आनंद पांडे. राहुल गांधी एक बार फिर सुर्खियों में हैं। लेकिन हमेशा की तरह गलत वजह से। वैसे मौका तो था कांग्रेस की महंगाई के खिलाफ हल्ला बोल रैली का,लेकिन मुद्दा बन गया आटा। हालांकि ये विशुद्ध रूप से जुबान फिसलने का मामला था.. यानी स्लिप ऑफ टंग। क्योंकि ये मानने का तो कोई कारण है ही नहीं कि राहुल को ये भी न मालूम हो कि आटा किलो में बिकता है या लीटर में। और वैसे भी लीटर बोलने के तुरंत बाद ही उन्होंने अपनी गलती सुधार ली थी..केजी यानी किलोग्राम कहकर। खैर यहां राहुल के गलत कहते ही सारा फोकस बिगड़ गया। कांग्रेस का सारा किया धरा एक तरह से पानी में बह गया। सोशल मीडिया पर मीम्स बनने लगे और विपक्ष को एक बार फिर राहुल को पप्पू साबित करने का मौका मिल गया। हालांकि कुछ लोग राहुल के पक्ष में भी खडे़ दिख रहे हैं। उनका तर्क है कि इस चूक को इतना बड़ा मुद्दा नहीं बनाना चाहिए और जो असल मुद्दा है-महंगाई, उस पर ही बात होनी चाहिए। काश,ऐसा हो पाता। ये सोशल मीडिया का जमाना है। पल झपकते ही शोहरत की बुलंदियां और दूसरे ही पल अपयश का पाताल। खैर, यहां हम चर्चा कुछ और कर रहे हैं। आखिर राहुल की गीले आटे से हम क्या सबक ले सकते हैं ?
दुनिया लीडर से सही और सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा ही रखती है
तो पहला सबक तो ये है कि जब आप लीडर (यहां इसका अर्थ नेता कतई नहीं है) होते हैं तो आपके गलती करने की गुंजाइश कतई नहीं रहती है। लीडर को चूक की छूट नहीं दी जाती है। लीडर से तो दुनिया हमेशा ही सही और सर्वश्रेष्ठ की अपेक्षा रखती है। आप भले ही कितनी भी दलीलें दें लेकिन दुनिया उस चूक या गलती को स्वीकार नहीं करती। फिर आप भले ही कहें कि आखिर लीडर भी तो इंसान ही होता है.. उससे चूक क्यों नहीं हो सकती। ये आपका तर्क हो सकता है लेकिन दुनिया की आपसे उम्मीद नहीं।
लीडर पर हमेशा सबकी तीखी निगाहें गड़ी होती हैं
दूसरा सबक ये है कि अगर आप लीडर हैं तो दुनिया आप पर हमेशा ही बेहद तीखी निगाहें गड़ाए बैठी रहेगी। इधर आप से गलती या चूक हुई और उधर आपकी धुर्रियां बिखेरीं। राहुल के साथ भी यही हुआ। लंबे वक्त बाद कांग्रेस कोई बड़ी रैली कर रही थी। कांग्रेस के चाहने वाले और विरोधियों दोनों की ही निगाहें राहुल पर टिकी हुई थीं और दुर्भाग्य से राहुल गलती कर बैठे। वैसे भी कहा जाता है कि शीर्ष पर गलती की कोई गुंजाइश नहीं रहती है। अगर चोर को चोरी की सजा दस कोडे़ मिलती है तो मंत्री को उसी चोरी की सजा हजार कोड़े मिलनी चाहिए.. क्योंकि चोर तो चोरी करेगा ही..ये उसका काम है..लेकिन मंत्री, चोरी करे ये तो कोई सोच भी नहीं सकता। इसलिए मंत्री बड़ी सजा का भागीदार बनता है। इसलिए लीडर के हिस्से में हमेशा सर्वश्रेष्ठ करने का दबाव आता ही है।
धारणा ही असलियत है
तीसरी सीख ये है कि आपकी छवि ही आपकी असलियत है। मार्केटिंग की दुनिया में कहा जाता है-Perception is the reality. यानी आपकी छवि, आपके बारे में बनी धारणा या आपकी इमेज की आपकी असलियत है। अब कांग्रेसियों को भला लगे या बुरा लेकिन फिलहाल राहुल की छवि पप्पू वाली ही है। यानी उसका पर्सेप्शन,पप्पू वाला है। ऐसे में राहुल से स्लिप ऑफ टंग जैसी कोई मानवीय त्रुटि भी हो जाती है तो उसे राहुल के ज्ञान, कौशल और काबिलियत से जोड़कर देखा जाने लगता है। इसलिए कंपनियां अपनी इमेज या ब्रांड को लेकर बेहद चौकन्ना रहती हैं। भारत में एक साबुन बिकता है। एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी उसको बनाती है। उस साबुन के बारे में आम भारतीय के मन में धारणा बनी हुई है कि ये शौचालय के बाद हाथ धोने के काम आने वाला साबुन है। कंपनी कई दफा करोड़ों का कैंपेन खड़ा कर चुकी है कि ये साबुन नहाने का साबुन है लेकिन आम भारतीय के मन से उसकी इमेज वही बनी हुई है.. पॉटी के हाथ धोने वाले साबुन की। अब कंपनी भी बेबस है कि वो करे तो क्या करे? इसलिए पूरी दुनिया में ब्रांड खड़ा करने वाली या इमेज बिल्डिंग करने वाली कंपनियों की पूछ परख खूब बढ़ रही है। सोशल मीडिया पर भी ये काम खूब हो रहा है। मैं व्यक्तिगत तौर पर ऐसे कई लोगों को जानता हूं जिन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी इमेज बिल्डिंग के लिए हर हथकंडा अपनाया है। पहले जब गूगल पर उनको नाम से सर्च किया जाता तो उनकी काली करतूतें सामने आती थी लेकिन सोशल मीडिया मैनेजमेंट के बाद अब उनकी काली करतूतें कालीन के नीचे दब गई हैं। आखिरकार अब हर कोई समझ गया है-धारणा ही असलियत है।
( लेखक द सूत्र के एडिटर इन चीफ हैं )