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विचार मंथन : एक फॉरेस्ट ऑफिसर की डायरी कुएं में कूदकर कलेक्टर ने एक व्यक्ति को डूबने से बचाया
3/18/23, 1:18 PM (अपडेटेड 3/18/23, 7:12 PM)

बैतूल में डीएफओ रहने के दौरान वहां के कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर से जुड़ा हुआ एक रोचक किस्से को कभी भूल नहीं पाऊंगा। पांढुर्ना क्षेत्र से पीडब्लूडी मिनिस्टर बने माधव लाल दुबे का बैतूल जिले में सघन दौरा हुआ। इस दौरे में मंत्री जी गांवों का भ्रमण जिला स्तर के अध‍िकारियों के साथ कर ग्रामीणों की समस्याओं का निराकरण मौके पर ही करने का प्रयास कर रहे थे। मंत्री जी की एक सभा शाम के समय हो रही थी जिसमें वे लोगों को संबोध‍ित कर रहे थे। सभा में शामिल एक व्यक्त‍ि सभा स्थल पर बने हुए कुएं के भीतर अचानक गिर गया। कुएं का पैराफिट लगभग जमींदोज हो चुका था और वह व्यक्ति उसे देख नहीं पाया। घटना स्थल पर उपस्थि‍त लोग कुएं के आसपास चि‍ल्लाते हुए तमाशबीन बने हुए थे। कोई भी व्यक्ति कुएं में गिरने वाले व्यक्ति को बचाने का प्रयास नहीं कर रहा था। कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर चुपचाप इस घटनाक्रम को देख रहे थे। जब उन्होंने देखा कि कोई भी व्यक्ति आगे बढ़कर बचाने का प्रयास नहीं कर रहा है तब उन्होंने धीरे से अपना पेंट और शर्ट उतारकर रखे और चड्डी-बनियान पहने हुए कुएं में कूद पड़े और डूब रहे व्यक्त‍ि को सकुशल बाहर निकालने में सफल रहे।


अखबार में छपा कलेक्टर सुर्ख‍ियां बटोरने के लिए कुएं में कूदे


जैसे ही मंत्री जी को इस घटना की सूचना मिली वैसे ही उन्होंने स्वयं को बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण दर्शाते हुए माइक पर घोषणा कर कलेक्टर को मंच पर आमंत्र‍ित कर जनसमूह के सामने हाथ मिलाकर फोटो ख‍िंचवाई। अगले दिन अखबारों में कलेक्टर की प्रशंसा तो नहीं छपी, लेकिन ये अवश्य छपा कि कलेक्टर ख्याति अर्जित करने और सुर्ख‍ियां बटोरने के लिए कुएं में कूदने से परहेज नहीं करते। कलेक्टर के सराहनीय प्रयास को मंत्री जी ने कोई तवज्जो नहीं दी और ना ही शासन को उनको पुरस्कृत करने का कोई प्रस्ताव भेजा।


धाराखोह से बैतूल तक छोटी-सी रेल यात्रा


इटारसी-नागपुर रेलवे लाइन पर धाराखोह नाम का एक छोटा-सा स्टेशन है। ये स्टेशन उस समय सुरम्य जंगलों के बीच था। रेलवे स्टेशन के सामने जंगल से भरा-पूरा ऊंचा पहाड़ था। इस पहाड़ पर फॉरेस्ट रेस्ट हाउस बना हुआ था। इस छोटे से स्टेशन पर प्रत्येक ट्रेन कुछ देर के लिए रुकती थी। स्टेशन पर एक अतिरिक्त इंजन लगाने के बाद ही ढलान वाली रेलवे लाइन पर ट्रेन आगे बढ़ पाती थी। कई लोग धाराखोह से बैतूल तक की छोटी-सी यात्रा आनंद की अनुभूति लेने के लिए करते थे। उस समय धाराखोह स्टेशन का प्लेटफॉर्म काफी नीचे हुआ करता था। लोगों को ड‍िब्बों में चढ़ने के लिए ज्यादा प्रयास करने पड़ते थे। सक्षम लोग जीटी एक्सप्रेस की डाइनिंग कार में सीधे चढ़ जाते थे। डाइनिंग कार में चढ़ने वालों को अंग्रेजों के समय की चलन वाली ड्रेस और कुल्ले वाली पगड़ी पहने वेटर भोजन परोसते थे। यात्री चलती हुई ट्रेन से बाहर के घने जंगल का आनंद लेते थे। एक सुरंग से जैसे ही ट्रेन निकलती थी तो दूसरी सुरंग आ जाती थी। इस प्रकार छोटी-सी यात्रा में 6-7 सुरंग गुजरती थीं। जंगल में पहाड़ों को काटकर ये सुरंग बनाई गई थीं।


ऑड‍िट पार्टी का रुतबा और खौफ


नॉर्थ बैतूल ड‍िवीजन में एक सहायक वन संरक्षक कार्यालय कार्यरत था। महालेखाकार (एजी ऑड‍िट) कार्यालय ग्वालियर से सहायक लेखाध‍िकारी के नेतृत्व में एक ऑड‍िट पार्टी का प्रतिवर्ष ऑड‍िट करने का नियम था। ये ऑड‍िट टीम डीएफओ द्वारा किए गए आय-व्यय का बारीकी से परीक्षण कर उसमें पाई गईं अनियमिततओं का लेखा-जोखा तैयार कर महालेखाकार कार्यालय ग्वालियर को प्रस्तुत करती थी। महालेखाकार कार्यालय डीएफओ को प्रतिवेदन भेजकर संतोषजनक उत्तर प्राप्त करती थी। उत्तर संतोषजनक प्राप्त ना होने पर ऐसी अनियमितता को भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक यानी केग में शामिल कर विधानसभा में प्रस्तुत किया जाता था। ऑड‍िट द्वारा दी गई विपरीत रिपोर्ट डीएफओ के कैरियर में बाधक बनती थी। इस तरह की ऑड‍िट टीम जब भी शासकीय ऑफ‍िसों में आती तब उसका विशेष ध्यान रखा जाता। ये सुन‍िश्च‍ित किया जाता कि उन्हें ठहराने, आने-जाने और घूमने फिरने में कोई कठिनाई का सामना ना करना पड़े। यदि उनकी आवभगत में कोई कमी रह जाती तो वे नाराज होकर डीएफओ के विरुद्ध विशेष रूप से इस तरह की रिपोर्ट तैयार कर प्रस्तुत करते जिसका उत्तर देना डीएफओ के लिए टेढ़ी खीर हो जाता।


ऑडिट पार्टी को रात में बांधना पड़ा बोरिया-बिस्तर


इस तरह की एक ऑड‍िट टीम बैतूल आई और डीएफओ ऑफ‍िस का ऑड‍िट करने से पूर्व एक रेंज ऑफ‍िस का ऑड‍िट करने का निश्चय किया। निर्णय के अनुसार ऑड‍िट टीम कोरबा रेंज का ऑड‍िट करने कोरबा पहुंची। उनके ठहराने की व्यवस्था फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में रेंज ऑफ‍िसर कोरबा द्वारा की गई। रेंज ऑफ‍िस में ऑड‍िट कार्य सुचारू रूप से किया जा रहा था। उस दौरान सहायक वन संरक्षक महाशय बिना किसी पूर्व सूचना के रात में कोरबा पहुंच गए। वहां पहुंचते ही उन्होंने रेंज ऑफ‍िसर को निर्देश दिया कि उनके ठहरने की व्यवस्था तत्काल रेस्ट हाउस में की जाए। रेंज ऑफ‍िसर ने विनम्रतापूर्वक समझाया कि रेस्ट हाउस में ऑड‍िट पार्टी ठहरी हुई है और रात का समय है, इसलिए आप के ठहरने की व्यवस्था अन्य स्थान पर तुरंत कर देता हूं। सहायक वन संरक्षक महाशय ने स्पष्ट रूप से रेंज ऑफ‍िसर को निर्देश दिए कि वे ठहरेंगे तो फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में ही किसी अन्य स्थान पर नहीं। वे किसी अन्य स्थान पर जाने को तैयार ही नहीं थे। रेंज ऑफ‍िसर ने उन्हें समझाने का भरसक प्रयास किया कि रात के समय ऑड‍िट पार्टी के सदस्यों को परेशान करना उचित नहीं होगा। महाशय अपनी जिद पर अड़े रहे। उन्होंने कहा कि ऑडिट रेंज ऑफ‍िसर और डीएफओ का ही होगा जिससे उन्हें कुछ लेना देना नहीं। महाशय ऑड‍िट पार्टी को रेस्ट हाउस से रात में ही बाहर करने के निर्देश देने लगे। महाशय की हठधर्मिता के चलते ऑड‍िट पार्टी को रात के समय बोरिया-बिस्तर बांध कर फॉरेस्ट रेस्ट से बाहर निकलना पड़ा। पूरी ऑड‍िट पार्टी रात के समय रेस्ट हाउस से बाहर निकाले जाने से गुस्से में तमतमा उठी। ऑड‍िट पार्टी को समझाने में मुझे विशेष प्रयास करने पड़े। मेरी मनमनुहार का असर ये पड़ा कि सहायक लेखाध‍िकारी और ऑड‍िट पार्टी के अन्य सदस्यों की नाराजगी काफी हद तक दूर हो गई।


