सरयुसुत मिश्र। यूपी में राजनीतिक दल धार्मिक और जातिगत ध्रुवीकरण में जुटे हुए हैं। भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच में कड़ी टक्कर दिखाई पड़ रही है। यूपी चुनाव में मुख्य रूप से चार दल रेस में हैं। कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच में मुस्लिम मतों का विभाजन चुनाव का एक महत्वपूर्ण फेक्टर होगा...
चुनावी रेस में पिछड़ रही हैं बसपा और कांग्रेस
चुनाव आयोग ने चुनाव वाले राज्यों में तैयारियों की समीक्षा शुरू कर दी है। आने वाले दिनों में कभी भी चुनाव की तारीखों का ऐलान हो सकता है। यूपी में राजनीतिक दल धार्मिक और जातिगत ध्रुवीकरण में जुटे हुए हैं। हिंदुत्व और जातीय किलेबंदी के बीच यूपी चुनाव दिलचस्प होता जा रहा है। भाजपा और समाजवादी पार्टी के बीच में कड़ी टक्कर दिखाई पड़ रही है। हिंदुत्व और धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण अब केवल नारा नहीं है, बल्कि एक मॉडल के रूप में उत्तर प्रदेश में चारों तरफ दिखाई पड़ रहा है। भाजपा जहां विकास की अपनी नीतियों से हर वर्ग तक पहुंचने की कोशिश कर रही है, वहीं सपा के मुस्लिम, यादव ध्रुवीकरण के खिलाफ हिंदुत्व की लहर पैदा करने की भरसक कोशिश कर रही है। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण तेजी से चल रहा है, अयोध्या में भगवान राम की लंका विजय और अन्य संदर्भों को भव्यता के साथ समारोह पूर्वक मनाया जा रहा है। दीपावली के अवसर पर भव्य दीपोत्सव ने अयोध्या में नए राम राज्य का दर्शन कराया है। अभी काशी में बाबा विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के बाद भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों का अयोध्या पहुंचना भी हिंदुत्व को चमकाने का ही प्रयास है। यूपी चुनाव में मुख्य रूप से चार दल रेस में हैं। भाजपा, कांग्रेस, सपा, बसपा, लेकिन मुकाबला भाजपा और सपा के बीच में दिखाई पड़ रहा है| क्योंकि जातिगत समीकरण इन्हीं दोनों के बीच में सिमटे हुए हैं| बसपा और कांग्रेस के पिछड़ने के कारण सपा, मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण अपने पक्ष में करने में सफल होती दिखाई पड़ रही है। यादव पूरे तौर से सपा के साथ हैं। मुसलमानों का ध्रुवीकरण सपा के पक्ष में होने से भाजपा को जीत के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ेगी। कांग्रेस महिलाओं के बीच अपनी ताकत बढ़ाने की कोशिश कर रही है। प्रियंका गांधी महिलाओं के लिए अलग घोषणापत्र जारी करके वोटरों के बीच अपनी उपस्थिति निश्चित रूप से दर्ज कराने में सफल रही हैं। क्योंकि कांग्रेस का जनाधार बिखर गया है उनके पास कोई जातिगत समीकरण नहीं बचा है, इसलिए उनके प्रयास कितने सफल होंगे यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन कांग्रेस की ताकत में बढ़ोतरी जरूर हो सकती है।
ध्रुवीकरण का पुराना आधार, वही जाति- धर्म
कांग्रेस, सपा और बसपा के बीच में मुस्लिम मतों का विभाजन चुनाव का एक महत्वपूर्ण फैक्टर होगा। कांग्रेस और बसपा जितने मुस्लिम वोट प्राप्त करने में सफल होंगी, उतनी ही भाजपा की जीत की संभावनाएं प्रबल होंगी। चुनाव में सपा और भाजपा की सीधी लड़ाई मुस्लिम ध्रुवीकरण के खिलाफ हिंदुत्व एकीकरण का काम करेगी। कांग्रेस का जनाधार बिखरा हुआ है। कोई भी जाति उनके साथ नहीं है। सपा के साथ यादव हैं तो बसपा के साथ जाटव। सपा ने छोटे दलों के साथ जो गठबंधन किया है वह भी उसके लिए लाभ का सौदा दिखाई पड़ रहे हैं।
