दैनिक मजदूरी पाने वाला बना फॉरेस्ट एसडीओ

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दैनिक मजदूरी पाने वाला बना फॉरेस्ट एसडीओ

एसआर रावत. सीहोर पोस्टिंग के दौरान मैं सीधे कंजरवेटर वर्किंग स्कीम रीवा बलवंत सिंह के अधीनस्थ कार्य करता था। वही मेरे बॉस हुआ करते थे। बलवंत सिंह मध्य भारत से आए हुए अध‍िकारी थे। मेरे कार्य का आंकलन कर उन्हें वार्ष‍िक गोपनीय प्रतिवेदन (कॉन्फ‍िड‍िश‍ियल रिपोर्ट) लिखनी थी। इस प्रतिवेदन का शासकीय सेवक के लिए विशेष महत्व रहता है। इस प्रतिवेदन के आधार पर किसी अध‍िकारी या कर्मचारी का आंकलन कर उसे शासकीय सेवा में आगे बढ़ने या पदोन्नति के अवसर मिलते हैं। बलवंत सिंह मेरे कार्य का निरीक्षण करने और मार्गदर्शन देने के लिए सीहोर दौरे पर आए। ऑफ‍िस का निरीक्षण करने के बाद जहां जरूरी हुआ उन्होंने मार्गदर्शन दिया। वे एक दुबले-पतले अत्यंत शांत स्वभाव के नम्र कम बोलने वाले सरल व आसानी से घुल मिल जाने वाले अधिकारी थे। मैंने अभी तक सीपी एन्ड बरार क्षेत्र में जिन अधिकारियों के अधीनस्थ काम किया था, बलवंत सिंह उनसे बिल्कुल भिन्न थे। उनसे मिलने पर मुझे अपनेपन एवं सहजता का अनुभव हुआ। वे मध्य भारत की जावरा स्टेट में रेवेन्यू कमिश्नर के पद पर भी कार्यरत रहे थे। उनका जावरा स्टेट की रॉयल फैमिली से संबंध था, इसलिए उन्हें कुंवर बलवंत सिंह के नाम से ही जाना जाता था।



देखने को मिली रॉयल फैमिली की झलक



बलवंत सिंह सीहोर के पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाउस में रुके हुए थे। निरीक्षण करवाने के लिए अपनी फोर्ड कार में गया। रीवा से जो डाक आती उसके साथ उनकी पत्नी रीवा से गाजर का हलवा बनाकर भेजती थीं। रेस्ट हाउस में उन्होंने अपनी पत्नी का गाजर का हलवा आग्रहपूर्वक खि‍लाया और स्वयं सिर्फ चखा भर। वे अपने बालों में जवा कुसुम तेल का उपयोग करते थे। तेल की खुशबू दूर से आती रहती थी। हलवा खाने के बाद वे मेरी फोर्ड कार में बैठकर कार्यों के निरीक्षण के लिए जंगल में निकले। जिसका डर था वही हुआ। जंगल के भीतर मेरी फोर्ड कार झटके देने लगी और कुछ दूर जाकर बंद हो गई। मुझे लगा कि बलवंत सिंह नाराजगी व्यक्त करेंगे लेकिन उन्होंने मुझे प्रोत्साहित करते हुए स्वयं कार की खराबी को खोजने लगे और कार को ठीक करने में मदद की। इस दौरान उनका व्यवहार गरिमापूर्ण व सहयोग पूर्ण रहा। इससे उनके रॉयल फैमिली के होने की झलक स्पष्ट रूप से दिखाई दी।



