जयराम शुक्ल। 'हिन्दू के मुकाबले हिन्दुत्व' को खड़ा करके बहस छेड़ना विशुद्ध मूर्खतापूर्ण, निराधार और निरर्थक प्रलाप है। क्या कभी पुरुष, पुरुषत्व या पौरुष का विरोधाभाषी हो सकता है.? क्या हम सती को सतीत्व के खिलाफ खड़ा कर सकते हैं या स्त्री बनाम स्त्रीत्व की बहस छेड़ सकते हैं? क्या कभी कृति के विरुद्ध कृतित्व खड़ा हो सकता है..। नहीं न.। यह बात समान्य औसत बुद्धि रखने वाला जानता है। जो आठवीं तक भी हिन्दी व संस्कृति का अध्ययन किया है और उसे थोड़ा बहुत भी व्याकरण का ज्ञान है, वह भी हिन्दुत्व के बिना हिन्दू या हिन्दू के समानांतर हिन्दुत्व की बात करने वाले को निरा अनाड़ी और अनपढ़ ही कहेगा , लेकिन अनाड़ीपन की यह बात आज विमर्श के मुखपृष्ठ पर है, तर्क- कुतर्क गढ़े जा रहे हैं..और अपनी -अपनी सुविधा के मुताबिक पढ़े जा रहे हैं...
हमारा धर्म स्वपरिभाषित है, यह अंग्रेजी का रिलीजन नहीं
पहले हम इसे सहज व्याकरण की दृष्टि से देखते हैं। हिन्दू शब्द संज्ञा है, जबकि हिन्दुत्व उसका गुणधर्म। यह लगभग वैसे ही है जैसे कि पुरुष का अस्तित्व पौरुष से है, पुरुषत्व से है। हिन्दुत्व या पुरुषत्व भाववाचक संज्ञा है। यानी कि दो एक दूसरे के पर्याय। दूसरी बात क्या हिंन्दू कोई धर्म है..? हिन्दू शब्द को एक धर्म का नाम देकर इतना अधिक प्रचारित किया गया कि प्रायः सभी इस शब्द को उसी पंक्ति में रखते हैं जिसमें इस्लाम या ईसाई। जो हिन्दू शब्द को धर्म का नाम देकर चलते हैं उन्हें इतिहास में जाकर समझने की जरूरत है कि हिन्दू भू-सांस्कृतिक गर्भ से पैदा हुआ शब्द है, जिसका समय काल के साथ उच्चारण और अर्थ बदला है। यह धर्म नहीं अपितु एक सुनिश्चित भूभाग के लोगों की सांस्कृतिक पहचान देने वाला शब्द है। गीता, वेद, पुराण, उपनिषद स्मृति ग्रंथ, रामायण, महाभारत से लेकर पंद्रहवीं सदी में रचे गए रामचरित मानस तक में हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं है। न धर्म, न ही किसी अन्य रूप में। यहां धर्म का नाम धर्म ही है जो कि सृष्टि के रचना के साथ सनातन चला आ रहा है। इसलिए इसे सनातन धर्म कहा गया। यहाँ सनातन संज्ञावाचक नहीं अपितु क्रियावाचक है। हमारा धर्म स्वपरिभाषित है यह अँग्रेजी का रिलीजन नहीं है। और इस धर्म में विश्व के सभी पंथ और सभी पूजा-अर्चना पद्धतियां समाहित हैं। इसलिए स्वस्ति श्लोक में कहा गया कि ..
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।।
-सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।
इस स्वस्ति वचन में यह नहीं कहा गया कि सिर्फ हिन्दू समाज ही सुखी और निरोगी रहे। सभी सुखी रहें सभी निरोगी रहें। पारसी, यहूदी धर्म तो बाद में आया, ईसाई और इस्लाम तो बहुत बाद में। तब भारत वसुधैव को ही एक कुटुम्ब मानता था।
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम् उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बम्।।
सनातन धर्म का भू-सांस्कृतिक विस्तार संपूर्ण धरती थी।
तो ये हिन्दू शब्द आया कहाँ से। इस विषय पर कई इतिहासकारों ने अपने-अपने अध्ययन व अनुमान के हिसाब से निष्कर्ष दिए हैं। सप्तसिंधु की भी एक थ्योरी है। सिंधुघाटी की सभ्यता से निकला समाज आगे चलकर हिन्दू समाज हुआ। कुछ इतिहासकार कहते हैं कि तुर्क और मुगल आक्रांताओं ने पहचान की दृष्टि से इस भूभाग के लोगों को हिन्दू समाज के रूप में पहचाना.. और आगे चलकर हिन्दुस्थान शब्द मिला। अलाउद्दीन खिलजी के समकालीन रहे अमीर खुसरों ने हिन्दवी शब्द का प्रयोग किया। उनके हिन्दवी समाज में सिर्फ सनातनी ही नहीं अपितु अन्य देश से यहां आकर बसे दूसरे धर्म के लोग भी थे।
ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद प्रयोग में आया हिंदू
