जयराम शुक्ल. राहुल गांधी ने 7 सितंबर को जब कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू की उस समय किसी ने इसे इतनी गंभीरता से नहीं लिया जितनी कि अब मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकाल की ड्योढ़ी पर पहुंचने पर ले रहे हैं। इसकी वजह साफ थी कि उन्हें राजनीति में ऐसे खिलदंड के तौर पर देखा जा रहा था जो न अपनी पार्टी के मामलों में गंभीर है और ना ही संसद के सत्र को लेकर। वे कभी भी बिना घोषित कार्यक्रम के विदेश निकल जाते थे।
शुरुआती दौर में बीजेपी ने यात्रा का खूब मजाक बनाया
इसलिए शुरुआती दौर में बीजेपी ने उनकी यात्रा को लेकर खूब मजाक बनाए। टीशर्ट की कीमत खोजकर लाए और युवतियों के हाथ पकड़कर चलने को लेकर भी सोशल मीडिया में बखेड़ा खड़ा करना चाहा। यद्दपि बीजेपी के बड़े नेता इस यात्रा को लेकर कुछ भी कहने से बचते रहे, लेकिन उसके बी और सी ग्रेड के नेताओं ने कुछ इसी तरह सतही मुद्दे उछालते रहे।
यात्रा में उमड़ा जनसैलाब बीजेपी की चिंता का विषय
आज जब राहुल गांधी लगभग 2000 किमी से ज्यादा की पदयात्रा पूरी कर चुके हैं तो उनकी इस दृढ इच्छाशक्ति पर सबसे ज्यादा भाजपा भौंचक है। मध्यप्रदेश के बुरहानपुर से लेकर आगर तक की 300 किमी की यात्रा के दौरान जो जनसैलाब उनकी यात्रा को लेकर उमड़ा वह प्रदेश की भाजपा के लिए होश फाख्ता करने के लिए पर्याप्त है, भले ही इसे कोई व्यक्त न करे। राहुल गांधी की पदयात्रा के बीच पाकिस्तान जिन्दाबाद के कथित नारों को लेकर जरूर विवाद खड़ा करने की कोशिश की गई, लेकिन इसे शायद ही किसी ने गंभीरता से लिया हो। मप्र की बीजेपी की सरकार और छग की कांग्रेस सरकार ने मुकदमे दर्ज किए है.. सच क्या था यह शायद ही सामने आ पाए। और इस सच को लेकर किसी को दिलचस्पी भी नहीं।
ये यात्रा 3570 किमी की दूरी तय कर श्रीनगर पहुंचेगी
राहुल गांधी की यात्रा 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू हुई। मध्यप्रदेश में बुरहानपुर के बोदरली गांव में 23 नवंबर को प्रवेश किया। 12 दिनों में 380 किमी का सफर तय करते हुए 4 दिसंबर को राजस्थान में प्रवेश करेगी। यह यात्रा कन्याकुमारी से कश्मीर तक 12 राज्यों, 2 केन्द्र शासित प्रदेशों को कवर करते हुए 3570 किमी की दूरी नापते हुए श्रीनगर पहुंचेगी।
इस यात्रा से क्या राहुल गांधी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता बनेगी
अब हम राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के फलितार्थ की बात करेंगे। यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि यह यात्रा मोदी सरकार के भविष्य की कितनी बड़ी चुनौती बनेगी। कांग्रेस क्या फिर अपनी राख से फीनिक्स की भाँति फिर उठ खड़ी होगी, राहुल गांधी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता किस हद तक बनेगी। चलिए इससे पहले हम जानते हैं कि इस यात्रा के मध्यप्रदेश में क्या ठाट रहे और राजनीतिक तौर पर अगले चुनाव में क्या असर पड़ सकता है।
राहुल, जनता से सीधे संवाद की कला में महारत साबित कर रहे हैं
सत्तापेक्षी मीडिया ने भले ही राहुल गांधी की पदयात्रा के कवरेज को लेकर पहले कंजूसी बरती हो, लेकिन मध्यप्रदेश में जो रिस्पांस मिल रहा है उसके चलते अब यह यात्रा चार दिनों से अखबार के पहले पन्ने पर सुर्खियों में है। कभी जीएसटी को श्गब्बर सिंह टैक्सश् जैसा सड़क छाप जुमला बोलने वाले राहुल गांधी अब हर बात सधे हुए अंदाज में बोल रहे हैं। जनता से सीधे संवाद की कला में खुद को महारत साबित कर रहे हैं। मंगलवार को उज्जैन की आमसभा में जिसने भी उन्हें देखासुना यही महसूस कर रहा है। उन्होंने यहां बड़ी बात कही। देश के असली तपस्वी मेहनतकश मजदूर, छोटे व्यापारी और लगनशील युवा है, देश की सरकार इनका अपमान कर रही है। उसके लिए तो तीन बड़े उद्योगपति ही तपस्वी हैं, जिन्हें उपकृत करने का काम कर रही है। जीएसटी और नोटबंदी की चर्चा को फिर बहस के केन्द्र में लाने की कोशिश की और कहा कि इन्हें कैशफ्लो रोकने के लिए औजार की भांति उपयोग किया गया जिससे छोटे व्यापारी बर्बाद हो गए और युवाओं से रोजगार छिन गया। यद्यपि नोटबंदी और जीएसटी लागू करने के बाद हुए 2019 के संसदीय चुनाव में भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले बंपर सफलता मिली थी। राहुल को लगता है कि छोटे व्यापारियों में इसकी टीस अभी भी है और उन जख्मों को हरा किया जा सकता है।
पप्पू वाली छवि से निकलकर ज्यादा सयाने दिखने लगे हैं
सुविख्यात पत्रकार डॉ. प्रकाश हिन्दुस्तानी ने भारत जोड़ो यात्रा को चार दिनों तक लगातार कवर किया। वे यात्रा के साथ चले, सभाओं और प्रेस कान्फ्रेंस में भी रहे। प्रकाश जी बताते है। राहुल गांधी की छवि को जिस तरह प्रचारित किया गया था वो उसके ठीक उलट दिखे। आप कह सकते हैं कि पदयात्रा और सीधे जनसंवाद ने उनकी काया पलट दी वे अब श्पप्पूश् वाली छवि से निकलकर ज्यादा सयाने परिपक्व और संजीदा लगने लगे हैं। नपेतुले अंदाज में बोलते और जवाब देते हैं। अब देखिए महू की सभा में ही, राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की तस्वीरें राहुल गांधी से ज्यादा बड़ी थीं। पत्रकारों ने जब कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति पर सवाल किए तो उन्होंने किनारा करते हुए कहा कि यह हमारे राष्ट्रीय अध्यक्ष को विचार करने का विषय है, यह पदयात्रा कांग्रेस की राजनीति को चमकाने का साधन नहीं है।
मालवा निमाड़ की अजजा की 67 सीटों को देखते हुए यात्रा को डिजाइन किया
डॉ. हिन्दुस्तानी बताते हैं कि राहुल भले ही ऐसा कह रहे हों, लेकिन मध्यप्रदेश में यात्रा का रूट जिस तरह से डिजाइन किया गया, वह अगले चुनाव को लेकर बड़ी रणनीति का हिस्सा है। प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में 82 सीटें एसटी की हैं। मालवा और निमाड़ की 67 सीटों में अजजा की सीटें मायने रखती हैं। पिछली मर्तबा इसमें 34 सीटें कांग्रेस को मिली तो उसकी सरकार बन गई। 2013 के चुनाव में 42 सीटें पाने वाली बीजेपी 29 सीटों पर सिमटकर रह गई थी। खरगोन, बुरहानपुर में तो बीजेनी का खाता ही नहीं खुला। इस दृष्टि से यह क्षेत्र अगले चुनाव में फिर बैटल फील्ड बनने वाला है। राहुल गांधी की पदयात्रा के इस क्षेत्र से गुजरने का गहरा असर पड़ेगा बशर्ते प्रदेश की कांग्रेस वैसे ही एक दिखे जैसे कि इन दिनों दिख रही है।
राहुल अपनी यात्रा में ऐसे रमे कि गुजरात और हिमाचल का चुनाव भी भूले
राहुल गांधी अपनी पदयात्रा में जो भी मुद्दे उठा रहे हैं बहुत ही सोच समझकर। धार्मिक स्थलों में वैसे ही पहुंचकर श्रद्धावनत हो रहे हैं जैसे कि 1977 में सत्ताच्युत होने के बाद इंदिरा गांधी जाती थीं। वे कहते हैं कि मेरी छवि बिगाड़ने में करोड़ों रुपए खर्च किए गए वस्तुतः विरोधियों का यही कृत्य मेरे लिए प्रेरणा बन गया। इसने मुझे यात्रा के लिए ऊर्जा दी। राहुल बार-बार यह दोहराने से नहीं चूकते कि संसद में कांग्रेस व अन्य विपक्षी सांसदों को बात नहीं रखने दी जाती इसलिए वे सीधे अपनी बात जनता के सामने रख रहे हैं और उनकी बातें सुन रहे हैं। राहुल अपनी पदयात्रा में इतने रमे हैं कि गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव भूल से गए हैं। वे अपने संबोधन में वोट की बात नहीं करते। पहले तय था कि वे समय निकालकर चुनावी रैलियों में जाएंगे, लेकिन अब शायद ही जाएं। अगले महीने के शीतकालीन सत्र की भी उन्हें चिन्ता नहीं।
