मोहन यादव के सामने चुनौतियां अनगिनत... अभी लंबा है सफर

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 3 दिसंबर 2023 को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। 13 सितंबर 2024 को सरकार के कार्यकाल के 9 माह पूरे हो जाएंगे। कैसा रहा सरकार का गर्भकाल, 9 महीने में कितने कदम चली सरकार, 'द सूत्र' लेकर आया है पूरा एनालिसिस...  पढ़िए वरिष्ठ पत्रकार अतुल विनोद पाठक का विशेष आलेख..

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अतुल विनोद पाठक@भोपाल.

डॉ. मोहन यादव- यह नाम अब सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि एक युग की शुरुआत का प्रतीक है। राजनीति के तप्त तवे पर कभी धीमे और कभी तेज पकते, मोहन यादव आज मध्यप्रदेश की सियासत का वह 'लड्डू' हैं, जो ना तो किसी की निगाह से छिप सकता है और ना ही किसी की जुबां से। 
जब उनके मुख्यमंत्री बनने की घोषणा हुई तो लोग चौंक गए। ऐसा लगा जैसे घने बादलों के बीच अचानक कोई सूरज निकल आया हो। न कोई शोर, न कोई हंगामा, बस एक शांत, संयमित और दृढ़ संकल्पित व्यक्तित्व। एक ऐसा नेता, जो न तो अपनी महत्वाकांक्षाओं का ढोल पीटता था, न ही राजनीतिक महत्वकांक्षाओं का मोहरा बना, और यही है डॉ. मोहन यादव की खासियत, क्योंकि यह 'कम बोलने और ज्यादा करने' की परंपरा में विश्वास रखते हैं। 

गर्भकाल …

मोहन यादव सरकार के नौ माह और आपका आंकलन…

कैसी रही सरकार की दशा और दिशा…

आप भी बताएं मोहन कौन सी तान बजाएं…. 

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https://thesootr.com/state/madhya-pradesh/cm-mohan-yadav-garbhkal-the-sootr-survey-6952867

कहावत भी है...

'जो बोलता है, वो तोलता नहीं, और जो तोलता है, वो बोलता नहीं।'

यह कहावत मोहन यादव पर एकदम सटीक बैठती है। जब लोग अनुमान लगा रहे थे कि 'इस नेता से क्या उम्मीदें बांधी जाएं', तब उन्होंने अपने काम से सबको चुप कर दिया। मध्यप्रदेश में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की धूमधाम से लेकर विकास के हर छोटे-बड़े काम में उनकी उपस्थिति एक सशक्त नेता की तरह रही।
हालांकि, अब वे बोलने की कला में भी माहिर होते जा रहे हैं। लेकिन, जैसा कि हर चमकते हुए सितारे का एक स्याह पहलू भी होता है, मोहन यादव की राजनीति में कुछ आलोचनाएं भी हैं। अक्सर उनकी आलोचना इस बात के लिए की जाती है कि वह कार्यक्रमों में देर से पहुंचते हैं। लोग इंतजार करते हैं, लेकिन मुख्यमंत्री का इंतजार एक अलग ही किस्म का होता है। यह कमजोरी उनके व्यक्तित्व पर कभी-कभी नुकसान का सबब बन जाती है, जिसे मिटाना उनके लिए चुनौती है।
यादव की कार्यशैली में अध्यात्म का एक खास रंग है। उनके चेहरे पर मुस्कान, बातों में मिठास और काम में एकाग्रता- ये तीन गुण उन्हें बाकी नेताओं से अलग बनाते हैं। यह सही है कि अध्यात्म के सहारे वे बड़ी गलतियों से बचे हैं, लेकिन अब समय है कि वे इस अध्यात्मिकता को प्रशासनिक सख्ती में भी ढालें। क्योंकि राजनीति में मधुमक्खियों का छत्ता हर जगह मौजूद है और उनसे बचना किसी भी नेता के लिए एक बड़ी चुनौती होती है।

डॉ. मोहन यादव ने अपनी प्रशासनिक क्षमता को साबित किया है, लेकिन अब भी उन्हें अपनी छवि को और सख्त बनाना होगा। राजधानी को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाना हो या मध्यप्रदेश के विकास को नई दिशा देना हो- डॉ.यादव के सामने चुनौतियां अनगिनत हैं। 

'मोहन के हाथों में है अब प्रदेश की कमान,  
हौसलों के पंख और उड़ान का अरमान।'
लेकिन याद रखें, प्रदेश के विकास का सपना और हकीकत में बहुत फर्क होता है। मोहन यादव को इस फर्क को मिटाना है और यह सफर लंबा है। मोहन जो न केवल एक नाम है, बल्कि आज मध्यप्रदेश के हर कोने में गूंजता एक विश्वास भी है। 

'वह व्यक्ति जो शब्दों में नहीं, कर्मों में यकीन रखता है,
जिसके कदमों से धरा पर नवसृजन का चिन्ह बनता है।'
संस्कारों में लिपटा, आध्यात्मिकता से जुड़ा और हर कार्य में धर्म का आचरण करने वाला यह व्यक्ति, जब जनता के बीच होता है, तो उसकी सादगी लोगों का दिल जीत लेती है।

मोहन, एक धर्म पुरुष के रूप में...

'धर्म का पथ हो या विकास की राह,
मोहन के निर्णयों में सदा से रही है वही चाह।'
श्रीकृष्ण का आदर्श, सनातन धर्म का झंडा और हिंदू संस्कृति का पोषक, मोहन की नीतियों में धर्म और विकास का अद्भुत संगम है। माना जा सकता है कि वह केवल एक मुख्यमंत्री नहीं, बल्कि एक साधक हैं, जो प्रदेश को श्रीकृष्णमय बनाने का संकल्प लेकर चलते हैं।

मोहन, एक हिंदूवादी नेता के रूप में...

