भारतीय संस्कृति में विवाह सिर्फ दो व्यक्तियों का नहीं, बल्कि दो परिवारों का मिलन होता है। इस पवित्र बंधन में अनेक रस्में और परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनमें से एक है चूड़ा पहनना।
खासकर उत्तर भारत की पंजाबी, राजस्थानी और हरियाणवी शादियों में यह परंपरा बेहद खास मानी जाती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शादी के बाद चूड़ा पहनना क्यों जरूरी होता है?
💞 चूड़ा पहनने की परंपरा
चूड़ा, जो कि मुख्यतः लाल और सफेद रंग की चूड़ियों का सेट होता है, दुल्हन शादी के दिन से पहनती है। इसे विवाह की पहचान माना जाता है। यह सिर्फ एक ज्वेलरी नहीं, बल्कि नवविवाहिता के नए जीवन की शुरुआत का प्रतीक होता है।
पुराने समय से यह माना जाता है कि चूड़ा पहनने से दुल्हन को नई जिम्मेदारियों के लिए मानसिक रूप से तैयार किया जाता है।
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🌸 शुभता और समृद्धि का प्रतीक
चूड़ा को सौभाग्य, समृद्धि और खुशहाल वैवाहिक जीवन का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि चूड़ा जितनी देर तक दुल्हन के हाथों में रहता है, उतनी ही अधिक खुशियां उसके जीवन में बनी रहती हैं।
इसलिए परंपरा के अनुसार इसे कम से कम 40 दिन और अधिकतम एक साल तक पहना जाता है।
🌼 भावनात्मक और पारिवारिक जुड़ाव
चूड़ा दुल्हन को उसके मायके की याद दिलाता है, क्योंकि यह अक्सर मामा के हाथों से पहनाया जाता है। यह भावनात्मक जुड़ाव विवाह के बाद के संक्रमण काल में उसे मानसिक सहारा भी देता है।
शादी के बाद जब लड़की नए घर में जाती है, तो यह चूड़ा उसके पुराने घर की एक मजबूत याद बनकर साथ रहता है।
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💫 आधुनिक दौर में भी जारी है परंपरा
भले ही समय बदल गया हो, लेकिन चूड़ा पहनने की परंपरा आज भी शहरी और ग्रामीण दोनों इलाकों में बरकरार है। कुछ लोग अब डिजाइनर चूड़ा पहनना पसंद करते हैं, लेकिन इसका सांस्कृतिक महत्व अभी भी उतना ही मजबूत है।
🛕 हिंदू धर्म में चूड़ा पहनने की परंपरा
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विशेषकर पंजाबी, राजस्थानी, और हरियाणवी हिंदू परिवारों में चूड़ा पहनना एक प्रमुख विवाह परंपरा है।
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चूड़ा लाल और सफेद रंग की चूड़ियों से बना होता है, जिसे मामा (मातुल) दुल्हन को शादी के दिन पहनाते हैं।
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यह दुल्हन के सौभाग्य, नए जीवन की शुरुआत, और प्रेमपूर्ण वैवाहिक जीवन का प्रतीक होता है।
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कुछ राज्यों में हरे रंग की चूड़ियों को भी सौभाग्य की निशानी माना जाता है।
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🕉️ सिख धर्म में चूड़ा और कलीरे की परंपरा
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सिख समुदाय में चूड़ा पहनना एक महत्वपूर्ण रस्म होती है, जिसमें विवाह से एक दिन पहले 'चूड़ा चढ़ाना' रस्म होती है।
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चूड़ा के साथ कलीरे भी पहनाए जाते हैं, जो सुख-समृद्धि और नवविवाहित जीवन के प्रतीक माने जाते हैं।
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