



कश्मीरी पंडितों पर बनी फिल्म कश्मीर फाइल्स पर केजरीवाल के बयान पर प्रदर्शन का नेतृत्व करने वाले भाजपा नेता तेजिंदर पाल सिंह बग्गा  को पंजाब पुलिस ने 6 मई को दिल्ली में उनके निवास से गिरफ्तार कर लिया। गिरफ्तारी जिस ढंग से अंजाम दी गई, उससे कानून के राज को ठेंगा दिखाया गया है।



दूसरे राज्य में जाकर आरोपी की गिरफ्तारी करने के लिए विधिवत प्रक्रिया निर्धारित है| दूसरे राज्य की पुलिस को उस राज्य के स्थानीय पुलिस थाने में सूचना देकर उन्हें साथ लेकर कार्यवाई की प्रक्रिया तय है, लेकिन पंजाब पुलिस ने बिना दिल्ली पुलिस को जानकारी दिए सुबह-सुबह सीधे तेजिंदर सिंह के निवास पहुंचकर जिस तरह से गिरफ्तारी की है, शायद उसके पीछे उनका यह डर रहा होगा कि जानकारी होने पर दिल्ली पुलिस कानून के अनुरूप काम करने के लिए कह सकती थी। तेजिंदर पाल के पिता की शिकायत पर प्रक्रिया का पालन न करने के कारण अपहरण का मामला दर्ज कर लिया गया। इसके बाद वही होना था, जो हो रहा है। दिल्ली पुलिस की सूचना पर हरियाणा पुलिस ने बग्गा को ले जाने वाली पंजाब पुलिस को रोक लिया। अब ये तय होना है कि बग्गा का अपहरण हुआ। दिल्ली पुलिस अपहरण तो पंजाब पुलिस गिरफ्तारी बता रही है। पुलिस की इस तरह की कानूनी पेचीदगियों को भी राजनीतिक नजरिए से ही देखा जाएगा।



ये आप की नई राजनीति है?



केजरीवाल और उनकी आम आदमी पार्टी लोकतंत्र, तिरंगा, जनस्वराज की नई राजनीति करने का दावा करती है| हालांकि जब से केजरीवाल दिल्ली में मुख्यमंत्री बने हैं, तब से ही उनके दल में नेताओं के बीच मतभेद और पार्टी छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी है। देश के प्रसिद्ध कवि कुमार विश्वास शुरू में केजरीवाल के साथ थे, लेकिन बाद में वे पार्टी से बाहर हो गए। पंजाब पुलिस ने कुमार विश्वास के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की है, उन्हें गिरफ्तारी से बचने के लिए न्यायिक संरक्षण लेना पड़ा। इसी तरह अलका लांबा के खिलाफ भी पंजाब पुलिस द्वारा एफआईआर दर्ज की गई। वे भी गिरफ्तारी से बचने के लिए कानूनी सलाह मश्विरा में लगी हुई हैं। 



सरकारी एजेंसियों के गलत इस्तेमाल का आरोप



देश में विभिन्न राज्यों द्वारा पुलिस और केंद्रीय जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के गंभीर आरोप लगते रहे हैं। कांग्रेस की सरकारों में ऐसे आरोप भारतीय जनता पार्टी द्वारा लगाए जाते रहे, अब एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप भाजपा सरकार के खिलाफ लगाए जा रहे हैं। हाल ही में गुजरात के विधायक जिग्नेश मेवाड़ी के खिलाफ असम में दर्ज  प्रकरण पर रातों-रात गिरफ्तारी हुई। इस मामले को वहां की स्थानीय अदालत ने फर्जी बताते हुए उन्हें जमानत दे दी। राज्य सत्ता के विरुद्ध लिखने वाले अनेक पत्रकारों के खिलाफ राजद्रोह के मुकदमे विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाते हैं।



उधर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निवास के सामने हनुमान चालीसा पढ़ने का आह्वान करने वाली अमरावती की सांसद नवनीत राणा पर राजद्रोह का केस लगाया गया। क्या इस कार्यवाही को न्यायोचित कहा जा सकता है? केंद्रीय मंत्री नारायण राणे की राजनीतिक कारणों से गिरफ्तारी क्या बदले की कार्रवाई नहीं कही जाएगी? क्या ये पुलिस का दुरुपयोग नहीं है? पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार की पुलिस द्वारा भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्या जैसे जघन्य अपराध में पुलिस पर राजनीति के इशारे पर कार्रवाई का आरोप भाजपा लगाती रही है।



केजरीवाल से उम्मीद थी, लेकिन...

