छिंदवाड़ा तैनाती के समय, प्रदेश शासन वन विभाग ने सरकारी व्यय में कमी करने के लिए कुछ कदम उठाए। इसमें डीएफओ के निवास का टेलीफोन हटा दिया और जिले के बाहर जाने के लिए शासकीय वाहन के उपयोग पर रोक लगा दी। उस समय छिंदवाड़ा में 3 डीएफओ की तैनाती थी। सभी को जबलपुर में होने वाली बैठक में, भाग लेने के लिए, बस द्वारा यात्रा करनी पड़ी। एक बार बैठक के उपरांत हम लोग जबलपुर-मुलताई बस से वापस छिंदवाड़ा आ रहे थे। लखनादौन के पास सामने की ओर से आ रही मुलताई-जबलपुर बस से हमारी बस का हेड ऑन जोर की टक्कर हुई। अचानक हुई इस घटना से बस यात्री झटके से सामने की सीट से जा टकराए। कई सीटों का टिकने वाला हिस्सा सामने की ओर झुककर टूट गया। अधिकांश यात्रियों के चेहरे और नाक पर चोट आई। बस की खिड़की के कांच टूटकर बिखर गए। बस का सामने का हिस्सा बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गया। गनीमत यह रही कि कोई भी यात्री गंभीर रूप से घायल नहीं हुआ। हम लोगों को मामूली चोटें आईं लेकिन सामने की सीट से टकराने के कारण चेहरे पर सूजन जरूर आ गई। मौके पर पुलिस पहुंच गई। एक्सीडेंट की खबर का संदेश छिंदवाड़ा भेजा गया। इस खबर से पत्नी तनाव में आ गई। छिंदवाड़ा के तत्कालीन कलेक्टर परमानंद पेठिया स्वयं घर पहुंचे और पत्नी को सांत्वना देते हुए कहा कि सभी यात्रियों को मामूली चोटें आई हैं, घबराने की कोई बात नहीं है। किसी तरह हम लोग, दूसरी बस से छिंदवाड़ा पहुंचे तो परिवार को राहत मिली।
खर्चों को बचाने बनाया पानी का टांका
वर्ष 1965 से 1968 के दरम्यान मैं पश्चिम छिंदवाड़ा डिवीजन में डीएफओ के पद पर कार्यरत रहा। युवा और ऊर्जावान होने के कारण डिवीजन में कुछ नया और अच्छा काम करने की प्रबल इच्छा हर समय बनी रहती थी। दमुआ में एक नर्सरी थी जिसमें सिंचाई करने के लिए मजदूर नाले से पानी ढोकर क्यारियों में सिंचाई करते रहते थे। इसमें काफी समय बर्बाद होता और मजदूरी पर व्यय भी अधिक आता था। इस बात को सोचकर निर्णय लिया कि नर्सरी के पास ऊंची टेकरी पर एक पानी की टंकी बना दी जाए। योजना बनाई गई कि नाले से पानी पम्प कर टंकी को भरा जाएगा। इससे सिंचाई में सहूलियत होगी और खर्चे पर नियंत्रण किया जा सकेगा। दमुआ नर्सरी के लिए एक डीजल पम्प खरीदने का निर्णय लिया। लावाघोगरी में जंगलों में पूर्व में कभी सेना ने कैम्प किया था। उनके कैम्प के दौरान उस समय का एक बहुत बड़ा और पक्का टांका जंगल में बना-बनाया उपलब्ध था। इसके आसपास खुली उपजाऊ वन भूमि भी उपलब्ध थी। यहां नर्सरी की क्यारियां बनाकर वृक्षारोपण हेतु आसानी से पौध तैयार की जा सकती थी। इस क्षेत्र का निरीक्षण करने पर पाया कि इस टांके का लाभ ले कर पास ही स्थित नाले से पानी पम्प कर टांका भरा जा सकता है। टांके के नजदीक ही नर्सरी बनाने का निर्णय लिया। क्यारियां बनाने का काम भी शुरू करवा दिया। नाले से पानी पम्प करने के लिए एक डीजल पम्प खरीदने का निर्णय लिया।
