शरद पवार की एनसीपी महाविकास अघाड़ी के साथ, लेकिन अंदर खाने किसके साथ ये कोई नहीं जानता

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Sandeep Sonwalkar
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शरद पवार की एनसीपी महाविकास अघाड़ी के साथ, लेकिन अंदर खाने किसके साथ ये कोई नहीं जानता

हिंदी पट्टी में अक्सर ये कहा जाता है कि गुरु आपकी राजनीति क्या है, लेकिन इन दिनों ये बात राजनीति में सबसे रहस्यमयी माने जा रहे शरद पवार के बारे में कहा जा सकता है। यूं तो वो अभी उस एनसीपी के चीफ है जिसके ज्यादातर विधायक अलग गुट बनाकर बीजेपी के साथ गठबंधन कर चुके हैं और यहां तक कि शरद पवार को पार्टी प्रमुख पद से हटाने का ऐलान भी कर चुके हैं, लेकिन पवार की ताकत कम नहीं हो रही और वो खुद चुनाव आयोग को कह चुके हैं कि अजीत पवार की चिट्ठी पर ध्यान देने की जरूरत नहीं है पार्टी अभी एक ही है। 





पवार मिस्ट्री अब भी बनाए हुए हैं





याद रहे कि पिछले साल जब एकनाथ शिंदे ने शिवसेना तोड़ी थी तो महज कुछ दिनों वो केवल सीएम ही नहीं बने बल्कि, अपने नाम पर शिवसेना का चुनाव चिन्ह और नाम भी लेने में कामयाब हो गये थे। जब अजित पवार ने उनसे ज्यादा बेहतर तरीके से मुंबई में ही रहकर एनसीपी तोड़ी और अलग पार्टी बनाने का ऐलान किया तो सबको यही लगा कि ये सब चाचा यानि शरद पवार की सहमति से ही हो रहा है। पवार ये मिस्ट्री अब भी बनाए हुए हैं कि कहने को तो वो खुलकर अभी महाविकास अघाड़ी यानि विपक्ष के साथ है, लेकिन अंदर खाने किसके साथ है ये वो खुद या उनके वर्कर भी नहीं बता पा रहे हैं। यानि पवार के बायें हाथ को भी नहीं पता कि उनका दायां हाथ क्या कर रहा है।





पवार के साथ और उनको छोड़कर जाने वाले दोनों परेशान



 



इतना ही नहीं कुछ दिन पहले जब सब मोदी का विरोध कर रहे थे तो पवार ने उनको पुणे में तिलक सम्मान देकर दिखा दिया कि अब भी वो जब चाहे मोदी के पास पहुंच सकते हैं। असल में पवार इस तिलक सम्मान समिति के प्रमुख है और जाहिर है उनकी मर्जी के बिना तो ये सम्मान दिया ही नहीं जा सकता है, उसके बाद अगले दिन राज्यसभा जाकर फिर वो विपक्ष में बैठ गए। अब उनके साथ और उनको छोड़कर जाने वाले दोनों परेशान है कि पवार साहेब के खिलाफ बोला भी जाए तो कैसे। यहां तक कि सरकार तोड़कर मंत्री बनने वालों को पवार साहब के पास जाकर मुजरा करना पड़ा था और कहना पड़ा था कि आप भी साथ आ जाएं।





राज्य के सब बड़े नेता पवार की ताकत जानते हैं





असल में शरद पवार को जानने वाले ये समझते हैं कि शरद पवार में किसी को भी जिताने की ताकत भले सीमित है और अपनी दम पर वो बस साठ विधानसभा सीट तक ही पहुंच सकते हैं, लेकिन उनमें हराने की ताकत बहुत बड़ी है वो किसी को भी चुनाव में हरा सकते हैं। राज्य के सब बड़े नेता पवार की ये ताकत जानते हैं इसलिए कोई उनसे दुश्मनी नहीं लेना चाहता। बीजेपी को भी पता है कि पवार ने तय कर लिया तो लोकसभा चुनाव में राज्य की अड़तालीस सीटों पर मुकाबला कड़ा हो सकता है, लेकिन क्या सच में पवार ऐसा चाहते हैं।





सोनिया ने भी बड़े नेता से पूछा था कि शरद पवार का कोई भरोसा है?



 



कांग्रेसी नेताओं को लगता है कि शरद पवार अंदर से अब भी एनडीए के साथ है क्योंकि वो अपने परिवार को किसी तरह की जांच से बचाना चाहते हैं और ये भी चाहते हैं कि अजीत पवार गुट सत्ता में बना रहे ताकि एनसीपी के कार्यकर्ताओं के काम होते रहे। यही वजह है कि अलग पार्टी बनाने के बाद भी अजीत पवार ने अब तक एनसीपी के चुनाव चिन्ह पर दावा नहीं ठोका न ही हर जिले, ब्लाक में अपना दफ्तर बनाया है बस है जो है वो सत्ता के साथ हैं। ऐसे में कांग्रेस की मुश्किल बड़ी है पार्टी के दिल्ली के नेता किसी हाल में अभी जब तक खुद शरद पवार न कहें उनको अलग नहीं करना चाहते। हालांकि, अजीत पवार के हटने के बाद खुद सोनिया गांधी ने एक बड़े नेता से पूछा था कि शरद पवार का कोई भरोसा नहीं है वो क्या कर सकते हैं।





बीजेपी को सबसे बड़ा डर शिंदे के साथ आए 13 सांसदों का है



 



अगर महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी कायम रही तो तीनों के बीच अड़तालीस में से 15 सीट हर एक दल को देने और तीन सीट सहयोगियों के छोड़ देने की बात हुई है। कांग्रेसियों को लगता है कि शरद पवार अपनी बेटी सुप्रिया को जिताने के लिए बीजेपी के साथ अंदर खाने सहयोग कर सकते हैं। तब बीजेपी एनसीपी की 15 में से कम से कम 11 सीटें जीतकर अपनी भरपाई कर सकती है। बीजेपी को सबसे बड़ा डर शिंदे के साथ  आए 13 सांसदों का है वो हार सकते हैं ऐसे में बीजेपी का कुल नंबर कम हो सकता है। तब बीजेपी एनसीपी के जरिए ज्यादा से ज्यादा सीट जीतना चाहेगी।





एनसीपी को अपने साथ लाने की बीजेपी की इच्छा बहुत पुरानी थी





इस बीच अमित शाह ने पुणे में एक समारोह में अजित पवार से कह ही दिया है कि बहुत देर से आए पर आए तो यानि संदेश साफ है कि एनसीपी को अपने साथ लाने की बीजेपी की इच्छा बहुत पुरानी थी। बीजेपी तो शरद पवार को भी साथ लेना चाहती है, लेकिन शरद पवार इंडिया नाम के विपक्ष में ही बने रहकर फायदा पहुंचाए ये बीजेपी को ज्यादा मुफीद लग सकता है।



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