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सल्तनत काल और अंग्रेजी काल का इतिहास धोखे और फरेब से भरा है। दिखावटी दोस्ती और मीठी बातों में फंसाकर ही खून की होली खेलने के असंख्य घटनाएं घटी हैं। इसी शैली में मुगल सेनापति बैरम खान की हत्या की गई । हत्या के बाद बैरम खान पत्नी सलीमा सुल्तान बादशाह अकबर के हरम में पहुंचा दिया गया।
बादशाह हुमायूं का बाल सखा था बैरम खान
Bairam Khan और अकबर के बीच कई रिश्ते थे। वह अकबर के पिता बादशाह हुमायूं का बाल सखा और रिश्ते में साढू भाई था। इस रिश्ते से मौसा हुआ। बैरम खान ने ही दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य को धोखे से पराजित कर मुगलों को पुनः दिल्ली का अधिपति बनाया था। यह भयानक युद्ध इतिहास के पन्नों में पानीपत के द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है जो 1556 में हुआ था। इससे प्रसन्न होकर हुमायूं की बेगम ने अपनी सगी ननद गुलरुख की बेटी सलीमा सुल्तान का निकाह बैरम खान से करा दिया था। सलीमा बेगम अपने सौन्दर्य के लिए भी मुगल परिवार में प्रसिद्ध थीं। रिश्ते में सलीमा सुल्तान और अकबर आपस में मामा बुआ के बहन भाई थे। इस रिश्ते से बैरम खान अकबर का बहनोई हुआ । जब यह शादी हुई तब सलीमा बेगम की आयु अठारह वर्ष थी और बैरम खान की आयु 56 वर्ष । दोनों की आयु में लगभग अड़तीस वर्ष का अंतर था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि होश संभालते ही अकबर की नजर सलीमा बेगम पर थी। जो भी हो सलीमा बेगम अब बैरम खान की पत्नी थी। पिता हुमायूं ने बैरम खान को अकबर का अभिभावक नियुक्त किया था।
बैरम खान ही अकबर का अभिभावक था
जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बादशाह अकबर को पालने वाली महा मंगा Bairam Khan के विरुद्ध अकबर के कान भरा करती थी। अब सत्य जो हो। पर अकबर को सुरक्षित रखने और गद्दी पर बिठाकर हमलों से सुरक्षित करने का श्रेय बैरम खान को ही है। हुमायूं की मृत्यु के बाद बैरम खान ही अकबर का अभिभावक था । वह रिश्ते में अकबर का सगा मौसा भी था। पर अकबर इस निकाह से खुश न था। मतभेद बढ़े और बादशाह के आदेश पर Bairam Khan परिवार सहित हज को चल दिए। रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई। आइने अकबरी में इस घटना को लूट के इरादे से माना गया । किन्तु अन्य इतिहासकारों ने इसे लूट नहीं एक षड्यंत्र माना। चूंकि घटना में केवल कुछ पुरुष ही मारे गए थे। स्त्री बच्चे सभी सुरक्षित रहे और इन्हें महल में भेज दिया गया। बैरम खान की मौत के बाद सलीमा बेगम और पुत्र रहीम को भी दरबार में लाया गया। इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि बैरम खान की यह घटना गुजरात के पाटन में घटी।
Bairam Khan अपने परिवार सहित हज के लिए मक्का जा रहा था। हज पर जाने का आदेश भी बादशाह ने दिया था । यह काफिला नमाज के लिए रास्ते में रुका। तभी वहां बीस पच्चीस पठानों का समूह आया। उस समूह ने भी साथ नमाज पढ़ी। समूह का सरदार मुबारक खान था। उसने नमाज के बाद बैरम खान से गले मिला। जब वह गले मिल रहा था तभी उसके दूसरे साथी ने बैरम खान की पीठ में छुरा मारकर हत्या कर दी। अन्य सभी भी एक साथ टूट पड़े। कोई संभलता इससे पहले ही काफिले में बैरम खान के वफादारों का काम तमाम हो गया।