भाजपा हिंदुत्व पर टिकी हुई है। उसका हिंदुत्व पॉजिटिव से ज्यादा मुस्लिम नेगेटिव बेस पर टिका हुआ है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां मुस्लिमों की संख्या अधिक है, वहां मुस्लिमों की एकजुटता के कारण स्वाभाविक रूप से हिंदू भाजपा के पक्ष में एकजुट होते दिखाई पड़ रहे हैं। इधर किसान आंदोलन का ताप कम हो चुका है, किसान आंदोलन वोट का आधार नहीं बचा। अब वही पुराना तरीका जाति धर्म के आधार पर ध्रुवीकरण चुनाव का जरिया बन गया है। धीरे-धीरे देश में चुनाव सार्वजनिक विकास की योजनाओं से ज्यादा निजी हित और निजी लाभ पर केंद्रित हो गए हैं। प्रत्येक राज्य में सत्ताधारी राजनीतिक दल ऐसा प्रयास करते हैं कि किसी न किसी रूप में वह मतदाताओं को निजी लाभ पहुंचाएं। उत्तर प्रदेश में भी निजी लाभ को लोग ज्यादा तबज्जो दे रहे हैं। प्रधानमंत्री द्वारा किसानों को उनके खातों में राशि देने को इसी रूप में देखा जा रहा है। इसके साथ ही फ्री अनाज जो दिया जा रहा है उसका लाभ सभी वर्गों के लोग उठा रहे हैं। भले वह गरीब हो या ना हो फिर भी निशुल्क अनाज प्राप्त कर रहे हैं। सरकार द्वारा दिया जा रहा निशुल्क अनाज चुनाव में चर्चा का प्रमुख मुद्दा बना हुआ है। चाहे उज्ज्वला योजना हो या प्रधानमंत्री आवास योजना हो, सभी योजनाओं में निजी लाभ पहुंचाने को प्राथमिकता दी गई है, और इसका लाभ भी राजनीतिक दलों को मिलता दिखाई पड़ रहा है। योगी आदित्यनाथ युवाओं को लुभाने के लिए स्मार्टफोन और टैबलेट देने का अभियान चला रहे हैं।
भाजपा के उत्साह के अपने कारण हैं
यूपी की भाजपा सरकार के पक्ष में एक जो सबसे बड़ी बात जा रही है वह यह है कि सरकार ने माफिया को निस्तेनाबूद कर दिया है। कोई भी माफिया इस समय दिखाई नहीं पड़ रहा है। माफिया को अगर देखें तो मुस्लिम माफिया बहुत प्रभावी और पॉपुलर रहे हैं। चाहे अतीक अहमद हों, मुख्तार अंसारी हों या दूसरे माफिया, सभी को सरकार ने ठिकाने लगा दिया है। इन माफिया को क्रश करके भी सरकार ने स्थानीय स्तर पर ध्रुवीकरण का ही खेल खेला है। आम लोगों में माफिया को क्रश करने से भारी प्रसन्नता का माहौल है। प्रयागराज में अतीक अहमद के कब्जे से खाली कराई गई सरकारी भूमि पर मकान बनाकर गरीबों को देने का ऐलान आम लोगों में मजबूत सरकार का एहसास करा रहा है। लोग ऐसे ही सरकार चाहते हैं जो गुंडे बदमाश और माफियाओं को सख्ती के साथ दबा सकें। उत्तर प्रदेश के विभिन्न अंचलों में चुनावी गणित का लेखा जोखा लेने पर प्रारंभिक तौर पर ऐसा दिखाई पड़ रहा है कि भाजपा और सपा के बीच कड़ी टक्कर है। सपा को कमजोर मानना भाजपा की गलती होगी। भाजपा के लिए यह जरूर प्रसन्नता का विषय हो सकता है कि उसके कोर वोटर ब्राह्मण, ठाकुर और वैश्य में अभी भी भाजपा के प्रति विश्वास बना हुआ है। इसके साथ ही हिंदुत्व और हिंदू धर्म के लिए भाजपा की सरकारों द्वारा जो काम किया जा रहा है उससे भी हिंदू उत्साहित और समर्पित दिखाई पड़ रहा है। काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण के समय सनातन धर्म की जो दिव्यता और भव्यता दिखाई पड़ी, उसने हर हिंदू को अपनी दिव्यता और भव्यता का एहसास कराया। भाजपा में अगड़ों और पिछड़ों का अंदरूनी विवाद भी व्याप्त है। यूपी चुनाव केवल राज्य का चुनाव नहीं है, बल्कि इसे 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव की छाया के रूप में देखा जा रहा है। इसलिए योगी मोदी और अमित शाह की तिकड़ी यूपी चुनाव में कोई कसर नहीं छोड़ेगी।