अल्लामा इकबाल ने अपने तराने में..हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तां हमारा.. लिखा। यह अलग बात है कि इन्हीं इकबाल ने उसी हिन्दुस्तान में रहते हुए धर्म के आधार पर पाकिस्तान का सपना देखना शुरू कर दिया और तराने को विकृत कर- मुस्लिम हैं हम वतन है पाकिस्तान हमारा..। लेकिन फिर भी खुसरो से लेकर इकबाल तक ने हिन्दुस्तान में रहने वाले विभिन्न पंथ, धर्म के लोगों को, यहाँ तक कि स्वयं को भी हिन्दी- हिन्दू हिन्दुस्तानी माना। स्वामी धर्म बन्धु नाम के एक विद्वान ने ..आखिर हिन्दू कौन..? नामक शोध आलेख में लिखा है- अधिकांश इतिहासविदों का मानना है कि ‘हिंदू’ शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरब के लोगों द्वारा प्रयोग किया गया था, लेकिन कुछ इतिहासविदों का यह भी मानना है कि यह लोग पारसी थे जिन्होंने हिमालय के उत्तर पश्चिम के रास्ते से भारत में आकर वहां के बाशिंदों के लिए प्रयोग किया था।
धर्म और ग्रन्थ के शब्दकोष के वोल्यूम # 6,सन्दर्भ # 699 के अनुसार हिंदू शब्द का प्रादुर्भाव/प्रयोग भारतीय साहित्य या ग्रन्थों में मुसलमानों के भारत आने के बाद हुआ था।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’ में पेज नम्बर 74 और 75 पर लिखा है कि “the word Hindu can be earliest traced to a source of a tantric in 8th century and it was used initially to describe the people, it was never used to describe religion…” पंडित जवाहरलाल नेहरू के अनुसार हिंदू शब्द तो बहुत बाद में प्रयोग में लाया गया।
हिन्दुज्म यानी हिन्दुत्व शब्द की उत्पत्ति हिंदू शब्द से हुई और यह शब्द सर्वप्रथम 19वीं सदी में अंग्रेज़ी साहित्कारों द्वारा यहाँ के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु प्रयोग में लाया गया। नई शब्दकोष ब्रिटानिका के अनुसार, जिसके वोल्यूम# 20 सन्दर्भ # 581 में लिखा है कि भारत के बाशिंदों के धार्मिक विश्वास हेतु (ईसाई, जो धर्म परिवर्तन करके बने उनको छोड़कर) हिन्दुज्म शब्द सर्वप्रथम अंग्रेज़ी साहित्यकारों द्वारा सन् 1830 में प्रयोग किया गया था।
डॉ० सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी राष्ट्रपति बनने के पश्चात एक सभा को सम्बोधित करते हुए अपने व्याख्यान में हिंदू शब्द को भौगोलिक अर्थ में प्रस्तुत किया था उन्होंने कुलार्लव तंत्र का श्लोक उद्धृत करते हुए कहा था कि-
हिमालयं समारम्भे यावदिन्दु सरोवरम्।
तत्देव निर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।।
हिमालय से आरंभ होकर समुद्र पर्यन्त जो भूमि हैं उस देव निर्मित देश को हिन्दुस्थान कहते हैं। महर्षि दयानंद सरस्वती जी से एक बार उनके अनुयायियों ने पूछा कि स्वामी जी हिंदू का अर्थ क्या है? तो स्वामी जी ने कहा कि हिन्दू एक भौगोलिक शब्द है। हिन्दू शब्द का भौगोलिक व्याख्या इस प्रकार है। हिमालय का 'हि' और समुद्र को संस्कृति में 'इन्दू' कहते हैं तो हिमालय से लेकर समुद्र पर्यन्त इस भूमि को हिंदुस्थान कहते है अर्थात् हिंदू भूगोल का शब्द है ।
इस तरह जो कोई भी हिन्दू बनाम हिन्दुत्व की बहस को धर्म के साथ जोड़कर दोनों शब्दों को एक दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की कोशिश करता है उसमें न तो धर्म की समझ है न ही संस्कृति की। विनायक दामोदर सावरकर ने हिन्दू और हिन्दुत्व के विस्तार की बड़ी स्पष्ट बात की है..इससे पहले यही तथ्य स्वामी दयानंद सरस्वती रख चुके हैं और बाद में डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दोहराया।
सावरकर कहते हैं- आसिन्धुसिन्धुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिकाः।
पितृभूपुण्यभूश्चैव स वै हिन्दुरितिस्मृतः ॥
(अर्थ : प्रत्येक व्यक्ति जो सिन्धु से समुद्र तक फैली भारतभूमि को साधिकार अपनी पितृभूमि एवं पुण्यभूमि मानता है, वह हिन्दू है।)
सावरकर सभी भारतीय धर्मों को शब्द "हिन्दुत्व" में शामिल करते हैं तथा "हिन्दू राष्ट्र" का अपना दृष्टिकोण पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले "अखण्ड भारत" के रूप में प्रस्तुत करते हैं। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )