यूएन का मूलनिवासी घोषणा पत्र, धर्मांतरण के जरिए नए मुल्क बनाने का टूल

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यूएन का मूलनिवासी घोषणा पत्र, धर्मांतरण के जरिए नए मुल्क बनाने का टूल

लक्ष्मण राज सिंह मरकाम. संयुक्त राष्ट्र (UN) के मूलनिवासी घोषणा पत्र में 46 उपबंध हैं, जिनमें से कई राष्ट्र विरोधी और असंवैधानिक हैं। बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान में 448 उपबंध हैं, जिसमें 100 से अधिक केवल जनजातीय कल्याण सम्बन्धी हैं। संयुक्त राष्ट्र के धार्मिक स्वतंत्रता समूह,जो वेटिकन स्पेशल रिपोर्टाज के अधीन है, उसके कहने पर विश्व मजदूर संगठन ने धार्मिक स्वतंत्रता (धर्मांतरण) के लिए इस घोषणा पत्र को बनाया, ताकि पूर्वी तिमोर की तरह, धर्मांतरण करके नए देश बना सकें। भारत के नागालैंड में यूएन यही चाहता है, इसलिए उसने भारत की संप्रभुता के विरुद्ध नागालैंड को UNPO (The Unrepresented Nations and Peoples Organization) यानी गैर-प्रतिनिधित्व वाले राष्ट्र और जन संगठन का सदस्य मान लिया है। इसमें जाफना और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) को पहले से सदस्य बनाया हुआ है।



यूएन का मूलनिवासी घोषणा पत्र, नए मुल्क बनाने का टूल



मैंने यूएन के मूलनिवासी घोषणा पत्र व भारत के आधिकारिक मत को अपनी पुस्तक में विस्तार से समझाया है। यह ISBN क्रमांक वाली पुस्तक है, जिसके सभी तथ्य रेफ्रेंस के साथ हैं। अगर आप UN की मूलनिवासी की परिभाषा और उसके उपबंधों को ध्यान से पढ़ें, तो पता चलेगा ये किसी भी देश से अलग कर नए मुल्क बनाने का टूल हैं। कन्वेंशन 169 भी इसी लिए था,जिसे भारत ने स्वीकार नहीं किया। अगर हम आज इन नई पहचानों के आधार पर सभी पहचानों को नए-नए राज्य देने लगें तो भारत में गृहयुद्ध हो जाएगा। यूएन की कई संस्थाएं राष्ट्रों के आंतरिक मामलों में धार्मिक हस्तक्षेप करती हैं, यह मूलनिवासी का टूल भी उसी के लिए है।



अफ्रीकी देशों में अलग धार्मिक पहचान के नाम पर नरसंहार



अब जबकि भारत की सर्वोच्च सत्ता पर 'आदिवासी' विराजमान हैं, और देश में साल का एक दिन राष्ट्रीय आदिवासी गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो यूएन के इस मूलनिवासी घोषणा पत्र को कचरे में फेंक देना चाहिए। इसके साथ यूएन में यह पूछना चाहिए कि, युगांडा या अफ्रीकी देशों में अलग पहचान (धार्मिक) के कारण जो नरसंहार हो रहे हैं उसके लिए UN ने अब तक एक भी डॉलर क्यों खर्च नहीं किया है।



संविधान से बड़ा कोई दस्तावेज नहीं, देश से बड़ा कोई दिन नहीं



भारत में राष्ट्र के निर्णय जनसंख्या के मूड पर आधारित नहीं हैं, देश की एकता और अखण्डता व संप्रभुता की रक्षा के लिए हैं। जिन्हें 9 अगस्त पर डीजे पर नाचना है नाचें। देश की अखंडता को कमजोर करने वाले पहले विदेशी षड़यंत्रों वाले यूएन के मूलनिवासी घोषणा पत्र को पढ़ लें पहले और फिर किसी को ज्ञान दें, संविधान से बड़ा कोई दस्तावेज नहीं, देश से बड़ा कोई दिन नहीं।



15 नवंबर को असंख्य आदिवासी वीरों के बलिदान का स्मरण करें



कुछ नए पुछल्ले जो सोशल मीडिया पर बिना दो अक्षर पढ़ें, अपने उदर विकारों को सार्वजनिक कर रहे हैं, वो पहले देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को समझने लायक़ हो जाएं। ऐसे लोग साथ में छुट्टियों की सूची भी लगा रहे हैं, जिसमें नाचने के लिए छुट्टी चाहिए, वो 60 ऐच्छिक अवकाशों में से एक 9 अगस्त पर अपने कार्यालय से छुट्टी ले सकता है और चौराहे पर चिल्ला-चिल्लाकर नाच सकता है। भारत ने आजादी के लगभग 75 सालों बाद 15 नवम्बर के दिन बाबा बिरसा मुंडा के स्वधर्म और स्वराज के योगदान के लिए एक गौरव पूर्ण अवकाश दिया है, उस दिन गर्व से शीश उठाएं और तिरंगे को सलाम करते हुए उन असंख्य जनजाति आदिवासी वीरों के बलिदान निमित्त स्मरण करें।  



(लेखक मुख्यमंत्री कार्यालय में ओएसडी एवं विचारक हैं)


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