जानकारी से ज्यादा अनुभव जरूरी: तभी आपको संसार सुंदर दिखेगा और संसार को आप अच्छे लगेंगे !

author-image
एडिट
New Update
जानकारी से ज्यादा अनुभव जरूरी: तभी आपको संसार सुंदर दिखेगा और संसार को आप अच्छे  लगेंगे !

ओमप्रकाश श्रीवास्तव। शास्त्रों में संसार को माया कहा गया है। कई बार लगता है कि जिस को हम स्पतर्श करते हैं, देखते हैं, सूंघते हैं, सुनते हैं और चख सकते हैं वह यथार्थ है, माया कैसे हो सकता है? यह माया इस रूप में है कि, इस संसार की प्रत्येेक वस्तुत निरंतर परिवर्तनशील है। जो दिख रहा है वह अगले ही क्षण में परिवर्तित हो जाएगा। जो हवा हमें स्प र्श कर रही है अगले ही क्षण उसकी गति, गंध और दिशा बदल जाएगी। जिस कली को हम देख रहे हैं अगले ही क्षण वह फूल बनने की दिशा में परिवर्तित हो जाएगी। सागर की लहरें निरंतर उठेंगीं परंतु उनका स्वशरूप वह नहीं होगा जो एक क्षण पहले था। बादल गरजते हैं पर हर क्षण गर्जन की ध्वोनि भिन्न हो जाती है। अनंत ग्रह, नक्षत्र और आकाश गंगाएं हर क्षण जन्मव ले रहीं हैं और नष्टब हो रहीं हैं । यह भले ही हमें आंखों से न दिखे परंतु नीले आकाश में स्वीरूप बदल रहे बादल, सूर्य और चंद्रमा तो स्पनष्टन दिखते हैं।परिवर्तन अवश्यूम्भाबवी है। निरंतर परिवर्तित संसार, वर्तमान संसार, वर्तमान का यथार्थ है जिसमें हम रह रहें हैं। इस परिवर्तन को अनुभव करना ही तो हमारा संसार का अनुभव है।

ज्ञानेंद्रियों से ही संसार का अनुभव

प्रकृति ने हमें 5 अंग दिए हैं जिनके द्वारा संसार को महसूस किया जाता है । इन्हें ज्ञानेंन्द्रियां (सेंसुअल ऑर्गन) कहते हैं। यह हैं आंख, कान, नाक, जिह्वा, और त्व्चा। आंख के द्वारा हम संसार के विविध रूपों को देखते हैं। कान से विभिन्नञ ध्वयनियां सुनते हैं। नाक गंध का अनुभव कराती है। जिह्वा तो रस अर्थात् स्वाञद का केंद्र है और त्वेचा से स्पेर्श की अनुभूति होती है। इन पांच के अलावा हमारे पास संसार को जानने का अन्यव कोई साधन नहीं है। हम संसार का उतना ही अनुभव कर पाते हैं जितनी हमारी ज्ञानेन्द्रियों की क्षमता है। हम विभिन्नस रंग देख पाते हैं परंतु पशुओं की आंखों में रंग देखने की क्षमता नहीं है। इसलिए हमें जो दुनिया रंग-बिरंगी दिखती है वही गाय के लिए सफेद-स्यामह है। पराश्रव्यि (अल्ट्रा सोनिक) ध्व।नियां चमगादड़ सुन सकते हैं उसे सुन पाना हमारे कानों की क्षमता से बाहर की बात है। इसलिए ध्व नि के माध्याम से संसार की समझ मनुष्योंक और चमगादड़ों की पूरी तरह से भिन्नक होगी। कुत्तेस के सूंघने की क्षमता मनुष्यप से बहुत ज्याादा है अत: गंध के माध्य म से संसार की समझ कुत्तेू के लिए बिल्कुल अलग होगी।

समग्र अनुभव मिलकर बनती है बुद्धिमत्ता

कल्परना करें कि गाय, चमगादड़, कुत्तेू और मनुष्ये को किसी अज्ञात ग्रह पर भेजकर उनसे पृथ्वीय का वर्णन करने को कहा जाए तो उनका वर्णन एक-दूसरे के वर्णन से पूरी तरह से अलग होगा। वे अपनी बात को ही सत्यह कहेंगे, इसे लेकर आपस में लड़ भी सकते हैं, जबकि वास्तीविकता में वे एक ही संसार का वर्णन कर रहे होंगे। इन पांच ज्ञानेन्द्रियों से जानकारी या डेटा हमारे मस्तिष्क में जाता है। वहां यह डेटा प्रोसेस होता है और अनुभव बनता है। फूल को देखने से उसका स्व रूप और सूंघने से आने वाली सुगंध मस्तिष्कर में जानकारी के रूप में संग्रहित होती है। जब यह कई बार होता है तो अनुभव बनता है कि अमुक फूल को सूंघने पर अमुक सुगंध आएगी। तब सुगंध आने पर मस्तिष्को में उस फूल का चित्र बन जाता है और यदि फूल का चित्र दिखता है तो उसकी गंध की कल्प ना हो जाती है। जब कुछ लिखा हुआ पढ़ते हैं तो अक्षरों का रूप मस्तिष्कप में अंकित होकर उसका अर्थ बताता है। जीवन के समग्र अनुभव मिलकर बुद्धिमत्ताष बनते हैं। प्रकृति ने केवल मनुष्यब को यह क्षमता दी है कि वह अपनी ज्ञानेन्द्रियों का उपयोग नियंत्रित कर सकता है और मस्तिष्कक में जाने वाले डेटा का चयन कर सकता है। मस्तिष्कर में जैसा डेटा होगा उसी के अनुरूप संसार दिखाई देगा। ध्यातन के दौरान योगी विचारों को नियंत्रित करता है दूसरे शब्दोंा में मस्तिष्कय में डेटा की प्रोसेसिंग रोक देता है। विचार शून्य मस्तिष्क् संसार से परे ले जाकर उसे परम आनंद से भर देता है।