विघ्न संतोषी बाबू को पसंद नहीं आया पम्प खरीदना
इन्हीं जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, 2 डीजल पम्प खरीदने का प्रस्ताव तैयार कर स्वीकृति हेतु तत्कालीन फॉरेस्ट कंजरवेटर बालाघाट को भेजने का निश्चय किया। 2 डीजल पम्प खरीदने के लिए कोटेशन प्राप्त करने हेतु स्थानीय सभी सप्लायर्स को पत्र भेजा गया। आखिरी तारीख तक एक भी कोटेशन प्राप्त नहीं हुआ। ऑफिस में इस काम की जिम्मेदारी ड्रॉफ्टसमेन शाखा को सौंपी गई थी। उन्हें निर्देश दिए कि वे स्वयं डीलर्स के पास जाकर कोटेशन लेकर आएं। थोड़े से प्रयास के बाद, ऑफिस में सीलबंद लिफाफों में 4-5 कोटेशन प्राप्त हो गए। उनमें से जो न्यूनतम कोटेशन प्राप्त हुआ था, उसी के आधार पर प्रस्ताव बनाकर फॉरेस्ट कंजरवेटर बालाघाट को 2 डीजल पंप खरीदने की स्वीकृति हेतु भेजा गया। उनसे स्वीकृति प्राप्त होने के उपरांत 2 डीजल पंप खरीदकर फॉरेस्ट डिवीजन ऑफिस में लाकर रखे गए और चेक द्वारा राशि का भुगतान कर दिया गया। फॉरेस्ट वेस्ट डिवीजन ऑफिस के बाजू में ही ईस्ट डिवीजन का ऑफिस था। इस ऑफिस में एक विघ्न संतोषी किस्म का बाबू कार्यरत था। उसने जैसे ही 2 नए पम्प दफ्तर में रखे हुए देखे। वैसे ही उसने खोजबीन कर सप्लायर का नाम, पम्प की कीमत आदि की जानकारी एकत्र कर एक शिकायत पत्र विभिन्न जांच एजेंसियों को भेज दिया। उसने शिकायत की कि डीजल पम्प बाजार में प्रचलित कीमत से अधिक कीमत पर खरीदे गए हैं और खरीदी में भ्रष्टाचार किया गया है।
मंत्री जी ने भ्रष्टाचार की शिकायत पर दिए जांच के निर्देश
फॉरेस्ट कंजरवेटर बालाघाट को जैसे ही शिकायती पत्र मिला। उन्होंने मुझसे विस्तृत प्रतिवेदन और पूरे मामले पर टिप्पणी मांगी। पूरे प्रकरण पर मैंने शीघ्र रिपोर्ट भेज दी। उसी समय एक मंत्री जी छिंदवाड़ा दौरे पर आए। राजनैतिक दल के स्थानीय कार्यकर्ताओं ने उनसे शिकायत की कि छिंदवाड़ा फॉरेस्ट वेस्ट डिवीजन द्वारा डीजल पम्प खरीदी में भ्रष्टाचार किया गया है। मंत्री महोदय ने कलेक्टर को जानकारी एकत्र कर कार्रवाई करने हेतु निर्देश दिए। कलेक्टर ने मुझसे जानकारी ना लेते हुए कंजरवेटर बालाघाट से जानकारी प्राप्त करने के लिए पत्र भेजा। कंजरवेटर ने उनको सूचित किया कि जांच प्रगति पर है और उचित कार्रवाई की जा रही है।
कंजरवेटर बीच आकस्मिक अवकाश में लौटने के देते थे निर्देश
वनपाल प्रशिक्षण शाला बालाघाट में परीक्षक के रूप में परीक्षा लेने गया हुआ था। कंजरवेटर बालाघाट ने पम्प खरीदने की स्वीकृति दी थी, इसलिए उन्हें संदेह था कि कहीं वे भी जांच के दायरे में न आ जाएं। मेरे बालाघाट प्रवास के दौरान वे मेरी अनुपस्थिति में छिंदवाड़ा दौरे पर आए और आनन-फानन में उन्होंने संबंधित व्यक्तियों के बयान दर्ज कर जांच प्रतिवेदन उच्चाधिकारियों को भेज दिया। इससे पूर्व भी मेरे उनके साथ के कुछ अनुभव अच्छे नहीं थे। मेरे आकस्मिक अवकाश आवेदन को वे रद्द कर देते थे, जिस कारण जरूरी काम होने