रमेश शर्मा। भारत के इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं दर्ज हैं, जिनके स्मरण मात्र से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी ही एक घटना 14 जनवरी 1761 की है, जब मकर संक्रांति के दिन एक लाख से अधिक भारतीयों की सामूहिक हत्या हुई थी। इसमें चालीस हजार तो निहत्थे तीर्थ यात्री थे। विदेशी हमलावर अहमदशाह अब्दाली के सैनिकों ने पानीपत के तीसरे युद्ध में मराठा सैनिकों एवं उनके शरणार्थियों का नरसंहार किया था...
इन नवाबों ने दिया था धोखा
ये घटना पानीपत के तीसरे युद्ध की है, जो मराठाओं और अफगान हमलावर अहमदशाह अब्दाली के बीच लड़ा गया था। अब्दाली को अवध के नबाव सिराजुद्दौला और रूहेलखंड के नजीबुद्दौला ने युद्ध का आमंत्रण दिया था। दोनों नवाबों को न केवल मराठाओं ने हराया था, बल्कि इनसे राजस्व भी वसूला था। नाबावों ने युद्ध के दौरान मराठाओं की घेराबंदी करके रसद के मार्ग रोक दिए थे, और अपने मुखबिरों के जरिए मराठाओं की रणनीति अब्दाली को देते थे।
मराठाओं ने अब्दाली को खदेड़, मुगल बादशाह को बचाया था
अब्दाली ने भारत पर कुल छः आक्रमण किए। पानीपत के तीसरे युद्ध से पहले उसने 1757 में दिल्ली पर धावा बोला था, और मुगल बादशाह को बंदी बनाकर भारी लूट की थी। तब मराठाओं ने बादशाह को मुक्त कराकर अब्दाली को वापस खदेड़ दिया था। तिलमिलाए अब्दाली को जब नवाबों का आमंत्रण मिला तो बिना देर किए चढ़ दौड़ा। इसकी खबर पेशवा को लगी। तब मराठा साम्राज्य की कमान पेशवा बालाजी बाजीराव के हाथ में थी। उन्होंने मराठा सेना रवाना की, इसकी कमान सदाशिव राव भाऊ को सौंपी। इस सेना में पेशवा का पुत्र आनंद राव भी साथ था। मराठाओं ने दिल्ली मुक्त कराकर लाल किले में अपना ध्वज फहराया। दिल्ली की व्यवस्था बनाकर मराठाओं ने पंजाब की ओर रुख किया, वे इस बार अब्दाली को पूरा सबक सिखाना चाहते थे। मराठा सेना जितने इलाके मुक्त कराती वहां व्यवस्था के लिए अपने कुछ सैनिक तैनात करती थी। इससे सैनिकों की संख्या कम होती गई। मराठा सेना की शरण में वे हजारों स्त्री पुरुष भी आ गए जो अब्दाली के आक्रमण से पीड़ित, तीर्थ यात्री और यहाँ वहाँ छुप गए थे।
मकर संक्राति के दिन हुआ नरसंहार
इतिहासकार मानते हैं कि मराठा सेना में बड़ी संख्या में भेदिए थे। जो अब्दाली को मराठा गतिविधियों की जानकारी दे रहे थे और व्यवस्था के नाम पर सैनिकों की संख्या कम कर रहे थे। अब्दाली ने पानीपत में तगड़ी मोर्चा बंदी कर रखी थी। जैसे ही मराठा सेना पानीपत पहुँची भयानक युद्ध छिड़ गया। 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन सदाशिव भाऊ ब्रह्म सरोवर में स्नान करना चाहते थे। लेकिन पानीपत में अब्दाली ने घेराबंदी कर रखी थी। जो सैनिक संख्या की सूचना भाऊ को थी अब्दाली के सैनिक उससे कहीं अधिक थे। तेज हमला हुआ। यह हमला अकस्मात हुआ और पूरी तैयारी से हुआ था। फिर भी मराठा सेना भारी पड़ी उन्होंने अब्दाली का रसद भंडार छीन लिया।
सेना में छिपे भेदिओं ने विश्वास राव पर चलाई गोलियां
सदाशिव भाऊ हाथी पर सवार थे और आनंदराव घोड़े पर। तभी बंदूक की एक गोली विश्वास राव को लगी। यह गोली शत्रु सेना से नहीं आई थी बल्कि मराठा सेना में मौजूद अब्दाली के किसी भेदिये ने चलाई थी। विश्वास राव को गिरते सदाशिव राव भाऊ ने देख लिया था। वे हाथी से उतर आये और विश्वास राव के शव को ढूँढने लगे। इधर मराठा सेना ने अपने सेनापति का हाथी खाली देखा तो उनमें घबराहट हुई और अफरा तफरी मच गयी। मौके का फायदा उठाकर अब्दाली ने ऐलान करा दिया कि सदाशिव भाऊ का सिर काट लिया गया है। इससे हमलावर सैनिकों का जोश बढ़ा और मराठा सेना में भगदड़ शुरू हुई। इसी भगदड़ में किसी ने सदाशिव राव भाऊ का सिर काट लिया। अब्दाली ने यह ऐलान भी कराया कि जो हथियार डाल देगा उसकी जान बख़्शी जायेगी।
भेदियों ने सैनिकों से हथियार डलवाए
मराठा सेना में जो भेदिये थे उन्होंने हथियार डालने को प्रेरित किया। मराठा सैनिक घेर लिये गये थे, बड़ी मुश्किल से होल्कर बीस महिलाओं को सुरक्षित निकाल पाये। दोपहर तीन बजे तक यह सब हो गया। इसके बाद महिलाओं को अलग कर लिया गया। पुरूषों का कत्ले आम शुरू हुआ। अनुमान है कि एक लाख से अधिक लोगों का कत्ल किया गया। इनमें चालीस हजार तीर्थयात्री भी थे। यह मराठा सेना की सबसे बड़ी क्षति थी। जिन महिलाओं को बंदी बनाया गया था, उन्हें अब्दाली अपने साथ ले गया, कुछ को दर्दनाक मौत दी और कुछ को गुलामों के बाजार में बेचा गया। यह इतिहास का काला दिन माना गया। महाराष्ट्र का शायद कोई घर ऐसा नहीं था, जिसका परिजन इस युद्ध में शहीद न हुआ हो। पानीपत में खून की नदियाँ बहाकर और कटे हुये सिरों का ढेर लगाकर अहमदशाह फिर दिल्ली आया। उसने उन सबका कत्ल किया जिनको दिल्ली की सुरक्षा के लिये मराठों ने तैनात किया था। अब्दाली का यह कत्ले आम और लूट का सिलसिला फरवरी 1761 तक चला।