अनुभव के साथ आता है अहसास

आज से 50 साल पहले जीवन बहुत सरल था। खेत या दुकान पर जाना, रात में आस-पड़ोस या चौपाल पर बैठना, रात होते ही सो जाना और भोर होते ही उठना। यही दिनचर्या थी। जानकारियां खेत खलिहान पास-पड़ोस और मित्र-रिश्तेादारों तक ही सीमित थीं। यही संसार था। संचार तकनीकी के विकास के साथ ही परिदृश्या बदल गया है। सब ओर से हमारे ऊपर जानकारियों की बमबार्डिंग हो रही है। सुबह होते ही हम विभिन्नज संचार माध्यममों से दुर्घटना, अपराध, राजनैतिक चालों, धोखाधड़ी की जानकारियां मस्तिष्कय में फीड करते हैं। सोशल मीडिया वांछित-अवांछित सब उड़ेले जा रहा है। बेचारा मस्तिष्कक तो वैसा का वैसा ही है। जंक इंफॉरमेशन ने मस्तिष्कह को ब्लॉषक कर दिया है। जानकारी बढ़ रही है अनुभव और बुद्धिमत्तां घट रही है। गूगल की जानकारी को ही ज्ञान समझने की भूल हो रही है। जब अनुभव आता है तो यह अहसास भी आता है कि दूसरे का अनुभव इससे भिन्नअ हो सकता है। इसलिए सहिष्णुसता भी आती है। परंतु जब मात्र जानकारी होती है तब यह स्वीएकार करना कठिन होता है कि इससे परे भी कोई जानकारी सत्यत हो सकती है। इसलिए संसार जटिल होता जा रहा है। झगड़े बढ़ रहे हैं। असहिष्णु ता बढ़ रही है।

अवांछित को रोकें तभी मस्तिष्क में वांछित को स्थान मिलेगा

हम आज के समय में अपने ऊपर जानकारियों की बमबार्डिंग को रोक नहीं सकते । हम यह जरूर तय कर सकते हैं कि पांचों ज्ञानेंन्द्रियों के माध्याम से किस जानकारी को अंदर प्रवेश करने दें और किस को नहीं। यह हमारा चुनाव है और हमारी स्वकतंत्रता है। जैसी जानकारी अंदर जाकर प्रोसेस होगी वैसा ही संसार दिखाई देगा। समय ही जीवन है। सोशल मीडिया पर आई हर पोस्ट को पढ़ना या वीडियो को देखना जीवन की बरबादी के साथ-साथ मस्तिष्क में डेटा का कचरा भरना है जो संसार का स्वारूप विकृत कर देता है। वही पढ़ें व देखें जो आपके लिए आवश्योक है। यदि तीन दिन बाद चुनाव की मतगणना होनी है तो साधारण मतदाता को एक्जिट पोल देखकर क्यान मिलेगा। सिवाय समय की बरबादी के। जब हम अवांछित को रोक देंगे तभी वांछित को मस्तिष्क में प्रवेश करने के लिए समय और स्थापन मिल सकेगा।

मन को बुद्धि की लगाम से नियंत्रित करें

तुलसीदास जी ने लिखा है - इंद्री द्वार झरोखा नाना, जहँ तहँ सुर बैठे करि थाना। आवत देखहिं बिषय बयारी, ते हठि देहिं कपाट उघारी।। संसार के अनुभव का प्रवेश द्वार पांच इंन्द्रिया ही हैं जहां मन रूपी देवता बैठे हैं । जैसे ही तात्कापलिक सुख रूपी हवा आती है वे जबरन इंद्रियों का द्वार खोल देते हैं। इस प्रकार मस्तिष्कु में कचरा एकत्र होता है और हमारा संसार विकृत हो जाता है। इसका उपाय भी गीता में बताया है – इन्द्रियाणि पराण्य् आहुर् इन्द्रियेभ्या: परं मन: । मनसस् तु परा बुद्धिर् यो बुद्धे: परतस्तुर स:।। अर्थात् इंद्रियों से मन श्रेष्ठं है मन से बुद्धि श्रेष्ठु है । इस प्रकार बुद्धि की लगाम से मन को नियंत्रित करें। अत: क्याठ पढ़ें, क्याध देखें, क्यार सुनें, किससे मिलें आदि को मात्र मन से ही तय न करें । बुदि्ध विवेक का भी प्रयोग करें। इंद्रियों के माध्य म से मस्तिष्क् में जानकारियों का कचरा न घुसने दें, अनुभव को तरजीह दें। तभी आपको संसार सुंदर दिखेगा और संसार को आप अच्छेा लगेंगे। (लेखक वरिष्ठ रचनाकार, पूर्व आईएएस अधिकारी एवं धर्म, दर्शन और साहित्य, के अध्ये ता हैं।)

इंद्रियों से मन श्रेष्ठ है मन से बुद्धि
Advertisment