एक नेता जी के यहां मंत्री जी के साथ अध‍िकारियों का भोज

author-image
S R Rawat
एडिट
New Update
एक नेता जी के यहां मंत्री जी के साथ अध‍िकारियों का भोज

बिलासपुर में फॉरेस्ट कंजरवेटर ओपी द्विवेदी के ट्रांसफर के बाद बलवंत सिंह पदस्थ हुए। ये वही अध‍िकारी थे जो मेरी सीहोर पोस्ट‍िंग के समय मेरे कंजरवेटर रहे थे। उनके साथ काम करने पर अपनेपन का आभास होता था। मध्य भारत में उनका अध‍िकांश समय रिसर्च करते हुए बीता था। बलवंत सिंह मुझ पर बहुत भरोसा करते थे। अन्य फॉरेस्ट ड‍िवीजन के उलझे हुए प्रकरणों की फाइल मुझे सौंपकर आगे की कार्रवाई करने, नोट बनाने और सुझाव देने को कहते थे। हालांकि इस कारण मेरे ऊपर काम का अति‍रिक्त बोझ पड़ता और काफी समय भी देना पड़ता था। बलवंत सिंह परफेक्ट काम करने में विश्वास रखते थे। जो भी फाइल उनके पास आती, उसका पूर्ण अध्ययन करने के उपरांत एक-एक शब्द पढ़कर फाइल का निबटारा करते। फलस्वरूप उनके चेम्बर में फाइलों का अंबार लगा रहता। उन फाइलों को वे तारीखवार रैक में व्यवस्थि‍त कर रखवाते थे। एक-एक करके वे फाइलों का निबटारा करते रहते। उनका चेम्बर एक रिकॉर्ड रूम जैसा दिखाई देता था।





दीपावली के दिन अंतिम संस्कार में शामिल होने के लिए अमरकंटक यात्रा





बिलासपुर के कमि‍श्नर नर्मदा प्रसाद दीक्ष‍ित थे। उन्होंने अमरकंटक में दो कमरे का एक छोटा-सा रेस्ट हाउस टाइप मकान बनाया था। वे बिलासपुर से अमरकंटक अक्सर जाते रहते। एक बार मैं कंजरवेटर बलवंत सिंह के साथ क्योंची, कबीर चबूतरा व अमरकंटक दौरे पर गया। कमिश्नर साहब से वहीं मुलाकात हुई। कमिश्नर साहब बलवंत सिंह को बहुत आदर देते हुए उन्हें कुंवर बलवंत सिंह नाम से पुकारते थे। कमिश्नर साहब की योजना थी कि वे रिटायरमेंट के बाद अमरकंटक में अस्थाई रूप से रहेंगे और कभी-कभार आकर अमरकंटक वाले घर में रहेंगे। बिलासपुर में दीपावली आने ही वाली थी कि ठीक उसके एक दिन पहले बलवंत सिंह का फोन आया कि अमरकंटक में कमिश्नर साहब का निधन हो गया है। कंजरवेटर साहब अंत्येष्ट‍ि में शामिल होने में मेरा साथ चाह रहे थे इसलिए मैंने भी उन्हें निराश नहीं किया। अगले दिन जब दीपावली थी उसी दिन कमिश्नर साहब का दाह संस्कार नर्मदा नदी के तट पर हुआ। जब हम लोग दाह संस्कार उपरांत अमरकंटक से बिलासपुर वापस लौट रहे थे उस समय लोगों के घरों में दीपावली के दीये जल रहे थे। दीपावली के दिन पत्नी दो छोटे बच्चों के साथ बिलासपुर में अकेली थीं। यह दीपावली परिवार के साथ नहीं मना पाया जिसका खेद रहा। बलवंत‍ सिंह का मान मुझे रखना पड़ा।