बैरम खान ने दिलाया दिल्ली का शासन
Bairam Khan मुगल बादशाह हुमायूं के बाल सखा और उनके रिश्ते में साढ़ू भाई थे। Bairam Khan ने ही दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य को धोखे से पराजित कर मुगलों को पुनः दिल्ली का अधिपत्य बनाया था। वह भयानक युद्ध इतिहास के पन्नों में पानीपत के द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है जो 1556 में हुआ था। इससे प्रसन्न होकर हुमायूं की पत्नी ने अपनी सगी ननद गुलरुख की बेटी सलीमा सुल्तान का निकाह बैरम खान से करा दिया था। सलीमा बेगम अपने सौन्दर्य के लिए भी मुगल परिवार में प्रसिद्ध थीं। रिश्ते में सलीमा सुल्तान और अकबर मामा बुआ के बहन भाई थे। जब यह शादी हुई तब सलीमा बेगम की आयु अठारह वर्ष थी और बैरम खान की आयु 56 वर्ष। दोनों की आयु में लगभग अड़तीस वर्ष का अंतर था। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि होश संभालते ही अकबर की नजर सलीमा बेगम पर थी। जबकि कुछ इतिहासकारों का मानना है कि बादशाह अकबर को पालने वाली माहम अनगा बैरम खान के विरुद्ध अकबर के कान भरा करती थी। अब सत्य जो हो। पर अकबर को सुरक्षित रखने और गद्दी पर बिठाकर हमलों से सुरक्षित करने का श्रेय बैरम खान को ही है।
अकबर का सगा मौसा भी था बैरम
हुमायूं की मृत्यु के बाद बैरम ही अकबर का अभिभावक था। वह रिश्ते में अकबर का सगा मौसा भी था। पर अकबर इस निकाह से खुश न था। मतभेद बढ़े और बादशाह के आदेश पर बैरम परिवार सहित हज को चल दिए । रास्ते में उनकी हत्या कर दी गई। आइने अकबरी में इस घटना को लूट के इरादे से माना गया। किन्तु अन्य इतिहासकारों ने इसे लूट नहीं एक षड्यंत्र माना। चूंकि घटना में केवल कुछ पुरुष ही मारे गए थे। स्त्री बच्चे सभी सुरक्षित रहे और इन्हें महल में भेज दिया गया। बैरम खान की मौत के बाद सलीमा बेगम और पुत्र रहीम को भी दरबार में लाया गया । इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि बैरम खान के काफिले में पहले दिन से कुछ लोग ऐसे होंगे जो हमलावरों के संदेशवाहक हों और बैरम खान का विश्वास अर्जित करके मार्ग एवं रुकने का स्थान भी तय कर रहे हों। चूंकि जहां नमाज के लिए यह काफिला रुका था उसके कुछ दूरी पर ही पठानों का डेरा पहले से लगा हुआ था। बैरम खान का डेरा लगते ही वे लोग मिलने के बहाने इस डेरे में आये और नमाज के तुरन्त बाद धावा बोल दिया।
बैरम खान की चाकू मारकर हत्या
बादशाह अकबर ने सलीमा से निकाह किया और रहीम के पालन पोषण का जिम्मा लिया । यह रहीम आगे चलकर सुप्रसिद्ध कवि अब्दुल रहीम खान ए खाना बने। यहां एक और बात है। अधिकांश इतिहास की पुस्तकों में रहीम को सलीमा सुल्तान बेगम का पुत्र माना है। जबकि रहीम बैरम खान के तो पुत्र थे पर उनकी मां सुल्ताना बेगम थीं जो जलाल खां मेवाती की बेटी थीं। रहीम का जन्म 1556 में हुआ था। जबकि सलीमा बेगम से बैरम खान का निकाह 1557 में हुआ था। जब धोखे से बैरम खान को मारा गया तब रहीम की आयु पांच वर्ष की थी। जबकि निकाह को चार वर्ष हुए थे। जिस धोखे से बैरम खान ने दिल्ली के शासक हेमचंद्र विक्रमादित्य की हत्या की थी। वैसी ही धोखे की मौत 31 जनवरी 1561 को बैरम खान को मिली।
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