हमारे देश में 40 के दशक में काफी उथल-पुथल रही। दूसरा विश्व युध्द चल रहा था। ब्रिटिश सरकार के विरोध में जनमत तीव्र हो रहा था। विश्व युध्द समाप्त होने के बाद भारत को स्वतंत्रता दी जाएगी, ब्रिटिश सरकार ने ये घोषणा भी कर दी थी। लेकिन जब आजादी सामने दिखने लगी, तो मुस्लिम लीग ने आक्रमण तेज कर दिए। देश में कई स्थानों पर दंगे भड़के। दंगों के माध्यम से मुस्लिम लीग, खौफ निर्माण का काम कर रही थी।
पहले मेरे शरीर के टुकड़े, फिर विभाजन- गांधी..!
मुस्लिम लीग पाकिस्तान की मांग कर रही थी। शुरुआत में तो कांग्रेस भी बंटवारे के विरोध में थी। गांधी ने ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि पहले मेरे शरीर के टुकडे़ होंगे, फिर इस देश का विभाजन होगा..! इस देश के करोड़ों लोगों ने गांधी को अपना नेता माना था। गांधी को ‘महात्मा’ की पदवी से नवाजा था। उन्हें गांधी पर पूरा विश्वास था, लेकिन 4 जून 1947 को दिल्ली की प्रार्थना सभा में गांधी ने उनका विश्वास तोड़ दिया। उन्होंने, कांग्रेस पार्टी विभाजन का समर्थन क्यों कर रही है, इसलिए तर्क दिए... गांधी ने बंटवारे का समर्थन किया..!
विभाजन नहीं होगा, ऐसा मानने वाले करोड़ों लोग इस घटना से टूट गए। विशेषतः सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों पर यह बहुत बड़ा आघात था। वे विभाजन के लिए तैयार नहीं थे। उन्होंने विस्थापन के बारे में सोचा ही नहीं था। गांधी फिर भी कह रहे थे कि प्रस्तावित पाकिस्तान से हिन्दुओं को विस्थापित होने की कोई आवश्यकता नहीं है..
अखंड भारत का समर्थन, फिर विभाजन, देश से हटा अभिशाप- अंबेडकर
लेकिन डॉ अंबेडकर ज्यादा व्यवहारिक थे। गांधी, नेहरू और जिन्ना की नीतियों का उन्होंने पूरजोर विरोध किया। अपनी पुस्तक थॉट ऑन पाकिस्तान में उन्होंने लिखा कि गांधी अस्पृश्यों को तो कोई भी राजनीतिक लाभ देने का विरोध करते हैं, लेकिन मुसलमानों के पक्ष में एक कोरे चेक पर हस्ताक्षर करने तैयार बैठे हैं। अंबेडकर की मूल चिंता थी कि आखिर कांग्रेस द्वारा इतना पालने-पोसने के बाद भी मुसलमान अलग देश की मांग क्यों कर रहे हैं..?
डॉ अंबेडकर मूलतः अखंड भारत के समर्थक थे। उन्होंने लिखा कि प्रकृति ने ही भारत को अखंड बनाया है। लेकिन वास्तविक धरातल पर उन्होंने द्विराष्ट्र वाद का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि मुसलमानों का हिन्दुओं के साथ सह-अस्तित्व संभव ही नहीं है। इसलिए उन्हें अलग राष्ट्र देना ही ठीक रहेगा। लेकिन एक शर्त पर, हिंदुस्तान के सारे मुसलमान प्रस्तावित पाकिस्तान में जाएंगे और वहां के सारे हिन्दू हिंदुस्तान में आएंगे..! उनके शब्द हैं- When partition took place, I felt that God was willing to lift his curse and let India be one great and prosperous (जब विभाजन हुआ तो मुझे लगा मानो ईश्वर ने हमे दिया हुआ अभिशाप (श्राप) हटा लिया है और अब भारत एक महान और समृध्द राष्ट्र बनेगा) डॉ अंबेडकर : राइटिंग एंड स्पीचेस, पहला खंड, पृष्ठ 146
दुर्भाग्य से कांग्रेस ने भारत विभाजन का प्रस्ताव तो स्वीकार किया लेकिन जनसंख्या की अदलाबदली को सिरे से नकारा... इसका नतीजा रहा, इतिहास के सबसे दर्दनाक दंगे। लाखों लोगों की मृत्यु। करोड़ों लोगों का बिना किसी योजना के बलात विस्थापन..! आजादी का दिन (15 अगस्त) जैसे जैसे समीप आ रहा था, वैसे वैसे बंगाल, पंजाब और सिंध में दंगे बढ़ते जा रहे थे। हिन्दुओं को घर-बार छोड़ने के लिए विवश किया जा रहा था... ऐसे में हमारा नेतृत्व क्या कर रहा था..?
जब कोट-जैकेट पहनकर टिप-टॉप तैयार थे नेहरू..
नेहरू, अगस्त 1947 के पहले और दुसरे सप्ताह में सत्तांतरण के कार्यक्रम की तैयारी में व्यस्त थे। उनकी बहन कृष्णा हाथिसिंग ने लिखा कि Jawahar was concerned about his wardrobe. नेहरू ने 14 अगस्त की रात के समारोह में पहनने के लिए पेरिस से अचकन और जैकेट मंगाए थे। सीमा पर हो रहे दंगों की चिंता करने कि बजाय, नेहरू को उन कपड़ों की चिंता थी। लॉर्ड माउंटबेटन को नेहरू आश्वस्त कर रहे थे कि स्वतंत्रता के बाद भी भारत की सरकारी इमारतों पर ब्रिटेन के शासकीय महत्व के दिनों में, यूनियन जैक फहराया जाएगा..!
लेकिन जब पंजाब और सिंध जल रहा था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर 5 अगस्त से 8 अगस्त तक सिंध के दंगा पीड़ित क्षेत्रों (जो अब पाकिस्तान में हैं) में ही थे। कराची के हवाईअड्डे पर गोलवलकर को लेने के लिए जिस भारी मात्रा में स्वयंसेवक आये थे, उसके एक चौथाई भी लीग के कार्यकर्ता, जिन्ना को लेने नहीं आए थे...! गोलवलकर ने धधकते वातावरण में कराची और हैदराबाद (सिंध) में स्वयंसेवकों के साथ बैठके की। साधु वासवानी के साथ सार्वजनिक सभा को संबोधित किया। लोगों को ढांढस बंधाया।
गोलवलकर के बाद 13 अगस्त को राष्ट्र सेविका समिति की तत्कालीन प्रमुख संचालिका लक्ष्मीबाई केलकर भी कराची पहुचीं। जिस दिन पाकिस्तान का निर्माण (14 अगस्त 1947) हो रहा था, ठीक उसी दिन, कराची में लक्ष्मीबाई ने समिति की बहनों के साथ एक विशाल बैठक की। साहस और समर्पण इसे कहते हैं ! उन अशांत परिस्थितियों में जब संघ, समिति और आर्य समाज के अधिकारी और कार्यकर्ता, लोगों में ढांढस बंधा रहे थे, उनके सुरक्षित भारत लौटने के प्रबंध कर रहे थे, तब देश का कांग्रेसी नेतृत्व दिल्ली में राज्यारोहण की खुशियां मनाने में व्यस्त था...!