विचार- मंथन: चिली ने दुनिया को चौंकाया, लोगों ने पैसे कमाने की जगह चुना पर्यावरण

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विचार- मंथन: चिली ने दुनिया को चौंकाया, लोगों ने पैसे कमाने की जगह चुना पर्यावरण

रिजवान अंसारी। एक ऐसे समय में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या से दो-चार हो रही है, तब दक्षिण अमेरिकी देश चिली दुनिया के सामने अलग ही नजीर पेश कर रहा है। दरअसल, पिछले कुछ महीनों से चिली में नए संविधान को लिखने का काम जारी है। हालांकि, 40 साल पुराने संविधान को किसी और वजह से पलटने पर सहमति बनी थी। लेकिन, एक और वजह के चलते चिली में संविधान के पुनर्लेखन ने दुनियाभर को हैरान कर दिया है। वास्तव में ये दोनों ही वजहें अपने आप में दिलचस्प हैं और हमें उन दोनों के बारे में जानना चाहिए...



जनमत संग्रह से हुआ संविधान बदलने का फैसला

2019 में चिली की सरकार ने मेट्रो किराये में चार फीसदी इजाफे का ऐलान किया। लेकिन, चिलीवासियों को सरकार का फैसला रास नहीं आया। पहले से ही भारी आर्थिक असमानता का सामना कर रही चिली की जनता मेट्रो किराये में वृद्धि के चलते गुस्से से भर गई। लोगों ने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और वे राजधानी सैंटियागो में जम गए। वहां की गलियों और सड़कों पर करीब दस लाख लोग इकट्ठे हो गए। धीरे-धीरे मेट्रो किराये का मुद्दा पीछे छूट गया और प्रदर्शनकारी पुराने संविधान को बदलने की मांग करने लगे। इसके पीछे तर्क दिया गया कि चिली का संविधान पूरी तरह रूढ़िवादि नीतियों पर आधारित है और इसके प्रावधानों के चलते अमीर और अमीर बन रहे हैं तथा गरीब और गरीब। लिहाजा, अक्टूबर, 2020 में इस मुद्दे पर जनमत संग्रह कराया गया। इसमें हिस्सा लेने वाले 78 फीसदी लोगों ने संविधान को बदलने के पक्ष में अपना वोट दिया।





तो लीथियम है बड़ी वजह...

आने वाले समय में इलेक्ट्रिक वाहनों परिवहन की रीढ़ बनने वाली है। प्रदूषण को कम करने के लिए ई-वाहन परिवहन के महत्वपूर्ण साधन बन सकते हैं। दूसरी ओर, बड़े-बड़े उद्योग भी ऊर्जा के साथ-सुथरे विकल्प की तलाश में हैं। चूंकि, लीथियम का इस्तेमाल ‘ग्रीन फ्यूल’ के रूप में होता है इसलिए इसे मजबूत विकल्प समझा जा रहा है।





दूसरी बात ये है कि गैर-बराबरी के चलते फिर से लिखे जाने वाले संविधान में अब पर्यावरण को भी प्राथमिकता देने की बात कही गई है। संविधान मसौदा समिति के इस दावे ने पूरी दुनिया को चौंका दिया है। दरअसल, चिली एक ऐसे खनिज का धनी है जिसकी मदद से कार्बन उत्सर्जन को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सकता है और उसी खनिज से जलवायु परिवर्तन के खतरे भी बढ़ सकते हैं। दरअसल, चिली लीथियम रिजर्व के मामले में पहले पायदान पर है और वो दुनिया का दूसरा बड़ा लीथियम उत्पादक देश है। लीथियम की खासियत है कि वह खुद गैर- नवीकरणीय खनिज होने के बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा पैदा करता है। लीथियम बैटरी में व्यापक पैमाने पर इस्तेमाल किया जाता है। मौजूदा वक्त में जब दुनिया जीवाश्म ईंधन के विकल्पों की तलाश कर रही है, तब लीथियम सबसे मजबूत विकल्प के तौर पर उभर रहा है। आने वाले समय में इलेक्ट्रिक वाहनों परिवहन की रीढ़ बनने वाली है। प्रदूषण को कम करने के लिए ई-वाहन परिवहन के महत्वपूर्ण साधन बन सकते हैं। दूसरी ओर, बड़े-बड़े उद्योग भी ऊर्जा के साथ-सुथरे विकल्प की तलाश में हैं। चूंकि, लीथियम का इस्तेमाल ‘ग्रीन फ्यूल’ के रूप में होता है इसलिए इसे मजबूत विकल्प समझा जा रहा है। लीथियम के इसी गुण के कारण इसके मूल्य लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि लीथियम नवीकरणीय ऊर्जा को संभव बनाता है तो इसके उत्पादन में वृद्धि होने से नवीकरणीय ऊर्जा के अधिकाधिक स्रोत तैयार होंगे और कार्बन उत्सर्जन पर लगाम लगेगा। दूसरी ओर, चिली खुद 2040 तक ‘नेट जीरो’ हासिल करना चाहता है। लेकिन, इसमें दिक्कत यह है कि जिस स्थान पर लीथियम का खनन होता है, वहां की जमीन में नमी की कमी हो जाती है। इससे आसपास के तापमान में वृद्धि हो जाती है। जाहिर है, वह क्षेत्र सूख जाता है। दूसरी दिक्कत है कि लीथियम खनन वाली जगह में भू-जल के खारा होने का भी खतरा है। यानी लीथियम का ज्यादा खनन मनुष्य और वनस्पति दोनों के लिए मुश्किलें पैदा कर सकता है। दूसरे शब्दों में कहे, तो इससे सीधे तौर पर पर्यारण को नुकसान पहुंचने का खतरा है।