गर्म पानी में हाथ डालने की सजा


सहायक वन संरक्षक महाशय का एक किस्सा छ‍िंदवाड़ा का भी है। ठंड के दिनों में जब ये महाशय खुटामा फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में सूचना देने के उपरांत रात के समय पहुंचे। बाथरूम में गर्म पानी उपलब्ध ना होने पर और ठंडा पानी पाकर वे आग-बबूला हो गए। रेस्ट हाउस से बाहर आकर उन्होंने पानी गर्म कराया और इसके बाद वहां उपस्थि‍त स्टाफ और मजदूरों को उस गर्म पानी में हाथ डालकर बैठने के निर्देश देते हुए कहा कि तुम लोगों को ये सजा इसलिए दी जा रही है, ताकि भविष्य में तुम लोग इस तरह की गलती को ना दोहराओ और गर्म पानी तैयार करके रखो।


राम नारायण मेहतो की नीलामी बोली


बैतूल के शाहपुर निवासी राम नारायण मेहतो से सामना लकड़ी के कूपों की नीलामी के दौरान हुआ। इमारती लकड़ी का राष्ट्रीयकरण होने के पूर्व  खड़े कूपों का नीलाम किया जाता था, जिसमें हथौड़े के निशान द्वारा मार्क किए गए पेड़ों को ठेकेदारों द्वारा काटने की अनुमति होती थी। इस तरह के पेड़ों को काटकर ठेकेदार उसकी लकड़ी और जलाऊ लकड़ी निकालकर ले जाते और इसी से उनका व्यापार चलता रहता था। ग्रामीण परिवेश वाले राम नारायण मेहतो सफेद मूंछों, धोती-कुर्ता, काली टोपी और लंबा बंद कॉलर का कोट के ऊपर से लाल तौलिया से अलग दिख जाते थे। जंगल और इससे जुड़े कार्यों में उनको विशेष महारत हासिल थी। वे लकड़ी के व्यापार के साथ तेंदू पत्ते के ठेके भी यदाकदा लेते रहते थे। रौबदार व्यक्त‍ित्व और निश्चल स्वभाव के कारण सभी लोग उन्हें आदर की दृष्ट‍ि से देखते और उनकी बातों को ध्यान से सुनते। कूपों के नीलामी के समय सर्वप्रथम डीएफओ द्वारा कूप विशेष की शासकीय बोली घोष‍ित की जाती। इसके बाद ठेकेदार उस बोली के ऊपर एक-एक कर बोली बढ़ाते रहते। यदि शासकीय बोली 70 हजार रुपए है तो ठेकेदार 1 हजार रुपए बढ़ाकर 71 हजार या 75 हजार की बोली लगाते, लेकिन रामनारायण मेहतो सीधे 2 लाख रुपए की बोली लगा देते। उनकी इस प्रकार की बोली से अन्य ठेकेदार सकते में आ जाते। जब तक वे इस संबंध में कोई सोच-विचार कर निर्णय ले पाते उससे पहले ही डीएफओ 1, 2, 3... की घोषणा कर कूप उनके नाम से आवंटित कर देते। उनके इस तरह अप्रत्याश‍ित रूप से बोली लगाने के कारण नीलामी के समय अन्य ठेकेदार उनसे भयभीत ही रहते थे।


नीलामी की बोली में सरप्राइज एलीमेंट


मैंने उनसे इस तरह की बोली लगाने का कारण पूछा तो उन्होंने जानकारी दी कि वे कूप में लकड़ी की मात्रा को ध्यान में रखकर अपना एस्टीमेट तैयार कर लेते हैं और सरप्राइज एलीमेंट के आधार पर अंतिम बोली लगा देते हैं, जिसके कारण उन्हें लाभ ही होता है। धीरे-धीरे बोली आगे बढ़ाने में कई बार बोली उनके एस्टीमेट से ऊपर चली जाती है। उनके द्वारा एकदम से ऊंची बोली लगाने के कारण अन्य ठेकेदार संभल ही नहीं पाते हैं और इस बीच मेहतो जी को कूप आवंटित हो जाता है। राम नारायण मेहतो जंगल महकमे के कर्मचारियों में बहुत लोकप्रिय थे। उनके ऑफ‍िस पहुंचते ही कर्मचारी अपना हिस्सा लेने के लिए आगे बढ़ जाते थे। ये हिस्सा कुछ और नहीं केवल भांग का गोला हुआ करता था, जो वे अपने साथ रखते और उसे बाबुओं के बीच बांटते रहते थे।


( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं )


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