पर भी मुझे अवकाश नहीं मिल पाता था। आकस्मिक अवकाश लेते वक्त जिस स्थान पर मैं जाता, उस स्थान का नाम और टेलीफोन नंबर ऑफिस में छोड़ देता था। एक बार आकस्मिक अवकाश लेकर पारिवारिक काम से बड़े भाई के पास बैतूल गया हुआ था। मेरे बैतूल पहुंचने के अगले ही दिन कंजरवेटर साहब का फोन आया और उन्होंने मुझे तत्काल वापस आने के निर्देश दिए। वापस आने के अलावा मेरे पास अन्य कोई विकल्प नहीं था। एक बार आकस्मिक अवकाश पर भोपाल पहुंचने के अगले दिन ही उन्होंने इसी तरह मुझे वापस बुलवा लिया था।
हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ
2 डीजल पम्प खरीदी के प्रकरण में काफी लंबे समय तक मुझे कोई जानकारी नहीं मिली। जब मैं वर्ष 1972 से 1975 तक वर्किंग प्लान ग्वालियर में पदस्थ था। तब मुझे शासन से एक पत्र प्राप्त हुआ जिसमें उल्लेख था कि छिंदवाड़ा में रहते हुए 2 पम्प खरीदी में शासन को 1200 रुपए का अतिरिक्त व्यय करना पड़ा है। परिणामस्वरूप शासन को हुई इस हानि के लिए मुझे 1200 रुपए का भुगतान करना होगा, अन्यथा विभागीय जांच के लिए तैयार रहना होगा। एक सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ओपी भार्गव जय विलास पैलेस ग्वालियर में माधवराव सिंधिया के प्राइवेट सेक्रेटरी के रूप में कार्यरत थे। उन्होंने शासकीय सेवा में रहते हुए कई विभागीय जांचों का सामना किया था। मैंने उनसे सलाह लेने का विचार किया। मैंने उनको पूरे प्रकरण से अवगत कराया और जानकारी दी कि मेरी कोई गलती या अनुचित लाभ उठाने की मंशा नहीं थी। प्रकरण पूर्ण रूप से समझने के उपरांत, उन्होंने कहा- "हानि लाभ जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ" को ध्यान में रखते हुए मुझे 1200 रुपए की राशि का भुगतान यह उल्लेख करते हुए कर देना चाहिए कि हालांकि मेरी कोई गलती नहीं है, फिर भी शासन के चाहे अनुसार मैं राशि का भुगतान कर रहा हूं। ओपी भार्गव ने कहा कि अगर मेरे विरुद्ध विभागीय जांच की जाती है, तो उसमें काफी लंबा समय लगेगा और पूरा समय तनाव में बीतेगा और अंत में निर्णय मेरे पक्ष में ही हो, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भार्गव साहब की बात में दम था। उनकी सलाह पर मैंने राशि का भुगतान कर शासन को पत्र भी भेज दिया। शासन के लिए यह राशि नगण्य थी परंतु मेरे शासकीय जीवन की लगभग यही कमाई थी जिससे मुझे वंचित होना पड़ा। इस पूरे प्रकरण में मुझे आभास हुआ कि शासकीय कार्य में अनावश्यक पहल नहीं करनी चाहिए। कोई भी काम स्वयं का बचाव करते हुए सुकून से सोच-विचार कर करना चाहिए। हो सकता है जिस डीलर ने पम्प के कोटेशन दिए थे, वे बाजार भाव से ज्यादा रहे हों, परंतु मैं इस बारे में अनभिज्ञ ही रहा। इस प्रकारण का बड़ा दुष्प्रभाव यह हुआ कि मैंने फॉरेस्ट महकमे में रहते हुए कम से कम खरीदी की भले ही प्राप्त राशि लैप्स ही क्यों न करनी पड़ी हो।
( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं )