/sootr/media/post_banners/a3ef7a77813b196130bc289e7e22ee37ffa192ad03b508b08adf29656eab85dd.jpeg)
वर्ष 1971 तक, डीएफओ (डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) नॉर्थ बैतूल के पद पर पदस्थ रहा। डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर के कार्यों का लेखा-जोखा और समीक्षा करने के लिए ऑफिस का निरीक्षण फॉरेस्ट कंजरवेटर द्वारा वर्ष में एक बार किए जाने का नियम है। तत्कालीन फॉरेस्ट कंजरवेटर होशंगाबाद पीटर मेरे ऑफिस का निरीक्षण करने बैतूल आए। कंजरवेटर पीटर ने सुबह से दोपहर 1 बजे तक ऑफिस का निरीक्षण किया। वे लंच नहीं लेते थे फिर भी मेरी आवश्यकता को ध्यान रखते हुए डेढ़ घंटे का लंच ब्रेक रखा। उन्होंने रेस्ट हाउस जाते वक्त कहा कि 2:30 बजे से ऑफिस का निरीक्षण पुन: जारी रहेगा। उस समय यह प्रथा प्रचलित थी कि जब भी कोई सीनियर ऑफिसर निरीक्षण करने के लिए आते तो डीएफओ स्वयं उन्हें रेस्ट हाउस से लेने जाते थे।
ऑफिस निरीक्षण के समय गहरी नींद में चला गया
जिस दिन ऑफिस का निरीक्षण था उसके एक दिन पूर्व मैं क्लब में ब्रिज खेलने गया। यह मेरी प्रतिदिन की दिनचर्या में शामिल था। अगले दिन ऑफिस का निरीक्षण था इसलिए मैंने सोचा कि ब्रिज के एक-दो रबर खेलकर जल्द घर वापस आ जाऊंगा ताकि अगले दिन के रूटीन में कोई दिक्कत ना आने पाए। क्लब के एक मेंबर जो लंबे अंतराल के बाद ब्रिज खेलने आए थे, उनके आग्रह के कारण मैं सुबह 5 बजे तक क्लब में ब्रिज खेलता रहा। फिर भी तैयार हो कर सुबह 10 बजे ऑफिस निरीक्षण के लिए कंजरवेटर पीटर को रेस्ट हाउस से लेकर ऑफिस पहुंच गया। पीटर समय के पाबंद सख्त किस्म के अधिकारी थे। उनका निरीक्षण दोपहर 1 बजे तक चलता रहा। लंच ब्रेक के बाद मुझे उन्हें लेकर पुन: ऑफिस पहुंचना था। घर आकर मैंने लंच लिया। ढाई बजने में अभी काफी समय शेष था, इसलिए सोचा कि थोड़ा बिस्तर पर लेट कर रिलेक्स कर लिया जाए। पिछली रात भर ब्रिज खेलने के कारण पर्याप्त नींद नहीं हुई थी और शरीर में थकान भरी हुई थी, इसलिए कुछ समय पश्चात ही गहरी नींद के आगोश में चला गया। कुछ हलचल होने पर जब मेरी नींद टूटी तो देखा कि घड़ी की सुई 4:30 पर टिकी हुई थी। मैं एकदम से घबराकर भीतर से हिल गया। मेरी भयंकर भूल यह रही कि मैंने पत्नी को यह नहीं बताया कि मुझे पुनः 2:30 बजे कार्यालय निरीक्षण के लिए जाना है जिस कारण उन्होंने मुझे उठाया ही नहीं। अगर बता दिया होता तो वे मुझे समय से उठा देतीं। मेरे कार्यालय के वार्षिक निरीक्षण का यह अत्यंत महत्वपूर्ण अवसर था, जिसके आधार पर ही मेरे कार्य का आंकलन कर वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन में रिपोर्ट लिखी जानी थी। अच्छी रिपोर्ट के आधार पर ही भविष्य में पदोन्नति के अवसर प्राप्त होते हैं। मेरी इस भयंकर अनुशासनहीनता के लिए कंजरवेटर पीटर शासन को मेरे विरुद्ध रिपोर्ट भेजकर मुझे सजा भी दिलवा सकते थे। ये सब बातें मुझे मेरे करियर में आगे बढ़ने में बाधक सिद्ध हो सकती थीं।
वरिष्ठ अधिकारी को बहाना बनाकर भटकाने की कोशिश
घबराता हुआ और भयभीत होकर जब मैं कंजरवेटर पीटर को लेने रेस्ट हाउस पहुंचा तो उन्हें गुस्से से लाल होकर तमतमाते हुए पाया और मुझे देखते ही वे आग बबूला हो उठे। उन्होंने अत्यंत ऊंचे स्वर में मुझे अंग्रेजी भाषा में डांटते हुए कहा कि आप नहीं चाहते कि आप के ऑफिस का निरीक्षण किया जाए। आपने जानबूझकर आने में विलंब किया एवं अनुशासनहीनता का परिचय दिया, जिसका खामियाजा आपको भुगतना पड़ेगा। गलती मेरी ही थी, इसलिए झूठ बोलकर बहाना बनाते हुए कहा कि पुत्र की वार्षिक परीक्षा थी और उसके पेपर देकर लौटने व प्रश्न पत्र को चेक करने के कारण विलंब हुआ। फिर भी पीटर साहब उखड़े हुए रहे। अंत में मैंने अपनी गलती मानते हुए क्षमा मांगी, तब वे बड़ी मुश्किल से निरीक्षण करने के लिए राजी हुए। पीटर साहब अंग्रेजों के समय के ऑफिसर थे, इसलिए वे कड़क होने के साथ ही समय की पाबंदी को विशेष महत्व देते थे।
फॉरेस्ट कंजरवेटर को सबक सिखाने का प्रतिशोध
पीटर साहब के डांटने के कारण मेरे अहम को गहरी चोट लगी। असहज महसूस करता रहा। उसी समय मेरे अग्रज बैतूल आए हुए थे। वे उस समय पीडब्ल्यूडी होशंगाबाद में सुप्रिटेडिंग इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। मैंने पीटर साहब के साथ घटित हुए पूरे वाक्ये की जानकारी उनको दी। मैंने बड़े भाई साहब से कहा कि पीटर साहब के डांटने के कारण मैं स्वयं को अपमानित व आहत महसूस कर रहा हूं। मैंने कहा कि जब तक कंजरवेटर साहब के द्वारा उपयोग में लाई गई भाषा में ही उनको जवाब नहीं दे दूंगा, तब तक मुझे चैन नहीं मिलेगा। भाई साहब व पत्नी ने मुझे कई बार समझाया कि इस प्रकार उत्तेजित होकर कोई कदम उठाने से लाभ नहीं होगा, लेकिन उनकी बात का मुझ पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। शाम के समय पीटर साहब से बदला लेने और उन्हें खरी-खोटी सुनाने फॉरेस्ट रेस्ट हाउस पहुंचा, परंतु दुर्भाग्यवश उस समय वहां बैतूल में पदस्थ फॉरेस्ट महकमे के समस्त ऑफिसर पीटर साहब से भेंट करने के लिए मौजूद थे और आपस में वार्तालाप चल रहा था। इतने सारे ऑफिसरों के सामने पीटर साहब से वाद-विवाद करना और उनसे बहस करना मुझे उचित नहीं लगा। कुछ समय तक रेस्ट हाउस में रुकने के उपरांत मन मसोसकर अपना-सा मुंह लेकर विवश होकर वापस घर लौट आया। घर वापस आने पर भाई साहब व पत्नी को बताया कि बदला लेने की मेरी इच्छा पूर्ण नहीं हो पाई। उन दोनों ने पुन: मुझे समझाया कि स्वयं गलती करना और उसके बाद दूसरों से बदला लेने की प्रवृत्ति रखना ठीक नहीं है, जिसके बाद मेरी सोच में बदलाव आया। अगले दिन तक मेरा गुस्सा काफूर हो चुका था। मुझे आभास हो चुका था कि गलती मेरी ही थी, इसलिए इस पूरे मसले में मुझे उत्तेजित नहीं होना चाहिए था।
कंजरवेटर पीटर का बड़प्पन
अगले दिन कंजरवेटर पीटर साहब के साथ जंगल निरीक्षण के लिए गया। इस दौरान मैंने उनसे कहा कि विलंब से आने में मेरी ही गलती थी, जिस पर वे कृपया ध्यान न दें। उन्होंने उत्तर दिया कि अब उस घटना को भुला दिया जाए। पीटर साहब के अंतःकरण में निर्मल भावना भरी हुई थी, शायद इस कारण उन्होंने मेरी बड़ी भूल को अनदेखा कर दिया। रिटायरमेंट के बाद वे पीएससी के मेंबर पद पर नियुक्त किए गए। कई वर्षों के बाद जब मैं कंजरवेटर रीवा के पद पर कार्यरत था, तब वे मेरे घर पर भोजन के लिए आए। उस दौरान मैंने उन्हें ऑफिस निरीक्षण में विलंब से आने का सही कारण यानी रात भर क्लब में ब्रिज खेलने की बात स्पष्ट रूप से बताई, तो इसका उन्होंने भरपूर आनंद उठाया और मजा लिया। पीटर साहब के बहनोई वर्गीस कुरियन भारत में दूध क्रांति के प्रणेता रहे हैं। आज सोचता हूं कि बैतूल में उस शाम यदि पीटर साहब से मिलने फॉरेस्ट महकमे के अन्य ऑफिसर उपस्थित नहीं होते तो निश्चित रूप से मैं उनको जो कुछ भी भला-बुरा बोलता, वह मेरे कैरियर के लिए भविष्य में रुकावट का बड़ा कारण बन सकता था।
बंदूक का उपयोग कभी शिकार के लिए नहीं
बैतूल पदस्थापना के दौरान कुछ अवधि के लिए कोमल सिंह ठाकुर बैतूल के कलेक्टर रहे। एक बार कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर और सिविल सर्जन डॉ. यूसी राय के साथ दौरे पर गया। हम लोग आमला रेंज स्थित लादी फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में रुके। वह ऐसा समय था जब गजटेड ऑफिसर दौरे पर रहते हुए जंगल में शिकार कर सकते थे, परन्तु शर्त यही थी कि जिस भी वन्य प्राणी का शिकार किया जाएगा, उसकी रॉयल्टी शासकीय कोष में जमा की जाएगी। फॉरेस्ट ऑफिसर होने के नाते मैं हमेशा जंगलों के भ्रमण पर जाता रहा, परन्तु बचपन से आत्मसात किए गए संस्कारों और शाकाहारी होने के कारण शिकार में जरा भी रुचि नहीं थी। हां, वन्य प्राणियों को जंगल के प्राकृतिक वातावरण में विचरण करते हुए देखने में, उसका आनंद उठाने में पीछे नहीं रहता था। मेरे पास 12 बोर की इंग्लिश मेक बीएसए डबल बैरल बंदूक थी। यह बंदूक श्वसुर आईपीएस अधिकारी रहे बीएल पाराशर ने उपहार स्वरूप दी थी। मैंने कभी भी इस बंदूक का उपयोग शिकार करने के लिए नहीं किया।
कलेक्टर की टिप्पणी से शासन हुआ भ्रमित
कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर शिकार के शौकीन थे। लादी के जंगल क्षेत्र में रात्रि भ्रमण करते समय उन्होंने एक तेंदुए का शिकार किया। दौरे से वापस लौटने के तत्काल बाद मैंने शिकार किए गए तेंदुए की रॉयल्टी का चालान बनाकर कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर के पास भुगतान करने के लिए भिजवा दिया। जैसे ही उनको चालान मिला उन्होंने तत्काल उसका भुगतान कर दिया। कुछ अंतराल के बाद कार्यवश भोपाल शासकीय दौरे पर गया। वहां मुझे जानकारी मिली कि कलेक्टर कोमल सिंह ठाकुर ने मेरे वार्षिक गोपनीय प्रतिवेदन में लिखा कि मैं नियमों का कड़ाई से पालन करता हूं। शासन स्तर से कलेक्टर कोमल सिंह को स्पष्ट करने के लिए कहा गया कि यह उनके द्वारा की गई विपरीत अथवा प्रशंसा के रूप में की गई टिप्पणी है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह प्रशंसा के रूप में की गई टिप्पणी है। मुझे समझने में देर नहीं लगी कि यह टिप्पणी शिकार किए गए तेंदुए की रॉयल्टी के भुगतान हेतु चालान भेजने के संदर्भ में ही की गई थी।
(लेखक मध्यप्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक रहे हैं)