सिवनी कार्यकाल के दौरान एक बार मुझे आठ दस दिन के लिए शासकीय दौरे पर जाना पड़ा। दौरा लंबा होने के कारण पत्नी शकुन व बेटी को भी साथ ले गया। इस दौरान हमारा घर बंद ही था। घर की सुरक्षा व देखरेख के लिए कोई कर्मचारी भी नहीं था। इस दौरान वेंटिलेटर से घुस कर चोर ने घर के भीतर की सभी पेटियों की छानबीन कर डाली। उसे कोई मूल्यवान सामान तो मिला नहीं। जाते-जाते वह इंडियन फॉरेस्ट इंस्टीट्यूट देहरादून की ट्रेनिंग के समय मिला बंद कालर का काला कोट ले कर निकल गया। कोट में टाइगर हेडयुक्त चांदी के बटन लगे हुए थे। कोई बड़ी चोरी नहीं हुई थी इसलिए पुलिस में शिकायत करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। फिर भी हमने सोचा कि पुलिस में शिकायत दर्ज करा दी जाए, ताकि चोर पकड़ा जाए और भविष्य में कोई चोरी करने की हिम्मत न दिखा पाए। इसके साथ ही वह कोट जो चोरी हुआ था वह वापस मिल जाए। इस कोट से मुझे विशेष लगाव था। पुलिस थाने में चोरी की रिपोर्ट दर्ज कराने का विपरीत प्रभाव हुआ। चोरी हुआ कोट तो मिल नहीं पाया, उल्टे मेरे पास जो अर्दली काम करता था, उसे रोज पुलिस थाने में बुला कर दिन भर बैठा लिया जाता। इससे व्यवस्थाएं अस्त व्यस्त हो गई। अर्दली को मुक्त करवाने के लिए मुझे राजस्व विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का सहयोग लेना पड़ा। उनकी सहायता से अर्दली को पुलिस से मुक्ति मिल पाई।
रूट पैरासाइट होता है चंदन का पेड़
सिवनी फॉरेस्ट डिवीजन में सागौन और अन्य प्रजातियों के मूल्यवान जंगल थे। मंडला जिले की सीमा पर स्थित नर्मदा नदी के किनारे और रुखड़, कुरई, करमाझिरी क्षेत्रों में सागौन के उच्च गुणवत्ता के जंगल बहुतायत से थे। इस फॉरेस्ट डिवीजन की विशेषता यह है कि अरी रेंज में चंदन वन भी काफ़ी बड़े क्षेत्र में फैल चुका है। चंदन के कुछ पौधे काफ़ी समय पहले लगाए गए थे जो धीरे.धीरे बढ़ कर विकसित हुए और स्वभाविक रूप से उनसे नए पौधे तैयार होते चले गए और इन्होंने चंदन वन का रूप ले लिया। चंदन का पेड़ एक रूट पैरासाइट होता है, जो स्वयं अपना भोज्य पदार्थ तैयार ना कर अन्य पेड़ों की जड़ों से उसे प्राप्त करता है। बड़े पेड़ों के नीचे बांस के घने भिरे अधिकांश जंगल क्षेत्र में पाए जाते हैं। घने व मूल्यवान जंगल क्षेत्रों में काम करने का आनंद ही अलग होता है।
टाइपिंग गलती के कारण मिली चेतावनी
तत्कालीन फॉरेस्ट कंजरवेटर जबलपुर डीसी शर्मा एक एक्स आर्मी अफसर थे। वे बाद में फॉरेस्ट महकमे में नियुक्त हुए। डीसी शर्मा एक अनुशासन प्रिय व ज्यादा घुलने मिलने में विश्वास न रखने वाले अधिकारी थे। उन्हें ताश का खेल ब्रिज खेलने का बहुत शौक था। उनकी पत्नी भी ब्रिज खेलती थीं। मेरी दैनिक कार्य की डायरी, प्रतिमाह डीएफओ के माध्यम से उन्हें अवलोकनार्थ भेजी जाती थी। उन्होंने मेरी डायरी का अवलोकन किया जिसमें कुछ टाइपिंग त्रुटियां रह गई थीं, जिन्हें डायरी प्रस्तुत करने के पहले ठीक नहीं कर पाया था। इस डायरी पर फॉरेस्ट कंजरवेटर जबलपुर ने लिख कर भेजा कि डायरी में टाइपिंग की गलतियां है, जो एसीएफ की असावधानी दर्शाता है, इसलिए उन्हें भविष्य के लिए चेतावनी दी जाती है। इस चेतावनी का असर यह हुआ कि भविष्य में जब भी डायरी भेजता तो भेजने से पहले टाइपिंग की सभी गलतियों को स्वयं ठीक कर लेता।
बारिश में गीली मिट्टी में चलते हुए ग्रेजिंग की चेकिंग
