बीस साल बाद उद्योग घोटाले की जांच में शायद सामने आए “सांच”

author-image
sootr editor
एडिट
New Update
बीस साल बाद उद्योग घोटाले की जांच में शायद सामने आए “सांच”

सरयूसुत मिश्र। 20 साल पहले हुए उद्योग घोटाले की जांच 20 साल बाद उच्च न्यायालय के आदेश पर फिर से होगी। यह खबर सिस्टम में घोटालों और घालमेल का ऐसा दृश्य बना रही है कि इस पर एक लोकप्रिय वेब-सीरीज बनाई जा सकती है। 1962 में “20 साल बाद” एक बहुत सफल फिल्म आई थी। इस फिल्म में नायक और नायिका को 20 साल बाद उनकी मंजिल मिल गई थी। फिल्म का एक बहुत मशहूर गाना था “कहीं दीप जले, कहीं दिल” यह गाना उद्योग घोटाले पर भी फिट होता है। घोटाला करने वालों के घर दीप जल रहे थे। तो मध्यप्रदेश के भोले-भाले लोगों के दिल जल रहे थे। अब 20 साल बाद भी उद्योग घोटाले की जांच को मंजिल मिल जाए तो शायद “स्मार्ट शासन” की यह तौहीन होगी। उद्योग घोटाले के किरदारों ने 20 सालों में जितनी तरक्की की है इतनी फिल्मी कहानियों में भी मुश्किल से देखने को मिलती है।  



कैसे भ्रष्टाचार के आरोपी को बनाया मुख्य सचिवः उद्योग घोटाला जिसमें मध्य प्रदेश की जनता के 719 करोड़ रुपए की लूट की गई थी उसे 20 साल तक ताले में बंद कर दिया गया था। इस घोटाले में  कुछ उद्योगपतियों के साथ मिलीभगत कर जनता का पैसा लुटाया गया था। घोटाले में एक तरफ कुछ उद्योगपति थे तो दूसरी तरफ राज्य उद्योग विकास निगम के एमडी के रूप में एसआर मोहंती की भूमिका थी। उद्योग घोटाले की जांच भले ही 20 साल तक रेंगती रही हो, लेकिन मोहंती शासन में सरपट दौड़ते रहे। आपने कभी सुना है कि घोटाले के आरोपी को सरकार सशर्त प्रमोशन देती है। नहीं सुना है तो सुन लीजिए, मध्यप्रदेश में एसआर मोहंती ने सशर्त पदोन्नति, एक पद पर नहीं, तीन-तीन पद पर हासिल की है। सचिव से प्रमुख सचिव और प्रमुख सचिव से अपर मुख्य सचिव की पदोन्नति मोहंती को सशर्त दी गई थी। न्यायिक प्रक्रिया के साथ खेलते हुए मोहंती ने राजनेताओं को साधा और सशर्त प्रमोशन हासिल किए। प्रदेश में सत्ता परिवर्तन के बाद कांग्रेस की 15 महीने की सरकार ने तो शायद मोहंती को ही  प्रशासन का मुखिया बनने के योग्य पाया और भ्रष्टाचार के आरोपी को मुख्य सचिव बना दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मुख्य सचिव बनाने के लिए जांच के जिन आदेशों को खारिज किया था उन्ही आदेशों को अस्वीकार करते हुए, उच्च न्यायालय ने जांच के निर्देश दिए। एक अफसर ने इतने बड़े घोटाले में आरोपी होने के बावजूद किन-किन तरीकों से राजनेताओं को खुश करते हुए प्रशासन का सिरमौर बनने में सफलता हासिल की। यह कहानी सुनकर ऐसा लगता है कि ओटीटी पर कोई वेब सीरीज चल रही है। 