 

राज्यों में पुलिस तंत्र के राजनीतिक दुरुपयोग की घटनाएं अक्सर प्रकाश में आती रहती हैं। केजरीवाल “ट्रेडिशनल” राजनेता नहीं है, वे आंदोलन से उठे हुए नेता है। उनसे यह उम्मीद नहीं की जाती थी कि वह भी वही बदला राजनीति चलाएंगे जो बाकी राजनीतिज्ञ करते रहे हैं।

 

पुलिस के राजनीतिकरण की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए ही सर्वोच्च न्यायालय में सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारियों द्वारा ये प्रकरण ले जाकर यह मांग की गई थी कि पुलिस को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस सुधार के लिए क्रांतिकारी निर्णय दिया था। लेकिन किसी भी राज्य में पुलिस सुधार पर सर्वोच्च न्यायालय की अपेक्षा के अनुरूप अभी तक कार्य नहीं किया जा सका है। अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग दलों के नेता, कार्यकर्ता, राजनीतिक कारणों से पुलिस के माध्यम से सताए जाते हैं। इसके बाद भी पुलिस सुधार लागू करने के प्रति राज्य सरकारों ने प्रतिबद्धता नहीं दिखाई। ऐसा लगता है कि लोकतांत्रिक लीडरशिप पुलिस को ही शासन का स्वरूप मानती है। पुलिस को कामकाज की दृष्टि से स्वायत्तता देने पर उन्हें अपनी शासन की ताकत कमजोर लगने लगती है|



कोई भी पार्टी दूध की धुली नहीं



उत्तर प्रदेश में ऐसे मामले आए हैं जहां पुलिस पर राजनीतिक इशारे पर लोगों के साथ अन्याय करने के आरोप लगे हैं| महाराष्ट्र में तो सरकार द्वारा विरोधियों के खिलाफ पुलिस के दुरुपयोग का मामला तेजी से चर्चा में है| क्या राजनीतिज्ञ  लोकतंत्र को पुलिस तंत्र में तब्दील करना चाहते हैं? अनेक न्यायिक प्रकरणों में ऐसे फैसले सामने आये हैं जहां न्यायाधीशों ने पुलिस की कार्यवाई को  कानून के राज का खुला खुला उल्लंघन माना है|



पुलिस और जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के मामले में किसी भी पार्टी को दूध का धुला नहीं माना जा सकता| जो भारतीय जनता पार्टी पहले कांग्रेस की सरकारों पर एजेंसियों के दुरुपयोग का आरोप लगाती थी उस पर ही आज ऐसे आरोप लग रहे हैं। विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ एजेंसियों द्वारा की जा रही कार्रवाइयों को देखकर कई बार ऐसा लगने लगता है कि जिस तरह के तथ्यों पर विरोधी दलों के नेताओं के खिलाफ एक्शन लिया जा रहा है, वह तो हर राज्य में हो रहा है। पंजाब चुनाव के समय प्रवर्तन निदेशालय ने तत्कालीन मुख्यमंत्री के परिवारजनों के खिलाफ छापेमारी की। रेत खनन के आरोप में कार्यवाई हुई| क्या देश के दूसरे राज्यों में रेत खनन माफिया सक्रिय नहीं है? उन माफियाओं को वहां की सरकारों का संरक्षण नहीं है? लेकिन केंद्र की सरकार क्या अपने समर्थक नेताओं और पार्टी के सत्ताधीशों के खिलाफ जांच एजेंसियों को काम करने से रोकती है? हमारा लोकतंत्र आज कैसा होता जा रहा है कि ट्विटर पर एक कमेंट करने से सरकारें आहत हो जाती हैं और गिरफ्तारियां तक कर लेती हैं। जन आंदोलन के मामलों में आजकल जैसी कार्रवाइयां हो रही हैं, वैसी तो स्वतंत्रता आंदोलन के समय भी शायद नहीं हुई थीं।



आम आदमी पार्टी एक नई राजनीति करने के लिए आगे बढ़ती हुई दिख रही थी। उन्हें जनता का समर्थन भी मिल रहा था। दिल्ली के बाद पंजाब में राजनीतिक मठाधीशों को परास्त करते हुए आप ने अपनी सरकार बनाई। बुद्धिजीवियों में एक आशा पैदा हुई कि शायद यह नई राजनीति बदलाव की दिशा में आगे बढ़ेगी। लेकिन बहुत जल्दी ही आम आदमी पार्टी ने यह साबित कर दिया कि उनकी राजनीति भी बदलाव नहीं, बल्कि बदले की राजनीति रहेगी। ऐसी ही राजनीति से तो देश के लोग ऊबे थे, तभी तो आम आदमी पार्टी को जनता ने समर्थन किया था।


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