बरसात का समय था तब मुझे निर्देश दिए गए कि केदारपुर जाकर ग्रेजिंग चेकिंग करूं। उस समय घरेलू पालतू पशुओं की वनों में चराई के लिए कुछ शुल्क लेकर रवन्ना अर्थात रसीद जारी की जाती थी। वनों में मवेशी चराने के समय इन रवन्नों को चरवाहे टीन के ढक्कन लगे हुए गोल लंबे डिब्बे में रख अपनी पीठ पर लटका कर रखते थे, ताकि वर्षा एवं धूप से रवन्ने सुरक्षित रह सकें और चेकिंग के समय उन्हें प्रस्तुत किया जा सके। चेकिंग के दौरान जंगल में चर रहे मवेशियों की संख्या रवन्नों में दर्शाए गए मवेशियों की संख्या से मिलान किया जाता था। अगर उस में अंतर पाया जाता तो अतिरिक्त पाए गए मवेशियों के लिए शुल्क अलग से वसूल किया जाता था। केदारपुर घंसौर से कच्चे जंगल मार्ग पर लगभग पंद्रह बीस किलोमीटर दूर स्थित है। वर्षा ऋतु में कच्चे जंगल के रास्तों पर मिट्टी गीली होने के कारण कीचड़ हो जाता है, जिसके बूट्स के नीचे चिपकने से चलने में बहुत कठिनाई होती है। फिर भी वरिष्ठ अधिकारियों के निर्देशानुसार काफ़ी कठिनाइयों का सामना करते हुए पैदल केदारपुर गया और ग्रेजिंग चैकिंग का काम पूरा किया। सामान्यतः वर्षा ऋतु में फॉरेस्ट अधिकारियों का दौरा इन्हीं कठिनाइयों के कारण कम हो जाता है। वर्षा ऋतु में जैसे ही फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में शाम को पेट्रोमैक्स जलाए जाते थे वैसे ही चारों ओर से कीड़ों का प्रहार शुरू हो जाता और पूरे रेस्ट हाउस और बाथरूम में चारों ओर से कीड़े ही कीड़े भर जाते थे।
डीएफओ के निर्देश की अवज्ञा
सेंट्रल बोर्ड ऑफ फॉरेस्ट्री की टीम का पचमढ़ी से निकल कर सिवनी का दौरा होने वाला था। इस टीम में देहरादून में मेरे इंस्ट्रक्टर रहे यूपी कैडर के अधिकारी एनडी बचखेती भी आने वाले थे। डीएफओ साहब चाहते थे कि इस टीम के दौरे के समय सिवनी में ना रहूं, इसलिए उन्होंने बाहर का कुछ काम बता कर दौरे पर जाने के निर्देश दिए। मेरा धैर्य जवाब देने लगा था। मैं डीएफओ साहब के निर्देश का पालन न करते हुए दौरे पर नहीं गया। डीएफओ साहब को स्पष्ट रूप से कह दिया कि एनडी बचखेती से मिलने के बाद ही मेरा दौरे पर जाना संभव हो पाएगा। डीएफओ साहब मेरे तेवर को देख कर शांत ही रहे।
पिछली तारीख में हस्ताक्षर करने का खेल
फॉरेस्ट डिवीजन आफिस का कंजरवेटर द्वारा वार्षिक निरीक्षण प्रतिवर्ष किए जाने और दो निरीक्षण के बीच के समय में फॉरेस्ट डिवीजन आफिस का स्वयं डीएफओ द्वारा निरीक्षण करने के निर्देश थे। जबलपुर कंजरवेटर साहब फॉरेस्ट डिवीजन का निरीक्षण करने आने वाले थे, लेकिन उस समय तक डीएफओं साहब ने स्वयं के आफिस का बीच के समय में निरीक्षण नहीं किया था। डीएफओ के निर्देश के अनुसार मध्य समय के निरीक्षण की एक रिपोर्ट का प्रारूप आफिस के बड़े बाबू व कर्मचारियों द्वारा तैयार किया गया। रिपोर्ट को ले कर बड़े बाबू मेरे पास आए और मुझसे कहा कि रिपोर्ट में आप पहले की तारीख डाल कर हस्ताक्षर कर दीजिए। मन में शंका हुई कि यदि पुरानी तारीख डाल कर हस्ताक्षर कर दूंगा और बाद में उस समय की कोई बड़ी गलती सामने आती है तो इसके लिए मैं सीधे रूप से जिम्मेदार ठहरा दिया जाऊंगा। मैंने पिछली तारीख में हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया। डीएफओ साहब भी यह काम कर सकते थे लेकिन वे यह काम मुझसे ही करवाना चाह रहे थे। मेरे मन में यह प्रश्न उठा कि डीएफओ का सहायक होने के नाते उसके आफिस का निरीक्षण कैसे कर सकता हूं? मेरे इंकार करने पर डीएफओ साहब नाराज हो गए। उनकी खीझ व नाराजगी स्पष्ट रूप से दिखाई दे रही थी लेकिन इसके आगे वे कुछ कर भी नहीं सकते थे।
( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं)