भारतवर्ष के चार प्रमुख त्यौहारों में से एक रक्षाबंधन भी है। इतिहास के पन्नों को देखें तो इस त्यौहार की उत्पत्ति लगभग 6 हजार साल पहले बताई गई है। महाभारत में द्रौपदी ने अपनी साड़ी से कपड़ा फाड़ कर भगवान कृष्ण की उंगली (जिससे खून बह रहा था) पर बांधा था। इस प्रकार, उनके बीच भाई और बहन का एक बन्धन विकसित हुआ और कृष्ण ने वस्त्रहरण के समय द्रोपदी की रक्षा की।
पवित्र दृष्टिकोण रक्षाबंधन पर्व का मूल भाव है
आधुनिक काल में सबसे प्रमुख उदाहरण पंजाब के महान राजा पुरु का मिलता है जिन्होंने अलेक्जेंडर को हराया। सिकंदर की पत्नी ने राजा पुरु को राखी बांधी, और उपहार के रूप में उनसे अपने पति का जीवन मांग लिया। इन उदाहरणों में सम्मान और सुरक्षा की बात प्रमुखता से है और उसके साथ ही यह उदाहरण भी स्पष्ट है कि जहां स्त्री का सम्मान नहीं होता वहां महाभारत जैसा भीषण युद्ध हो सकता है। लैंगिक समानता, सम्मान और स्त्री के प्रति पवित्र दृष्टिकोण रक्षाबंधन पर्व का मूल भाव है।
स्त्री की सुरक्षा-सम्मान का प्रश्न अभी भी ज्वलंत बना हुआ है
हम 6000 वर्ष से रक्षाबंधन मना रहे हैं, लेकिन स्त्री की सुरक्षा और सम्मान का प्रश्न अभी भी ज्वलंत बना हुआ है। रक्षाबंधन पर्व की अद्भुत और पवित्र भावना के साथ ही यह सवाल तो पैदा होता ही है कि जिस देश में बहन-भाई के बीच पवित्र प्रेम को इतनी उत्कृष्ट रूप में प्रकट किया गया है, वहां अभी भी स्त्री जाति के प्रति जघन्य और पाश्विक अपराध क्यों घटित हो रहे हैं ? हम बड़े गर्व से अपनी बहन से कलाई पर राखी बंधवाते हैं, लेकिन जिन असंख्य लोगों की कलाई पर रक्षाबंधन के दिन राखी सजती है क्या वह सब स्त्री के सम्मान और सुरक्षा के प्रति उतने ही चैतन्य और जागरूक हैं।
स्त्रियों को सुरक्षा देने का प्रयास करें, उन्हें उचित सम्मान दें
यह सवाल आज के दौर में इसलिए भी प्रासंगिक बन गया है क्योंकि नेशनल क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड में महिलाओं के प्रति घटने वाले अपराधों की वृद्धि की दर सबसे ज्यादा है। इतने कठोर कानून आने के बाद भी अपराध बढ़ने की दर में कोई कमी नहीं आ रही है और यही हमें रक्षाबंधन पर विचार करने को विवश करता है कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से इतने सशक्त होते हुए भी हमारे समाज और देश में स्त्री की सुरक्षा और सम्मान का आज भी यक्ष प्रश्न क्यों है? भाई-बहन के प्यार के प्रतीक रक्षाबंधन को मनाने की इस अद्भुत परंपरा का पालन तो अवश्य ही किया जाना चाहिए। लेकिन अब हमें एक ऐसे समाज के निर्माण की तरफ कदम बढ़ाने की आवश्यकता है जहां स्त्री निर्भय होने के साथ-साथ सुरक्षित भी रहे। यदि हम अपनी स्वयं की बहन को सुरक्षा देना चाहते हैं तो अपने आसपास की अन्य स्त्रियों को भी सुरक्षा देने का प्रयास करें। उन्हें उचित सम्मान दें। आवश्यकता पड़ने पर उनके अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होने में पीछे नहीं हटे।
रक्षाबंधन लैंगिक समानता का पर्व
स्मरण रहे रक्षाबंधन लैंगिक समानता का पर्व भी है। क्योंकि जिस समाज में स्त्री को मानवी समझा जाता है वही समाज स्त्री को सम्मान भी देता है। स्त्री को भोग्या और वस्तु समझने वाली मनोवृति चाहे अपनी हो या परायी किसी भी स्त्री को सुरक्षा और सम्बल नहीं दे पाती। ऐसी मनोवृति वाले व्यक्तियों की कलाई पर लाख राखियां बंधी रहें लेकिन उनकी कोई सार्थकता नहीं होती।
पवित्र रक्षाबंधन के त्यौहार में हम संकल्प लें कि हर स्त्री किसी की बहन-बेटी-मां भी है, तो रक्षाबंधन सार्थक हो जाए। हमारी बहनों को इस रक्षाबंधन सम्मान और समानता का वचन चाहिए।