जुलाई में साफ होगी तस्वीर

चिली की जनता को डर है कि लीथियम की कीमत दिनोंदिन बढ़ने से चिली की सरकार इसका अधिकाधिक दोहन कर धन कमा सकती है। इसकी वजह है कि चिली की सरकार ने इस ओर इशारा कर चुकी है। लेकिन, चिली के ज्यादातर नागरिक सरकार के कदम का विरोध कर रहे हैं। ऐसे में संविधान सभा के लिए चुने गए 155 प्रतिनिधियों ने इस ओर अपनी चिंता जाहिर की है। लोगों के इसी डर को ध्यान में रखते हुए संविधान मसौदा समिति का कहना है कि वे नए संविधान में पर्यावरण को बचाने के लिए खास प्रावधान करेंगे। लीथियम खनन के फैसलों में स्थानीय लोगों को ज्यादा शक्ति देने के प्रावधान किए जाएंगे। यानि सरकार सिर्फ अपनी मर्जी से लीथियम का दोहन नहीं कर सकेगी। हो सकता है कि संविधान में खनन पर भारी रॉयल्टी और प्रतिबंध के प्रावधान भी शामिल किए जाएं। संविधान लिखने वालों का दावा है कि इसी साल जुलाई तक नया संविधान बन कर तैयार हो जाएगा और वे दुनिया के सामने नजीर पेश करने में कामयाब होंगे।



चिली बना दुनिया में मिसाल

शायद ही अब तक किसी देश ने संविधान की पुस्तिका में पर्यावरणीय समस्याओं को तरजीह देने और उस पर गंभीर होने की कोशिश की हो। जिस पुस्तिका में आम तौर पर राजनीति करने के तौर- तरीकों का बखान होता है, उसमें जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दों पर गंभीर लेखन वाकई दुनिया को हैरान करने वाला है। एक ऐसे समय में जब इस पर गंभीर होने की जरूरत महसूस की जा रही है, तब चिली ने पूरी दुनिया को राहें दिखाई हैं। मौजूदा वक्त में जलवायु परिवर्तन के खतरों से कोई इनकार नहीं कर सकता। हाल ही में ग्लासगो में दुनियाभर के देश इसी चिंता को लेकर जमा हुए थे। आर्थिक विकास हर देश की जरूरत है। इसी मोह में दुनिया के विकसित देश कार्बन उत्सर्जन के खतरों को अभी तक नजर अंदाज कर रहे हैं। चिली चाहे तो लीथियम का मनचाहा दोहन कर धन अर्जित कर सकता है। लेकिन, इस मामले में उसने पर्यावरण को चुना। इससे भविष्य को लेकर चिली की चिंता साफ दिखाई देती है। यकीनन, चिली की इस कदम से भारत, अमेरिका और चीन जैसे बड़े कार्बन उत्सर्जक देशों को सीखे लेने की जरूरत है। ( लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं) 


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