सनातन के सिद्धांतों पर अडिग और हिंदू धर्म की महानता को स्थापित करने वाला यह नेता, अपने हर फैसले में धर्म का पथ अनुसरण करता दिखता है। कहा जाना गलत नहीं होगा कि यह केवल उसकी राजनीति नहीं, बल्कि जीवन का सत्य है।

मोहन, एक विकास पुरुष के रूप में...

मध्यप्रदेश को एक समृद्ध प्रदेश बनाना, यह सिर्फ एक सपना नहीं, बल्कि एक मिशन है, जिसे मोहन ने अपने कंधों पर लिया है। गांव-गांव में बरसाना बसाने का जो सपना उन्होंने देखा है, वह इस प्रदेश को विकास के उस शिखर पर ले जाएगा, जहां से संपूर्ण भारत प्रेरणा ले सके।

'राह नहीं आसान, पर मंजिल दूर नहीं,
मोहन के नेतृत्व में विकास की रोशनी छिपी नहीं।'

चुनौती, आग का दरिया...

मोहन के सामने चुनौतियां कोई साधारण नहीं हैं। यह आग का दरिया है, जिसमें उन्हें तैर कर पार करना होगा। संगठन का संतुलन, जनता की अपेक्षाएं, और विकास की प्राथमिकताएं- ये सब मिलकर एक कठिन परीक्षा हैं, जिसमें मोहन को खरा उतरना है।

शिखर की चुनौती...

शिखर पर पहुंचने का यह सफर आसान नहीं, पर मोहन जानते हैं कि जितनी ऊंचाई, उतनी ही परख। यह चुनौती उनके नेतृत्व का असली मापदंड होगी, और वह इसे अपनी साधना मानकर चलेंगे।

'कहां रुकना है, कहां चलना है,
मोहन ने तय कर लिया है, यह शिखर उनका अपना है।'

कृष्णमय प्रदेश, सनातन का झंडा

मध्यप्रदेश को श्रीकृष्ण के रंग में रंगने का यह सपना, केवल एक योजना नहीं, बल्कि एक संकल्प है। मोहन ने यह ठाना है कि उनका प्रदेश श्रीकृष्णमय बनेगा और सनातन का झंडा सदा ऊंचा लहराएगा। 

मध्य प्रदेश में बदलाव की बयार बहाने के लिए मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा है। सड़कों की बदहाली, स्मार्ट सिटी का बुरा हाल और पुरानी सरकारों के बड़े-बड़े प्रोजेक्ट्स की अधूरी स्थिति- ये सब उन्हें विरासत में मिले हैं। जनता की उम्मीदें आसमान छू रही हैं, लेकिन सरकारी एजेंसियों की लापरवाही और भ्रष्टाचार ने कई बार इन उम्मीदों को धराशायी कर दिया है।
बड़ी योजनाओं के बोझ तले दबती राज्य की अर्थव्यवस्था, कर्ज का बढ़ता बोझ, और कर्ज के संकट जैसे मुद्दों पर मोहन यादव को तत्काल ध्यान देना होगा। अधिकारियों की बेईमानी और 'कट सिस्टम' की बीमारी को जड़ से खत्म करना भी उनके सामने एक बड़ी चुनौती है। 
मोहन यादव को अब सिर्फ बड़े मुद्दों पर नहीं, बल्कि छोटे-छोटे मुद्दों पर भी ध्यान केंद्रित करना होगा, क्योंकि यही छोटी बातें सरकार की छवि बना या बिगाड़ सकती हैं। कॉल सेंटर पर बार-बार शिकायतें करने के बाद भी जब कोई समाधान नहीं मिलता, तो जनता की निराशा स्वाभाविक है। सरकारी सिस्टम में व्याप्त इस उदासीनता को खत्म करना उनके एजेंडे में शीर्ष पर होना चाहिए।
मुख्यमंत्री के तौर पर मोहन यादव ने कुछ सुधार जरूर किए हैं, लेकिन अब भी बहुत कुछ करना बाकी है। छोटे-मोटे सुधारों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, क्योंकि बड़ी समस्याओं की जड़ें इन्हीं छोटे मुद्दों में छिपी होती हैं। अब वक्त आ गया है कि मोहन यादव अपनी सरकार की छवि को साफ-सुथरा बनाने के लिए इस ओर ठोस कदम उठाएं। 
बदलाव की राह मुश्किल है, लेकिन मोहन यादव को उस आग के दरिया को पार करना ही होगा जो उन्हें शिखर तक पहुंचा सकता है। एक सच्चे हिंदूवादी और विकास पुरुष के रूप में, उन्हें प्रदेश को कृष्णमय बनाकर, सनातन धर्म का झंडा ऊंचा रखना है। यह न सिर्फ उनके व्यक्तित्व की परख होगी, बल्कि उनके नेतृत्व की भी सबसे बड़ी परीक्षा होगी।
मोहन यादव का व्यक्तित्व, उनकी कार्यशैली, उनकी चुनौतियां और उनका संकल्प सब मिलकर एक ऐसी छवि बनाते हैं, जो आने वाले समय में मध्यप्रदेश को एक नए मुकाम पर ले जाएगी ऐसी उम्मीद बन रही है। 
ये दौर है एक ऐसे नेता का, जो समय के साथ बदलता है, लेकिन अपनी जड़ों को नहीं भूलता। उम्मीद है कि वह इस यात्रा को सफलतापूर्वक तय करेंगे और मध्य प्रदेश के विकास के नए अध्याय लिखेंगे।

(लेखक TV24 के संपादक हैं। इस लेख में उनके निजी विचार हैं।)

 

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