जिस शब्द से इस सृ्ष्टि का सृजन हुआ। हमारे देश के सभी ऋषि, मुनि, ज्ञानी दार्शनिकों ने शब्द की महिमा का बखान किया है। उसके पीछे सुदीर्घ अनुभव और उदाहरण हैं। भारतीय संस्कृति के दो महाग्रंथ शब्दों की महिमा के चलते रचे गए। यदि शूर्पणखा का उपहास न होता तो क्या बात राम रावण युद्ध तक पहुंचती? कर्ण को सूतपुत्र और दुर्योधन को अंधे का बेटा न कहा गया होता तो क्या महाभारत रचता? इसलिए, कबीर, नानक, तुलसी जैसे महान लोगों ने शब्द की सत्ता, इसकी मारक शक्ति को लेकर लगातार चेतावनियां दीं।
गुरु ग्रंथ साहिब में कई संत कवियों की रचनाएं
पूज्य गुरु नानक कितने महान थे, उन्होंने शब्द को ना सिर्फ ईश आराधना का आधार बनाया, बल्कि उसे ईश्वर का दर्जा दिया। सबद क्या है, यही है उनका ईश्वर। गुरुग्रंथ साहिब श्रेष्ठ, हितकर,सर्वकल्याणकारी शब्दों का संचयन है। गुरुमुखी लिपि में लिखे गए गुरु ग्रंथ साहिब में केवल सिख गुरुओं की ही नहीं, बल्कि कई संत कवियों की रचनाएं शामिल हैं। इसमें रामानंद, जयदेव, नामदेव, त्रिलोचन, वेणी, धन्ना, पीपा, साईं, कबीर, राय दास, शेख भीखजी, साधना, सूरदास और पूना नाने और कुछ मुस्लिम सूफियों के छंद भी शामिल हैं।
नक्षत्रों नानक और कबीर का मिलन अमरकंटक में हुआ था
गुरुग्रंथ साहब में कबीर की रचनाएं किसी भी अन्य गैर-सिख रचनाकारों की तुलना में कहीं अधिक हैं। इसमें कबीर के 227 पद शामिल हैं। यह उस महान सम्मान को दर्शाता है कि कबीर के प्रति सिख गुरुओं का कितना पूज्य भाव रहा। यह विंध्य भूमि के लिए गौरव की बात है कि धरती के दो महान नक्षत्रों नानक और कबीर का मिलन अमरकंटक में हुआ था। स्मृति स्वरूप वह स्थल आज भी है। शब्दों की सत्ता और उसकी महिमा को सबसे ज्यादा इन्हीं दोनों महापुरुषों ने गाया और प्रतिष्ठित किया। प्रकारांतर में शब्द की सत्ता से ही एक पूरा पंथ चल निकला। भजनकीर्तन, प्रार्थना, जप सब शब्दों की साधना के उपक्रम हैं।
इसलिए कबीर ने कहा है- साधौ शब्द साधना कीजै…
साधो शब्द साधना कीजै
जो ही शब्दते प्रगट भये सब
सोई शब्द गहि लीजै
शब्द गुरू शब्द सुन सिख भये
शब्द सो बिरला बूझै
सोई शिष्य सोई गुरु महातम
जेहि अंतर गति सूझै
शब्दै वेद-पुरान कहत है शब्द
शब्दै सब ठहरावै
शब्दै सुर मुनि सन्त कहत है
शब्द भेद नहि पावै
शब्दै सुन सुन भेष धरत है
शब्दै कहै अनुरागी
षट-दर्शन सब शब्द कहत है
शब्द कहे बैरागी
शब्दै काया जग उतपानी शब्दै
केरि पसारा
कहै 'कबीर' जहं शब्द होत है
भवन भेद है न्यारा।