नेताओं द्वारा संवैधानिक शपथ का उल्लंघन जनभावनाओं का अपमान हैः उच्च न्यायालय के निर्देश पर उद्योग घोटाले की जांच होगी। दोषी दंडित भी होंगे, लेकिन जिन्होंने आरोपी को मुख्य सचिव का पद दिया, क्या उन पर भी गाज गिरेगी? वैसे तो राजनेताओं को जनता की अदालत में सजा मिल ही जाती है। लेकिन फिर भी शासन के साथ बदनियती से स्वार्थ पूर्ति के नजरिए के लिए काम करना न केवल संवैधानिक शपथ का उल्लंघन है, बल्कि जन भावनाओं का खुला अपमान है। कोई निम्न श्रेणी लिपिक भी यदि किसी घोटाले में  रिश्वतखोरी या भ्रष्टाचार में लिप्त पाया जाता है तो उसको प्रमोट नहीं किया जाता। उसका प्रमोशन तब तक के लिए रोक दिया जाता है जब तक भ्रष्टाचार के मामले की जांच पूरी होकर निष्कर्ष सामने नहीं आ जाता। जो अफसर प्रशासन के मुखिया हो उसके मामले में भ्रष्टाचार का केस, वापस लेने वाले नेता का दृष्टिकोण, अधिकारी पर कृपा भाव नहीं माना जा सकता। इसके पीछे क्या कोई मिलीभगत और सरकारी धन के गोलमाल का षड्यंत्र हो सकता है? आईएएस कैडर के प्रतिभाशाली और योग्य अधिकारियों को लूप लाइन में डालना और घोटाले के आरोपी को प्रशासन का मुखिया बनाना कोई दया नहीं, बल्कि भागीदारी की भूमिका का शक पैदा करता है।  



ब्यूरोक्रेसी के हाथ में खेलने लगते हैं नेताः सुशासन पर तथ्य खोजने पर यह जानकारी मिली कि सुशासन व्यक्ति को भ्रष्टाचार और लालफीताशाही से मुक्त कर प्रशासन को “Smart” बनाता है। स्मार्ट शासन का मतलब S सिंपल, M  मोरल(नैतिक),  A अकाउंटेबल(उत्तरदाई), R रिस्पांसिबल(जिम्मेदार,योग्य) और T ट्रांसपेरेंट(पारदर्शी) बनाता है। आजकल स्मार्ट का मतलब S फॉर शेमलेस, M फॉर मैनिपुलेटिव, A फॉर एरोगेंट, R फॉर रेकलेस और T फॉर टेन्टेड हो गया है। मध्य प्रदेश में 20 साल पहले कांग्रेस की सरकार थी, राज्य उद्योग विकास निगम के एमडी के रूप में एसआर मोहंती ने कुछ उद्योगपतियों से सांठगांठ कर जनता के 719 करोड़ रूपये 29 उद्योगों को लोन के नाम पर बांटे गए जो ब्याज सहित करीब 4000 करोड़ हो गए हैं। यह घोटाला सामने आने के बाद कुछ पैसे जमा हुए। कुछ लोगों ने ऐसे चेक दिए जो कैश नहीं हुए। मतलब जनता का पैसा खुर्दबुर्द हुआ। जहां तक स्मरण है मोहंती के विरुद्ध महिला बाल विकास  से जुड़ा हुआ मामला भी जांच में था उसे भी रफा-दफा किया गया। जनता जो बड़े विश्वास और आशा के साथ अपने जनप्रतिनिधियों को चुनती है वह कैसे ब्यूरोक्रेसी के हाथ में खेलने लगते हैं। मोहंती का मामला इसका सबसे प्रबल उदाहरण है। प्रदेश की जनता के लिए यह जानना जरूरी है कि जिस मोहंती ने मुख्य सचिव के रूप में राज्य के प्रशासन  को लीड किया उसकी रिटायरमेंट के बाद न्यायालय के आदेश पर जांच  कैसे हो रही है। स्थान बदलने से व्यक्ति नहीं बदल जाता। शासन प्रशासन की पवित्रता पर उठने वाले सवालों की भले ही आवाज आज बुलंद ना हो, लेकिन बर्दाश्त करने की भी एक सीमा होती है। इसी मध्यप्रदेश में मतदाताओं ने गुस्से में किन्नर जनप्रतिनिधियों का भी चुनाव किया था। ऐसा गुस्सा अभी भी है ऐसा जनता के बीच जाने पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। रोटी कपड़ा और मकान के लिए जूझ रही जनता को नासमझ समझना बड़ी नासमझी होगी। “यह पब्लिक है सब जानती है”।


कमलनाथ Kamal Nath CONGRESS कांग्रेस एमपी MP BJP बीजेपी भाजपा Saryusut Mishra politician scam सरयूसुत मिश्र घोटाला ब्यूरोक्रेसी राजनेता मोहंती Bureaucracy Mohanty