यात्रा को लेकर बीजेपी संजीदा, जीरो टालरेंस की नीति अपना रही
भारत जोड़ो यात्रा को पहले हल्के में ले रही बीजेपी अब संजीदा है। मध्यप्रदेश में सरकार उनकी यात्रा के प्रबंध में जीरो टालरेंस की नीति अपना रही है। शुरुआती दौर में भाजपा के सोशल मीडिया हैन्डलरों की ओर से यह संकेत मिला था कि राहुल को बीच यात्रा में ही ईडी की पेशी में आना पड़ सकता है पर अब शायद ही इस तरह के दुस्साहस की कोशिश हो। फिलहाल सबकी नजर राजस्थान पर है जहां के दो बड़े नेता गहलोत और पायलट आपस में लड़ रहे हैं। राहुल ने बड़ी चतुराई के साथ दोनों को पार्टी का एसेट बताया, उसकी प्रतिक्रिया में गहलोत ने इस झगड़े को मुल्तवी कर रखा है। मध्यप्रदेश में बड़ी कोशिशें की गईं कि यात्रा के दरमियान ही कुछ विधायक टूटकर आएं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टे जिन विधायकों को संदिग्ध माना जा रहा था उन्होंने बढ-चढ़कर हिस्सा लिया।
यात्रा जादू की छड़ी नहीं, लेकिन 2014 से शुरू पार्टी का पतन जरूर रुक सकता है
अब मूल सवाल यह कि राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा मोदी व उनकी सरकार के लिए किस हद तक चुनौती पेश कर सकती है। इसका जवाब जरा ठहरकर सोचना होगा। यात्रा के बीच में सीवोटर ने जनता के मूड का सर्वे किया नतीजन यह निकला कि जिन राज्यों से यात्रा निकली वहां राहुल के समर्थन में 4 से 9 प्रतिशत की बढ़त देखी गई। देशव्यापी लोकप्रियता के मामले में राहुल और मोदी के बीच 10.50 का फासला है। राहुल रसातल तक पहुंची पार्टी को धरातल की ओर ला रहे हैं इसलिए उनकी बढ़त दिख रही है। एक विश्लेषक कहते हैं। यह यात्रा जादू की छड़ी नहीं है, लेकिन यह कांग्रेस पार्टी का 2014 में शुरू हुआ पतन रोकने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। राहुल 150 दिनों तक जिस तरह देश के फोकल प्वांइट में रहेंगे उसके चलते कांग्रेस एक गंभीर विपक्ष के रूप में दोबारा उभर सकती है और विपक्षी एकता की धुरी बन सकती है।
राहुल तो उस परंपरा के हैं जिसकी जड़ें अभी भी गहरी हैं
गांधी-नेहरू परिवार से जो तीन प्रधानमंत्री हुए हैं उन सबके लिए राह आसान थी। राहुल के पिता राजीव गांधी तो सीधे पायलट से प्रधानमंत्री बन गए। वे निस्पृह और स्वच्छ छवि के थे। मीडिया उन्हें मिस्टर क्लीन लिखता था, लेकिन भारत को लेकर उनको ना तो समझ थी और ना ही राजनीति के पैतरों का अनुभव। परिणाम यह हुआ कि जो उनके इर्दगिर्द रहे उन्हीं ने दलदल में धंसा दिया। जिसको संसद में विराट बहुमत का श्रेय मिला था उसी को चार साल के भीतर ही "मिस्टर डेन्ट" बनाकर अगले चुनाव में सत्ता से बाहर कर दिया। राहुल के सामने अब कंटकाकीर्ण पथ है। 3500 किमी की पदयात्रा उन्हें अलग किस्म के राजनेता गढ़ने में मदद करेगी। जब अभ्यास से जड़मति तक सुजान हो जाते हैं। राहुल तो उस वंश परम्परा के हैं जिसके जड़ें अभी भी गहरी हैं भले ही ऊपर ठूंठ दिख रहा हो। पद यात्राओं ने हर किसी का कायाकल्प किया है। मोहनदास करमचंद (61वर्ष) को महात्मा गांधी बना दिया। आचार्य विनोबा भावे (65 साल) संत बन गए। राजनीति के एकल योद्धा चन्द्रशेखर (62वर्ष) प्रधानमंत्री तक पहुंच गए तो 52 वर्ष के युवा राहुल गांधी के सामने तो अभी विस्तृत वितान पड़ा है।