शाह के सामने नतमस्तक महादजी के वंशज

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Rakesh Achal
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शाह के सामने नतमस्तक महादजी के वंशज

महादजी सिंधिया एक जमाने में पेशवाओं के सबसे बड़े लड़ाका थे। उन्होंने अपने दुश्मनों के खिलाफ कभी घुटने नहीं टेके, शान से लड़ाइयां लड़ीं और जीतीं, लेकिन अब उनके खानदान के मौजूदा उत्तराधिकारी न सिर्फ लड़ना भूल गए हैं, बल्कि उन्होंने घुटने टेकना तक सीख लिया है। वे ऐसे लोगों की श्रीमंती करने लगे हैं, जो किसी भी रूप में सिंधिया की विरासत के आगे नहीं टिकते। इतिहासकार कीनी के अनुसार महादजी सिंधिया 18वीं सदी में भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे महानतम सेनापति थे। महानतम सरदार जी उन्हीं की दम पर मराठा साम्राज्य पानीपत की तीसरी लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान कर सके थे। उनके सहयोग के बिना मराठा साम्राज्य का पुनरुत्थान संभव ही नहीं था।





पिछले दिनों ग्वालियर में सिंधिया के जय विलास पैलेस में आम जनता ने ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनकी बुआ यशोधरा राजे सिंधिया को अपने-अपने बच्चों के साथ केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के सामने हाथ बांधे खड़े देखा। ग्वालियर में हवाई अड्डा विस्तार की योजना का शिलान्यास करने आए शाह के स्तुतिगान में सिंधिया लगभग चीखते हुए देखे गए। उत्तेजना में उन्होंने शाह को आधुनिक लौह पुरुष तक कह दिया। सिंधिया शाह को आग्रह पूर्वक अपने महल भी ले गए और उनका पलक पांवड़े बिछाकर रेड कार्पेट स्वागत भी किया। तुरही बजी, महाराष्ट्र के बैंड बाजों ने केसरिया ध्वज के साथ शाह का स्वागत किया।





दरअसल, कुछ साल पहले कांग्रेस छोड़ आए ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी बीजेपी में अपने आपको असुरक्षित समझ रहे हैं। हालांकि बीजेपी में उनके अनेक गॉडफादर हैं, किन्तु वे शाह से आतंकित नजर आते हैं। उन्हें हमेंशा ईडी का भय सताता रहता है। अपने बेटे के राजनीति में प्रवेश का संकट भी उनके सामने है। बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता दो साल बाद भी सिंधिया को अपना नेता मानने को राजी नहीं हैं, ऐसे में उनकी विवशता है कि वे केंद्र में मोदी-शाह की जोड़ी की छत्रछाया में खड़े रहें।





राजनीति में सिंधिया खानदान की ये चौथी पीढ़ी है, किन्तु राजमाता विजयाराजे ने जिस शान से अपनी पारी पूरी की वो बेमिसाल है। वे अपने समय के मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पंडित द्वारिका प्रसाद मिश्र से टकराईं, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से टकराईं लेकिन उन्होंने किसी को अपने महल में बुलाकर पलक पांवड़े नहीं बिछाए। वे आपातकाल में जेल गईं लेकिन झुकीं नहीं।





राजमाता के पूत माधवराव सिंधिया ने राजनीति में आने से पहले अपनी मां की तरह विपक्ष से शुरुआत की। लेकिन जब कांग्रेस में आए तो कांग्रेस से कभी विद्रोह नहीं कर सके, उन्हें कांग्रेस ने ही निकाला लेकिन जैसे ही मौका मिला, वे वापस कांग्रेस में लौट गए। उनके जमाने में भी सोनिया गांधी महल में आईं लेकिन उनके सामने भी माधवराव सिंधिया मित्रवत खड़े नजर आए थे। हाथ बांधे खड़े कभी नहीं हुए।





अपने पिता के आकस्मिक निधन के बाद कांग्रेस से अपना राजनीतिक सफर शुरू करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया दो दशक तो कांग्रेस में आनंद से रहे। अंत में पार्टी के आंतरिक दबावों को झेल नहीं पाए और ढाई साल पहले अपने फौज-फांटे के साथ बीजेपी में शामिल हो गए। बीजेपी ने हारे हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया को राज्यसभा की सदस्यता और केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर उनके छत्र-चंवर वापस तो कर दिए लेकिन वे आज भी बीजेपी में अपने आपको स्थापित नहीं कर पाए हैं। उन्हें कभी संघ के दफ्तर में आम कार्यकर्ता बनना पड़ता है तो कभी बीजेपी के दफ्तर में।





ज्योतिरादित्य सिंधिया आज भी मध्यप्रदेश बीजेपी के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं। उनके सामने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर  हैं, कैलाश विजयवर्गीय हैं, नरोत्तम मिश्रा हैं, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह तो हैं ही। ये सब मिलकर सिंधिया के लिए कदम-कदम पर कांटें बोते आ रहे हैं। यहां तक की बीजेपी में सिंधिया की पसंद का न जिलाध्यक्ष है और न पिछले दिनों उनकी पसंद को महापौर चुनाव में तवज्जो दी गई। हारकर अब वे अमित शाह की शरण में गए हैं। शाह के स्वागत में मध्य्प्रदेश में अब तक का सबसे बड़ा 'शो' सिंधिया ने ही किया। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में शाह सिंधिया के लिए कितने उपयोगी साबित होते हैं। याद रहे कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की ससुराल गुजरात में है और वे इस समय राजनीति पर हावी गुजरात लॉबी से जुड़कर ही अपना बेड़ा पार करने की जुगत में लगे हैं।





शाह भी शायद सिंधिया का वैभव अपनी आंखों से देखकर विस्मित हुए हों। मुमकिन है कि वे महल का नमक चखकर खुश हो जाएं और ये भी मुमकिन है कि उनके मन में ईर्ष्या भाव भी पैदा हो जाए। आने वाले दिनों में गुजरात और हिमाचल के चुनाव में सिंधिया का कितना और कैसा इस्तेमाल होगा, इससे भी भविष्य के संकेत मिल सकते हैं। उन्हें अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में शिवराज सिंह चौहान की जगह नेतृत्व सौंपा जाएगा या नहीं ये भी शाह की कृपा पर निर्भर है।



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