उच्चाध‍िकारी ने रिटायर होने के बाद महकमे में किया लॉयजनिंग वर्क





आलापल्ली में पदस्थापना के समय नागपुर में फॉरेस्ट कंजरवेटर बीआर मिश्रा थे। कालांतर में वे चीफ कंजरवेटर के पद पर पदोन्नत हुए। रिटायर होने के बाद वे ओरियंट पेपर मिल में फॉरेस्ट एक्सपर्ट के पद पर कार्य करने लगे। फॉरेस्ट महकमे में उच्चतम पद पर रहने से उनका दबदबा पूरे प्रदेश में था। पूरा महकमा उनके अधीन रहा था। जैसे ही उन्होंने पेपर मिल में नौकरी शुरू की उन्हें मिल द्वारा एक पुरानी जीप काम के लिए दे दी गई। इस जीप से वे फॉरेस्ट के विभ‍िन्न ड‍िवीजनों में जाकर कंजरवेटर व डीएफओ से सम्पर्क कर मिल को बांस उपलब्ध करवाने में सहायता करने लगे। बीआर मिश्रा एक बार मेरे पास बिलासपुर आए और उन्होंने ओरियंट मिल के कार्य से संबंध‍ित चर्चा की। मैंने तथा बिलासपुर में पदस्थ अन्य अधिकारियों ने उन्हें पूरा आदर व सम्मान दे कर पूरा सहयोग दिया लेकिन उनको इस तरह का काम करता देखकर, मन ही मन दुख हुआ। फॉरेस्ट महकमे में उच्चतम पद पर रहने के उपरांत इस तरह की नौकरी करने से उनकी छवि व साख पर काफी विपरीत प्रभाव पड़ा। आलापल्ली में एक शानदार व कठोर अध‍िकारी के रूप में उनको देखा था। उनके एक-एक शब्द पर सब अधीनस्थ अध‍िकारी ध्यान दे कर उनके निर्देशों का पालन करते थे। इसके विपरीत अब वे अपने अधीनस्थ रहे अधिकारियों के दफ्तरों के चक्कर काट रहे थे।





मालिक लोगों से मिलने आया हूं





बिलासपुर में एक जाने माने प्रतिष्ठित नेताजी थे। वे फॉरेस्ट महकमे मे ठेके भी लेते रहते थे। वे कभी-कभी डीएफओ से मिलने आते और कहते कि मालिक लोगों से मिलने आया हूं। साधारणतया शासकीय अधिकारी उनके यहां मिलने नहीं जाते थे, परन्तु जब भी कोई मिनिस्टर बिलासपुर आते तो ये प्रत‍िष्ठ‍ित व्यक्त‍ि उनके स्वागत में अपने घर पर भोज की व्यवस्था करते, इसलिए जिला स्तर के सभी अधिकारियों को विवश होकर मंत्री जी के साथ इस भोज में शामिल होना पड़ता था।





जब डीएफओ ने जाने-माने व्यक्ति पर निकाली अपनी खीज





फॉरेस्ट महकमे के एक डीएफओ कटघोरा दौरे पर गए। वहां यही जाने-माने प्रतिष्ठित नेताजी उनसे मिलने पहुंचे। बातचीत में इस प्रत‍िष्ठ‍ित नेताजी को जानकारी मिली कि डीएफओ साहब बिलासपुर वापस जाने वाले हैं। नेताजी ने उनके साथ जीप में चलने की इच्छा व्यक्त की। डीएफओ साहब ने उनको अपनी जीप में बैठा लिया। जीप में दोनों के बीच आपस में वार्तालाप होता रहा जिसमें डीएफओ साहब उनको आदरपूर्वक रूप से संबोध‍ित करते रहे लेकिन वे प्रत‍िष्ठ‍ित व्यक्त‍ि उन्हें बार-बार बिना किसी आदर सूचक संबोधन के नाम या सरनेम से ही बात करता रहा। डीएफओ साहब बहुत देर तक यह अपमान सहते रहे और उन्हें मन ही मन खीज होती रही, गुस्सा आता रहा। इसके बाद उन्होंने आदरपूर्वक संबोधन में न बोलते हुए उनका नाम लेकर हर बात का उत्तर देने लगे। इस तरह डीएफओ साहब ने अपनी खीज निकाली।





( लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं )



Diary of a Forest Officer SR Rawat एक फॉरेस्ट ऑफिसर की डायरी एसआर रावत Officers dinner with the minister मंत्री जी के साथ अधिकारियों का भोज