ड्रॉफ्ट्समैन के काम से प्रभावित हुए कंजरवेटर



कंजरवेटर बलवंत सिंह ने ऑफ‍िस में बनाए गए नक्शों को देखकर बहुत पसंद किया। उन्होंने पूछा कि इतनी अच्छी लिखावट में इतने अच्छे नक्शे किसने बनाए हैं? मैंने जानकारी दी कि एक ड्रॉफ्ट्समैन श्री चाको को कलेक्टर रेट पर दैनिक मजदूरी पर रखकर उन्हीं से ये नक्शे बनवाए गए हैं। बलवंत सिंह ने श्री चाको को बुलाकर उनके कार्य की प्रशंसा की और उन्हें प्रोत्साहित किया। दौरे से वापस लौटकर बलवंत सिंह ने प्रदेश के अन्य अधीनस्थ अधिकारियों को इन नक्शों की गुणवत्ता के बारे में बताकर सीहोर जाकर देखने के निर्देश दिए। जिसके बाद कुछ अधिकारी इंदौर से विशेष रूप से इन नक्शों को देखने के लिए सीहोर आए। बलवंत सिंह ने मुझे निर्देश दिए कि जैसे ही वर्किंग स्कीम का कार्य पूर्ण हो वैसे ही श्री चाको को उनके कार्यालय रीवा में भेज दिया जाए ताकि उन्हें वहां नियुक्ति दी जा सके। मैंने वर्किंग स्कीम का काम पूरा होने के उपरांत श्री चाको को रीवा भेज दिया, जहां वे ड्रॉफ्ट्समैन के पद पर नियमित रूप से कार्य करने लगे। कुछ समय पश्चात श्री चाको ने रेंज ऑफिसर के पद के लिए आयोजित प्रवेश परीक्षा में सफलता हासि‍ल की। रेंज ऑफिसर की ट्रेनिंग पूर्ण करने के बाद वे प्रदेश में रेंज ऑफिसर के पद पर कार्य करने लगे। बाद में उनकी पदोन्नति एसडीओ फॉरेस्ट के पद पर हुई। मध्यप्रदेश में व‍िभि‍न्न स्थानों पर श्री चाको की पोस्ट‍िंग रही। वे कान्हा नेशनल पार्क में भी पदस्थ हुए। एक बार मैं सपरिवार कान्हा गया। वहां श्री चाको ने जीवन में आगे बढ़ने में दिए गए सहयोग के लिए मेरे प्रति आभार व्यक्त किया। फॉरेस्ट महकमे से रिटायर होने के उपरांत वे इटारसी में बस गए।



डीएफओ साहब का जनसम्पर्क अभ‍ियान



भोपाल में डीएफओ ईस्ट व वेस्ट के ऑफ‍िस एक ही बिल्डिंग में अगल-बगल में लगते थे। यहां से भोपाल ताल का मनोरम दृश्य बरबस ही दिखाई देता था। भोपाल ईस्ट ड‍िवीजन के एसडीओ चितवाडगी बैरिकनुमा बिल्डिंग के कमरों में सुल्तानिया लाइंस में रहते थे। एक बार मैं उनसे मिलने पहुंचा तो देखा कि जिन कमरों में वे रह रहे थे उन कमरों के फर्श का ढाल बहुत तीखा था। कारण पूछने पर जानकारी मिली कि बैरिक के जिन कमरों में वे रह रहे थे, वह भोपाल स्टेट के समय में घुड़साल हुआ करती थी। यहां घोड़े बांधे जाते थे। इस वजह से उन कमरों का ढाल पानी इत्यादि आसानी से बहने के लिए तीखा रखा गया था। भोपाल ईस्ट के डीएफओ एसएल पाराशर का महकमे में जनसम्पर्क अभ‍ियान बहुत प्रस‍िद्ध था। वे मंत्र‍ियों व सीनियर आईएसएस ऑफ‍िसरों के निरंतर सम्पर्क में रहते थे। वे ऑफ‍िस में निर्धारित समय पर पहुंचने के बाद अपना कोट डीएफओ की कुर्सी पर पीछे की ओर टांग देते और जनसम्पर्क के लिए निकल पड़ते। कुर्सी पर कोट टंगा होने के कारण लोगों को यही संदेश जाता कि डीएफओ साहब कहीं आसपास की गए हुए हैं। एसएल पाराशर भोपाल में पदस्थ सबसे सीनियर ऑफ‍िसर थे। उस समय फॉरेस्ट महकमे का हैडक्वार्टर रीवा में था और कंजरवेटर होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) में पदस्थ थे। वैसे एसएल पाराशर के जनसम्पर्क अभ‍ियान का लाभ फॉरेस्ट महकमे को निरंतर मिलता रहा। वे व‍िभ‍िन्न शासकीय विभागों से समन्वय का दायित्व उन्हीं के कंधों पर था। उन्हीं के ऑफ‍िस में घनश्याम सक्सेना फॉरेस्ट महकमे के जनसम्पर्क अध‍िकारी के तौर पर बैठकर काम करते थे। वे डीएफओ पाराशर की विशेषताओं का गुणगान करते थकते नहीं थे।



डोंगी से नर्मदा का सफर



मुझे कई बार देलावाड़ी व बुधनी दौरे पर जाना पड़ता था। देलावाड़ी के सुरम्य जंगल के बीचों-बीच फॉरेस्ट रेस्ट हाउस है। वहां प्रकृति के सानिध्य में समय बिताने में आनंद का अनुभव होता था। ऊंचे वट वृक्षों से लटकी हुई जड़ें और कल-कल बहते हुए झरनों को देखकर मन प्रफुल्ल‍ित होता था। चारों ओर फैले हुए शांत सघन जंगल की हर‍ियाली के बीच मन को शांति मिलती थी। यहां बार-बार आने का मन करता था और विदा होते वक्त मन भारी हो जाता था। नर्मदा नदी के किनारे बुधनी का फॉरेस्ट रेस्ट हाउस भी अद्भुत था। सामने से बहती नर्मदा के दर्शन करने मात्र से मन भक्त‍ि भाव व स्फूर्ति से भर जाता था। फॉरेस्ट रेस्ट हाउस के नीचे बहती हुई नर्मदा नदी के किनारे पहुंचने पर लंबी व सकरी डोंगियों में बैठाकर मल्लाह हम लोगों को नदी पार काफी लंबी दूरी तक सैर करवाते थे। डोंगियों में बैठने से भय मिश्र‍ित खुशी का अनुभव होता था।



जागीरदार की गढ़ी में रात का कैम्प



एक बार मैं अपनी फोर्ड कार से सीहोर से दौलतपुर दौरे पर गया। कार 1934 मॉडल की थी। उसमें ऊपर सॉलिड स्टील की बनी हुई छत न हो कर कैनवास का फोल्डिंग हुड लगा था। हुड को सामने से खोलकर पीछे की ओर इकट्ठा कर रखकर खुली हवा का आनंद लेते सीहोर से दौलतपुर रवाना हो गया। सीहोर से निकलने में देर हो चुकी थी, इसलिए दौलतपुर पहुंचते-पहुंचते काफी रात हो चुकी थी। वहां पर जागीरदार की एक गढ़ी में ठहरने की व्यवस्था थी। वह एक पुरानी इमारत थी। इसका रखरखाव लंबे समय से उचित रीति से नहीं हुआ था। कमरों का वातावरण स्फूर्ति दायक नहीं था, बल्कि कुछ डरावना-सा प्रतीत होता था। फिर भी कोई अन्य विकल्प नहीं होने के कारण मुझे वहां रात बितानी पड़ी। टॉयलेट की कोई व्यवस्था नहीं थी इसलिए सार यानी कि गाय-भैंस बांधने की लंबी दहलान को ही बाथरूम के रूप में उपयोग में लाना पड़ा। यह समय मेरी शासकीय सेवा का एक अत्यंत कठिन दौर था। इसे अग्न‍ि परीक्षा का समय कहने में कोई अतिशयोक्त‍ि नहीं होगी। दौलतपुर जंगल की सीमा के दूसरी ओर लगी हुई देवास जिले की खिवनी सेंचुरी स्थित थी। उस जंगल में जंगली जानवर बहुत आसानी से दिखाई देते थे। मैंने भी कुछ चीतल व सांभर घूमते हुए देखे।



( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं )


Diary of a Forest Officer SR Rawat एक फॉरेस्ट ऑफिसर की डायरी एसआर रावत दैनिक मजदूरी पाने वाला बना फॉरेस्ट एसडीओ