डॉ. वेदप्रताप वैदिक। पांच राज्यों के इन चुनाव-परिणामों का असली अर्थ क्या है और राष्ट्रीय राजनीति पर उनका क्या असर पड़ेगा? पंजाब को छोड़ दें तो चार राज्यों— उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भाजपा को अपने प्रमुख विरोधी दलों से दुगुनी सीटें मिली हैं। पंजाब में उसका पिछड़ जाना और आप पार्टी का प्रचंड बहुमत पहले से अपेक्षित ही था। भाजपा की इस विजय का दूरगामी संदेश यह है कि 2024 के अगले आम चुनाव में भाजपा की विजय सुनिश्चित है। इस समय कोई भी अखिल भारतीय पार्टी ऐसी नहीं है कि जो भाजपा या मोदी के नेतृत्व को चुनौती दे सके। लगभग सभी प्रांतों में कांग्रेस की पराजय असाधारण रही है। जिन प्रांतों में आज भी कांग्रेस की सरकारें हैं, वे भी योग्य नेताओं के हाथ में होते हुए भी अब खिसक सकती हैं। इन राज्यों के राज्यपालों और गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के बीच चल रही मुठभेड़ कभी भी खतरनाक रूप धारण कर सकती है। अखिल भारतीय विपक्ष का इतना कमजोर होना भारतीय लोकतंत्र के लिए प्रसन्नता का विषय नहीं हो सकता है। यह असंभव नहीं कि भाजपा की यह प्रचंड विजय सारे विरोधी दलों को इतना डरा दे कि वे 2024 में एक संयुक्त मोर्चा खड़ा कर लें।
भाजपा ने पहली बार पूरे किए पांच सालः उ.प्र. में सपा ने छोटी-मोटी पार्टियों से गठबंधन करके अपनी शक्ति ढाई-तीन गुना बढ़ा ली है। इस विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व करने का साहस, हो सकता है कि, आप पार्टी करने की कोशिश करें। उसने कांग्रेस को पंजाब में पटकनी मारकर चमत्कारी विजय हासिल की है। पंजाब और उत्तराखंड में कांग्रेस के नेताओं का हारना देश भर के कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को अपने राष्ट्रीय नेताओं पर तरस खाने के लिए मजबूर करेगा। इस चुनाव ने यह भी सिद्ध किया है कि जातिवाद इस बार मात खा गया है। सपा ने पिछड़ी जातियों और मुस्लिमों को जोड़ने की जबर्दस्त कोशिश की थी। उसे थोड़ी-बहुत सफलता भी मिली लेकिन उ.प्र. में भाजपा सरकार के लोकहितकारी काम उक्त कोशिश पर भारी पड़ गए। किसान आंदोलन भी इस चुनाव पर ज्यादा प्रभाव नहीं डाल पाया। उ.प्र. में अब तीन-चार दशक बाद ऐसा हुआ है कि भाजपा सरकार ने अपना पांच साल का कार्यकाल पहली बार पूरा किया है और यह ऐसी पहली सरकार है, जो लगातार दूसरी बार भी राज करेगी।
भाजपा के मार्गदर्शकों को संभलने की जरूरतः भाजपा की यह प्रांतीय विजय उसके राष्ट्रीय मनोबल में चार चांद लगा देगी लेकिन यह मनोबल उसके ऊंट को किसी भी करवट बिठा सकता है। चुनाव-अभियान के दौरान मोदी और योगी की मुख-मुद्रा चिंतास्पद दिखाई पड़ती थी लेकिन यह प्रचंड विजय उनके अहंकार को ऐसा उछाल दे सकती है, जैसा कि 1971 के चुनाव के बाद इंदिरा गांधी को दिया था। भाजपा, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के मार्गदर्शक मंडल को इस खतरे से सावधान रहने की जरुरत है। भाजपा सरकार चाहे तो अपनी इस शेष अवधि में शिक्षा, चिकित्सा, रोजगार और विदेश नीति के क्षेत्र में ऐसे क्रांतिकारी काम कर सकती है, जो उसे 21 वीं सदी की संसार की सबसे बड़ी ही नहीं, दुनिया की सर्वश्रेष्ठ पार्टी बना सकती है।